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क्या आप हैं अच्छे नागरिक

कचरा प्रबंधन भारत के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है।स्वीडन और जर्मनी जीरो वेस्ट का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं लेकिन हमारे देश में वेस्ट मैनेजमेंट पर पर्याप्त काम नहीं हो पा रहा है

By Edited By: Published: Fri, 19 Aug 2016 12:51 PM (IST)Updated: Fri, 19 Aug 2016 12:51 PM (IST)
क्या आप हैं अच्छे नागरिक
कुछ वर्ष पूर्व हिल स्टेशन पर प्लास्टिक बैग्स, बोतलों और चिप्स के पैकेट्स का कचरा फैलाने वाले पर्यटकों के सामने स्थानीय युवाओं ने ऐसा उदाहरण पेश किया कि वहां मौजूद तमाम लोगों को सबक मिल गया। युवाओं ने सबके सामने कूडा एकत्र किया और एक बडे थैले में भर कर ले गए। पूरे देश में स्वच्छता की मुहिम चल रही है, ऐसे में हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने घर और आसपास भी सफाई का ध्यान रखे और अपने स्तर पर पहलकदमी ले। आदतें सुधारें देश में स्मार्ट सिटीज बनाने की बातें की जा रही हैं। क्या स्मार्ट नागरिकों के बिना यह सपना पूरा हो सकता है? ऑफिस, सार्वजनिक स्थलों की सीढिय़ों, लिफ्ट्स, कैंटीन, गमलों में पान थूकना, मसाले के रैपर्स इधर-उधर फेंकना, घर का कूडा सडक पर डाल देना, छत, बैलकनी या सीढिय़ों की सफाई करके गंदगी को यहां-वहां बिखेर देना, अपने घर में कंस्ट्रक्शन कार्य कराते हुए सडक या दूसरों के घरों के आगे मलबा डाल देना...यह तो नागरिक धर्म नहीं हो सकता। देश से प्यार करने का एक तरीका यह भी है कि आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखें। समस्या को बडा न बनाएं महानगरों में वेस्ट मैनेजमेंट एक बडी समस्या है। कचरा प्रबंधन के लिए कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं आगे आई हैं। माना जाता है कि प्लास्टिक और मेटल्स का कचरा सबसे भयावह है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ई-वेस्ट भी बडी समस्या बन गया है। बडे शहरों और महानगरों में सबसे अधिक कूडा पनपता है, इसलिए वेस्ट मैनेजमेंट यहां की बडी समस्या है। बात करें राजधानी की तो यहां पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में कचरे का पूरा पहाड है और यहां से गुजरना किसी त्रासदी से कम नहीं होता। यह दिल्ली के चार-पांच कचरा संग्रह केंद्रों में से एक है लेकिन यहां तय मात्रा से कहीं अधिक कचरा एकत्र हो चुका है। कोई वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण अब भी कूडा डाला जा रहा है। घरों का कचरा जरा अपने घरों में झांकें। सामान खरीदते हुए क्या हम सोचते हैं कि कितना कूडा घर में जमा कर रहे हैं? कुछ ही वर्षों में घर प्लास्टिक, कांच, सीसा और ई-कचरे के स्टोर में तब्दील हो जाता है। माना जाता है कि एक व्यक्ति रोज औसतन आधा किलो कूडा पैदा करता है। क्लीन इंडिया वेंचर के डायरेक्टर अभिषेक गुप्ता कहते हैं, 'इस समस्या को हर बार नगर निगम पर नहीं छोडा जा सकता। अपने स्तर पर भी प्रयास करने होंगे। आजकल ऐसी कई तकनीकें हैं, जिनकी मदद से कूडे को रीसाइकिल किया जा सकता है। कई सोसाइटीज में आरडब्ल्यूए ग्रीन वेस्ट रीप्रोसेसर तकनीक की मदद ले रही हैं। इससे पूरी सोसाइटी का कूडा एक जगह एकत्र होता है। यह प्लांट कूडे से खाद बनाता है, जिसका उपयोग पेड-पौधों के लिए हो सकता है।' खुद करें पहल कहते हैं, किसी भी बेहतर काम की शुरुआत अपने घर से की जानी चाहिए। दिल्ली स्थित इनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड ऐक्शन ग्रुप 'चिंतन' की चित्रा मुखर्जी कहती हैं, 'यह पहल शुरू करने के लिए 'थ्री आर' यानी रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकिल का ध्यान रखना जरूरी है। आधे से भी ज्य़ादा कूडा ऑर्गेनिक होता है। अगर घर से ही कूडे को अलग-अलग कर दें तो इसका प्रबंधन करने में आसानी होगी। इसके लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं 1. गीले कूडे को घर में कंपोस्ट कर सकते हैं क्योंकि ऐसे कूडे से बदबू फैलती है और बीमारियां पैदा होती हैं। गुडग़ांव, बेंगलुरू, मैसूर में कंपोस्टिंग की प्रक्रिया तेजी से बढ रही है। (इसके लिए मार्केट में टेराकोटा के तीन पॉट्स मिलते हैं) गीले कूडे को कंपोस्ट करके पौधों को हरा-भरा करने के काम में ला सकते हैं। 2. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट भी बडी समस्या है। बेकार घडिय़ां, मोबाइल, कंप्यूटर-लैपटॉप या बैटरी आदि को डस्टबिन में न डालें क्योंकि इनसे एसिड और भयानक गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण के लिए तो घातक हैं ही, कूडा बीनने वालों की जिंदगी पर भी भारी पड सकती हैं। हर शहर में कुछ ऐसी संस्थाएं होती हैं जो ई कचरे को एकत्र करती हैं। इनके बारे में पता करें और यह कचरा उन्हें सौंपें। 3. कूडे को कभी मिक्स न करें। घर से ही गीले और सूखे कूडे को अलग-अलग कर लें। जरा से पैसे के लालच में इलेक्ट्रॉनिक गुड्स को कबाडी को न बेचें। 4.प्लास्टिक बैग्स या पॉलीथिन के बजाय कपडे या जूट के थैलों का इस्तेमाल सामान खरीदने के लिए करें। आजकल ज्य़ादातर जगहों पर प्लास्टिक बैग्स का चलन बंद हो गया है इसलिए मार्केट जाने से पहले अपने साथ कपडे का थैला रखें। 5.किचन के लिए प्लास्टिक की चीजे खरीदने से बचें। इसके अलवा ज्य़ादा पैकेजिंग वाली चीजें भी न खरीदें। 6.बोतलबंद पानी या ड्रिंक्स कम से कम खरीदें। घर से बाहर निकलते हुए अपने साथ पानी की बोतल साथ ले जाएं। इससे अतिरिक्त बोतल खरीदने से बचेंगे। 7.पुराने कपडों, कार्पेट्स, फर्नीचर्स, शोपीसेज आदि डोनेट करें। उन्हें वर्षों तक संजो कर न रखें। 8.घरों का कुछ कचरा न तो रीयूज किया जा सकता है और न ही इनकी रिसाइक्लिंग की जा सकती है। अगर इन्हें यूं ही कूडे में फेंका जाए तो इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। जैसे ट्यूबलाइट्स, पेंट, टीवी, बल्ब या बैटरीज। इनका प्रयोग कम से कम करें। 9.सैनिटरी पैड्स का मैनेजमेंट भी एक बडी समस्या है। ज्य़ादातर पैड्स में 80 फीसदी तक प्लास्टिक होता है। हालांकि अब निर्माताओं के लिए नियम लागू किया गया है कि वे प्लास्टिक को कम से कम करें। यह नियम भी है कि निर्माता सैनिटरी पैड्स के साथ पैकेट्स देंगे, जिनमें यूज किए गए पैड्स को रखा जाए। ऐसे कचरे को जलाएं नहीं क्योंकि इससे खतरा पैदा हो सकता है। इसे कहीं गड्ढे में दबा सकते हैं क्योंकि अभी तक इसका कोई सही-सही सॉल्युशन नहीं मिल सका है। इसे अन्य कूडे के साथ न मिलाएं। 10.कूडे को न तो खुद जलाएं और न ही आसपास किसी को जलाने दें। आंकडों से डरें नहीं, संभले विश्व में रोज 4.7 मिलियन टन कूडा निकलता है, जो वर्ष 2025 में छह मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। भारत में अकेले 0.14 मिलियन टन कूडा निकलता है। केवल 83 प्रतिशत को ही एकत्र किया जाता है, जिसमें 29 प्रतिशत का ही निपटारा हो पाता है। दिल्ली में चार बडे कूडा संग्रह केंद्र हैं और एक्सपर्ट्स का मानना है कि 50 फीसदी को कंपोस्ट और 30 फीसदी को रीसाइकिल किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। यही हाल अन्य महानगरों का भी है। इसलिए समस्या से बचने के लिए कूडा कम निकालने, उसे रीयूज करने और कंपोस्ट करने की कोशिशें जरूरी हैं। इंदिरा राठौर

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