क्या लोगों में सहनशीलता कम हो रही है?
आजकल ज्य़ादातर लोगों को ऐसा महसूस हो रहा है कि युवाओं में धैर्य की कमी है और समय के साथ उनकी सहनशीलता घटती जा रही है। इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं दोनों पीढिय़ां, आइए जानते हैं सखी के साथ।
अधीर हो रहे हैं युवा मीरा जैन, उज्जैन सहनशीलता शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। इसलिए सबसे पहले मैं यह कहना चाहूंगी कि जब अन्याय या शोषण की बात आए तो सभी को उसका मुखर विरोध करना चाहिए। हां, जहां तक युवाओं में सहनशीलता घटने की बात है तो इसकी प्रमुख वजह यह है कि नई पीढी बेहद महत्वाकांक्षी है। वह दिन-रात दौलत और शोहरत हासिल करने की होड में जुटी रहती है। उसमें जरा भी धैर्य नहीं है। इसी वजह से नई पीढी के लोग दूसरों की बातें सुनने और समझने को तैयार नहीं होते। उनके पास अपने बुजुर्ग माता-पिता के लिए भी समय नहीं होता। आज के युवा सिर्फ अपनी तरक्की के बारे में सोचते हैं लेकिन इसके साथ ही उन्हें आसपास के लोगों का भी खयाल रखना चाहिए। यहां युवाओं की जिम्मेदारी इसलिए भी बढ जाती है क्योंकि उम्र ज्यादा होने की वजह से पुरानी पीढी के लोग अपने भीतर अधिक बदलाव नहीं ला सकते।
युवाओं को दोषी न ठहराएं रुचि चौरसिया, बरेली यह सच है कि आज के युवाओं में सहनशीलता घटती जा रही है। नई पीढी के पास जरा भी धैर्य नहीं है। रोड रेज की वजह से होने वाली सडक दुर्घटनाओं की बढती तादाद इसका सबसे बडा प्रमाण है। यह स्थिति भयावह है लेकिन इसके लिए पूरी तरह उन्हीं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दरअसल बचपन में उन्हें जैसी परवरिश मिली होती है, उसी के आधार पर उनका व्यक्तित्व बनता है। इसमें सुधार लाने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएं।
विशेषज्ञ की राय विशेषज्ञ की राय समय के साथ हर समाज की सोच में बदलाव आना स्वाभ्भाविक है। यह सच है कि पुराने जमाने की तुलना में आज जीवन की गति बहुत तेज हो गई है। आज लोगों के पास काम बहुत ज्य़ादा और समय कम है। आज हर इंसान अति व्यस्त और तनावग्रस्त है। उसे जरा सी देर बर्दाश्त नहीं होती। जीवन में सब कुछ, सबसे ज्य़ादा और पहले पा लेने की होड युवाओं को असहनशील बना रही है। उनका व्यवहार उग्र होता जा रहा है। इसी वजह से युवाओं में एंग्जायटी, डिप्रेशन और हाइपरटेंशन जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं तेजी से बढ रही हैं।
इससे बचने के लिए सबसे पहले उन्हें आत्म मूल्यांकन करते हुए धीरे-धीरे अपनी सोच में बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए। जहां तक पाठिकाओं के विचारों का सवाल है तो बुजुर्ग पाठिका मीरा जैन का यह कहना बिलकुल सही है कि सहनशील होने का मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति अत्याचार सहन करता रहे। जहां जरूरत हो, वहां हर इंसान को मुखर विरोध भी करना चाहिए। युवा पाठिका रुचि चौरसिया के विचारों से यह साबित होता है कि देश की नई पीढी इस समस्या की गंभीरता समझते हुए इसका हल ढूंढना चाहती है। अगर युवाओं में मन में मजबूत इच्छा-शक्ति हो तो धीरे-धीरे वे अपनी ऐसी आदतों में बदलाव ला सकते हैं। गीतिका कपूर, मनोवैज्ञानिक सलाहकार
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