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शादी के बिना जिंदगी ही क्या

पद्मश्री प्राप्त डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया वर्ष 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट हैं। उनके हमसफर और कोच विरेंद्र पूनिया पूर्व खिलाड़ी हैं। इनकी शादी को 15 साल हो गए हैं। स्पोट्र्स के लिए समर्पित इस दंपती की जिंदगी कई अर्थों

By Edited By: Published: Sat, 26 Dec 2015 02:26 PM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2015 02:26 PM (IST)
शादी के बिना जिंदगी  ही क्या

पद्मश्री प्राप्त डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया वर्ष 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट हैं। उनके हमसफर और कोच विरेंद्र पूनिया पूर्व खिलाडी हैं। इनकी शादी को 15 साल हो गए हैं। स्पोट्र्स के लिए समर्पित इस दंपती की जिंदगी कई अर्थों में आम लोगों से अलग है।

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हरियाणा के हिसार जिले में जाट परिवार में पैदा हुई कृष्णा पूनिया अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एथलीट हैं। पूर्व खिलाडी और कोच विरेंद्र पूनिया राजस्थान के चुरु जिले के रहने वाले हैं। इस दंपती ने शादी और करियर को लेकर बनी कई परंपरागत धारणाओं को तोडा है। कृष्णा ने शादी के बाद स्पोट्र्स में अपने करियर को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया तो इसके पीछे उनके पति विरेंद्र पूनिया की प्रेरणा और ट्रेनिंग की बडी भूमिका है। दोनों जयपुर में भारतीय रेलवे में कार्यरत है और अभी पटियाला कैंप में इस साल लंदन में होने वाले ओलंपिक्स की तैयारियों में व्यस्त हैं।

शादी तो अरेंज्ड है

कृष्णा : मैं तब कॉलेज में थी। विरेंद्र के घर वाले रिश्ता लेकर आए थे। शादी तय होने के बाद 5-6 महीने हमने कैंप में साथ ट्रेनिंग की। हमारी शादी 24 नवंबर 1999 को हुई। तब मैं 21 साल की थी और विरेंद्र 26 के थे। विरेंद्र ने मुझसे पूछा कि क्या मैं आगे स्पोट्र्स में रहना चाहूंगी? मैंने हां कहा।

विरेंद्र : मेरे दोस्त जगवीर सिंह कृष्णा के परिवार को जानते थे। मैं एक शादी में गया था, जहां कृष्णा भी थीं। वह मुझे पसंद आ गईं। इसके बाद मैंने घर वालों को कृष्णा के घर भेजा। मेरे दादा जी और पिता जी को भी ये पसंद आ गईं। ऐसी कोई प्लैनिंग नहीं थी कि स्पोट्र्स वाली लडकी से ही शादी करनी है। ऐसा अनायास ही हुआ।

घूंघट न करना

कृष्णा : ससुराल में सभी प्रगतिशील सोच वाले थे। मेरे ससुर जी प्रधानाचार्य थे। दुर्भाग्य से शादी के दो साल बाद ही उनका देहांत हो गया। शादी की बातचीत चल रही थी, तभी उन्होंने कहा, 'बेटी, घूंघट न काढऩा...। जाट परिवारों में उनकी यह सोच बेहद क्रांतिकारी है। मेरे दोनों देवरों की शादी ससुर जी की मृत्यु के बाद हुई है। विरेंद्र के चाचा जी भी हमारे साथ रहते हैं।

विरेंद्र : शादी से पहले भी कृष्णा डिस्कस थ्रो करती थीं, इनका थ्रो अच्छा था, स्ट्रेंथ अच्छी थी तो परिवार ने इन्हें आगे सीखने को कहा। हमने शादी से पहले नेशनल कैंप में साथ ट्रेनिंग की। शादी के तुरंत बाद वर्ष 2000 में इन्हें बैक इंजरी हुई तो दो साल स्पोट्र्स से बाहर रहीं। फिर बेटा लक्ष्यराज पैदा हुआ। जैसा कि कृष्णा ने बताया, ये घूंघट नहीं करती थीं। गांव की स्त्रियों को यह बात बुरी लगती थी। मां कहती थीं कि बहू को कुछ दिन घूंघट करना चाहिए लेकिन मेरे दादा और पिता ने फरमान जारी कर दिया कि ऐसा नहीं होगा।

परिवार का साथ

कृष्णा : मेरे सास-ससुर ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है। जिस समय ससुर जी गुज्ारे, मैं प्रेग्नेंट थी। मेरी सास बहुत दुखी थीं। बेटा हुआ तो मैंने उसे सास की गोद में डाला और कहा-इसे आपको ही पालना है। बच्चे की परवरिश में वह अपने दुख भूल गईं।

विरेंद्र : छह महीने के बेटे को छोड कर हम नेशनल कैंप चले गए थे। कई बार कृष्णा इमोशनल होकर रोने लगतीं। हमने बेटे को पैदा ज्ारूर किया, लेकिन उसे बडा मेरी मां ने किया है। बेटा भी दादी को बहुत प्यार करता है। अब वह नवीं क्लास में है।

पति बनाम कोच

कृष्णा : विरेंद्र मच्योर और ख्ाुली सोच वाले हैं। हमारी अंडरस्टैंडिंग गहरी है। खेल की टेकनीक में गडबड होती थी तो मुझे भी उतनी ही तकलीफ होती थी, जितनी विरेंद्र को। विरेंद्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीट रहे हैं। 2003 में मैंने कैंप जॉइन किया तो बेटा छोटा था। मैं कोचिंग ले रही थी, लेकिन अपने परफॉर्मेंस से संतुष्ट नहीं थी। वर्ष 2004 में विरेंद्र ने कैंप जॉइन किया तो सही ढंग से मेरी ट्रेनिंग शुरू हुई। मैं नन्हे बच्चे को छोडकर कैंप में आई थी तो केवल इसी मकसद से कि अपना बेस्ट दूंगी। न दे पाती तो अफसोस रहता....।

विरेंद्र : वर्ष 2003 में मेरे घुटनों में चोट लग गई थी। फिर मैंने एक वर्ष का कोर्स किया और कोचिंग शुरू कर दी। पत्नी का कोच बनने का लाभ यह था कि उन्हें डांट सकता था, एक्सरसाइज्ा करा सकता था, उनका पोस्चर ठीक कर सकता था, जो अन्य लडकियों के साथ संभव न होता।

वर्क-लाइफ बैलेंस

कृष्णा : बच्चे को बडा होते न देख पाने का अफसोस तो रहा लेकिन जब गोल्ड मेडल मिला तो मेरा अपराध-बोध दूर हो गया। मेरा बेटा दर्शक दीर्घा में बैठा तालियां बजा रहा था और तुतला कर सबको बता रहा था कि मां को गोल्ड मेडल मिला है। उसने मेडल अपने गले में डाल लिया।

विरेंद्र : अब तो वह समझाता है कि मम्मा तुम मेहनत करो, अवॉर्ड ज्ारूर जीतोगी। वह बहुत केयरिंग और मच्योर है। हम चाहते हैं कि भविष्य में वह भी स्पोट्र्स में आगे बढे।

शादी तो ज्ारूरी है

विरेंद्र : देखिए हम तो ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं। हमारा मानना है कि सृष्टि ने स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। विवाहित लोग अकेले रहने वालों की तुलना में ज्य़ादा ख्ाुश होते हैं। एकल परिवारों के बच्चे धैर्य व एडजस्टमेंट नहीं सीख पाते। पैसे की दौड, दूसरों से तुलना, अंधी प्रतिस्पर्धा के कारण ज्य़ादातर लोग आज नाख्ाुश हैं। हम भविष्य में जीते हैं और वर्तमान की उपेक्षा करते हैं। पहले आज को बेहतर बनाएं। रिश्ते निभाना सीखें और जीवन का कोई मकसद बनाएं, तभी सफलता मिलेगी और रिश्ते बेहतर होंगे।

कृष्णा : मैं भी यही मानती हूं कि शादी के बिना जीवन अधूरा है। इंसान अकेले जीने के लिए नहीं पैदा हुआ है। हम जीवन में जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके केंद्र में परिवार और समाज ही तो है। पति-पत्नी एक गाडी के दो पहिये हैं। एक पहिया भी पंचर हुआ तो गाडी आगे नहीं बढेगी। आजकल नए कपल्स में धैर्य कम है। पहले लडकियों की ससुराल दूर होती थी, नए परिवार में एडजस्टमेंट के लिए समय मिलता था। अब हर वक्त मोबाइल हाथ में होता है। नई स्थितियों में अपने ढंग से सामंजस्य बिठाने का न समय है-न धैर्य। अगर मैं यह चाहती हूं कि पति मेरे परिवार का सम्मान करें तो मुझे भी उनके परिवार का मान रखना होगा। घर लडकी से बनता है। माता-पिता बच्चों का बुरा नहीं चाहते। उनके पास अनुभव होते हैं, उनका लाभ लें और उनके विचारों का सम्मान करें, तभी जीवन सकारात्मक दिशा में जाएगा। अहं को छोड कर दूसरों के विचारों को भी सुनें और समझें तो जीवन ज्य़ादा सहज और आसान हो सकता है।

अच्छा-बुरा सब स्वीकार

कृष्णा : मेरे पति ने कम उम्र से बडी ज्िाम्मेदारियां संभाली हैं। पटियाला में भी कई एथलीट्स इनसे सलाह लेने आते हैं। इनकी बुरी आदत यह है कि इन्हें ग्ाुस्सा बहुत आता है, हालांकि जल्दी ही शांत भी हो जाते हैं। एक शिकायत यह भी है कि भारत में रहते हुए ये कभी मेरे साथ शॉपिंग पर नहीं जाते। जाएंगे भी तो हडबडी में रहेंगे। हां, विदेश में हों तो ख्ाूब शॉपिंग करते हैं। विरेंद्र केयरिंग बहुत हैं। कहीं जाना हो और रिज्ार्वेशन कन्फर्म न हो तो फ्लाइट टिकट करवा देते हैं। मेरी ज्ारूरत की कोई भी चीज्ा देखते हैं तो ख्ारीद लेते हैं।

विरेंद्र : कृष्णा में कोई दुर्गुण नहीं है। वह शादी के बाद संयुक्त परिवार में आईं, लेकिन उन्होंने सबको अपना बना लिया। घर जाती हैं तो घरेलू लडकी बन जाती हैं। सामाजिक कार्य भी करती हैं। कन्या भ्रूण हत्या के लिए इन्होंने काम किया। बच्चों को स्पोट्र्स के लिए प्रेरित करती हैं। मैं बस यह चाहता हूं कि ये लिखें-पढें, ज्ञान बढाएं, मगर इन्हें समय नहीं मिलता। मुझे ग्ाुस्सा आता है, लेकिन उसे ख्ात्म करता हूं, अन्यथा हमारी ट्रेनिंग प्रभावित होगी।

इंदिरा राठौर


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