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लोग कैसे-कैसे

सार्वजनिक स्थलों पर कई तरह के लोग होते हैं। उनकी बातचीत और गतिविधियों से कई ऐसे रोचक दृश्य बन जाते हैं, जिनसे दूसरों का अच्छा-खासा मनोरंजन हो जाता है।

By Edited By: Published: Mon, 06 Feb 2017 02:57 PM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2017 02:57 PM (IST)
लोग कैसे-कैसे
सार्वजनिक स्थलों पर कई तरह के लोग होते हैं। उनकी बातचीत और गतिविधियों से कई ऐसे रोचक दृश्य बन जाते हैं, जिनसे दूसरों का अच्छा-खासा मनोरंजन हो जाता है। आइए लुत्फ उठाएं कुछ ऐसे ही दृश्यों का, जिन्हें आपने भी पहले कभी न कभी जरूर देखा होगा। राजनीतिक विश्लेषक छोटे शहरों में ट्रेन या बस की लंबी यात्राओं के दौरान अकसर ऐसे लोग मिल जाते हैं। देश की राजनीतिक गतिविधियों में इनकी गहरी दिलचस्पी होती है। अति आत्मविश्वास से भरपूर ऐसे लोगों की बातें सुनकर यही लगता है कि देश के सभी बडे नेताओं के साथ इनकी रोजाना बातचीत होती है। चाहे ग्राम पंचायत हो या लोकसभा, हर चुनाव पर इनकी पारखी नजरें टिकी होती हैं। इनके पास स्थानीय स्तर पर होने वाले घपलों-घोटालों से जुडे दिलचस्प किस्सों का अच्छा-खासा संग्रह होता है। कई बार इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये आपस में झगड रहे हैं लेकिन असल में यह कोई लडाई नहीं होती। देश के प्रमुख राजनैतिक मुद्दों पर गर्मागर्म बहस भी इनकी बातचीत का प्रमुख हिस्सा होती है। अति जागरूक मरीज पहले ज्य़ादातर अस्पतालों के बाहर खांसते हुए हैरान-परेशान मरीजों को दूर से देखकर ही आसानी से पहचाना जा सकता था कि वे बीमार हैं लेकिन अब अच्छी बात यह है कि लोग सेहत के प्रति बेहद जागरूक हो गए हैं। आजकल आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त बडे प्राइवेट अस्पतालों के वेटिंग एरिया में बैठे मरीज कहीं से भी बीमार नजर नहीं आते (कुछ अपवादों को छोडकर)। अपनी बारी का इंतजार करते हुए वे मोबाइल पर हेल्थ वेबसाइट्स सर्च कर रहे होते हैं। इनकी गुफ्तगू सुनकर कई बार ऐसा लगता है कि दो मरीज नहीं, बल्कि डॉक्टर्स के बीच बातचीत हो रही है,'सिस्टोलिक बीपी 200 तक पहुंच गया था, टीएसएच-3 और टीएसएच-4 की रिपोर्ट भी पॉजिटिव है। दरअसल विंटर्स में मेटाबॉलिक रेट्स हाई होने की वजह से हार्ट पर ज्य़ादा प्रेशर पडता है, ऐसे में बीपी बढऩा तो नैचरल है...। मिस फैशन फ्रीक शॉपिंग मॉल में अकसर ऐसी युवतियां नजर आती हैं। ट्रायल रूम के बाहर खडे बेचारे पति बच्चे को बहलाने की कोशिश में जुटे होते हैं। पांचवीं-छठी बार ट्रायल लेने के बाद भी इन्हें कोई ड्रेस पसंद नहीं आती। ये कैट वॉक वाली स्टाइल में चलती हुई जैसे ही ट्रायल रूम से बाहर निकलती हैं तो ड्रेस पर ध्यान दिए बिना ही पति महोदय जल्दबाजी में कहते हैं, 'इस येलो ड्रेस की फिटिंग बहुत अच्छी है, यही ले लो। यह सुनते ही पत्नी गुस्से में आगबबूला हो जाती है, 'पहली बात, यह येलो नहीं लेमन कलर है, साइड से कितनी लूज हो रही है, पता नहीं तुम्हारी चॉइस कै सी है? पत्नी की इस बात पर पति मन ही मन अपनी सहमति जताता है पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। लव बर्ड सनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल या पार्क जैसे सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे युवा जोडे अकसर देखे जा सकते हैं, जिनका असली मकसद आम लोगों से थोडा अलग होता है। बच्चों के साथ आउटिंग पर जाने वाले लोग अकसर इनसे नजरें चुराने की कोशिश करते हैं। इन्हें देखकर बच्चे अपनी बाल-सुलभ उत्सुकता रोक नहीं पाते और माता-पिता को नाहक शर्मिंदगी झेलनी पडती है। ...लेकिन लोगों से बेखबर ऐसे लोग अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। सिनेमा हॉल में इनकी सरगोशियों की वजह से आसपास बैठे लोगों को बहुत परेशानी होती है लेकिन कई बार इनका यह सरस वार्तालाप इतना रोचक होता है कि आसपास के लोग फिल्म के बजाय इन्हीं को देखना ज्यादा पसंद करते हैं। मिस्टर अधीर आजकल बैंकों के बाहर लंबी लाइन लगी रहती है। ऐसे में अपनी बारी का इंतजार करने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं होता पर कुछ लोग इतने उतावले होते हैं कि वे आते ही लाइन में लगने के बजाय गार्ड से बातचीत करके बिना लाइन के ही भीतर घुसने की कोशिश करते हैं। अगर वहां बात बन गई तो ठीक है, वरना लाइन में खडे होकर वे बार-बार शोर मचा रहे होते हैं,'इतनी देर हो गई, लाइन आगे क्यों नहीं बढ रही, अरे! भई जल्दी करो मुझे ऑफिस भी जाना है...। उनकी बातें सुनकर ऐसा लगता है कि बाकी लोग वहां टाइम पास करने के लिए खडे हैं। शिकायती पेरेंट बच्चों के स्कूल में पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग के दौरान अकसर ऐसे अभिभावक मिल जाते हैं, जो बच्चे को लेकर बहुत ज्यादा पजेसिव होते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि महंगे स्कूल में बच्चे का एडमिशन करा देने के बाद उनकी सारी जिम्मेदारी खत्म हो गई। हर मीटिंग से पहले इनके पास शिकायतों का भारी पुलिंदा तैयार हो जाता है। मसलन, आपके स्कूल में बहुत लापरवाही होती है, मेरे बच्चे की वॉटर बॉटल बस में छूट गई थी पर वापस नहीं मिली, स्पोट्र्स के पीरियड में कल एक बच्चे ने मेरे बेटे को धक्का दे दिया, इसकी मैथ्स टीचर कौन हैं, जरा उन्हें समझा दीजिएगा वरना प्रिंसिपल से हम उनकी कंप्लेन कर देंगे...। ऐसे पेरेंट्स टीचर को बोलने का मौका ही नहीं देते। अगर टीचर बच्चे के बारे में कुछ बताने की कोशिश करती हैं तो इनकी नाराजगी और बढ जाती है। मोल-तोल के महारथी स्ट्रीट मार्केट से सब्जियां खरीदते वक्त ऐसे लोगों के दर्शन अकसर हो जाते हैं। बार्गेनिंग करने में कोई बुराई नहीं है पर कुछ लोगों का अंदाज बडा ही दिलचस्प होता है। आमतौर पर स्त्रियां इस कला में माहिर होती हैं। सब्जियों की क्वॉलिटी के साथ वजन पर भी इनकी कडी नजर रहती है। दुकानदार चाहे कितनी भी सस्ती चीजें क्यों न बेच रहा हो, मोल-भाव किए बिना खरीदारी करना इनके उसूल के खिलाफ है। इसलिए पहले सब्जियों की कीमत पूछने के बाद दुकानदार से सीधे यही कहती हैं, 'वहां तो गोभी बीस रुपये किलो बिक रही है। उसका जवाब होता है,'जहां सस्ती मिल रही है, वहीं से ले लो। लेकिन वे ऐसी बातों का बुरा नहीं मानतीं और मोल-तोल मिशन पर डटी रहती हैं।

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