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प्रथम पूज्य श्रीगणेश

सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पहले गणेश जी का पूजन आवश्यक माना गया है क्योंकि वे विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं।

By Edited By: Published: Sat, 10 Sep 2016 10:38 AM (IST)Updated: Sat, 10 Sep 2016 10:38 AM (IST)
प्रथम पूज्य श्रीगणेश
सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पहले गणेश जी का पूजन आवश्यक माना गया है क्योंकि वे विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं। इनके स्मरण, ध्यान, जप और आराधना से कामनाओं की पूर्ति और समस्त बाधाओं का नाश होता है। श्रीगणेश बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्रणव यानी' का स्वरूप हैं। श्रीगणेश का जन्मोत्सव श्रीगणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को दोपहर के समय श्री सिद्धिविनायक गणपति प्रकट हुए थे। महाराष्ट्र सहित देश के ज्य़ादातर प्रदेशों में इसी दिन से गणेशोत्सव का शुभारंभ हो जाता है। लोग पूरी श्रद्धा और उत्साह से मंगलमूर्ति की प्रतिमा को अपने घरों में लाते हैं या उन्हें सार्वजनिक स्थलों पर बनाए गए पंडालों में विराजमान करते हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणपति जी का उत्सव बडे धूमधाम से मनाया जाता है। प्रचलित कथा एक प्रचलित कथा के अनुसार पार्वती ने अपने शरीर पर लगाए गए उबटन से एक बालक की आकृति बनाकर उसमें जीवन का संचार करके उसे अपनी गुफा के द्वार पर पहरेदार बना कर खडा किया था ताकि उनके स्नान के समय कोई भी गुफा में प्रवेश न कर सके। उस बालक ने शिवजी को गुफा के भीतर जाने से रोकने की कोशिश की। महादेव ने क्रोधित होकर उसका मस्तक धड से अलग कर दिया। यह देखकर जगदंबा कुपित हो गईं। उन्होंने आदेश दिया कि उत्तर दिशा की ओर दिखने वाला जो भी प्राणी अपनी संतान की तरफ पीठ करके सो रहा हो, उसके शिशु का मस्तक काट कर उनके बालक के धड से जोड दिया जाए। संयोगवश मार्ग में उन्हें एक ऐसी हथिनी दिखी जो अपने शावक की ओर पीठ करके लेटी थी। इसलिए उसी हाथी के शावक का सिर काट कर उस बालक के धड से जोड दिया गया। फिर शिव जी ने उसे गणेश नाम देकर प्रथम पूज्य होने का वरदान भी दिया। शुभ फल की प्राप्ति के लिए गणेश पूजन के साथ उनके संपूर्ण परिवार का भी पूजा करनी चाहिए। ऋद्धि-सिद्घि उनकी पत्नियां है, शुभ-लाभ उनके दोनों पुत्र हैं। स्वस्तिक का चिह्न (॥ "॥) गणपति के पूरे परिवार की द्योतक है। स्वस्तिक स्वयं गणपति हैं और उसके दोनों ओर की रेखाएं (॥) उनकी पत्नियां और पुत्र हैं। ऐसी मान्यता है कि गणपति जी की आराधना से अज्ञान के काले बादल छंट जाते हैं। उनकी कृपा-दृष्टि से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसीलिए विघ्नहर्ता श्रीगणेश प्रथम पूजनीय माने गए हैं। द्य गणेश जी को हरी दूब क्यों चढाई जाती है? दूर्वा यानी दूब एक तरह की घास होती है, जो गणपति जी को अत्यधिक प्रिय है। प्रचलित कथा के अनुसार एक बार गणेश जी ने अनलासुर नामक दैत्य से संसार को मुक्ति दिलाने के लिए उसे निगल लिया था। उसके बाद उनके पेट में जलन होने लगी तो उसे शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बना कर उन्हें खाने के लिए दीं। इससे उनके पेट की जलन शांत हो गई। उसके बाद से ही श्रीगणेश को दूर्वा या दूब चढाने की परंपरा प्रारंभ हुई। अमावस्या -1 सितंबर हरतालिका तीज-4 सितंबर गणपति उत्सव प्रारंम -5 सितंबर जल-झूलनी एकादशी -12 सितंबर अनंत चतुर्दशी-15 सितंबर पूर्णिमा -16 सितंबर पितृपक्ष आरंभ -17 सितंबर जीउतिया व्रत -23 सितंबर इंदिरा एकादशी -26 सितंबर पितृ विसर्जन अमावस्या -30 सितंबर संध्या टंडन

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