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चला जाता हूं किसी की धुन में ...

विशाल-शेखर की जोड़ी ने पिछले 17 वर्षों में सैकड़ों गाने कंपोज किए हैं। पुराने गीतों में रूह तलाशने वाले शेखर के जीवन का एक दूसरा पहलू भी है।

By Edited By: Published: Fri, 09 Sep 2016 11:59 AM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 11:59 AM (IST)
चला जाता हूं किसी की धुन में ...
संगीत की दुनिया में आने की कोई प्लैनिंग नहीं थी शेखर रावजियानी की। शौकिया सीखना शुरू किया और आज हिंदी के साथ ही मराठी, तमिल, तेलुगू में भी गाने कंपोज कर रहे हैं। ऐसे हुई शुरुआत मैं बिजनेस फैमिली से हूं। फिल्म इंडस्ट्री से कोई कनेक्शन नहीं था लेकिन घर में संगीत का माहौल था। पिता जी अकॉर्डियन बजाते थे। घर में एक पियानो था। आठ साल की उम्र में सीखना शुरू किया। उस्ताद नियाज अहमद खां साहब से सीखा। यह नहीं सोचा था कि प्रोफेशनल गायक बनना है। मैं गाता था, उसे टेपरिकॉर्डर में रिकॉर्ड कर लिया करता था। मेरे दोस्त ही मेरे श्रोता होते थे। शौक बना प्रोफेशन एक दिन मेरे एक दोस्त का दोस्त घर आया। उसने मेरा गाना सुना। उसने बताया कि वह मुकुल आनंद की कंपनी के साथ काम कर रहा है। वह मेरे गानों का कैसेट लेकर उनके पास गया। तब मुकुल आनंद दो फिल्में बना रहे थे। उन्होंने मुझे दोनों में मौका दिया। दो गाने रिकॉर्ड भी किए, लेकिन वे रिलीज नहीं हो सके। फिर इंडी पॉप के साथ 'फस्र्ट लव' एलबम लॉन्च किया। एमटीवी पर उसका एक गाना 'जानेमन' इतना हिट हुआ कि कई बार नंबर वन पर रहा। इसके बाद राज कौशल अपनी पहली फिल्म बना रहे थे, जिसमें मैंने बतौर म्यूजिक कंपोजर काम किया। यहीं मैं विशाल से मिला और जल्दी ही हम साथ काम करने लगे। यह 17 साल पुरानी बात है। अब तक हमने 65 फिल्में और 600 गाने कंपोज कर लिए हैं। पुराना फिर लौटता है पहले संगीत में कोई दौर लगभग 10 साल तक टिक जाता था मगर अब चीजें तेजी से बदल रही हैं। हर तीन महीने बाद दूसरा दौर आ जाता है। हमारी पीढी ने किशोर दा या पंचम दा के गाने सुने हैं पर आज के बच्चे दूसरी तरह का संगीत पसंद करते हैं। वैसे इंटरनेशनल सिंगर्स को देखें तो वे माइकल जैक्सन, बीटल्स...को ही फॉलो कर रहे हैं। पुराना फिर लौटता है। पानी तो वही है, बस बोतल बदली है। हम यह भी नहीं कह सकते कि गाने बुरे बन रहे हैं, वर्ना वे चलते कैसे? मेहनत और किस्मत मुझे संघर्ष जैसा शब्द पसंद नहीं है। इसे मैं मेहनत कहता हूं। दुनिया का हर व्यक्ति संघर्ष करता है। बडे लोग अकसर कहते हैं कि मैं इतना संघर्ष करके यहां तक पहुंचा....। मैं कहता हूं कि बिना इसके कुछ हासिल नहीं होता। मैं मेहनत में यकीन करता हूं। बाकी ऊपर वाले पर छोड देता हूं। किस्मत में होगा तो मिलेगा, वर्ना नहीं। मेरे जीवन में स्त्रियां मां-दादी के अलावा मेरी बीवी और बेटी मेरे सबसे करीब हैं। बेटी से मेरी नॉलेज शेयरिंग होती है। मैं उसे इतिहास-भूगोल जैसे विषय पढाता हूं, साथ ही दुनिया के बारे में तमाम बातें भी समझाता हूं। मुझमें कहीं जो मैं बाकी है मैंने फिल्म 'नीरजा' में ऐक्टिंग की है। कुकिंग नहीं कर पाता, सिवा नूडल्स और ब्लैक कॉफी बनाने के...। हां, सेब अच्छा काट लेता हूं (हंसते हुए)। मुझे घूमने का शौक है। अकेले ड्राइव करते हुए शहर से बाहर जाना अच्छा लगता है...। पुराने गानों से एक अलग सा अटैचमेंट है। 80 के दशक से पहले के गाने सुनता हूं। गाने जितने पुराने होंगे, उतना ही मजा आएगा। हिंदी, मराठी, पंजाबी...हर तरह के गाने सुनता हूं। प्रस्तुति : इंदिरा राठौर फोटो : संजीव

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