विफलता से इतना डर क्यों
गलती करना जीवन के इम्तहान में फेल होना नहीं बल्कि सफलता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाना है। गलती न करने का अर्थ है कि सफलता में भी कुछ संदेह है।
शश और गलतियां...ये वे हथियार हैं, जो जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए जरूरी हैं। कई लोग प्रयास करने से ही घबरा जाते हैं क्योंकि उन्हें भय होता है कि वे गलती कर बैठेंगे जबकि गलतियां सफलता की दिशा में जरूरी फीडबैक हैं। केवल इनके जरिये ही व्यक्ति जान पाता है कि आगे वह कैसे बेहतर कोशिश कर सकता है। गलती करना जीवन के इम्तहान में फेल होना नहीं बल्कि सफलता की दिशा में एक कदम आगे बढाना है। गलती न करने का अर्थ है कि सफलता में भी कुछ संदेह है।
क्यों डरते हैं लोग अकसर लोग विफलता को नकारात्मक ढंग से परिभाषित करते हैं क्योंकि उन्होंने हमेशा यही देखा है कि विफल लोगों को समाज में स्वीकार नहीं किया जाता। रिजेक्शन या लॉस को आगे बढऩे या सुधारने की दिशा में एक पडाव की तरह नहीं देखा जाता बल्कि इसे संभावनाओं या अवसरों की राह में बाधा माना जाता है, लिहाजा विफलता हमेशा भयग्रस्त और बेचैन कर देती है। जब खोने का भाव हावी हो जाता है तो विफलता का भय सताने लगता है।
विफलता के प्रति नजरिया विफलता का डर बेहद कम उम्र से व्यक्ति के अवचेतन में आने लगता है। जैसे, स्कूल के दिनों में ही छात्र को बताया जाने लगता है कि उसके ग्रेड का क्या महत्व है, जो छात्र औसत या कम नंबर लाते हैं, समाज ही नहीं, अपनी नजरों में भी वे खुद को कमतर आंकने लगते हैं। दुर्भाग्य से इसी उम्र में अगर विफलता के प्रति स्वस्थ नजरिया न अपनाया जाए तो भविष्य में यह उसी विश्वास को पुख्ता करने का काम करता है कि कम नंबर लाने वाला सफल नहीं है।
सफलता या विफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं लेकिन प्रतिस्पर्धाओं से भरी दुनिया में हर किसी को उसकी सफलताओं से मापा जाता है। कुछ हासिल कर लेना ही वह मापदंड है, जिससे किसी की सफलता मापी जाती है। सफलता को इतना बढा-चढा कर पेश किया जाता है कि विफलता लोगों को नाखुश करने लगती है। इससे लोगों का आत्मविश्वास कम हो जाता है। सफलता का यह निजी अर्थ लोगों के दिमाग में जितना मजबूत होता है, उतना ही विफलता उन्हें परेशान करने लगती है।
क्यों मिलती है विफलता आमतौर पर माना जाता है कि अनुभवहीनता, स्किल्स या संसाधनों की कमी के कारण विफलता मिलती है। कार्य का अनुभव नहीं हो, जरूरी संसाधनों और जरूरी स्किल्स की कमी हो तो इस बात की बहुत संभावना है कि उस कार्य में विफलता मिले। इसके अलावा कई बार हमारा दिमाग ही संतुष्ट नहीं होता, वह खुद से अधिक अपेक्षाएं रखता है। एक अपेक्षा पूरी होती है तो झट से दूसरी अपेक्षा शुरू हो जाती है। परफेक्शनिस्ट होने का जुनून इतना हावी होता है कि कार्य को उस हद तक न कर पाने से विफलता महसूस होती है। कई बार दिमाग नकारात्मक ढंग से सोचता है, उसे लगता है, कुछ भी अच्छा नहीं होगा। अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं होता, मनोविज्ञान की भाषा में इसे इंपोस्टर सिंड्रोम कहा जाता है। जब हम खुद से ही कभी संतुष्ट नहीं होंगे तो विफलता की यह भावना तो पैदा होगी ही। कई बार ऐसा भी पाया गया है कि रचनात्मक लोगों से अधिक गलतियां होती हैं। काम को एरर-फ्री करने की कोशिश कई बार व्यक्ति की रचनात्मकता को ही मार देती है।
अपेक्षाओं का बोझ अपेक्षाएं व्यक्ति को स्वयं का आकलन करने योग्य बनाती हैं। ये वे मापदंड हैं, जिन पर व्यक्ति लगातार खुद को परखता रहता है। हम खुद से क्या चाहते हैं और हमें क्या मिला है, तुलना जब इन दो चीजों के बीच होती है तो कई बार हासिल का महत्व कम हो जाता है और जो नहीं मिला, उसका दर्द बढ जाता है। दरअसल खुद से कई बार जो अपेक्षाएं होती हैं, वे वास्तविक या व्यावहारिक नहीं होतीं। जिन सफल सलेब्रिटीज को हम जानते हैं, वे सफल होने से पहले संघर्षरत ही थे। कई बार हम खुद को इतना परफेक्ट मानने लगते हैं कि लगता है हमसे कोई चूक नहीं होगी।
देखें इस ओर भी कोशिश न करने का मतलब है कि हमें खुद पर संदेह है। विफलता के इस भय से मुक्त होने के लिए कुछ कदम उठाने पडते हैं।
1. अपना लक्ष्य समझें। काम शुरू करने से पहले ही उसके लिए संसाधन, जरूरी स्किल्स और जानकारियां जुटा लें। परिणाम के बारे में सोचेंगे तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकेंगे। लक्ष्य बनाएं, बेसिक प्लैन तैयार करें और उसका अनुसरण करें।
2. तब तक खुद को अपग्रेड करते रहें, जब तक कि यह महसूस नहीं होता कि अब पूरी तरह सक्षम हैं। नकारात्मक ढंग से सोचने के बजाय केवल लक्ष्य की ओर बढते रहें।
3. अपनी पिछली सफलता के बारे में सोचें, वह कैसे मिली थी? इस बार सफलता कैसे मिल सकती है? इसकी रणनीति तैयार करें लेकिन अपने प्रति जजमेंटल हुए बिना।
4. खुद पर भरोसा रखें। विफलता मिले भी तो उसे एक अवसर की तरह देखें। उन कार्यों के बारे में सोचें, जिनमें कुछ प्रयासों के बाद सफलता हासिल हुई थी। ऐसे लोगों की कहानियां पढें, जिन्होंने हार नहीं मानी और उन्हें सफलता भी मिली।
5. असाधारण नहीं बन सकते तो साधारण बनें। दुनिया के असाधारण माने जाने वाले लोग भी पहले आम इंसान ही थे। फर्क सिर्फ यही है कि उन्होंने साधारण कार्यों को भी असाधारण ढंग से किया और इसमें उन्हें सफलता मिली।