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आज मूड नहीं है...

आज नहीं, आज सिर में दर्द है, मूड नहीं है डियर, आज बहुत थक गई हूं....सेक्स संबंधों से दूर भागने के लिए अकसर ये बहाने बनते हैं, मगर लंबे समय तक ये चलते रहे तो रिश्तों में दरार पड़ सकती है।

By Edited By: Published: Thu, 29 Jan 2015 04:41 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 04:41 PM (IST)
आज मूड नहीं है...

आज नहीं, आज सिर में दर्द है, मूड नहीं है डियर, आज बहुत थक गई हूं....सेक्स संबंधों से दूर भागने के लिए अकसर ये बहाने बनते हैं, मगर लंबे समय तक ये चलते रहे तो रिश्तों में दरार पड सकती है। वैवाहिक जीवन में ख्ाुशियां चाहते हैं तो दांपत्य जीवन में सेक्स की अहमियत समझें।

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सेक्सुअल डिस्फंक्शन को लेकर आमतौर पर खुल कर बात नहीं की जाती। इस कारण इसके बारे में भ्रांतियां और ग्ालत जानकारियां प्रचारित होती हैं। आमतौर पर सेक्स संबंधों में स्त्री को पैसिव पार्टनर माना जाता है, शायद यह भी एक वजह है कि उनकी सेक्सुअल हेल्थ को नज्ारअंदाज्ा किया जाता है या ऐसा माना ही नहीं जाता कि उन्हें कोई समस्या हो सकती है। स्त्रियों की ज्य़ादातर समस्याएं महज्ा इसीलिए लंबे समय तक चलती हैं कि इन्हें लेकर वे डॉक्टर के पास नहीं जातीं। ज्य़ादातर समस्याएं चिकित्सीय सलाह से ठीक हो सकती हैं। फोर्टिस ला फेम की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. विमल ग्रोवर दे रही हैं इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां।

पेनफुल इंटरकोर्स

इंटरकोर्स के दौरान दर्द की शिकायत सबसे आम है। दर्द शारीरिक-मानसिक दोनों िकस्म का हो सकता है। एक्सपट्र्स की मानें तो 90 फीसद मामलों में यह भावनात्मक समस्या है।

पेल्विक डिसॉडर्स या सेक्सुअली ट्रांस्मिटेड डिज्ाीज्ा (एसटीडी) के कारण सेक्स संबंधों में दर्द की शिकायत हो सकती है। वजाइनल ड्राइनेस, वैज्िानिज्मस या टाइट वजाइना के कारण भी दर्द हो सकता है। किसी सर्जरी के बाद भी सेक्स संबंधों में दर्द की शिकायत हो सकती है, इसलिए स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह ज्ारूरी है। भावनात्मक असुरक्षा, अतीत में हुआ कोई हादसा या बुरा संबंध, तनावपूर्ण रिश्ते, सेक्सुअल अब्यूज्ा या पार्टनर के प्रति अविश्वास के कारण मन ख्ाुद को सेक्स के लिए तैयार नहीं कर पाता और शरीर भी ऐसे समय में ख्ाुद को संकुचित कर लेता है।

सेक्सुअल डिज्ाायर्स में कमी

रिश्तों में समस्या, समझदारी की कमी, नैगिंग, निरर्थक बहस, घरवालों के कारण तनाव, करियर में समस्या के अलावा अब्यूसिव रिलेशनशिप के कारण सेक्सुअल डिज्ाायर्स में कमी आ सकती है। इसके अलावा अवसाद, कुंठा, तनाव, आत्मग्लानि, हीन-भावना या किसी अपराध-बोध के कारण लो लिबिडो की शिकायत हो सकती है। फटीग, दवाओं या सेक्स को लेकर संकुचित दृष्टिकोण के कारण भी डिज्ाायर्स कम हो सकती हैं। कुछ ख्ाास शारीरिक स्थितियों जैसे सर्जरी के बाद, प्रेग्नेंसी के कुछ चरणों या डिलिवरी के बाद भी लो लिबिडो जैसी शिकायतें हो सकती हैं। लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे तो डॉक्टर, थेरेपिस्ट या मनोवैज्ञानिक की मदद लेनी चाहिए।

ऑर्गेज्म न होना

ऑर्गेज्म तक पहुंचना कई स्त्रियों के लिए असंभव लक्ष्य है। शायद इसी वजह से यह धारणा भी बन गई है कि ऑर्गेज्म को लेकर स्त्रियां आमतौर पर झूठ बोलती हैं। ऑर्गेज्म के लिए पर्याप्त उत्तेजना न होना, सेक्स के दौरान अपनी बॉडी लैंग्वेज और रिस्पॉन्स को न समझ पाना और पार्टनर के साथ सही संवाद न होना ऑर्गेज्म की राह में तीन बडी रुकावट हैं। सर्जरी के बाद नव्र्स डैमेज होने के कारण भी इंटरकोर्स में होने वाले सेंसेशन में कमी आती है। अमूमन स्त्रियां सेक्स डिज्ाायर्स को लेकर सजग नहीं रहतीं। आजकल लेट मैरिज और सेक्स को लेकर अतिरिक्त अपेक्षाओं के कारण भी ऑर्गेज्म प्रॉब्लम्स देखी जा रही हैं। जैसे पुरुष पार्टनर फोरप्ले न करे या स्त्री की सेक्स इच्छाओं को न समझे तो उसकी पार्टनर ऑर्गेज्म तक नहीं पहुंच सकती। यहां यह ध्यान में रखना ज्ारूरी है कि सेक्स में ख्ाुशी के लिए दोनों को पहल करनी होगी, ख्ाासतौर पर स्त्री को ऐक्टिव पार्टनर की भूमिका निभानी होगी। सेक्स में असंतुष्टि लो लिबिडो को जन्म दे सकती है। सेक्सुअल क्लाइमेक्स तक पहुंचने में लगातार समस्या हो तो एक्सपर्ट की सलाह लें ताकि किसी शारीरिक समस्या का पता चल सके।

अलग-अलग डिज्ाायर्स

तीन प्रमुख कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी सेक्सुअल डिस्फंक्शन को बढाते हैं। एक सेक्सपर्ट के मुताबिक पार्टनर्स की अलग-अलग अपेक्षाएं डिस्फंक्शन की बडी वजह हैं। अगर दोनों में से एक की सेक्स डिज्ाायर्स ज्य़ादा हों और दूसरे की कम हों तो सेक्स संबंध सहज नहीं रह पाते। यानी डिज्ाायर्स का अलग-अलग स्तर सेक्स संबंधों में बाधक बनता है। असल कारणों को समझने के लिए थेरेपिस्ट को पहले दोनों से साथ-साथ और फिर अलग-अलग मिलना पडता है। सिटिंग्स के बाद पता चलता है कि एक पार्टनर दूसरे की स्टाइल, कपडों के चयन, दृष्टिकोण, ख्ाुशबू और यहां तक कि सेक्स के दौरान ख्ाास तरह के शब्दों के प्रयोग को पसंद नहीं करता। सेक्सुअली फिट होने के बावजूद ऐसे मामलों में सेक्स डिज्ाायर्स में कमी हो सकती है। थेरेपिस्ट उन्हें स्वस्थ एवं सहज संवाद के लिए प्रेरित करता है। उन्हें कम्युनिकेशन स्किल्स सिखानी पडती हैं, ताकि वे एक-दूसरे की पसंद-नापसंद, ज्ारूरतों-इच्छाओं, शरीर के ख्ाास हिस्सों पर स्पर्श के तरीके जान सकें और अतीत में हुए बुरे अनुभवों से मुक्त हो सकेें। हर दंपती की समस्याएं व स्थितियां अलग होती हैं, इसी के अनुसार उन्हें सेक्सुअल कम्युनिकेशन स्किल्स सिखाई जाती हैं।

समय की कमी

आधुनिक जीवनशैली में समय की कमी बडी समस्या है। कई बार इसके कारण सेक्स लाइफ ही नहीं, वैवाहिक जीवन भी बर्बाद हो जाता है। नीता मखीजा (नाम परिवर्तित) ने हाल ही में अपने पति से अलग होने का फैसला लिया है। मामला कोर्ट में है। वह बताती हैं, 'हमारी अरेंज्ड मैरिज हुई थी। न तो प्यार में कमी थी, न विवाहेतर संबंध था। समस्या समय की थी। शिफ्ट वाली नौकरी थी। एक घर आता तो दूसरा ऑफिस निकलने की तैयारी में होता। इसी बीच मेरे पति का ट्रांस्फर हुआ तो मुझ पर नौकरी छोडऩे का दबाव पडऩे लगा। मैं करियर के बेहतरीन मोड पर थी, मेरा प्रमोशन होने वाला था, ऐसे में दूसरे शहर नहीं जा सकती थी। विवाद यहीं से शुरू हुए, फिर दूरी बढी तो ग्ालतफहमियां पैदा हुईं और झगडे शुरू हो गए। परिवार के लोगों ने आग में घी डालने का काम किया। इसके लिए शायद हम ही दोषी हैं या स्थितियां...। मगर सच यही है कि हमने ज्िांदगी के सबसे अहम रिश्ते को नौकरी और तनावों की भेंट चढा दिया...।

सेहत समस्याएं

प्रसव के बाद हॉर्मोनल बदलावों के कारण भी सेक्स इच्छाएं घटती हैं। पेरेंटिंग की ज्िाम्मेदारियां सेक्स जीवन में बाधक बनती हैं। मेनोपॉज्ा के दौरान स्त्रियों की सेक्स डिज्ाायर्स में कमी आती है, जबकि पुरुषों की डिज्ाायर्स पहले जैसी ही रहती हैं। इससे भी संबंधों में खटास आ सकती है। सी-सेक्शन डिलिवरी के बाद भी शरीर लंबे समय तक सेक्स क्रिया के लिए तैयार नहीं हो पाता। स्पाइन सर्जरी या किसी अन्य सर्जरी के बाद सेक्स डिज्ाायर्स में कमी आ सकती है।

भावनात्मक जुडाव में कमी

दंपती के बीच भावनात्मक लगाव न हो तो संबंध सहज नहीं हो सकते। संवादहीनता से इमोशनल प्रॉब्लम्स बढती हैं। अमूमन दंपती सेक्स संबंध को भी रुटीन की तरह लेने लगते हैं। भावनात्मक जुडाव प्रेम से पैदा होता है और प्रेम धीरे-धीरे ही गहरा होता है।

डॉ. ग्रोवर कहती हैं, 'सेक्सुअल डिस्फंक्शन लंबे समय तक चलता रहे तो मेडिकल, नॉन-मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ ही काउंसलिंग करनी होती है। समस्या को हर स्तर पर समझने के बाद ही इलाज शुरू होता है।'

यदि दंपती धैर्य रखें, एक-दूसरे के प्रति समझदारी बढाएं, दूसरे की ज्ारूरतों को समझें और रिश्तों को थोडा वक्त दें तो उनकी ज्य़ादातर सेक्स समस्याएं सुलझ सकती हैं।

इंदिरा राठौर


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