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मुश्किलों ने मुझे मेहनती बना दिया

जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं, जब व्यक्ति हताश हो जाता है, पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मुश्किलों के सामने हार नहीं मानते। अभिनेता अनिल कपूर भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। यहां वह अपने जीवन के ऐसे ही अनुभव बांट रहे हैं आपके साथ।

By Edited By: Published: Tue, 02 Apr 2013 03:46 PM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2013 03:46 PM (IST)
मुश्किलों ने मुझे मेहनती बना दिया

आज उम्र के पांचवें दशक में पहुंचने के बाद जब मैं पीछे मुडकर देखता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि शुरू से ही मेरा जीवन संघर्षो से भरा रहा है, लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि जीवन में आने वाली मुश्किलों ने मुझे बहुत मेहनती बना दिया है। मैं आज भी मेहनत में कोताही नहीं करता। नई बातें सीखने और खुद में बदलाव लाने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं। यह मेरी कडी मेहनत का ही फल है कि गर्दिशों में बचपन गुजारने के बावजूद आज मैं इस मुकाम पर हूं।

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मुश्किलों का लंबा दौर

आप शायद यकीन न करें, पर मेरा बचपन बेहद तंगहाल था। कहने को मेरे पिता फिल्म निर्माता थे, लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। हम चेंबूर के एक चॉल में रहते थे। पिताजी हार्ट पेशेंट थे। पैसों की तंगी की वजह से इंटर के बाद मुझे पढाई छोडनी पडी। आज भी अच्छी तरह याद है कि उन दिनों काम की तलाश में रोजाना मुझे दस-बारह किलोमीटर पैदल चलना पडता था। जब काम नहीं मिला तो मैं अपने बडे भाई बोनी कपूर के साथ प्रोडक्शन में हाथ बंटाने लगा। पूना फिल्म इंस्टीट्यूट में ऐक्टिंग की ट्रेनिंग के लिए भी एप्लाई किया, लेकिन रिटन एग्जाम में फेल हो गया। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। कोशिश करता रहा। अंतत: रोशन तनेजा के ऐक्टिंग स्कूल में मुझे एडमिशन मिल गया, पर काम नहीं मिला। उसी दौरान दक्षिण भारतीय फिल्मकार बापू ने मुझे एक फिल्म में काम का ऑफर दिया, पर उनके डांस-ऑडिशन में मेरा पांव टूट गया और वह फिल्म भी मेरे हाथ से चली गई। फिर मैंने हिंदी से लेकर तमिल, तेलुगू तक कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए।

रंग लाई मेहनत

मुझे वो सात दिन का हीरो बनने के लिए भी बहुत पापड बेलने पडे। वह साउथ की फिल्म अंध अटकल का हिंदी रूपांतरण थी। उसके राइट्स के लिए उस समय 75,000 रुपये अदा करने थे। जो हमारे पास नहीं थे। तब 50,000 संजीव कुमार और शबाना आजमी ने चुकाए थे। बाकी हमने उधार लिया और बडी मुश्किल से मेरा हीरो बनने का सपना साकार हुआ था। देर से ही सही मेरी मेहनत, बडों की दुआएं और शुभचिंतकों की शुभकामनाएं काम आ गई। इस मामले में मैं खुद को बेहद लकी मानता हूं कि मुझे हमेशा अपनों का साथ मिला।

बढती उम्र नहीं है बाधक

यह बात वाकई मुझे बहुत सुकून देती है कि मैं पिछले तीस सालों से इंडस्ट्री में हूं और अपनी शर्तो पर काम कर रहा हूं। मैं चाहता हूं कि मरते दम तक काम करता रहूं। तभी तो फिल्मों के अलावा टीवी शो भी कर रहा हूं। अपनी बॉडी और लुक्स का भी पूरा ध्यान रखता हूं। लीन लुक के लिए मैंने 6 किलो वजन घटाया है। मैं मानता हूं कि उम्र महज एक मानसिक स्थिति है। अगर आप दिमाग और दिल दोनों से जवान हैं तो उम्र का कोई ख्ास असर नहीं पडता। यही बात हमारे स्ट्रगल के लिए भी लागू होती है। किसी परेशानी को दूर करने के लिए आप मानसिक रूप से कितने तैयार हैं, समस्या का समाधान इसी पर निर्भर करता है। मुसीबत कितनी ही बडी क्यों न हो, मजबूत इच्छाशक्ति के सामने छोटी पड जाती है। अगर हम धैर्य से काम लें तो कुछ भी असंभव नहीं है।

प्रस्तुति : अमित कर्ण

अमित कर्ण


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