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हिम्मत नहीं हारती मैं

लीक से हट कर चलना बड़ी चुनौती है। जिनके मन में आगे बढ़ने का जज्बा होता है, वे ही निर्भीकता के साथ ऐसा कदम उठाते हैं। धारावाहिक दीया और बाती हम से पहचान बनाने वाली टीवी कलाकार दीपिका सिंह कुछ ऐसे ही अनुभव बांट रही हैं सखी के साथ।

By Edited By: Published: Mon, 02 Sep 2013 11:45 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2013 11:45 AM (IST)
हिम्मत नहीं हारती मैं

अगर हमारे मन में अपने सपनों को सच कर दिखाने का हौसला हो तो तमाम मुश्किलों के बावजूद हमें हमारी मंजिल मिल ही जाती है।

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पढाई में हमेशा रही आगे

जहां तक मेरी पर्सनल लाइफ का सवाल है तो हम लोग मूलत: दिल्ली के पहाडगंज इलाके के रहने वाले हैं। मैं बचपन से ही पढाई में बहुत तेज थी। हमेशा क्लास में फ‌र्स्ट आती थी। सोलह साल की उम्र से ही मैंने बच्चों को ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया था। बी.कॉम. ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन और एम.बी.ए. करने के बाद मैंने कुछ समय तक एक बैंक में जॉब किया, पर वहां मुझे बोरियत होने लगी तो मैंने एक साल के भीतर ही वह जॉब छोड दिया। मैंने कुछ समय तक पापा के बिजनेस में भी हाथ बंटाया, पर वहां भी मेरा मन नहीं लगा क्योंकि मैं कुछ नया शुरू करना चाहती थी।

बेचैनी कुछ अलग करने की

यह मेरे साथ बडी समस्या थी कि मैं किसी भी काम से बहुत जल्दी बोर हो जाती थी और हमेशा मेरे मन में कुछ न कुछ नया करने की छटपटाहट रहती थी, पर नया क्या करना है? यह मुझे भी नहीं मालूम था। हां, कॉलेज के दिनों में मेरे कुछ दोस्त थिएटर से जुडे थे और शौिकया तौर पर मैं भी उनके साथ चुपके-चुपके एक्टिंग की वर्कशॉप में जाया करती थी। मेरे पेरेंट्स को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। पता नहीं क्यों वहां जाकर मेरे मन को बहुत सुकून मिलता था। उन दोस्तों के साथ रहकर मैंने भी कुछ नाटकों में अभिनय किया।

वह मुश्किलों भरा दौर

इसी बीच स्टार प्लस के टीवी सीरियल दीया और बाती हम की ऑडिशन के लिए उसकी टीम दिल्ली आई थी। जब मुझे इसकी जानकारी मिली तो वहां जाने से ख्ाुद को रोक नहीं पाई। ख्ाुशिकस्मती से इस ऑडिशन में मेरा चुनाव हो गया।मेरे अच्छे एकेडमिक रिकॉर्ड को देखते हुए पापा मुझे आइ.ए.एस. ऑफिसर बनाना चाहते थे। जब मैंने उन्हें यह बात बताई तो वह बहुत नाराज हुए। पढाई में मैं हमेशा सबसे आगे रहती थी, लेकिन स्कूल के दिनों में एक्टिंग, म्यूजिक और डांस जैसी एक्टिविटीज से मेरा कोई वास्ता नहीं था। इसी वजह से मम्मी को यह डर था कि इस नए फील्ड में मैं अपनी पहचान कैसे बना पाऊंगी? इसके अलावा पापा मुझे घर से इतनी दूर अकेले भेजने को तैयार नहीं थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे साथ एक और लडकी जा रही है, तब वह बडी मुश्किल से राजी हुए। मुंबई पहुंचने के बाद भी जीवन इतना आसान नहीं था। वहां भी काफी मुश्किलें आई। कई ऑडिशन और स्क्रीन टेस्ट हुए, जिसमें मेरे अलावा कुछ और लडकियों का चुनाव किया गया था। जांच-परख की काफी लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद अंतत: इस धारावाहिक के लिए मेरा चयन हुआ, जिसमें मैं संध्या का लीड रोल कर रही हूं। अपने निजी जीवन में भी मैं संध्या की ही तरह मेहनती हूं। यहां तक पहुंचना मेरे लिए आसान नहीं था। इससे पहले भी मैंने एक-दो ऐड फिल्में कीं, दूरदर्शन के ऑडिशन में रिजेक्ट भी हुई, पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। थिएटर से जुडने के बाद एक्टिंग मेरा पैशन बन चुका था और मैं इसी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रयासरत थी। टीवी पर सीरियल का पहला एपिसोड देखने के बाद मेरे पापा ने मुझे फोन पर बधाई देते हुए कहा कि तुम्हारा निर्णय बिलकुल सही था, अब मुझे भी यकीन हो गया कि तुम एक्टिंग के लिए ही बनी हो। यह सुनकर खुशी से मेरी आंखें भर आई। आज मुझे ऐसा लगता है कि हमें अपने लिए वही काम चुनना चाहिए, जिसे पूरा करके हमें सच्ची ख्ाुशी मिलती हो।

विनीता


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