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जमीन का मालिक भी है उपभोक्ता

ऐसा जमीन मालिक भी उपभोक्ता है, जो निर्माण कार्य के लिए किसी बिल्डर से कॉन्ट्रैक्ट करता है। इस विषय की जानकारी सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट कमलेश जैन से।

By Edited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 10:39 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 10:39 AM (IST)
जमीन का मालिक भी है उपभोक्ता
उपभोक्ता कौन है? इसे लेकर वर्ष 2002 में एक संशोधन हुआ और उपभोक्ता की परिभाषा बदल गई। इस संशोधन को वर्ष 2003 से लागू किया गया। कंज्य़ूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2003 के अनुसार, 'हर वह व्यक्ति, जो किसी से ऐसा कानूनी लेन-देन करता है, जिसका उसके बिजनेस या औद्योगिक गतिविधि से कोई संबंध न हो, उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।' इस संशोधन के अनुसार, जमीन का वह मालिक भी उपभोक्ता की श्रेणी में आएगा, जो किसी बिल्डर से निश्चित अवधि में मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने का एग्रीमेंट करता है। अगर बिल्डर इसे बनाने में देरी करता है तो उपभोक्ता होने के नाते जमीन का मालिक उस पर हानि के लिए सेवा में कमी का मुकदमा दायर कर सकता है। वासुदेव कंस्ट्रक्शंस का केस सुप्रीम कोर्ट ने बुंगा डेनियल बाबू बनाम श्री वासुदेव कंस्ट्रक्शंस के मामले में जुलाई 2016 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि ऐसा भू-स्वामी, जो बिल्डर से निर्माण-कार्य कराने के लिए एग्रीमेंट करता है, उपभोक्ता नहीं है क्योंकि उसकी मंशा फ्लैट्स बेचकर या किराये पर देकर लाभ कमाने की होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नजरिया भ्रामक है। इससे पहले जिला फोरम ने बिल्डर के खिलाफ जमीन के मालिक की शिकायत को सही माना था। मामला राज्य उपभोक्ता आयोग में पहुंचा। स्टेट कमिशन ने पाया कि बिल्डर से दो से अधिक प्लॉट्स के लिए एग्रीमेंट किया गया था और शिकायतकर्ता का मकसद उन्हें बेचने, किराये पर देने या किसी तरह से लाभ कमाने का था। यह पूरा लेन-देन कमर्शियल उद्देश्य से किया गया, इसलिए जमीन के मालिक को शिकायत का अधिकार नहीं है क्योंकि वह 'उपभोक्ता' नहीं है। स्टेट फोरम के इस फैसले पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी मुहर लगा दी। इसके बाद जमीन का मालिक सुप्रीम कोर्ट में गया। एपेक्स कोर्ट बेंच ने मामले की पूरी छानबीन की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह देखने की जरूरत है कि क्या बिल्डर और शिकायतकर्ता के बीच कोई जॉइंट वेंचर एग्रीमेंट हुआ है? एग्रीमेंट के अनुसार जमीन का मालिक न तो पार्टनर है और न ही निर्माण-कार्य पर उसका कोई नियंत्रण है। उसने अपनी जमीन बिल्डर को निर्माण के लिए दी और बिल्डर ने उसे आश्वस्त किया कि वह निश्चित समय पर निर्माण करके देगा, इसलिए इस मामले में वह उपभोक्ता है। पजेशन में देरी एक अन्य मामले अनिल कुमार बट्टा बनाम यूनिटेक हाइटेक डेवलपर लिमिटेड में हाउसिंग सोसाइटी ने फ्लैट का अलॉटमेंट कर दिया था पर निर्धारित समय-सीमा के भीतर पजेशन नहीं दिया। इसे सेवा में कमी माना जाता है। हाउसिंग कंपनी ने अपने एग्रीमेंट में कहा था कि परिस्थितिवश कोई अडचन आ जाए या पजेशन में देरी हो जाए तो इसके लिए वह जिम्मेदार नहीं होगी। इस दलील को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने ठुकरा दिया। कारण यह कि अलॉटमेंट की तिथि से छह वर्ष गुजर गए। हाउसिंग कंपनी उपभोक्ता के पैसे छह वर्ष से अपने काम के लिए यूज कर रही है, इसलिए उसे आदेश दिया गया कि वह जल्दी फ्लैट तैयार करके उपभोक्ता को पजेशन दे। साथ ही जमीन मालिक को मुआवजा व किराया दे। ऐसा ही फैसला पेरिन बजुन दित्ता बनाम एम्मार हिल्स टाउनशिप प्रा.लि. के मामले में दिया गया। इसमें भी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा कि जिस दिन से फ्लैट ओनर को पजेशन दिया जाना है, उसी दिन से लिमिटेशन शुरू हो जाता है। अगर बिल्डर ऐसा करने में चूक रहा है तो उसे 10 प्रतिशत सूद के साथ रिफंड दिया जाएगा। शिकायतकर्ता जीवित हो क्लेम करने के लिए उपभोक्ता का जीवित होना भी जरूरी है। यदि मुकदमे के दौरान उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके प्रतिनिधि को इसकी सूचना कोर्ट को देनी होगी। एलआईसी ऑफ इंडिया बनाम सुनीता के मामले में मूल शिकायतकर्ता सुनीता की मृत्यु हो गई। दूसरे शिकायतकर्ता ने इसकी सूचना कोर्ट को दिए बिना या शिकायतकर्ता के उत्तराधिकारियों को पार्टी बनाए बिना केस लडा। इस मामले में कोर्ट के सभी आदेश निरस्त हो गए, कारण यह कि मृत व्यक्ति मुकदमा नहीं लड सकता। उसके उत्तराधिकारी ही केस लड सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें पहले कोर्ट को सूचना देनी होगी।

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