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शादी में व्यावहारिक होना जरूरी : चेतन भगत-अनुषा

एक दक्षिण भारतीय लड़की और पंजाबी लड़के की मुलाकात होती है। मुलाकात दोस्ती में बदलती है और फिर कुछ समय बाद दोनों शादी कर लेते हैं। चेतन भगत और उनकी जीवनसंगिनी अनुषा की प्रेम कहानी को ज्य़ादातर लोग चेतन भगत के नॉवल 'टू स्टेट्सÓ से जानते हैं, जिस पर फिल्म बन चुकी है। इस प्रेम कहानी के कुछ और रोचक चैप्टर्स पढ़ें यहां।

By Edited By: Published: Thu, 20 Nov 2014 04:15 PM (IST)Updated: Thu, 20 Nov 2014 04:15 PM (IST)
शादी में व्यावहारिक होना जरूरी : चेतन भगत-अनुषा
सलेब्रिटी लेखक चेतन भगत और उनकी हमसफर अनुषा की शादी को छह साल हो चुके हैं। जुडवां बच्चों के माता-पिता हैं ये। दोनों अलग-अलग राज्यों व पृष्ठभूमि से आते हैं। मगर इन्होंने साथ चलने का फैसला लिया और आज ख्ाुश हैं।

पहली मुलाकात

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अनुषा : फिल्म 'टू स्टेट्स के अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट की तरह ही मिले हम। जगह थी- आइआइएम अहमदाबाद का मेस। मुझे वहां का खाना पसंद नहीं आता था। एक दिन खाने की लाइन में खडी थी। मेरे पीछे चेतन खडे थे। मैं खाना देखकर नाक-भौं सिकोड रही थी। चेतन मेरे चेहरे के हाव-भाव से समझ चुके थे कि मेरे मन में क्या चल रहा है?

चेतन: फिर क्या था, मैंने झट से उन्हें बाहर किसी रेस्तरां में खाने का ऑफर दिया। अनुषा मान गईं और हम वहां गए। ख्ाूब बातें हुईं। अनुषा इतनी क्यूट थीं कि कैंपस के कई लडके इनके संग िकस्मत आज्ामाना चाहते थे, मगर मैं पहला लडका था, जिसके साथ अनुषा बाहर जाने को राजी हुईं।

उत्तर-दक्षिण का मेल

अनुषा : मैं तमिलियन हूं, मगर मेरा जन्म बेंगलुरू में हुआ है, पली-बढी कोलकाता में। मेरा एक छोटा भाई है। हम पारंपरिक मूल्यों वाले हैं, लेकिन कंज्ार्वेटिव नहीं हैं। मेरी पढाई-लिखाई कोलकाता के ला मार्टिनियर, दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज और आइआइएम अहमदाबाद से हुई।

चेतन : मैं दिल्ली के पंजाबी परिवार का हूं। पिता आर्मी में थे और मां एग्रीकल्चर विभाग में। धौला कुआं के आर्मी पब्लिक स्कूल से स्कूली शिक्षा हुई, फिर आइआइटी दिल्ली और आइआइएम अहमदाबाद मेरी ज्िांदगी में बतौर अध्याय जुडे।

अनुषा : वैसे मैं नहीं मानती कि लडका-लडकी दोस्त हैं तो भविष्य में प्यार होगा ही। मेरे लिए दोस्ती सामान्य बात है। मुझे नहीं लगता कि वास्तविक जीवन में अकसर दोस्ती प्यार में बदलती होगी।

चेतन: फिल्मों से शायद वह साइकी पनपी है। मुझे लगता है कि दोस्ती और प्यार दो अलग-अलग रिश्ते हैं। दोनों के अलग मायने हैं। दोनों का घालमेल नहीं करना चाहिए।

शादी की अवधारणा

अनुषा : वक्त के साथ शादी की परिभाषा बदली है। मुझे लगता है कि हमें युवाओं के सामने शादी की सच्ची व व्यावहारिक तसवीर पेश करनी चाहिए। लोग सोचते हैं कि कॉलेज के बाद जॉब मिल जाएगी और फिर शादी के बाद लाइफ मज्ा े में बीतेगी। मगर रिश्ते की अग्नि-परीक्षा शादी के बाद ही शुरू होती है। यह ज्ारूरी नहीं है कि आपकी अपेक्षाएं शादी के बाद पूरी हो ही जाएं।

चेतन : मैं अनुषा की राय से सहमत हूं। शादी ज्िांदगी के अहम फैसलों में से एक है। इसमें जल्दबाज्ाी नहीं करनी चाहिए। सोच-समझकर फैसले लें। माता-पिता की भी ज्िाम्मेदारी है कि वे बच्चों पर प्रेशर न डालें।

जीवनसाथी की परीक्षा

अनुषा : अमूमन हम रंग-रूप और कद-काठी देखकर जीवनसाथी को चुन लेते हैं। एकाध मुलाकात में ही साथ चलने का निर्णय ले लेते हैंं। जबकि दोनों को एक-दूसरे से सवाल करना चाहिए कि वे कैसी ज्िांदगी जीना चाहते हैं, कैसे पेरेंट्स बनना चाहते हैं।

चेतन : जो लोग पहले बातचीत नहीं करते, बाद में उनके सामने समस्याएं आती हैं। उनकी दांपत्य ज्िांदगी ख्ातरे में पडती है। रोमैंस और इमोशंस में बहकर शादी नहीं करनी चाहिए। यथार्थ को देखना बहुत ज्ारूरी है।

प्यार और पैसा दोनों ज्ारूरी

अनुषा : सफल शादी के लिए प्यार व पैसा दोनों चाहिए। पहले शादी में रुतबा-ओहदा देखा जाता था, आज प्यार ज्य़ादा जरूरी है, क्योंकि लडकियां आत्मनिर्भर हैं।

चेतन : कई बार साथी से ज्य़ादा अपेक्षाएं घातक होती हैं। आज के लडके-लडकियां डिमांडिंग हैं। वे चाहते हैं कि साथी उनकी ज्ारूरतें पूरी करे, उन्हें प्रेरित करे और रिश्ता स्थायी बना रहे। सारी चीज्ों एक शख्स एक साथ कैसे पूरी कर सकता है? मेरे ख्ायाल से सफल दांपत्य की बुनियाद ज्िाम्मेदारियों को समझने पर भी निर्भर करती है।

पावर गेम नहीं है शादी

अनुषा : शादी को पावर का खेल न बनने दें। एक-दूसरे को पावर दिखाने के बजाय प्यार से रिश्ते को नियंत्रित करें। शादी से पहले ही भावी हमसफर के बारे में जान लें कि उसमें कितना अहं है, उसे झेल सकते हैं?

चेतन : अनुषा ने सही कहा। हम ताकत या पावर से रिश्ते को कंट्रोल नहीं कर सकते। आज सभी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। नियंत्रण नहीं, समझदारी से रिश्ते निखरते हैं।

रीअल चेहरा दिखाएं

अनुषा : डेटिंग, सगाई या शादी तक आमतौर पर लडका-लडकी एक-दूसरे को अपना बेस्ट दिखाते हैं। जबकि ज्ारूरी यह है कि पार्टनर को रीअल चेहरा दिखे। अपना सामान्य व्यवहार, स्वभाव या स्थिति दूसरे को दिखाएं। शादी से पहले सब अच्छा दिखे और बाद में रोज्ामर्रा की ज्िांदगी का सामना करना पडे तो मुश्किल हो जाती है।

चेतन : एक-दूसरे को उसके वास्तविक रूप में स्वीकार करें तो समस्या आएगी ही नहीं। जो हमसे प्यार करता है, उसके लिए ज्ारा भी एडजस्ट न करें, ऐसा कैसे हो सकता है!

अनुषा : दो-तीन मुलाकातों में किसी को समझा नहीं जा सकता। दूसरे के दिमाग्ा में क्या चल रहा है, इसे एक मुलाकात में नहीं जाना जा सकता।

िकस्मत तय करती है कि कैसा हमसफर मिलेगा। शादी में धैर्य ज्ारूरी है। साथ रहने से समझदारी पैदा होती है। रिश्ते में ज्िाम्मेदारी और एडजस्ट करने की भावना होनी चाहिए। इसी से रिश्ता फलता-फूलता और सजता-संवरता है। लव और अरेंज्ड मैरिज, दोनों में यही नीति काम आती है।

चेतन : मैं तो यश चोपडा को फॉलो करता हूं। मुझे लगता है कि सही व्यक्ति को देखते ही मन में घंटी बजती है। ऊपर वाले का सिग्नल होता हो शायद, लेकिन भावनाओं के प्रति ईमानदारी भी ज्ारूरी है।

अनुषा : हर शादी का अपना मज्ाा है। मेरे कई दोस्तों की लव मैरिज हुई, मगर सफल नहीं रही। अरेंज्ड मैरिज में ज्य़ादा त्याग नहीं करना पडता, अपेक्षाएं कम होती हैं। इनमें दो परिवार जुडते हैं, इसलिए तलाक की गुंज्ााइश कम होती है। शादी में परेशानी आने पर दोनों परिवार सुलझाने में जुट जाते हैं। लव मैरिज दो लोगों का निर्णय होता है और झगडा हो जाए तो कोई सुलझाने नहीं आता।

चेतन : लव मैरिज का फायदा यह है कि जीवनसाथी को जानते हैं। अरेंज्ड मैरिज में दूसरे को दोष दे सकते हंै, इसमें थोडी ताज्ागी भी रहती है, क्योंकि सब कुछ नया-नया होता है, मगर लव मैरिज में जानते हैं, लिहाज्ाा कई बार फॉरग्रांटेड भी लेने लगते हैं रिश्ते को। इसमें अपेक्षाएं भी थोडी ज्य़ादा होती हैं।

... और प्यार हो गया

अनुषा : मैनेजमेंट की पढाई बडी कठिन थी। मुझे वहां के माहौल और कोर्स की किताबों के साथ कोप-अप करने में मुश्किल हो रही थी। ऐसे में चेतन क्लास के बीच में मेरे पास आते और मुझे सहज फील कराते। वे हंसी-मजाक में ही कैलकुलस और इकोनॉमिक्स में इस्तेमाल होने वाले मैथ्स के बारे में मुझे बता देते।

चेतन : मैं अनुषा को कठिन नियम समझाता तो वह ख्ाुश हो जातीं। हमारे बीच संवाद का तगडा माध्यम पढाई ही था। हम दोनों की कॉमन दिलचस्पी यही थी। क्लास के बाद घंटों साथ में रहतेे। धीरे-धीरे समझदारी बढी तो एक-दूसरे में दिलचस्पी भी बढऩे लगी।

अनुषा : मैं क्लास में डरी-सहमी और सचेत रहने के चक्कर में सहज नहीं हो पाती थी। ऐसे में मेरा आत्मविश्वास चेतन ही बढाते थे। ज्ााहिर था कि मेरे दिल में उनके प्रति प्यार व सम्मान बढ गया। चेतन को क्लास में डर नहीं लगता था। वे बेबाकी से प्रोफेसर्स के संग बहस करते थे।

चेतन : अनुषा मुझ पर बहुत भरोसा करने लगी थीं। मैं उनकी मासूमियत पर मुग्ध था। इसी तरह धीरे-धीरे हमारे बीच एक गहरी समझदारी विकसित होने लगी थी।

अमित कर्ण


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