साबित किया है खुद को
बाधाएं सभी के सामने आती हैं, लेकिन जीत उसी की होती है जो हर बाधा को शिकस्त देते हुए मुस्तैदी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा होता है। गायिका सुनिधि चौहान भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। यहां वह अपने अनुभव बांट रही हैं, सखी के साथ।
अकसर लोग एक खास उम्र के बाद करियर की शुरुआत करते हैं, लेकिन मेरा संघर्ष बहुत छोटी उम्र से ही शुरू हो गया था। संगीत से मुझे बेहद लगाव था और मैं इसी क्षेत्र में पहचान बनाना चाहती थी। इस सपने को साकार करने में मेरे माता-पिता का बडा योगदान रहा है।
वह शुरुआती दौर
मैं मूलत: दिल्ली के पास स्थित छोटे से शहर खुर्जा की रहने वाली हूं। जब मैं चार-पांच साल की थी, तभी मेरे पापा दिल्ली शिफ्ट हो गए। उसी उम्र से मैंने स्टेज पर गाना शुरू कर दिया था। ऐसे ही एक स्टेज प्रोग्राम में तबस्सुम जी चीफ गेस्ट बन कर आई थीं। मेरा गाना सुनकर वह बहुत खुश हुई और उन्होंने मुझे मुंबई आने का न्योता दिया। मैं अपने मम्मी-पापा के साथ मुंबई पहुंची। यहां आने के बाद तबस्सुम जी ने मुझे कल्याण जी-आनंद जी से मिलवाया। इस तरह मुझे उनके लिटिल वंडर्स गु्रप का हिस्सा बनने का अवसर मिला। उस तूफानी बारिश को मैं आज भी नहीं भूल पाती, जब हमारे पास मुंबई में रहने की कोई जगह नहीं थी और हमें किसी परिचित के घर रुकना पडा।
मेरी प्रेरणास्रोत लता जी
मैंने कुछ स्टेज शोज किए। उसके बाद संगीतकार आदेश श्रीवास्तव ने मुझे फिल्म शस्त्र में गाने का मौका दिया और यहीं से मेरे करियर की शुरुआत हुई। फिर टीनएज में मेरी आवाज बदलने लगी। उस दौरान मेरा गाना कम हो गया और मैं बेहद हताश थी। तभी मेरे सामने लता जी प्रेरणास्त्रोत बनकर आई। असल में उन दिनों मुझे मेरी आवाज सुनो नामक टीवी प्रोग्राम के बारे में पता चला। जब मुझे यह मालूम हुआ कि कार्यक्रम के मेगा फाइनल में लता जी जज बनकर आएंगी तो मैंने उस प्रतियोगिता में भाग लेने का निर्णय लिया। मैंने लोगों से सुन रखा था कि विजेता को पुरस्कार उन्हीं के हाथों मिलेगा। आखिरकार मैं विजेता बन गई। लता जी ने पुरस्कार देते हुए मुझसे कहा था, मैं तुम्हारे साथ हूं..।
हर कदम पर थीं चुनौतियां
जब मैंने अपना पहला गाना फिल्मों में गाया, तब मात्र 11 साल की थी। अगर मैं यह कहूं कि मेरे हिस्से का संघर्ष मेरे पापा ने ही किया है तो यह गलत न होगा। वह हमेशा परछाई की तरह मेरे साथ रहे। छोटी उम्र से ही मुझे करियर का उतार-चढाव समझ आने लगा था। कई बार रिजेक्ट भी हुई। इससे मुझे गहरा धक्का लगा। उस वक्त मुझे सबसे ज्यादा दुख हुआ, जब मेरे गाए हुए कुछ गाने बाद में फिल्मों में आए तो उनकी डबिंग दूसरों की आवाज में की गई थी। तब मुझे बडा धक्का लगा था। ऐसे में करीबी लोगों ने मुझे समझाया कि इस फील्ड में नए सिंगर्स को अकसर ऐसी समस्या झेलनी पडती है। मेरे करियर में एक दौर ऐसा भी आया, जब सफलता के बावजूद मुझे लोगों की कटु आलोचना का सामना करना पडा। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि मैं केवल आइटम सॉन्ग्स ही गा सकती हूं, सॉफ्ट गाने तो गा ही नहीं सकती। करियर के उस मुश्किल दौर को मैंने चुनौती की तरह लिया और फिल्म चमेली के गाने भागे रे मन.. से लोगों का यह भ्रम दूर कर दिया। मैं मुश्किलों से जरा भी नहीं घबराती। मैंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुद को साबित किया है।
प्रस्तुति : रतन