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अब भी है बरकरार पहले सा खुमार: अहमद ख़्ाान-शायरा

शादी निभाना इतना भी मुश्किल नहीं जितना कहा जाता है, यह मानना है अहमद ख़्ाान और शायरा का। इनकी शादी को दो दशक होने वाले हैं। अहमद ख़्ाान फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने कोरियोग्राफर, प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं। शादी के इतने वर्ष बाद भी एक-दूसरे में वही आकर्षण महसूस करते हैं, जो शुरुआती

By Edited By: Published: Sat, 30 May 2015 04:55 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2015 04:55 PM (IST)
अब भी है बरकरार पहले सा खुमार: अहमद ख़्ाान-शायरा

शादी निभाना इतना भी मुश्किल नहीं जितना कहा जाता है, यह मानना है अहमद ख्ाान और शायरा का। इनकी शादी को दो दशक होने वाले हैं। अहमद ख्ाान फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने कोरियोग्राफर, प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं। शादी के इतने वर्ष बाद भी एक-दूसरे में वही आकर्षण महसूस करते हैं, जो शुरुआती वर्षों में था। संबंधों की उनकी समझ कितनी परिपक्व है, जानें।

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हमद ख्ाान कोरियोग्राफर, ऐक्टर, निर्माता-निर्देशक एवं लेखक हैं। 'रंगीला, 'ताल, 'गजनी, 'किक, जैसी कई फिल्मों में उन्होंने कोरियोग्राफी की है, साथ ही कई फिल्मों का निर्देशन भी किया है। उनकी हमसफर हैं शायरा। शादी को 17 साल हो गए हैं। इन वर्षों के चंद अनुभव बांट रहे हैं वे सखी से।

सफल दांपत्य का राज्ा

अहमद : मैं फिल्म इंडस्ट्री से हूंं। अगर एक पार्टनर इंडस्ट्री से बाहर का हो तो सामंजस्य में काफी मुश्किलें आती हैं। कारण यह है कि हमारे काम का कोई समय नहीं होता। यदि पत्नी समझदार न हो तो सचमुच परेशानी हो सकती है। बतौर निर्माता मेरी कोई फिल्म फ्लॉप होगी तो उसकी पीडा घर तक भी साथ आती है। काम के भी कई दबाव होते हैं। मेरी शादी में सबसे अच्छी बात यह है कि शायरा मुझे देखते ही मेरा मूड समझ जाती हैं। ज्िांदगी सिर्फ प्रोडक्शन, ऐक्टिंग, गाना या डांस नहीं होती, ज्िांदगी घर-बच्चे और पत्नी से मुकम्मल होती है। घर में एक प्यारी सी बीवी इंतज्ाार कर रही हो तो आधा स्ट्रेस तो यूं भी ख्ात्म हो जाता है। सच कहूं तो शादी के इन 17 साल में मैं नहीं बदला हूं, शायरा बदली हैं। यह बदलाव मेरी वजह से आया उनमें। शादी के समय मैं करीब 22 साल का था, जबकि शायरा 18 साल की थीं। उन्हें पार्टीज्ा, मौज-मस्ती, दोस्तों की आउटिंग भाती थी। मुझे यह सब पसंद नहीं तो इन्होंने सब छोड दिया मेरे लिए। यहां तक कि फिल्में तक देखना कम कर दिया। वह मेरी पसंद-नापसंद का पूरा ख्ायाल रखती हैं। मेरे घर की दीवारें सफेद हैं, क्योंकि मुझे यही रंग पसंद है। शायरा ने मेरा हमेशा ख्ायाल रखा, शायद इसलिए हमारी ज्िांदगी शांति से चली है। इसका श्रेय मैं इन्हें देता हूं।

शायरा : मेरे माता-पिता बेहतरीन कपल थे। मैंने बचपन से देखा कि डैड ख्ाुशी-ख्ाुशी ऑफिस जाते थे, मॉम का ख्ायाल रखते थे। जब तक मॉम ज्िांदा थीं, घर में बहुत अच्छा माहौल रहा। मेरे मन में भी कहीं यह बात थी कि मैं मॉम की तरह परफेक्ट हाउसवाइफ बनूंगी। मॉडलिंग तो टाइमपास के लिए की मैंने। मैं सोिफया कॉलेज में पढ रही थी। वहां दो साल लगातार सोिफया क्वीन का खिताब जीता था। मिस बांबे का इंटरकॉलेज कंपिटीशन भी जीता था। दिल से कह रही हूं कि अहमद का प्यार मेरी ज्िांदगी की सबसे बडी ताकत है। उनका प्यार हमेशा मज्ाबूत रहने को प्रोत्साहित करता है। मैं उनके साथ एडजस्ट करके चलती हूं। हर आने वाले दिन के साथ उनके लिए मेरा प्यार और सम्मान बढता है। ख्ाुदा के बाद अगर मैं किसी के सामने झुक सकती हूं तो वह मेरे पति ही हैं।

पहली मुलाकात

अहमद ख्ाान : मुझे पहली नज्ार में ही इनसे प्यार हो गया था। एक स्टूडियो था नटराज। वहां मैं शूटिंग कर रहा था, साथ ही अपने अच्छे दोस्त सोहेल ख्ाान के साथ बाहर हैंगआउट कर रहे थे। शायरा दोस्तों के साथ आई थीं वहां। इनकी दोस्त थी डिंपल। मैंने यूं ही उनसे पूछ लिया शायरा के बारे में तो वह साफ बोली कि शायरा टाइमपास टाइप लडकी नहीं है। मैंने उससे कहा कि मैं भी सीरियस हूं। मुझे वह अच्छी लगी हैं और मैं उन्हें शादी के लिए प्रपोज्ा करना चाहता हूं। मज्ााक में कही गई बात सीरियस हो गई। मेरे असिस्टेंट थे साथ में। उन्होंने शायरा से बातें की तो पता चला कि वह मॉडलिंग करना चाहती हैं और उनके पिता उनकी शादी साउथ अफ्रीका में करने वाले हैं। ख्ौर, वह मेरा प्रपोज्ाल मान गईं और छह महीने के भीतर हमारी शादी हो गई।

शायरा : मैं अहमद को पहले भी देख चुकी थी। हमारी बिल्डिंग में नीचे पायनियर का शोरूम था। वहां ये अकसर गाडी लेकर म्यूज्िाक सेटअप करने आते थे। इन्होंने मुझे प्रपोज्ा किया तो मैंने तुरंत हां बोल दिया था। मुझे इनका स्टाइल, आत्मविश्वासी, तुरंत निर्णय लेने वाला और दिलेर व्यक्तित्व भाया। शादी दोनों परिवारों की रज्ाामंदी से हुई।

सफलता-विफलता

अहमद : मैंने वर्ष 1995 में करियर शुरू किया था। तब उम्र 20 के आसपास थी। अब 40 का हूं। इस बीच तमाम दोस्तों की शादियां हुईं, मगर उनमें से 80 फीसद अलग हो गए। मगर हम आज भी एक-दूसरे के उतने ही करीब हैं, जितने 17-18 साल पहले थे। हमारा प्रेम ज्िांदगी की हलचलों के बीच अडिग है। करियर में उतार-चढाव आते रहते हैं। कभी सफलता मिलती है-कभी विफलता। फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला तो बधाइयां मिलीं। हफ्ते भर का खेल होता है, फिर ज्िांदगी ढर्रे पर लौट आती है। कोई फिल्म फ्लॉप होती है तो तीन-चार दिन उदासी रहती है, उसके बाद वापस काम पर। हम सिंपल लोग हैं, जल्दी मुक्त हो जाते हैं उदासियों से।

शादियां टूटने का कारण

अहमद : मुझे नहीं पता कि शादी जैसा ख्ाूबसूरत बंधन टूटता कैसे है। हमारे बीच तो कभी अनबन होती भी है तो शायरा दो मिनट बाद ही एसएमएस कर देती है, 'आइ एम सॉरी..., भले ही ग्ालती मेरी हो। नाराज्ा होता हूं तो पांच-छह घंटे बाद ही लगने लगता है मानो सिर पर बडा सा पहाड रख दिया गया हो। शादी में स्थायित्व मुश्किल काम नहीं। हर रिश्ता आपसी विश्वास और समझदारी के बल पर चलता है। कभी मनमुटाव हो तो उसे सुलझाएं, उसे गांठ न बनाएं। रिश्तों में ठहराव ज्ारूरी है।

शायरा : जिओ और जीने दो का सिद्धांत हर रिश्ते पर लागू होता है। हम दोनों एक-दूसरे की कंपनी एंजॉय करते हैं। दिन भर काम करने के बाद रात में हम साथ में टीवी देखते हैं तो मेरे लिए वह सबसे शानदार समय होता है। अहमद रात में काम करते हैं तो मैं सो नहीं पाती। मुझे सुबह अकेले जिम जाना तक पसंद नहीं। सच कहूं तो मेरा सब कुछ पति, बच्चे व परिवार हैं। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि मैं अहमद पर निर्भर हूं। अहमद ने मेरे लिए प्रोडक्शन हाउस पेपरडॉल एंटरटेनमेंट शुरू किया। 'पाठशाला के बाद हमने 'एक पहेली लीला फिल्म बनाई।

तू-तू-मैं-मैं नहीं

अहमद : हमारे बीच झगडा नहीं होता। मेरा एक बेटा 13 साल का है, दूसरा साढे आठ साल का। जैसे मैं बच्चों को डांटता हूं, वैसे ही कई बार शायरा को भी डांट देता हूं। कई बार अपनी कुंठा भी उन्हीं पर निकालता हूं।

शायरा : मुझे झगडा पसंद नहीं है। हमारे रिश्ते की ख्ाासियत यही है कि मैं इन्हें पलट कर जवाब नहीं देती। बच्चों को कभी-कभी पढाई के लिए डांटती हूं। मैं नकारात्मक होकर नहीं जी सकती। मसले को सुलझा कर टेंशन-फ्री हो जाती हूं। यही करती रही हूं। आगे भी इसी पर कायम रहूंगी।

नहीं भूलती यादें

अहमद : हमारा दूसरा बच्चा होने वाला था। मेरे सिवा सबको लगता था कि बेटी होगी। शायरा ने तो बेटी के लिए पूरा कमरा पिंक करवा दिया। दोस्तों ने भी बेटी वाले गिफ्ट्स ख्ारीदे। मगर हो गया बेटा। डॉक्टर ने कहा कि बेटा हुआ है और आप गवाह हैं। फोटो खींचो, वर्ना शायरा झगडेंगी, इन्हें तो बेटी चाहिए थी। शायरा इतनी अपसेट रहीं कि दिन भर बेटे को गोद में नहीं उठाया। फिर लीलावती के ट्रस्टी आए, उन्होंने समझाया। अगले दिन बेटे को गले लगा कर खूब रोईं।

शायरा : मेरे पति का जन्मदिन तीन जून को होता है। जब मेरा पहला बेबी होने वाला था तो मैंने सिजेरियन कराने का फैसला किया था। डॉक्टर ने 5-10 जून की तारीख्ा दी थी। मैंने डॉक्टर से तीन जून के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि इसमें थोडा रिस्क है। मैंने कहा कि मैं इन्हें सरप्राइज्ा देना चाहती हूं, ताकि दोनों का जन्मदिन साथ पडे। यह मेरे लिए सबसे यादगार तारीख्ा है। मेरा दूसरा बेटा भी समय से पहले हुआ।

कॉमन बातें

अहमद : हममें कई बातें कॉमन हैं। जैसे हमें घर की शॉपिंग साथ में करने में मज्ाा आता है। हमें पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम है। हम बहुत सिंपल लाइफ जीते हैं। कहने को घर में बार है, लेकिन वहां एल्कोहॉल नहीं, सिर्फ सॉफ्ट ड्रिंक्स मिलते हंै। हम न तो एल्कोहॉल लेते हैं, न स्मोकिंग करते हैं। मुझे सफाई की सनक है। घर का हर कोना मुझे साफ-सुथरा चाहिए। शायरा भी साथ-सुथरे घर को तवज्जो देती है।

शायरा : हां, अहमद के साथ अतिरिक्त सजग रहना पडता है। जिस दिन वह घर पर होते हैं, सारे हैल्पर्स अलर्ट रहते हैं। वे डरते नहीं इनसे, इनका सम्मान करते हैं। वैसे इनका दिल सोने का है। ये बहुत हंसमुख हैं।

स्मिता श्रीवास्तव


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