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खयालों का रिमोट-कंट्रोल

जिंदगी में जो कुछ होता है, उसमें दृष्टिकोण की बड़ी भूमिका होती है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Jan 2017 04:10 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jan 2017 04:10 PM (IST)
खयालों का रिमोट-कंट्रोल
कई बार व्यक्ति धारणाओं की गिरफ्त में इतना फंस जाता है कि उसकी सोच ही नकारात्मक हो जाती है। इससे वह लक्ष्य से तो दूर होता ही है, उसका मनोबल भी टूटने लगता है। सकारात्मकता सतत प्रक्रिया है, जिसका रोज अभ्यास जरूरी है। मार्क ट्वेन की पंक्ति है, 'मेरी जिंदगी तकलीफों से भरी है, हालांकि इनमें से ज्यादातर कभी आईं नहीं....। इस कथन का मतलब यही है कि कई बार हम स्थितियों का नकारात्मक विश्लेषण करते हैं, जबकि यथार्थ में वे उतनी बुरी नहीं होतीं, जितना हमने सोचा होता है। मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? कुछ बुरा होने वाला है...., सब गडबड हो रहा है...., यह काम तो मुझसे हो ही नहीं सकता...., मेरी ही गलती है..., कोई मेरी बात नहीं मानता....इस तरह के कई नकारात्मक विचार अकसर लोगों के दिमाग में चलते हैं। सफलता प्राप्त करने के लिए इनसे दूरी बनाना बेहद जरूरी है। विचारों को पहचानें समस्या यह है कि दिमाग में नकारात्मक विचार आ रहे हैं, इसका पता कैसे चले? इसके लिए एक छोटी नोटबुक काम की हो सकती है। इसे सदा साथ रखें। यदि सेहत संबंधी कोई समस्या बार-बार परेशान कर रही हो और मन सोचने लगे कि कोई गंभीर बीमारी तो नहीं हो गई? इस बात को दिमाग से निकाल नहीं पा रहे हैं तो नोटबुक में लिखें। इस तरह अपने नकारात्मक विचारों को लिखते जाएं। कुछ समय बाद जब स्थितियां अनुकूल हो जाएं तो अपनी नोटबुक में लिखे विचार पढें। अब देखें कि ऐसे विचार कब-कब ज्य़ादा आए। हो सकता है, जब तबीयत खराब हो, कुछ अन्य परेशानियां भी सामने आई हों, जिनकी वजह से ज्य़ादा नकारात्मक होकर सोच रहे हों। अपने विचारों के प्रति जागरूक होना जरूरी है। यह स्वीकार करना कि गलती हुई है...उसे सुधारने की दिशा में एक प्रयास है। समस्या को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है- 1. पहचान : समस्या को पहचानना उसके निदान की दिशा में पहला प्रयास है। इसके लिए जागरूकता जरूरी है। मसलन, किसी को गुस्सा अधिक आता है तो उसे उन स्थितियों के बारे में सोचना होगा, जिनमें क्रोध अधिक आता है। ऐसी स्थितियों से दूर जाना उसके लिए जरूरी होगा। 2. प्रभाव : दूसरा कदम है, समस्या के प्रभाव के बारे में जानना। नकारात्मक सोच या व्यवहार से जीवन में कितना नुकसान हुआ है, इसकी व्याख्या करना। 3. सुधार : समस्या की स्वीकृति और उसके प्रभावों को जानने के बाद बारी आती है सुधार की। इसके लिए सही रास्ते की खोज करना भी जरूरी है। रिफ्रेमिंग के नियम दिमाग को नकारात्मक सोच से मुक्ति दिलाना एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें रिफ्रेमिंग टेकनीक कारगर हो सकती है। इसके कुछ नियम हैं- 1. घटनाओं या स्थितियों का कोई निहितार्थ नहीं होता। लोगों का नजरिया ही स्थितियों को अच्छा या बुरा बनाता है। कई बार इस अमूर्त विचार को स्वीकार करना मुश्किल होता है लेकिन नकारात्मकता के बोझ से मुक्त होने के लिए बचपन की इस शिक्षा को याद करना भी जरूरी है कि हर बुरी चीज में कोई अच्छा संदेश छिपा है। 2. हर विचार के पीछे कोई पूर्वधारणा होती है, जो इंसान के विश्वास या धारणाओं से मिल कर बनती है। उदाहरण के लिए, कोई छात्र यह सोचे कि उसे कभी अच्छे अंक नहीं मिलेंगे क्योंकि शिक्षक उससे नाराज है। यह महज एक धारणा है, जो सही या गलत हो सकती है लकिन इस धारणा के कारण छात्र अपनी जिम्मेदारी भी दूसरे पर डाल रहा है। 3. सुनने में यह बात चाहे जितनी अजीब लगे मगर सच्चाई यह है कि नकारात्मक सोच के पीछे भी एक सकारात्मक मकसद छिपा होता है। यानी व्यक्ति के भीतर की आवाज, जो नकारात्मक रूप से बाहर भले ही निकले, उसका उद्देश्य किसी न किसी रूप में व्यक्ति की मदद करना होता है। वह विचार भले ही स्वीकार्य या सही न हो लेकिन उसके पीछे छिपे सही मकसद को ढूंढने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि रिफ्रेमिंग की प्रक्रिया आसान हो सके। बुरे से अच्छे की ओर अपने विचारों का आकलन सबसे महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि इसके बाद ही यह समझ आता है कि असल समस्या कहां है। कुछ व्यावहारिक टिप्स नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदल सकते हैं- शब्दों का चुनाव : 'मुझे उससे नफरत है.., 'मैं नंबर वन पर कभी नहीं आ सकती... जैसे वाक्यों के बजाय 'मुझे वह पसंद नहीं और 'मैं नंबर दो पर आ सकती हूं... जैसे वाक्य बोलें। कहने का तरीका भी बहुत हद तक सोच को बदलता है। खुद तलाशें रास्ता : जब कोई विचार परेशान करे तो स्वयं से पूछें कि इससे निकलने का बेस्ट तरीका क्या होगा। इससे ध्यान समस्या के बजाय उससे बाहर निकलने पर जाएगा। 'बेस्ट शब्द में कई सकारात्मक निदान छिपे हैं। घटनाओं से सबक : समस्या के बावजूद खुद को समझाने का एक और रास्ता है। हर चुनौती, विपरीत परिस्थिति, आपदा, कठिनाई या दुख में सीखने लायक बहुत कुछ होता है। मसलन आर्थिक परेशानियां पैसे का महत्व सिखाती हैं, किसी की मौत जिंदगी का सम्मान करना सिखाती है तो गंभीर बीमारी सेहत का खयाल रखने को प्रेरित करती है। धारणाओं को चुनौती : नकारात्मक सोच के पीछे छिपी धारणाओं पर गौर करें। कई बार धारणाएं सही हो सकती हैं लेकिन कई बार ये गलत भी हो सकती हैं। उन धारणाओं को ढूंढें जो सही नहीं हुईं। जैसे अगर अतीत में कभी किसी रिश्ते का गलत या नकारात्मक आकलन कर लिया हो जबकि वह रिश्ता अपेक्षा के विपरीत बेहतर निकला हो....। पूर्वधारणाओं को काबू करने में ऐसी घटनाओं से मदद मिल सकती है। स्थितियों की रिफ्रेमिंग नकारात्मक सोच या विचारों से बचना चाहते हैं तो उन आम विचारों के बारे में सोचें जो अकसर मन में चलते हैं और फिर उन्हें बदलने की कोशिश करें। 1. लोग कभी मेरी बात नहीं सुनते आम बातचीत में अकसर लोग ऐसा कहते हैं। इसी तरह का एक वाक्य है- 'मुझसे हमेशा गलती होती है। इन दोनों वाक्यों में जो सबसे नकारात्मक शब्द है, वह है- कभी और हमेशा। ऐसे सुधारें : जब कभी दिमाग में यह विचार आए कि लोग बात नहीं सुनते तो सोचें कि कहीं लोगों से आपकी अपेक्षाएं ज्यादा तो नहीं हैं? हो सकता है कि लोगों ने आपकी बात उतनी न सुनी हो, जितनी आपको अपेक्षा हो मगर कभी न कभी आपकी बात सुनी भी गई होगी। उसे याद करें, इससे नकारात्मकता से बचने में मदद मिलेगी। 2. कुछ तो बुरा होने वाला है यह भी एक आम वाक्य है। ऐसी बातें बेचैनी पैदा करती हैं और इन्हें नियंत्रित किया जाना जरूरी है। एक ऐसी घटना के बारे में सोचना, जो हुई ही नहीं है और भविष्य में हो भी सकती है या नहीं भी...। ऐसे सुधारें : आज की चुनौतियों या स्थितियों के आधार पर यह कल्पना करना कि कल कुछ बुरा ही होगा, ठीक नहीं। इस सोच को थोडा सा ट्विस्ट करें और सोचें कि कोई भी भविष्य के बारे में नहीं जानता। जो भी होगा-अच्छा होगा या इसकी संभावना अधिक है कि अच्छा ही होगा...। मन में 10 बार इस विचार को बुदबुदाएं। 3. यह काम मुझसे नहीं होगा चुनौतियां सामने आते ही अकसर कुछ लोगों के मुंह से बेसाख्ता यह वाक्य निकलता है। चुनौती आई भी नहीं, इंकार पहले होता है। यह विचार आए तो सबसे पहले गहरी सांस लें। ऐसे सुधारें : उन कार्यों के बारे में सोचें, जिनमें चुनौतियां आईं और उनसे निपटने के रास्ते भी निकल आए। इससे अपनी सोच को सकारात्मक दिशा में मोडऩे में मदद मिलेगी। 4. सब मेरी ही गलती है जाने-अनजाने खुद को दोषी ठहराना भी नकारात्मक विचार की श्रेणी में आता है। अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेना अच्छी बात है लेकिन उन कार्यों के लिए भी खुद को दोषी ठहराना ठीक नहीं, जिनके लिए आप जिम्मेदार नहीं थे। स्वयं को माफ न कर पाना एक नकारात्मक विचार ही है। ऐसे सुधारें : अगर कोई काम ऐसा है, जो समूह में किया गया हो और वह विफल रहा हो तो इसके लिए खुद को दोषी ठहराने से पहले सोचें कि हां, अपनी गलती की जिम्मेदारी मेरी है लेकिन बहुत सी स्थितियों पर मेरा नियंत्रण नहीं था, इसलिए हर गलती के लिए खुद को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। 5. ऐसा होता तो वैसा होता... अगर-मगर, किंतु-परंतु जैसी सोच भी कई बार सफलता से दूर कर देती है। स्थितियों का रोना रोने से सिर्फ बाधाएं ही आती हैं। इससे व्यक्ति लक्ष्य से दूर होने लगता है और उसका आत्मबल कमजोर होता है। ऐसे सुधारें : कोई भी मुझे मेरा लक्ष्य हासिल करने से नहीं रोक सकता...यह ऐसा विचार है जो बुरी स्थितियों को भी पॉजिटिव बनाने में मददगार है। स्थितियां या तो अच्छी होती हैं या बुरी...। दुनिया के सभी जीव स्वयं ही रास्ते बनाते हुए स्थितियों से बाहर निकलते हैं। इंदिरा राठौर (डॉ. समीर पारिख, डायरेक्टर, मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंस, फोर्टिस हेल्थकेयर से बातचीत पर आधारित)

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