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तैयारी संकट से निपटने की

उतार-चढ़ाव जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। व्यक्ति के धैर्य, साहस, हौसलों व क्षमताओं की पहचान विपरीत स्थितियों में ही होती है।

By Edited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 04:21 PM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 04:21 PM (IST)
तैयारी संकट से निपटने की
कई बार कार्यस्थल में अचानक कोई समस्या आ जाती है या एकाएक ऐसी चुनौती सामने आ जाती है, जिसे स्वीकार करते हुए तुरंत निर्णय लेना जरूरी होता है। इसी को क्राइसिस मैनेजमेंट कहते हैं। क्यों न नए वर्ष में एक संकल्प यह जरुर लें कि विपरीत स्थितियों में अपने धैर्य और विवेक को बनाए रखने का हुनर सीखेंगे! उफ यह क्या हो गया! अब क्या होगा? कैसे सब मैनेज होगा...? एकाएक संकट आने पर मुंह से कुछ ऐसे ही वाक्य निकलते हैं। विपरीत समय में ही किसी के धैर्य, जोखिम उठाने, शांत रहते हुए काम करने और खुद को संतुलित रखते हुए स्थितियों को नियंत्रित कर पाने की कूवत पता चलती है। संकट जीवन के किसी भी पहलू पर पैदा हो सकता है। व्यक्ति, समूह, संस्थान, समाज, राज्य या देश कभी न कभी ऐसी क्राइसिस से जूझते हैं। कभी-कभी वर्कप्लेस में भी एकाएक कुछ अप्रत्याशित होता है, जिससे काम का माहौल डिस्टर्ब हो जाता है। इसे ऑर्गेनाइजेशनल क्राइसिस कहते हैं। चूंकि क्राइसिस एकाएक होती है, इसलिए लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है। कार्यस्थल में संकट ऑर्गेनाइजेशनल क्राइसिस के कई कारण हो सकते हैं। जैसे- टेक्नोलॉजी या किसी मशीन का ठप हो जाना, कर्मचारियों के आपसी मतभेदों के कारण लडाई या मारपीट की नौबत आ जाना, आर्थिक गडबडिय़ां, छंटनी, तालाबंदी आदि। ऐसी घटनाओं के बाद आमतौर पर विरोध-प्रदर्शन या तनाव की स्थितियां पैदा हो जाती हैं। इसके अलावा चोरी, हिंसा, आतंकवाद से जुडी घटनाएं भी ऑर्गेनाइजेशनल क्राइसिस में आती हैं। कई बार छोटी समस्याओं को लगातार नजरअंदाज करते रहने से भी बाद में बडा संकट पैदा हो सकता है। इसके अलावा आंकडों में उलट-फेर, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, गुप्त सूचनाओं का लीक होना, संस्थान द्वारा लोगों या बाजार का मूल्य न चुका पाना भी वर्कप्लेस क्राइसिस में आता है। एकाएक पैदा हुई ऐसी स्थितियों से निपटने की कला ही क्राइसिस मैनेजमेंट कहलाती है। जरूरत क्यों है मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में क्राइसिस मैनेजमेंट शामिल है, जो व्यक्ति की सॉफ्ट स्किल का ही एक हिस्सा है। यह स्किल व्यक्ति को साहस के साथ स्थितियों का सामना करना सिखाती है। इससे लोग आपात स्थिति में संतुलित रहना सीखते हैं और वे जान पाते हैं कि ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई और इसे कैसे सुधारा जा सकता है। संस्थान प्रबंधक ऐसी स्थिति को भांपकर लोगों को शांत व सुरक्षित महसूस कराने जैसी जिम्मेदारी निभाते हैं। 'गुड सेल्फ-बैड सेल्फ : ट्रांस्फॉर्मिंग योर वस्र्ट क्वॉलिटीज इन टु योर बिगेस्ट असेट्स में लेखिका जूडी स्मिथ ऐसी स्थितियों से निपटने के कई उपाय सुझाती हैं। वह बताती हैं कि एकाएक ऐसी स्थिति के सामने आने पर व्यक्ति को क्या करना चाहिए और उसे कैसे संकट के आगे खडा होना चाहिए। स्थिति का सही आकलन ऐसी किसी भी स्थिति में अपने विवेक को बनाए रखना पहली शर्त है। स्थिति का हर दृष्टिकोण से आकलन करें। तथ्यों व कारणों का पता लगाएं। क्राइसिस किस स्तर पर है? क्या उससे अकेले निपटा जा सकता है या किसी की मदद चाहिए? यह टेक्निकल क्राइसिस है या फाइनेंशियल? ऐसी तमाम बातों की जानकारी जरूरी है। किसी भरोसेमंद व्यक्ति से समस्या शेयर कर सकते हैं। कई बार स्थितियों के बारे में वह व्यक्ति सही-सही बता पाता है, जो बाहर से इसे देखता है, जबकि जो भीतर होता है, वह भावनाओं के चंगुल में फंस सकता है। स्थितियों पर नियंत्रण के लिए रक्षात्मक तरीका अपनाएं। अगर लगता है कि समस्या आगे बढेगी तो तुरंत हस्तक्षेप करें। यह कठिन समय हो सकता है लेकिन इसे ठीक करना नामुमकिन नहीं है, यह भरोसा खुद पर होना जरूरी है। ऐसे निकलें बाहर कार्यस्थल में होने वाली क्राइसिस से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है काम का माहौल। भय, असुरक्षा और अनिश्चितता से भरा माहौल काम करने की इच्छा, क्षमता और गुणवत्ता को प्रभावित करता है। ऐसी किसी भी स्थिति में निराशा और अविश्वास से बचना भी एक मिशन होता है। साहस, इच्छा-शक्ति, विश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ समस्या से निपटने के उपाय किए जाने चाहिए। क्या करें, जब सामने कुछ ऐसी ही स्थितियां आ जाएं- सही दृष्टिकोण : पहलकदमी लें और देखें कि कहां गलत हो रहा है। सही रणनीति के साथ समस्या को पहचानना उससे बाहर निकलने की दिशा में पहला हथियार है। सही सूचना : कयास या अफवाहों पर ध्यान देने के बजाय सही जानकारी हासिल करें। कोई भी कदम उठाने या रिपोर्ट तैयार करने से पहले हर सूचना को दो बार परखें। गलत धारणा से बचें : सिक्के के दो पहलू होते हैं। बेहतर है कि उन पहलुओं के बारे में अधिक सोचें, जिनसे लाभ हो। अनावश्यक शिकायतों, उलाहनों से कोई फायदा नहीं होता। बुरी स्थितियों को मुद्दा न बनाएं बल्कि समझदारी के साथ उनका सामना करें। प्रभावशाली संवाद : हर कर्मचारी को अपने इर्द-गिर्द होने वाले घटनाक्रम के प्रति जागरूक होना चाहिए। विपरीत स्थितियों में सूचनाएं कई तरह से आती हैं। वरिष्ठ अधिकारियों से निरंतर संवाद में रहना, अपनी समस्याएं उन्हें बताना और उनका फीडबैक लेना भी जरूरी है। सही व्यक्ति को जिम्मेदारी : यह सच्चाई है कि हर काम हर शख्स नहीं कर सकता। सही व्यक्ति को सही कार्य की जिम्मेदारी सौंपना जरूरी है। अच्छा लीडर इसका महत्व समझता है। कठिन समय में संस्थान के लक्ष्य सर्वश्रेष्ठ ढंग से हासिल करने के लिए कर्मचारियों में समर्पण भावना होनी चाहिए। अच्छा लीडर उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकता है। निर्णय-क्षमता : आकस्मिक स्थिति में तुरंत निर्णय लेने की जरूरत होती है। अपनी बुद्धि-विवेक पर भरोसा रखते हुए निर्णय न लिए गए तो स्थितियां बिगड सकती हैं। दूसरे की पहलकदमी का इंतजार किए बिना स्वयं किसी कार्य का बीडा उठाएं। शांत रहें : संकट के समय धैर्य और शांति बनाए रखें। डरें या घबराएं नहीं। कोई भी अतिरिक्त दबाव न लें अन्यथा निर्णय लेना मुश्किल होगा। याद रखें, शांत दिमाग से ही स्थितियों का मुकाबला किया जा सकता है। आत्म-समीक्षा : फैसलों, आकलन और कार्य की समीक्षा करें। सोचें कि जो आपने किया, क्या वह उन स्थितियों में सही था? बॉस को दिखाने के लिए नहीं, अपने लिए काम करें क्योंकि जितनी जरूरत संस्थान को आपकी है, उतनी ही आपको भी है। गलतफहमियों से बचें : सहकर्मियों को परिवार का हिस्सा समझें। संकट के समय एक-दूसरे के काम आएं, दूसरे की हरसंभव मदद करें। साथियों की आलोचना किए बिना मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से भी स्थितियों को समझने की कोशिश करें। छिपें नहीं-बाहर निकलें : परिस्थितियों से पलायन करना समस्या का समाधान नहीं है। विपरीत स्थिति में लोगों और क्लाइंट्स तक सही जानकारी पहुंचाना और अन्य लोगों की मदद लेना जरूरी होता है। किसी भी स्थिति में वास्तविकता को नजरअंदाज करना बुरा है, इससे स्थिति बिगड सकती है। इंदिरा राठौर

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