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चुनौतियां देती हैं आगे बढ़ने की ताकत

कई बार दूसरों की गलती से निर्दोष लोग हादसों के शिकार हो जाते हैं। ऐसी ही एक गंभीर दुर्घटना की शिकार हुई दिल्ली की प्रज्ञा घिल्डियाल। ऐसे आड़े वक्त में उनका अपना साहस और आत्मविश्वास ही सबसे ज्यादा काम आया। वह सखी को बता रही हैं अपने संघर्ष की दास्तान।

By Edited By: Published: Tue, 02 Jul 2013 02:32 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2013 02:32 PM (IST)
चुनौतियां देती हैं आगे बढ़ने की ताकत

मैंने सुना था कि चुनौतियों के बिना जिंदगी बेमजा होती है। तब मुझे यह बात थोडी अटपटी लगती थी, पर अब मुझे ऐसा लगता है कि चुनौतियां ही हमें आगे बढने की ताकत देती हैं। उस वक्त मेरे जीवन में सब कुछ बहुत अछा चल रहा था। तीन बहनों में मैं सबसे छोटी हूं। मेरे पापा आर. सी. घिल्डियाल एक निजी बैंक के कंसल्टेंट थे और मम्मी उषा घिल्डियाल गवर्नमेंट स्कूल में प्रिंसिपल थीं। अब दोनों रिटायर हो चुके हैं। मैंने गुजरात के जामनगर यूनिवर्सिटी से योग में ग्रेजुएशन और बंगलौर स्थित विवेकानंद आश्रम से योग और नेचुरोपैथी में डिप्लोमा किया था। योग टीचर के रूप में मेरे करियर की अछी शुरुआत हो चुकी थी। उन दिनों मैं दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 में अपना योग प्रशिक्षण केंद्र चलाती थी।

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बदल गई जिंदगी

करियर के शुरुआती दिनों में मैं सपनों के पंख लगा कर बहुत ऊंची उडान भर रही थी। मेरे पास एक स्कूटी थी, जहां भी जाना होता हाथों में हेलमेट उठाती और निकल पडती। बेहद मस्ती भरा दौर था वह। नियति ने मेरे लिए क्या तय करके रखा है, इससे पूरी तरह बेखबर मैं अपनी ही धुन में चली जा रही थी।

2 मई 2005 की वह मनहूस सुबह मैं कभी नहीं भूल सकती, जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह हिला कर रख दिया। हमेशा की तरह उस रोज भी सुबह साढे पांच बजे योग की क्लासेज लेने जा रही थी। तभी पीछे से आती हुई एक कार ने मेरी स्कूटी को हलका सा हिट किया, जिससे मेरा बैलेंस बिगड गया और मैं स्कूटी सहित गिर पडी। मुझे कोई खास चोट नहीं आई थी। मैं उठने की कोशिश कर ही रही थी कि कार के अगले पहिये मेरी कमर के ऊपर से निकल गए। मेरा हेलमेट खुल कर गिर गया। कार के अगले पहिये उसी में फंस गए। दरअसल कोई लडका कार चलना सीख रहा था। जब मैं स्कूटी से नीचे गिरी तो उसने ब्रेक लगाने की कोशिश की, लेकिन जल्दबाजी में उसने ब्रेक के बजाय एक्सीलेटर पर पैर रख दिया था। उसकी जरा सी लापरवही ने मेरी जिंदगी तहस-नहस कर दी। बाद में मालूम हुआ कि उसकी उम्र 18 साल से कम थी और उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था। मैं सभी पेरेंट्स से यही गुजारिश करना चाहूंगी कि वे अपने नाबालिग बचों को गाडी के साथ सडक पर इस तरह अकेला न छोडें। इससे केवल दूसरों की ही नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी को भी खतरा हो सकता है।

खैर, जो होना था वो चुका। उसके बाद पीछे से आ रहे एक व्यक्ति ने अपनी बाइक रोक कर मुझे उठाया। जिसकी कार से मेरा एक्सीडेंट हुआ था, उसी लडके ने मुझे अस्पताल पहुंचाया। एक्सीडेंट के बाद भी मैं पूरे होश में थी। मैंने लोगों को अपने घर का फोन नंबर बताया। फिर थोडी ही देर में मेरे मम्मी-पापा हॉस्पिटल पहुंच गए। मेरी कुल 11 हड्डियों में फ्रैक्चर था, जिसमें से 9 रिब्स (पसलियां) और 2 रीढ की हड्डियां थीं। मुझे तीन महीने तक वसंत कुंज स्थित स्पाइनल इंजरी सेंटर में रहना पडा। दो बार सर्जरी भी हुई, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मेरे शरीर का निचला हिस्सा निष्क्रिय हो गया और मैं हमेशा के लिए व्हील चेयर पर आ गई।

संकट का वह दौर

मात्र 22 वर्ष की उम्र में जीवन की सबसे बडी सचाई मेरे सामने थी, जिसे मुझे हर हाल में स्वीकारना ही था। पहले कभी-कभी मेरा मन बहुत उदास हो जाता था। तब मुझे ऐसा लगता कि वह गाडी पूरी तरह मेरे ऊपर से निकल गई होती तो ज्यादा अछा होता, पर ऐसे नकारात्मक विचारों को मैं अपने पास ज्यादा देर तक टिकने नहीं देती। मैंने कहीं पढा था कि अगर तुम हंसोगे तो सारी दुनिया तुम्हारे साथ हंसेगी, लेकिन रोते वक्त कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा। इसीलिए मैंने सोचा कि क्यों न इस सच को हंसते हुए स्वीकारा जाए। मेरे पेरेंट्स को इस दुर्घटना से गहरा सदमा लगा। उन्हें यह मालूम है कि अब मैं दोबारा खडी नहीं हो पाऊंगी। फिर भी, तुम जल्द ही ठीक हो जाओगी। कहकर वे हर पल मेरा मनोबल बढाते हैं। शायद वे ऐसा समझते हैं कि मुझे यह सचाई नहीं मालूम। उन्हें दुख न पहुंचे इसलिए मैं भी उनके सामने अपनी अक्षमता के बारे में कोई बात नहीं करती और उन्हें भरोसा दिलाती हूं कि मैं खुद अपनी देखभाल करने में सक्षम हूं।

नए सिरे से सीखा सब कुछ

इस दुघर्टना के बाद मेरी लिए जिंदगी 360 डिग्री के एंगल में पूरी तरह बदल गई। अब मुझे छोटे बचे की तरह हर काम नए सिरे से सीखना था। व्हील चेयर के साथ चलना, खुद नहाना, कपडे पहनना और रोजमर्रा के कई छोटे-छोटे काम नए सिरे से सीखना मेरे लिए आसान नहीं था। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मेरे शरीर के निचले हिस्से में कोई संवेदना नहीं है। मुझे यूरिनेशन और मोशन का एहसास नहीं होता। इसलिए मेरे शरीर के भीतर दो पाइप लगाए गए हैं, जिनके जरिये यूरिन और स्टूल बाहर निकलकर दो बैग्स में जमा होते हैं। जिन्हें हर चार घंटे के अंतराल पर मुझे साफ करना होता है। मुझे सफाई का बहुत ज्यादा ध्यान रखना पडता है क्योंकि जरा सी चूक से अंदरूनी इन्फेक्शन हो सकता है। चूंकि, मेरी शारीरिक गतिविधियां बेहद सीमित हैं। इसलिए ज्यादा कैलरी मेरे लिए बहुत नुकसानदेह है। इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुए मैं जंक फूड से हमेशा दूर रहती हूं। अपनी पसंद की दूसरी चीजें भी सीमित मात्रा में खाती हूं। शरीर के ऊपरी हिस्से से संबंधित जरूरी एक्सरसाइज और मेडिटेशन नियमित रूप से करती हूं।

योग से मिली नई जिंदगी

मैं अकसर सोचती हूं कि अगर मेरा करियर योग के बजाय कुछ और होता तो शायद मेरे लिए इस सदमे से उबरना इतना आसान नहीं होता। ट्रेनिंग के दौरान मैंने विल पावर और पॉजिटिव थिंकिंग के बारे में पढा था। तब हमें सिखाया गया था कि योग हमें शारीरिक रूप से फिट रखने के साथ आंतरिक खुशी भी देता है। अगर हम अछी बातें सोचेंगे तो मुश्किलों में भी खुश रहेंगे। तब भी मैं इन बातों को समझकर इन पर अमल करने की पूरी कोशिश करती थी, लेकिन इनका असली मतलब मुझे एक्सीडेंट के बाद समझ आया। जब मुझे इस सीख को व्यावहारिक रूप से जीवन में उतारने का मौका मिला।

आजकल मैं वसंत कुंज स्थित स्पाइनल इंजरी सेंटर में मरीजों को योग और मेडिटेशन सिखाती हूं। मैं उनकी काउंसलिंग भी करती हूं। चूंकि मैं खुद भी फिजिकली चैलेंज्ड हूं। इसलिए मरीजों की व्यावहारिक दिक्कतों को अछी तरह समझ पाती हूं और वे भी मुझसे बेझिझक होकर बातें करते हैं। अगर कोई सामान्य स्वस्थ व्यक्ति उन्हें कोई सलाह दे तो शायद उन्हें ऐसा लगेगा कि कहना आसान है, पर करना बहुत मुश्किल। वहीं जब मैं किसी व्यक्ति को कोई सलाह देती हूं तो वह मुझसे प्रेरित होकर मेरी बातों पर अमल करने की पूरी कोशिश करता है।

हर शौक पूरा करती हूं मैं

मैं अकसर वीकएंड में दोस्तों के साथ डिस्कोथेक चली जाती हूं। मुझे स्विमिंग भी बहुत पसंद है। मुझे तैरते देख कर अकसर लोग हैरत में पड जाते हैं, पर मजे की बात यह है कि अब मेरे लिए तैरना और आसान हो गया है। मेरे पैर बेजान हो चुके हैं। इसलिए वे पानी में अपने आप तैरते रहते हैं। मैं केवल अपने हाथों की मदद से तैरती हूं। ड्राइविंग तो मेरा पैशन रहा है। मेरी कार में हैंड कंट्रोल लगा हुआ। छुट्टियों में मैं लांग ड्राइव पर निकल जाती हूं। हाल ही में अपने दोस्तों को साथ लेकर अरवल (राजस्थान) तक गई थी। मुझे घूमना बहुत पसंद है। ह्यूमन राइट् का कोर्स करने के लिए मुझे अमेरिका जाने का अवसर मिला। वहां सभी सार्वजनिक स्थलों पर फिजिकली चैलेंज्ड लोगों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है। वहां मैं अपनी व्हील चेयर लेकर आसानी से कहीं भी जा सकती थी। डिज्नीलैंड में मैंने कई ऐसे राइड्स को एंजॉय किया, जिस पर जाते हुए नॉमर्ल लोगों को भी डर लग रहा था। वहां जैसे-जैसे झूला ऊपर जाता था मैं खुशी के मारे जोर से चीखती और मुझे ऐसा लगता कि उसकी ऊंचाई के साथ मेरा आत्मविश्वास भी बढता जा रहा है। वहां मैंने फिजिकली चैलेंज्ड लोगों को काफी खुश देखा। उन्हें देखकर मुझे ऐसा लगा कि इतनी तकलीफों के बावजूद जब ये इतने खुश हैं तो मैं क्यों नहीं रह सकती?

अपनों ने बढाया हौसला

मेरे मम्मी-पापा ने कभी भी मुझ पर कोई बंदिश नहीं लगाई। वे हमेशा मुझे आगे बढने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।हां, शहर के असुरक्षित माहौल को देखकर वे मुझे देर रात तक बाहर रहने के लिए मना करते हैं तो मैं भी उनकी बात मान लेती हूं। जब मैं हॉस्पिटल में भर्ती थी, तब अंतरराष्ट्रीय स्तर के पावर लिफ्टर अरुण सोंधी भी वहीं थे, उन्हें पैराप्लिजिया (निम्न पक्षाघात) की समस्या है। उन्होंने मुझे व्हील चेयर के साथ मूव करना और कार ड्राइव करना सिखाया था। आजकल वह स्वीडन में रहते हैं। मैंने उनके जैसा खुशमिजाज इंसान आज तक नहीं देखा। मैंने उनसे ही सीखा कि मुश्किलों का सामना हंसते-हंसते कैसे किया जाता है।

अब मैं जिंदगी की कीमत पहचान गई हूं और उसे व्यर्थ गंवाना नहीं चाहती। शायद आपको यकीन न हो, पर आज मैं पहले से ज्यादा खुश हूं। उस दुर्घटना ने मुझे जिंदगी से प्यार करना सिखा दिया और मैं इसके हर पल को जी भरकर एंजॉय करती हूं।

विनीता


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