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दिमाग के पास है दिल की चाबी

एक स्टडी में पाया गया है कि जिन स्त्रियों में इमोशनल इंटेलिजेंस ज्य़ादा होती है, उनके रिश्ते बेहतर होते हैं और उनकी सेक्स लाइफ भी अच्छी होती है।

By Edited By: Published: Mon, 10 Oct 2016 02:45 PM (IST)Updated: Mon, 10 Oct 2016 02:45 PM (IST)
दिमाग के पास है दिल की चाबी
एक्सपर्ट्स हमेशा से कहते रहे हैं कि डिजायर्स और सेक्सुअल हेल्थ का संबंध शरीर से ज्यादा दिमाग से होता है। फिलहाल जो नए सर्वे आ रहे हैं, उनमें भी ब्रेन के इसी खेल को सही साबित करने की कोशिश की जा रही है। एक अध्ययन में कहा गया है कि जिन स्त्रियों में इमोशनल इंटेलिजेंस (ईआई) अधिक होती है, उनकी सेक्सुअल हेल्थ भी अच्छी होती है। किंग्स कॉलेज लंदन में दो हजार से अधिक परिवारों पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि ऐसी स्त्रियां अपनी भावनाओं और एहसास को लेकर तो जागरूक होती ही हैं, वे दूसरों की भावनाओं का भी बेहतर खयाल रख पाती हैं। सेक्स संबंधों के लिहाज से ऐसी समझदारी बेहद जरूरी होती है। कुछ एक्सपट्र्स का मानना है कि पति-पत्नी के बीच अच्छे और नियमित संबंध हैं तो इससे स्त्री का आईक्यू स्तर भी बढता है। यह एक दिलचस्प बात है, जिसे इस आधार पर कहा जाता है कि नियमित और अच्छे सेक्स संबंधों से एस्ट्रोजन स्तर में वृद्धि होती है, जिससे मस्तिष्क की गतिविधियां भी बढती हैं। कुछ तो फर्क है इससे पहले कई शोधों में कहा गया कि स्त्री और पुरुष के मस्तिष्क में अंतर होता है। यह अंतर उनके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, सेक्स संबंधों को भी लेकिन पिछले वर्ष एक अध्ययन ऐसा भी हुआ, जिसने पुराने शोधों को गलत साबित कर दिया। इसमें कहा गया कि स्त्री-पुरुष के मस्तिष्क में कोई फर्क नहीं होता। शोध जो भी बताएं, आम जीवन में हम पाते हैं कि कुछ खास कार्यों को पुरुष बेहतर ढंग से कर पाते हैं तो कुछ को स्त्रियां बेहतर तरीके से कर पाती हैं। एक्सपट्र्स भी मानते हैं कि पुरुषों में सीखने-समझने की क्षमता तो होती है लेकिन वे एक बार में एक कार्य को बेहतर कर पाते हैं, जबकि स्त्रियों की स्मरण-शक्ति, सामाजिक स्किल्स और संवाद-क्षमता अच्छी होती है। इससे उनमें मल्टीटास्किंग और समस्याओं का सही हल ढूंढने जैसी काबिलीयत भी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है। दिमाग पर इतना जोर क्यों दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के शोध होते रहते हैं। कभी एक नतीजा निकलता है तो तुरंत बाद कोई दूसरा शोध पहले शोध के नतीजों को नकार देता है। सवाल यह भी है कि कुछ लोगों या खास वर्ग समूहों पर हुए इन शोधों को क्या हर समाज पर लागू किया जा सकता है? शोध में शामिल लोगों की सामाजिक-भौगोलिक-मानसिक और भावनात्मक संरचनाएं अलग-अलग हो सकती हैं। इसलिए सेक्स के स्तर पर स्त्री-पुरुष की इस भिन्नता को मस्तिष्क के दायरे में रहकर ही क्यों ढूंढा जाए? इससे किसी को फर्क भी क्या पडता है? दिल की चाभी दिमाग में अब जरा सामान्य स्त्रियों के मन में झांकने की कोशिश करें। कुछ समय पूर्व वैवाहिक मामलों की एक सलाहकार ने बातचीत के दौरान बताया था कि सेक्स की इच्छा भी व्यक्ति के संपूर्ण शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। शिक्षा, आत्मनिर्भरता, स्वास्थ्य, संबंध और आर्थिक स्तर का भी सेक्स संबंधों पर गहरा प्रभाव पडता है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, शिक्षित, जीवन से संतुष्ट स्त्री की सेक्स लाइफ भी अच्छी होती है। इसकी वजह यह है कि वे संबंधों में अपनी बात, पसंद-नापसंद, इच्छाओं और अपेक्षाओं को रखने की क्षमता रखती हैं। हां, यह भी सच है कि मस्तिष्क की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक चाभी है, जिससे दिल के बंद दरवाजे को खोला जा सकता है। दिमाग सोचेगा, कल्पना करेगा, तभी वह उस खास ऐक्टिविटी के प्रति लगाव भी महसूस कर पाएगा। इमोशनल इंटेलिजेंस शोध अगर यह बताता है कि इमोशनल इंटेलिजेंस वाली स्त्रियों की सेक्स लाइफ अच्छी होती है तो इसकी कुछ वजहें हैं। ऐसी स्त्रियों में स्थितियों को बदलने और संवाद करने की क्षमता अधिक होती है। बहुत सी स्त्रियां यह शिकायत करती हैं कि उन्हें ऑर्गेज्म नहीं मिल पाता। इसका कारण सिर्फ यही नहीं है कि उनका शरीर या मन सेक्सुअल ऐक्टिविटी से नहीं जुड पाता, यह भी है कि वे असहज होती हैं, डरती हैं और सेक्स के दौरान किसी ऐसी नई पोजिशन को ट्राई करने में हिचकिचाती हैं, जिससे उन्हें क्लाइमेक्स तक पहुंचने में आसानी हो। सेक्सुअल संतुष्टि काफी हद तक पार्टनर की समझदारी पर भी निर्भर करती है। अगर पार्टनर जानता है कि दूसरा असहज है, मानसिक तौर पर तैयार नहीं है और वह यह भी जानता है कि कैसे उसे तैयार किया जा सकता है तो सेक्स संबंधों में रवानगी आ सकती है। अगर पार्टनर को यही मालूम न हो कि उसकी साथी उससे चाहती क्या है तो इसमें स्त्री हमेशा असंतुष्ट ही रहेगी। दूसरी ओर जिन स्त्रियों में सेल्फ सेंस, भावनात्मक संवेदना और दूसरों को समझने की क्षमता अधिक होती है, वे अपने पार्टनर से शारीरिक रूप से अधिक जुडाव महसूस करती हैं। ऐसी स्त्रियां फेक ऑर्गेज्म से दूर होती हैं क्योंकि वे स्पष्टता से अपनी बात रखती हैं। इसका अर्थ यही है कि स्त्रियों को अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से रखने की कला सीखनी होगी, जबकि तमाम शोध बताते हैं कि उनकी संवाद-क्षमता पुरुषों के मुकाबले अच्छी होती है तो फिर सेक्स के स्तर पर यह क्षमता कहां गुम हो जाती है? इस एक सवाल पर भी अभी और शोधों की जरूरत हो सकती है। दोतरफा है यह संवाद सेक्स क्रिया एकपक्षीय नहीं हो सकती। यह दोतरफा संवाद है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि जो लोग जानते हैं कि सामने वाले की अपेक्षा कैसे पूरी की जाए, साथ ही यह भी समझते हैं कि उनसे अपनी अपेक्षा की पूर्ति कैसे की जाए, वे रिश्तों में खुश रह पाते हैं और उनके सेक्स संबंध भी खुशगवार बने रहते हैं। रिश्तों का सामान्य नियम भी यही कहता है कि दूसरा भी आपकी खुशी के लिए तभी प्रयास करता है, जब आप उसकी खुशी के लिए प्रयास करते हों। हालांकि एक्सपट्र्स यह भी स्वीकार करते हैं कि सेक्स के स्तर पर स्त्रियों का क्लाइमेक्स पर पहुंचना पुरुषों की तुलना में अधिक जटिल है। यहां एक बार फिर से स्त्रियों की भावनात्मक और मानसिक संरचना आडे आ जाती है। स्त्रियों की सेक्सुअल फैंटसीज पुरुषों की तरह सीधी-सपाट नहीं होतीं, उनमें कई लेयरिंग होती हैं। ज्य़ादा मत सोचो कई बार ऐसा भी माना जाता है कि संबंधों में वे स्त्रियां ज्यादा खुश रह पाती हैं, जो ज्यादा नहीं सोचतीं। बौद्धिक और संवेदनशील होना कई बार रिश्ते के आडे भी आता है। ऐसा माना जाए तो हर सर्वे फेल हो जाता है। हालांकि आम जीवन में ऐसा देखा जाता है कि निरपेक्ष भाव से काम करने वाली स्त्रियां जीवन से ज्यादा संतुष्ट दिखती हैं। शायद यही वह कारण है कि ज्यादातर सेक्सोलॉजिस्ट्स इस बात पर सहमत होते हैं कि स्त्रियों का सबसे बडा इरॉटिकजोन उनका दिमाग ही होता है। इसमें कैद दिल की चाभी को जिस दिन ढूंढ लिया जाएगा, रिश्तों के पजल भी हल कर लिए जाएंगे। इंदिरा राठौर

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