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सुरीले सफर के हमराही हैं हम पं. विश्व मोहन भट्ट-पद्मा

ग्रैमी अïवॉर्ड विजेता और मोहन वीणा के जनक पद्मश्री पंंडित विश्वमोहन भट्ट ऐसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार हैं, जिनकी वीणा ने देश-विदेश के श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया है। 45 वर्ष पहले उन्होंने एन. पद्मा से अंतर-धार्मिक विवाह किया, जो स्वयं भी प्रशिक्षित संगीतकार और शिक्षिका रही हैं। इनके प्रेम

By Edited By: Published: Fri, 27 Mar 2015 12:05 AM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2015 12:05 AM (IST)
सुरीले सफर के हमराही हैं हम पं. विश्व मोहन भट्ट-पद्मा

ग्रैमी अवॉर्ड विजेता और मोहन वीणा के जनक पद्मश्री पंंडित विश्वमोहन भट्ट ऐसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार हैं, जिनकी वीणा ने देश-विदेश के श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया है। 45 वर्ष पहले उन्होंने एन. पद्मा से अंतर-धार्मिक विवाह किया, जो स्वयं भी प्रशिक्षित संगीतकार और शिक्षिका रही हैं। इनके प्रेम की वीणा दांपत्य जीवन में कितनी मधुर बजती है, जानते हैं इनसे।

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संगीत जाति-धर्म और हर वाद से परे है, यह बात पूरी तरह साबित होती है पं. विश्व मोहन भट्ट और पद्मा जी पर। पंडित जी सहज लेकिन धीर-गंभीर स्वर में बोलते हैं तो लगता है जैसे नई बंदिश शुरू करने से पहले सुर साध रहे हैं। मगर पद्मा जी की आवाज में एक अल्हड चंचलता झलकती है। इस जोडी के संगीतमय सफर के बारे में जानते हैं उनसे।

संगीत ने बांधा प्रेम-बंधन में

पं. विश्व मोहन भट्ट : हम दोनों का परिवार जयपुर में रहा है। दोनों संगीत से जुडे हैं। संगीत की कक्षाओं में ही पद्मा से मुलाकात हुई। दोस्ती हुई, फिर लगाव बढा। मेरी मां चंद्रकला भट्ट आजादी से पहले ही संगीत की शिक्षा देती थीं। संगीत ही वह कडी बना, जिसने हमें प्रेम-पाश में बांधा। पद्मा बहुत सादगीपसंद लडकी थीं। शायद यह भी एक वजह थी इनसे प्रेम करने की। पद्मा भट्ट : पंडित जी का पूरा खानदान ही संगीत से जुडा था, मगर मेरे परिवार में भी संगीत के प्रति लगाव रहा है। मेरे पिता जयपुर के महारानी गायत्री देवी स्कूल में केमिस्ट्री टीचर थे और मां भी पढाती थीं। संगीत ने ही हमें जोडा और शादी तक पहुंचाया।

धर्म नहीं बना बाधक

पं. विश्व मोहन भट्ट : पद्मा और मैंने महज 20 वर्ष की उम्र में शादी की। ये ईसाई परिवार की थीं, इसलिए थोडी मुश्किलें तो आईं। हालांकि इनके परिवार के लोग मुझे पसंद करते थे, लेकिन धर्म और संस्कृति का फर्क उन्हें डराता था। कुछ दिन तक उनकी नाराजगी रही, बाद में सब ठीक हो गया। हमने 4 मार्च 1970 को शादी की। अब हमारी शादी को 45 साल हो गए हैं।

पद्मा : मेरा पूरा नाम एन पद्मावती था। लेकिन यह लंबा लगता था, इसलिए इसे छोटा करके पद्मा कर लिया। हमने आर्य समाज में शादी की। मेरे घर में विरोध जरूर हुआ, मगर मेरी ससुराल में लोग प्रगतिशील थे। मेरे ससुर बहुत सपोर्ट करते थे। रेडियो पर उन दिनों युववाणी कार्यक्रम आता था, उसमें एक बार मैंने भी वाद्य यंत्र बजाया था, जो मेरे ससुर को बहुत पसंद आया। वह उम्र ही अलग होती है। हर लडकी की तरह मुझे भी बिंदी, चूडिय़ों, गहनों और परंपराओं से प्यार था। मेरी जिद के आगे घर वाले मान गए।

सामंजस्य एक कला है

पं. विश्व मोहन भट्ट : हमारे लिए संगीत ही सबसे बडा धर्म है। देखिए, शादी किसी भी विधि से हो, असल परीक्षा शादी के बाद होती है। इस परीक्षा में पद्मा उत्तीर्ण हुईं। उन्होंने शादी और परिवार की जिम्मेदारियां संभालीं। शादी की पहली वर्षगांठ पर बडे बेटे सलिल का जन्म हो चुका था। हम 21 वर्ष की आयु में माता-पिता बन गए। छोटा बेटा सौरभ पांच-छह साल बाद हुआ।

पद्मा : सच कहूं तो मुझे ससुराल में कभी संस्कृति का फर्क नहीं महसूस हुआ। मैंने शुरू से बाइबिल और हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया था। दिलचस्प यह है कि मैं सप्ताह में तीन दिन व्रत करती थी। बाद में मेरी सास ने कहा कि इतना व्रत-उपवास मत करो, गृहस्थ आश्रम ख्ाुद में एक पूजा व तपस्या है, इसे ही सही ढंग से निभाओ। मेरे सास-ससुर बहुत प्रगतिशील लेकिन अनुशासित और कुछ मामलों में कठोर थे। उन्होंने मुझे पढाई जारी रखने और काम करने को प्रेरित किया। मैंने बीएड किया और इसके बाद जयपुर के सेंट जेवियर्स में पढाने लगी। 32 वर्ष शिक्षण क्षेत्र में रहने के बाद अब रिटायर लाइफ बिता रही हूं। बच्चे छोटे थे तो कई बार मैं नौकरी छोडऩा चाहती थी। मगर मेरी सास ने कहा, हम सब देखेंगे, तुम बस अपनी नौकरी करो।

संयुक्त परिवार का योगदान

पं. विश्व मोहन भट्ट : मुझे कार्यक्रमों के सिलसिले में हमेशा यात्राएं करनी पडती थीं। ऐसे में घर और बच्चों की जिम्मेदारियां पूरी तरह पद्मा पर पडीं। अच्छी बात यह थी कि हम संयुक्त परिवार में थे। इससे हमें बहुत सहूलियत हुई। सुरक्षा थी और बच्चों की ओर से निश्चिंत भी थे। मेरे माता-पिता से पद्मा के रिश्ते बहुत अच्छे थे। पद्मा सेंट जेवियर्स में पढाती थीं तो बच्चे भी वहीं पढे।

पद्मा : संयुक्त परिवार होने के कारण मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। पंडित जी कार्यक्रमों में व्यस्त रहते थे, घर की जिम्मेदारियां मुझ पर रहीं। मगर सास-ससुर के सहयोग से यह आसान हो गया।

यादगार पल

पं. विश्व मोहन भट्ट : पहली मार्च 1994 को जब मुझे ग्रैमी अवॉर्ड मिला तो वह पल हम सबके लिए बहुत ख्ाास था। मैंने घर फोन किया और बेटों से बात की। पद्मा फोन पर ही ख्ाुशी के मारे रो पडीं। मेरी मां हाई ब्लड प्रेशर की मरीज थीं। वह इतनी ख्ाुश हुईं कि ब्लड प्रेशर बढ गया और उन्हें कुछ दिन अस्पताल में रहना पडा। पूरे समय पद्मा उनके साथ रहीं और साथ में घर भी संभाला। मैं तो तब यूएस में था। यूं तो हम दोनों अपने-अपने काम में व्यस्त रहते थे, मगर जब भी छुट्टी मिलती, हम घूमने जरूर जाते। अलास्का, मकाऊ, यूरोप की कई जगहें हमने देखीं।

पद्मा : पंडित जी को ग्रैमी अवॉर्ड मिलना सचमुच हमारे लिए यादगार पल था। मुझे लगा कि उनकी प्रतिभा का सही मूल्यांकन हुआ है। म्यूजिक के क्षेत्र में ग्रैमी मिलना बहुत बडा सम्मान है। मैं कभी-कभी कुछ समारोहों में भी इनके साथ जाती हूं। रिटायर होने के बाद हम अकसर घूमने जाते हैं। एक बार यूएस के टूर पर गए। बच्चे भारत में ही रहे। इस यात्रा को हमने ख्ाूब एंजॉय किया। वैसे मैं थोडी शर्मीले स्वभाव की हूं तो पंडित जी के साथ कम ही जाना पसंद करती हूं। ये जहां भी जाते हैं, लोग इन्हें पहचान लेते हैं। अकेले जाने पर मुझे कोई नहीं पहचानता, इसलिए कंफर्टेबल रहती हूं।

शादी में स्वार्थ नहीं चलता

पं. विश्व मोहन भट्ट : सामंजस्य से ही रिश्ते निभाए जाते हैं। एडजस्टमेंट, समझौता और वैचारिक समानता के अलावा शादी में एक-दूसरे पर भरोसा जरूरी है। शादी में स्वार्थ नहीं चल सकता। ख्ाुद को समर्पित करके ही रिश्तों में ख्ाुश रहा जा सकता है।

पद्मा : लव हो या अरेंज्ड मैरिज, दोनों में एक-दूसरे को समझने के लिए थोडा वक्त लगता है। इसलिए रिश्ते को पर्याप्त समय देना चाहिए। थोडा धैर्य रखें और समझौता करने को तैयार रहें तो गृहस्थ जीवन आसान हो सकता है। मुझे लगता है, शादी ही वह रिश्ता है, जिसमें व्यक्ति को भावनात्मक संबल मिलता है। इसलिए इस रिश्ते की गरिमा को बनाए रखना चाहिए।

दांपत्य में जरूरी है नोक-झोंक

प. विश्व मोहन भट्ट : नोक-झोंक तो हर पति-पत्नी में होती है। फिर भी मैं कहूंगा कि पद्मा ने बिना शिकायतें करते हुए हर कदम पर मेरा साथ दिया है। हालांकि वह कभी-कभी बहुत नाराज होती हैं। अकसर शादी की वर्षगांठ पर मैं घर से बाहर ही रहा हूं। लेकिन इसके बाद घर में घुसता हूं तो पद्मा के लिए कोई न कोई उपहार लेकर जाना पडता है, वर्ना वह घर में नहीं घुसने देतीं। मैं इनके लिए कांजीवरम या साउथ सिल्क की साडिय़ां और गहने लेकर आता हूं। ज्यूलरी का इन्हें बहुत शौक है। अब तो उम्र बढऩे के साथ यह शौक थोडा कम हुआ है।

पद्मा भट्ट : पंडित जी बहुत शांत और विनम्र मिजाज के हैं। ग्ाुस्सा मुझे ज्यादा आता था। अब तो मैं पहले से शांत हो गई हूं। संयुक्त परिवार में सास-ससुर से तो बहुत बनती थी, मगर कई बार कुछ अन्य रिश्तों में खटपट हो ही जाती थी। जैसे जिठानी की कोई बात चुभ गई तो परेशान हो गई। मगर पंडित जी शांत रहते थे। वह अपनी शांति से ही सब कुछ ठीक कर देते थे। जहां तक उपहारों की बात है तो यह बात सच है कि मुझे कपडों-गहनों से बहुत प्यार रहा है। पंडित जी जहां भी जाते थे, मेरे लिए कोई न कोई ज्यूलरी पीस जरूर लाते थे।

इंदिरा राठौर


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