चलो इक बार फिर से अजबनी बन जाएं हम दोनों....
किसी भी दंपती के जीवन में अलगाव एक कड़वा मोड़ है, जिससे सभी बचना चाहते हैं। इसके बावजूद कई बार तलाक जैसे फैसले लेने पड़ते हैं। भारतीय परिवेश में तलाक के बाद न सिर्फ सामाजिक स्तर पर बल्कि आर्थिक स्तर पर भी बहुत कुछ बदलता है। स्त्रियों पर तो यह
कुछ रिश्ते हमें जन्मजात मिलते है और कुछ हमें इस संसार में आकर बनाने पडते है। इन्हीं बनने वाले रिश्तों में एक रिश्ता पति-पत्नी का भी होता है। यह रिश्ता इतना रूमानी और नाज्ाुक होता है कि इसकी साज-संभाल उतनी ही कठिन होती है। ज्िांदगी के सफर में जब दो अलग-अलग पृष्ठभूमि के व्यक्ति मिलते हैं तो किसी को नहीं पता होता कि रिश्ता कितना परफेक्ट होगा, इस रिश्ते की उम्र कितनी होगी। आपसी समझदारी और सामंजस्य से ही इस रिश्ते की गाडी आगे चलती है। कभी-कभी यह गाडी ज्िांदगी के पटल पर आराम से चलती जाती है पर कभी कभी ऐसा समय भी आता है, जब दोनों को लगता है कि हमारा सफर बस इतना ही था, अब अपने रास्ते बदल लेने चाहिए।
बुरा है तलाक
विश्व में किसी भी धर्म-संस्कृति में तलाक को इतनी आसानी से कबूल नहीं किया गया है। हिंदू संस्कृति में जहां शादी-विवाह को सात जन्मों का रिश्ता माना जाता है वहीं बाइबिल में भी तलाक को बुरा माना गया है। बाइबिल में कहा गया है कि तलाक लेने वाले व्यक्ति से परमेश्वर घृणा करता है। इस्लाम में भी तलाक पर कडी पाबंदी है।
सामाजिक और धार्मिक रूप से तलाक न लेने का इतना दबाव होता है कि स्थिति काफी बिगडऩे पर ही हमारे समाज में तलाक जैसे फैसले लिए जाते है। इतना सब होने के बावजूद भारत मेंं शादियां टूटने की घटनाएं लगातार बढ रही है। पति-पत्नी में झगडे के कारण पिछले एक दशक में देश में तलाक की दर तीन गुना हो गई है। दिल्ली में पिछले दिनों तलाक के इतने मामले सामने आए कि इसे तलाक की राजधानी ही कहा जाने लगा है। दिल्ली की पारिवारिक अदालतों में हर साल दस हज्ाार से अधिक तलाक के मामले दर्ज हुए। बंगालुरू में हर साल पांच हज्ाार और मुंबई में चार हज्ाार शिकायतें आईं। यहां तक कि सबसे ज्य़ादा शिक्षित राज्य केरल, पंजाब और हरियाणा में भी तलाक के मामले बढे हैं।
मुश्किल है फैसला
ऐसे समय में जब यह ख्ाबर आती है कि ब्रिटेन जैसे विकसित देश में जहां पति-पत्नी बडी आसानी से तलाक ले सकते हंै, वहां दस में से चार जोडे अपनी वैवाहिक ज्िांदगी में ख्ाुश नहीं होने के बावजूद तलाक लेने से बच रहे हंै। हर चार में से एक दंपती अपने बच्चों के बडा होने का इंतज्ाार कर रहे हैं, वहीं इस सर्वे में शामिल 37 प्रतिशत जोडे बच्चों की चिंता के कारण तलाक का फैसला लेने की नहीं सोचते।
इस सर्वे में यह बात खुलकर सामने आई है कि क्यों लोग अपनी शादीशुदा ज्िांदगी में ख्ाुश और संतुष्ट नहीं होने के बाद भी साथ रहने के लिए बाध्य हैं। उन्हें वह स्थिति तलाक लेकर अलग होने से ज्य़ादा मनोनुकूल लगती है। यह बडी अजीब स्थिति होती है, जब हम किसी के साथ रहना नहीं चाहते मगर उसी के साथ रहने को मजबूर हैं। ऐसे कौन से कारण और परिस्थितियां होती हैं, जब एक-दूसरे से अलग होने की इच्छा के बावजूद अलग नहीं हो सकते। निश्चित ही वह काफी भयावह स्थिति होती होगी किसी भी दंपती के लिए। सच मगर यह है कि ऐसे फैसले किसी के लिए भी आसान नहीं होते।
समस्या यहां ख्ात्म नहीं होती
डॉ. ब्रैड सॉक्स ने रिलेशनशिप पर अपनी किताब द गुड एनफ टीन में इस बात को काफी विस्तार से लिखा है कि जो पति-पत्नी तलाक का फैसला करते है वे इस कदर अपने ख्वाबों और ख्ायालों में खो जाते हैं कि मानने लगते हैं कि तलाक से हर समस्या हल हो जाएगी, रोज्ा-रोज्ा की टकराहट से मुक्ति मिल जाएगी, रिश्तों की खटास दूर होगी तो ज्िांदगी में सुकून लौट सकेगा और रोज्ामर्रा के जीवन में तेज्ाी आ सकेगी।
ऐसा होता नहीं है। दांपत्य में ख्ाुशियां ही ख्ाुशियां हों, यह कल्पना व्यर्थ है, उसी तरह यह विचार भी िफजूल है कि तलाक के बाद जीवन-स्थितियां बहुत सुधर जाएंगी।
एक हद तक लेखक की बात व्यावहारिक प्रतीत होती है। दरअसल रिश्ते एक दिन में नहीं बनते-बिगडते हैं, उन्हें हर इंसान बरसों की मेहनत से सींचता है, अपना मन-प्राण और शरीर देकर उन्हें फलने-फूलने का अवसर देता है। यही वजह है कि भारत में रिश्ते आसानी से भले जुड जाते हों मगर आसानी से टूटते नहीं।
ब्रिटेन में हुए इस सर्वे में भी दस ऐसे कारण गिनाए गए हैं, जिसके कारण लोग तलाक लेने से बचते दिखते हैं। इस लिस्ट में बच्चों के भविष्य को लेकर सर्वाधिक चिंता बताया गया। दूसरी ओर लोग यह भी मानते हैं कि तलाक के बाद बहुत-कुछ खो जाएगा। मसलन आर्थिक स्थिति की चिंता एक बडा कारण है। बच्चों के सामने शर्मिंदगी और उनका प्यार खोने का डर भी तलाक न ले पाने के इन कारणों में से एक है।
...तब तोडऩा अच्छा
तलाक की थका देने वाली लंबी प्रक्रिया भी तलाक के फैसला न ले पाने की एक बडी वजह है। वैसे मैरिज काउंसलर्स भी यही सलाह देते हैं कि तलाक के फैसले पर पुनर्विचार ज्ारूरी है। आजकल फेमिली कोट्र्स भी पहली कोशिश यही करते हैं कि पति-पत्नी के बीच सुलह हो सके। यह सही भी है। हर पहलू पर अच्छी तरह विचार करने के बाद ही यह फैसला लिया जाना चाहिए, क्योंकि तोडऩा भले ही आसान दिखता हो लेकिन यह सिर्फ एक रिश्ता टूटने की ही बात नहीं है, इससे व्यक्ति कई स्तरों पर टूटता है। रिश्ते रोज्ा-रोज्ा नहीं बना करते, न ही तलाक के बाद ज्िांदगी बहुत आसान हो सकती है।
इसके बावजूद कई बार स्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि यह मुश्किल फैसला लेना ही पडता है। जब किसी की जान पर बन आए यानी लगातार घरेलू हिंसा हो, बच्चों के भविष्य का सवाल सामने हो या फिर अपराधी मानसिकता वाले व्यक्ति के साथ जीना दूभर हो जाए तो ऐसे में अलग होने का फैसला ही सही है। अगर लगता है कि आपकी अधिकतर समस्याओं का हल तलाक में है तो जैसा कि साहिर लुधियानवी साहब ने लिखा है कि 'ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोडऩा अच्छा...।
प्रतिभा कुशवाहा