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तांगेवाला कैसे बना मसालों का शहंशाह

सत्य, दया, परोपकार, प्रेम, करुणा और ईमानदारी जैसे मानवीय सद्गुणों से ओत-प्रोत शानदार और आकर्षक व्यक्तित्व वाले सदाबहार इंसान एक सफल उद्योगपति महाशय धर्मपाल जी नई पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ही उनका मूल मंत्र है, जो उनके विराट, उदार हृदय, सकारात्मक दृष्टिकोण और मानवता के प्रति सच्ची आस्था का स्पष्ट परिचायक है।

By Edited By: Published: Fri, 11 Nov 2016 12:33 PM (IST)Updated: Fri, 11 Nov 2016 12:33 PM (IST)
तांगेवाला कैसे बना मसालों का शहंशाह
जन्म के बारे में 27 मार्च, 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में जन्में महाशय धर्मपालजी की आरम्भिक शिक्षा दीक्षा ठीक से नहीं हो सकी, मगर उनकी व्यावहारिक बुद्धि बेमिसाल है। किसी भी ब्रैंड की पहचान उसके 'एंबेसडर' से होती है और जब एक वरिष्ठ नागरिक का मुस्कुराता चेहरा राजस्थानी पगडी पहने सामने आता है तो उस ब्रैंड की विश्वसनीयता पर र्विवाद रूप से विश्वास हो जाता है। जी हां, यह बात है एम.डी.एच. मसालों के ब्रैंड एंबेसडर महाशय धर्मपाल जी की, जो स्वयं ही 'ब्रैंड' बन चुके हैं। बहुत से घरों में बच्चों को 'असली मसाले सच-सच' एम.डी.एच. विज्ञापन आते ही दोहराते हुए देखा जाता है। देश-विदेश में भी महाशय जी को एम.डी.एच. 'ब्रैंड एंबेसडर' के रूप में आने-जाने वाले सहज ही पहचान लेते हैं। यह लोकप्रियता एक दिन में अर्जित नहीं की गई है। तांगे से ब्रैंड का सफर एक ब्रैंड को स्थापित करने में उन्होंने अथक परिश्रम किया। एक साधारण तांगा चलाने वाला आज एम.डी.एच. जैसे ब्रैंड का चेयरमैन बन सका है। इसके पीछे अनेक कुर्बानियां छिपी हैं। पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोडकर आने के बाद 1500 रुपये लेकर एक युवक दिल्ली आया, जहां उसने तांगा व घोडा खरीद कर उसे चलाने का काम किया। इस युवक का पुश्तैनी काम सियालकोट में मशहूर देगी मिर्च बनाने का था, तो तांगा चलाना छोड कर रोजी के लिए अनेक काम किए किंतु अंतत: उन्हें अपने पुश्तैनी काम में ही सफलता मिली। गफ्फार मार्केट में एक छोटे से खोखे पर अपने हाथों से मसाला कूट कर पुडिय़ों में उसे बेचने का काम शुरू किया। यह काम चल निकला। प्रयास करके इस युवक ने कीर्तिनगर में एम.डी.एच. के लिए स्थान ढूंढा, जो आज मसालों के इस एम्पायर का कॉरपोरेट ऑफिस बन गया है। अपने अथक प्रयास से इस युवक ने जिसका नाम धर्मपाल था, इसके बाद मुडकर नहीं देखा और गुडग़ांव, नागौर, सोजत सिटी (राजस्थान) अमृतसर, गाजियाबाद, इंग्लैंड, दुबई में फैक्ट्री/ ब्रांच ऑफिस स्थापित किए। अपनी तमाम कारोबारी व्यस्थताओं के बावजूद महाशय धर्मपाल जी अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थाओं से सक्रियता से जुडे हुए हैं। स्वयं उन्होंने अनेक समाजसेवी संस्थान एवं प्रतिष्ठान स्थापित किए हैं, जिनमें महाशय चुन्नी लाल धर्मार्थ ट्रस्ट, माता चन्ननदेवी अस्पताल, महाशय धर्मपाल विद्या मंदिर, एम.डी.एच. इंटरनेशनल स्कूल और शुभ जोग सेवा आदि शामिल हैं। महाशय जी के अपने गुप्तदान व सहायता से गरीब परिवारों की कितनी कन्याएं सुखी वैवाहिक जीवन यापन कर रही हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है। ऐसी कन्याओं को सहायता प्रदान करने वाली सामाजिक संस्थाओं से चर्चा करने से आप ही जान जाएंगे कि उनके सहयोगी कौन हैं। इसके साथ अनेक गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा का दायित्व भी महाशय धर्मपाल जी ने लिया हुआ है। उनकी स्कूली फीस, किताबों व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महाशय जी कभी संकोच नहीं करते। समाजसेवा से जुडाव एम.डी.एच. का नाम केवल शुद्धता का पर्याय ही नहीं वरन् सामाजिक सुधार, जरूरतमंदों के उत्थान, शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों एवं ट्रस्ट का पर्याय भी बन गया है। अपनी उत्पादकता व विस्तार व्यस्तताओं के रहते हुए भी एम.डी.एच. समाज सेवाओं व मानवीय गतिविधियों में एक अग्रणी नाम के रूप में जाना जाता है। अपने संस्थापक के नाम से स्थापित महाशय चुन्न्नीलाल धर्मार्थ ट्रस्ट चिकित्सा, शिक्षा, व समाज सेवा आदि क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे है। आर्यसमाजों, वेलफेयर एसोसिएशन गौशालाओं, गुरुकुल, आश्रम आदि विभिन्न सामाजिक संगठनों को ट्रस्ट द्वारा आवश्यकतानुसार पर्याप्त आर्थिक अनुदान राशि प्रदान की जाती है। तीव्र बुद्धि व उज्जवल भविष्य वाले बच्चों व विद्यार्थियों को ट्रस्ट द्वारा कंपनी के कर्मचारियों व अन्य जरूरतमंद व्यक्तियों को उनके बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। वर्तमान समय में धर्म की पुरातन परंपराओं व सांस्कृतिक मूल्यों के पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में प्रचार हेतु ट्रस्ट द्वारा एक मासिक पत्रिका 'संदेश' का प्रकाशन किया जाता है। कीर्तिनगर में 'शुभ संजोग सेवा' के माध्यम से वैवाहिक संबंध जोडऩे के लिए अवसर प्रदान किए जाते हैं। महाशय जी का व्यक्तित्व उन रत्नों की तरह है, जो या तो समुद्र के गर्भ में छिपे रहते हैं या खदानों में दिखाई नहीं देते। यह समय की बलिहारी है कि बहुत कम पढा-लिखा एक तांगा चलाने वाला साधारण युवक आज हजारों करोड का व्यापार करने वाले भारत के गुणवत्ता एवं अग्रणी मसालों का शहंशाह बन चुका है। दुनिया को आप सर्वोत्तम देंगे, तो वह सर्वोत्तम ही आपके पास आयेगा। महाशय जी का यह तत्वज्ञान (दर्शन) वास्तव में सही सिद्ध हुआ है।

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