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धैर्य से निभाए जाते हैं रिश्ते: रोनू मजूमदार-संगीता

भारतीय शास्त्रीय संगीत में विशिष्ट स्थान है बांसुरी वादक पंडित रोनू मजूमदार का। उनका अलबम ताबुल रसा ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकित हुआ। उन्हें कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले। उनकी हमसफर हैं संगीता। इस हसीन सफर को अब 25 साल होने वाले हैं। संगीत और संगीता के इस साथ के बारे में बता रहे हैं वे।

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST)
धैर्य से निभाए जाते हैं रिश्ते: रोनू मजूमदार-संगीता

हिंदुस्तानीक्लासिकल म्यूजिक में अलग पहचान है बनारस (उप्र) में जन्मे बांसुरीवादक रेनेंद्र नाथ मजूमदार की, जिन्हें संगीतप्रेमी पंडित रोनू मजूमदार के नाम से जानते हैं। बांसुरी उन्होंने अपने पिता डॉ. भानु मजूमदार से सीखी। विश्वविख्यात सितारवादक पं. रविशंकर के शागिर्द रहे और संगीतकार आर.डी. बर्मन के साथ भी म्यूजिक दिया। फिलहाल फिल्मी ग्लैमर से दूर शास्त्रीय संगीत को समर्पित हैं। शिकागो (यूएस) में स्थापित अपने संगीत विद्यालय साधना के माध्यम से भारतीय कला का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। संगीता से मुलाकात एक म्यूजिक कंसर्ट में हुई। अब शादी की सिल्वर जुबली होने वाली है। मिलते हैं इस सहज-सरल दंपती से।

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कब, कहां और कैसे हुई मुलाकात?

संगीता : हम कोलकाता के हैं। पिता रेलवे में थे, ट्रांस्फर होता रहता था। मैंने हिंदी से एम ए करने के बाद संगीत में विशारद किया। मेरे पिता संगीत के शौकीन थे। वह जलतरंग बजाते थे। वर्ष 1989 की बात है। हम रायपुर (छत्तीसगढ) में थे। वहां के रंग ऑडिटोरियम में पंडित जी का कंसर्ट था। कंसर्ट के बाद मेरे घर वालों ने उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया। परिवार के बीच बातचीत हुई तो शादी की बात भी छिडी। इन्होंने मुझे पसंद कर लिया। बांग्ला रीति-रिवाजों से 1990 में हमारी शादी हुई और मैं मुंबई आ गई।

रोनू मजूमदार : यह 24 साल पुरानी बात बात है। मैं पैदा बनारस में हुआ था, मगर हमारा परिवार मुंबई आ गया था। मैं बांग्ला संस्कृति की कई चीजें बहुत मिस करता था, जो संगीता के घर में मुझे मिलीं।

एक-दूसरे में कौन से गुण भाए?

संगीता : पंडित जी के विनम्र स्वभाव और उनकी सहृदयता ने मुझे प्रभावित किया। मेरी मां तो इनकी सादगी से अभिभूत हो गई।

रोनू मजूमदार : संगीत की इनकी समझ और बांग्ला संस्कृति के प्रभाव ने ही मुझे इनके करीब किया। संगीता बहुत समझदार और धैर्यवान स्त्री हैं।

संगीत और शादी की जिम्मेदारियों में तालमेल कैसे बिठाया?

संगीता : मैं सिंगल से जॉइंट फेमिली में आई थी। शादी के समय मैं 21 साल की थी। ससुराल में चहल-पहल और भीडभाड देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था। जिठानी से भी मेरी अच्छी दोस्ती हो गई।

रोनू मजूमदार : हम पांच भाई और दो बहनें हैं। कई साल हम संयुक्त परिवार में रहे। मुझे ख्ाुशी है कि संगीता ने इतने बडे परिवार में कई वर्ष तक बख्ाूबी तालमेल बिठाया। मगर फिर सारे भाइयों के परिवार बढे तो जगह की कमी होने लगी। तब वर्ष 2010 में हमने अलग घर बनाया।

कला की राह उतार-चढाव भरी होती है। ऐसे में रिश्तों को कैसे संभाला?

रोनू मजूमदार : जिंदगी के उतार-चढाव में संगीता मेरा हौसला बन कर खडी रही हैं। मुझे लगता है, पुरुष जल्दी हताश हो जाते हैं, मगर स्त्री में बहुत धैर्य होता है। एक दौर ऐसा आया, जब संगीत में किए गए प्रयोगों के लिए मुझे बहुत आलोचनाएं झेलनी पडीं। मैं निराश हो गया था। लगता था, पीछे हट जाऊंगा, मगर संगीता ने बहुत धीरज का परिचय दिया। हताशा शब्द इनकी डिक्शनरी में नहीं है। बडे बेटे ने भी उस समय मुझे बहुत सहारा दिया।

आपके बच्चे भी संगीत के फील्ड में हैं?

संगीता : बडा बेटा सिद्धार्थ 22 वर्ष का है। म्यूजिक और पढाई दोनों में आगे रहा है। उसने मेडिकल फील्ड चुना। अब एमबीबीएस कर रहा है। छोटा बेटा हृषिकेश 13 साल का है। उसे संगीत का बहुत शौक है। हमारी इच्छा है कि वह इसी क्षेत्र में आए।

रोनू मजूमदार : बडे बेटे ने मेरा संघर्ष देखा है, शायद इसका प्रभाव उस पर पडा। बांसुरी में प्रवीण होने के बावजूद उसने प्रोफेशनल डिग्री लेने का निर्णय लिया। छोटा बेटा अपनी मां से संगीत सीख रहा है। मेरा सपना है कि वह संगीत में आए। वैसे पूरे देश में मेरे शिष्य हैं, जिनमें से कुछ से मुझे बहुत उम्मीदें हैं। शिमला में भी मेरे एक प्रिय शिष्य हैं।

व्यस्तता के बीच परिवार के लिए क्वॉलिटी टाइम मिल पाता है?

रोनू मजूमदार : हमारा नियम है कि वर्ष में एक-दो बार कहीं घूमने जरूर जाते हैं। वह समय मैं पूरी तरह परिवार को देता हूं। कई बार इसके लिए संगीत कार्यक्रम भी रद्द करने पडते हैं। हमें पर्वतीय स्थलों पर जाना पसंद है। बडा बेटा तो पढाई में व्यस्त है, लेकिन छोटे बेटे के साथ गर्मी की छुट्टी में कश्मीर, नैनीताल, दार्जिलिंग, मसूरी..लगभग पूरा नॉर्थ इंडिया घूम चुके हैं। कई बार म्यू्जिक कंस‌र्ट्स में संगीता भी साथ चली जाती हैं।

संगीता : पंडितजी परिवार के लिए हर साल 10-15 दिन जरूर निकालते हैं। पिछले साल हम डलहौजी गए, इस साल नैनीताल। घर पर होते हैं तो पूरा वक्त परिवार को देते हैं और बच्चों की पढाई-लिखाई से जुडी जिम्मेदारी भी संभालते हैं। कोई बडा फैसला लेना हो तो मैं उनका इंतजार करती हूं।

गिफ्ट्स और सरप्राइज देते हैं कभी एक-दूसरे को?

संगीता : पंडित जी को गिफ्ट्स देने का शौक है। जहां भी जाते हैं, कुछ न कुछ जरूर लेकर आते हैं। बच्चों के लिए चॉकलेट्स और कपडे, मेरे लिए लिपस्टिक्स, पर्स, परफ्यूम लाते हैं। हमने भी इस बार इन्हें एक सरप्राइज बर्थडे पार्टी दी। ये बहुत खुश हुए। दरअसल कई बार कंस‌र्ट्स के कारण हम इनका बर्थडे सेलिब्रेट नहीं कर पाते थे। इसलिए हमने सोचा कि जब भी वह घर पर होंगे, हम तभी पार्टी करेंगे।

रोनू मजूमदार : संगीता को ज्यूलरी और पर्स बहुत पसंद हैं। अकसर उन्हें ये सारे गिफ्ट्स देता हूं। वैसे मैं जहां जाता हूं, वहां की खास चीज जरूर लाता हूं। शिकागो से लिपस्टिक्स लाया तो केरल से गोल्डन किनारी वाली साडी। जापान से अंब्रैला लाया।

गुस्सा किसे ज्यादा आता है?

रोनू मजूमदार : गुस्सा..? पहले आता था। उम्र के साथ-साथ थोडा शांत हो गया हूं। संगीता पहले शांत थीं, अब गुस्सा दिखा देती हैं। इसकी एक वजह शायद यह है कि उनकी जिम्मेदारियां बढ गई हैं।

रिश्ते को कैसे निभाया जा सकता है?

संगीता : शादी में दो चीजें जरूरी हैं-सैक्रफाइस और कॉम्प्रमाइज। यह दोनों ही तरफ से हो। समझौता सिर्फ लडकी को ही नहीं करना होता। हमने माता-पिता, नाना-नानी, दादा-दादी से सीखा है कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं। मैंने कभी पति पर एकाधिकार नहीं चाहा। मुझे पता है कि उनके लिए संगीत सबसे पहले है। घर में हम दोस्तों की तरह ही रहते हैं। शादी में सखा भाव जरूरी है, तभी उसमें समझदारी विकसित हो सकती है।

रोनू मजूमदार : अहं एक बडा कारण है शादी टूटने का। कोई झुकने को तैयार नहीं होगा तो शादी कैसे निभेगी? मैंने अहं के कारण शादियां टूटती देखी हैं। आने वाला समय तो और बुरा होगा। अभी शादी टूटती है तो नाती-पोतों की जिम्मेदारी नाना-दादा संभाल लेते हैं। मगर भविष्य में शायद ऐसा नहीं होगा। जिस तरह रिश्ते टूट रहे हैं, नाना-नानी ही अलग हो चुके होंगे। देखिए, हर कपल में झगडा होता है। चार दिन बाद लगता है, यार क्या बचपना था! हमारे भारतीय मूल्य हमें छोटी-छोटी चीजों में खुश रहना सिखाते हैं। हमारे समाज में बीवी एक छोटे से गजरे में खुश हो जाती है, थोडा सा सम्मान पति का दिल जीत लेता है। सुखद शादी का फलसफा बस इस एहसास में छिपा है, मैं तुम्हारे साथ हूं-तुम मेरे साथ हो..।

कलाकार की टेढी-मेढी जिंदगी में गृहस्थी में कितनी मुश्किलें आती हैं?

रोनू मजूमदार : संगीता ने बहुत त्याग किया है परिवार के लिए। इस कारण इनका संगीत पीछे रह गया। मैं करियर के ऐसे मुकाम पर था, जहां से मुझे आगे बढने के लिए पूर्ण समर्पित होना था। तब घर और बच्चे पूरी तरह संगीता की जिम्मेदारी हो गए। हम नहीं चाहते थे कि हमारे बच्चे मेड के भरोसे पलें। दोनों घर से दूर होते तो शायद घर उपेक्षित होता। लेकिन अब बच्चे बडे हो गए हैं। संगीता का सपना है कि वह रवींद्र संगीत का एक अलबम निकालें। इस सपने को मुझे जल्दी ही पूरा करना है।

संगीता : शुरुआत में उम्र और समझदारी थोडी कम थी। हम भी झगडते थे, लेकिन ईश्वर की कृपा से कोई गंभीर विवाद नहीं हुआ। फिल्म इंडस्ट्री में रोनू जी का कोई गॉड फादर नहीं था। इन्होंने बहुत संघर्ष किया। एक दौर था, जब पंडित जी सुबह नौ बजे घर से निकल जाते थे। उन दिनों लाइव रिकॉर्रि्डग होती थी। रात के 11-12 बजे घर लौटते थे, फिर खाना खाकर स्टूडियो में बैठ जाते थे। कई बार पूरी रात रियाज करते थे। सुबह 2-3 घंटे आराम करके रिकॉर्रि्डग के लिए निकल जाते। कलाकार की जिंदगी आसान नहीं होती। अपना मुकाम हासिल करने के लिए कडे परिश्रम की जरूरत होती है।

इंदिरा राठौर


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