Move to Jagran APP

मैं भी बाहर जाऊंगी..

स्त्री सुरक्षा के मुद्दे पर पिछले दिनों सोशल मीडिया से शुरू हुई एक मुहिम 'आइ विल गो आउट' ने देशव्यापी कैंपेन का रूप लिया। सभी प्रमुख राज्यों में इसे भरपूर समर्थन मिला। एक रिपोर्ट।

By Edited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 04:01 PM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 04:01 PM (IST)
मैं भी बाहर जाऊंगी..

हर स्त्री को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का अधिकार है, जो तभी मिल सकेगा, जब वह घर से बाहर तक खुद को सुरक्षित समझेगी।

loksabha election banner

किसी छोटी बच्ची की घर से बाहर निकलने की जिद नहीं है बल्कि हर लडकी की छोटी सी चाहत है। उन्मुक्त आसमान की ख्वाहिश, खुली हवा में सांस लेने की चाहत, घर से बाहर कदम निकालने पर असुरक्षा भय से मुक्त होने की इच्छा...। न जाने कितनी बार हम स्त्रियां अंधेरा घिरते ही अनजाने-अनदेखे भय से ग्रस्त हो जाती हैं। मन में चिंता रहती है कि किसी भी तरह सही सलामत घर लौट जाएं। कितनी जोडी अदृश्य आंखें खुद पर टिकी दिखती हैं। सडक पर अकेले चलें या टैक्सी बुक करा रहे हों, मन में ढेरों आशंकाएं जन्म लेने लगती हैं। किसी पर भरोसा करना मुश्किल होता है। यह बेचारगी का भाव हमें कितना पीछे धकेलता है, क्या कभी सोचा है...? शायद कहीं न कहीं हम स्त्रियां भी यही मान बैठी हैं कि देर शाम घर से अकेले निकलने की जरूरत क्या है? हम अपनी बहन या बेटी को भी यही हिदायत देते हैं कि शाम को जल्दी घर आ जाएं....। इसके पीछे डर उनकी सुरक्षा को लेकर ही होता है। इस कारण न जाने कितने अनुभवों-अवसरों से लडकियां वंचित रह जाती हैं। कोई घटना होती है तो लोगों का खून उबलने लगता है, सडकों पर आक्रोश दिखाई देने लगता है मगर कुछ दिनों बाद वह घटना तब तक भुला दी जाती है, जब तक कि कोई नई घटना न हो जाए।

शहर दर शहर वर्ष 2017 की शुरुआत भी स्त्रियों के लिए बेहद अफसोस भरी रही है। नए साल की पूर्व संध्या पर बेंगलुरु में हुई शर्मनाक घटना ने देश की हर लडकी को झकझोर दिया मगर इस बार वे चुप नहीं हैं। उन्होंने स्त्री सुरक्षा को एक मुहिम का रूप देने की ठानी है, जिसकी पहली कडी के रूप में 'आइ विल गो आउट यानी मैं भी बाहर निकलूंगी... जैसे नारे का जन्म हुआ। यह कैंपेन सोशल मीडिया से शुरू हुआ मगर जल्दी ही इस मुद्दे ने लडकियों की सुरक्षा को देशव्यापी मसला बना दिया। 20 से भी ज्यादा शहरों में एक ही दिन और एक ही समय पर स्त्री सुरक्षा को सुनिश्चित कराने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण मार्च हुआ। सोशल मीडिया के दायरे से निकल कर हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, पुडुचेरी, पुणे, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, अहमदाबाद, सिलचर, जयपुर, भोपाल, नागपुर, त्रिवेंद्रम, दिल्ली, गुरुग्राम, गोवा, रांची और चंडीगढ जैसे कई शहरों में सडकें शाम पांच बजे से गुलजार हो गईं। लडकियां ही नहीं, बडी संख्या में पुरुषों ने भी इस मुहिम में हिस्सा लिया। यहां तक कि कश्मीर की लडकियों ने ऑनलाइन संदेशों के माध्यम से इसे अपना समर्थन दिया। सबने एक ही स्वर से नारा लगाया, मैं भी बाहर जाऊंगी...। लोग देर रात तक सडकों पर रहे, बहसें हुईं, नुक्कड नाटक हुए, गीत-संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशासन और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की गई।

हर स्त्री का अधिकार यह महज नारी मुक्ति आंदोलन नहीं है, आजादी से जीना हर व्यक्ति की मूलभूत जरूरत है। ऐक्टिविस्ट-साहित्यकार महाश्वेता देवी ने कहा था, 'सपने देखना पहला मौलिक अधिकार होना चाहिए...। सपने देखने के लिए खुला आकाश तभी मिल सकता है, जब घर से बाहर तक हर स्त्री को सुरक्षा मिले। कई बार स्त्री सुरक्षा के लिए माहौल बनाने के बजाय राजनेता तक बयान देते नजर आते हैं कि लडकियों को देर रात में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। इस तरह के स्टेटमेंट एक बार फिर उस युग में ले जाते हैं, जब लडकियों को घर से बाहर अकेले न निकलने की नसीहत दी जाती थी या साथ में किसी पुरुष का होना जरूरी समझा जाता था।

ऐसा भी नहीं है कि सुरक्षा का सवाल केवल भारतीय स्त्रियों के साथ जुडा हो, हाल ही में अमेरिकी स्त्रियों ने भी इस मुद्दे पर एक मार्च निकाला था। पूरे विश्व में सांस्कृतिक, वैचारिक, सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद स्त्री हित से जुडे मुद्दे लगभग समान हैं। भारत में शुरू हुई यह मुहिम थोडी अलग इसलिए है क्योंकि यहां पितृसत्तात्मक समाज हावी रहा है, जिसमें स्त्रियों को एक परिधि के ही भीतर आजादी मिलती है। यही वजह है कि स्त्रियां हमेशा डर के माहौल में रहती हैं।

समर्थन में उठे स्वर अमेरिकी लेखिका और कार्टूनिस्ट डोनेली ने एक कार्टून के जरिये इस मुहिम को अपना समर्थन दिया। उनका कहना है कि इस तरह की मुहिम भारत में स्त्रियों के प्रति व्याप्त असमानता को दूर करने के लिए कारगर कदम है।

इस कैंपेन में ऐसे कई स्लोगंस बने, जो आज के समय की बेचैनी और अकुलाहट को व्यक्त करते हैं। पुडुचेरी के अरुण ऐसी मुहिम के प्रति आशावान हैं और भविष्य में भी इसका हिस्सा बनना चाहते हैं। युवा कवि अर्पण खोसला कविता के माध्यम से संदेश देते हैं कि परिस्थितियां, मानसिकता, सामाजिक परिवेश और परवरिश में बदलाव लाकर ही स्त्री सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। गोवा की तान्या कहती हैं, 'ऐसा लगता है कि गोवा बाकी जगहों के मुकाबले सुरक्षित है लेकिन यहां भी ग्रामीण इलाकों में लडकियां घर से बाहर नहीं निकलतीं। जरूरी यह है कि स्त्रियां भयमुक्त होकर अपना विकास कर सकें। इसलिए ऐसी मुहिम पूरे देश में लगातार चलाई जानी चाहिए। जयपुर की जया मानती हैं कि यह महज स्त्रियों का मुद्दा नहीं है। लडकों को शिक्षित करने की भी जरूरत है। कैंपेन में लडकों की बडी भागीदारी से वह आश्वस्त दिखती हैं।

सोच बदलें

महज कानूनों के बल पर स्त्री सुरक्षा की गारंटी नहीं की जा सकती। ऐसा होता तो निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म की घटनाएं कम हो जातीं। हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट की चर्चित वकील करुणा नंदी ने कहा था कि दरअसल जरूरत पितृसत्तात्मक सोच को बदलने की है।

आए दिन अखबारों और सोशल मीडिया में छेडछाड, दुष्कर्म या यौन शोषण जैसी खबरों की भरमार रहती है। इनके पीछे पुलिस, प्रशासन और कानून व्यवस्था के लूपहोल्स तो जिम्मेदार हैं ही, स्त्री को वस्तु मानने की मानसिकता भी बहुत काम करती है।

इस मुहिम में हर उम्र के स्त्री-पुरुषों ने जिस गंभीरता से भागीदारी की, उससे उम्मीद जगती है कि धीरे-धीरे ही सही, समाज में बदलाव की जरूरत महसूस की जाने लगी है। बदलाव की यह प्रक्रिया स्वयं से शुरू होनी चाहिए, तभी समाज भी बदलेगा।

सोशल मीडिया से शुरू हुई इस मुहिम को देश भर में सफल बनाने के लिए मैंने लोगों से निजी तौर पर संपर्क करने के अलावा सामाजिक संगठनों, अलग-अलग शहरों के प्रतिनिधियों से भी संपर्क किया, लगातार फोन और ईमेल्स के जरिये सभी से जुडी रही। हम किसी से कुछ नहीं मांग रहे, केवल सुरक्षा के साथ जीने के अपने मूलभूत अधिकार की मांग कर रहे हैं। हमारा यही कहना है कि क्यों हर बार लडकी को ही गलत ठहराया जाता है? क्यों उसे ही हर कदम डर-डर कर रखने की जरूरत पडऩी चाहिए? यह कैंपेन सुरक्षा की इसी जरूरत को समझाने के लिए चलाया गया।

सराहनीय प्रयास मैं स्त्री मुद्दों पर लंबे समय से काम कर रही हूं। दिल्ली, बेंगलुरु, गोवा...जगह कोई भी हो, अंधेरा घिरते ही स्त्रियों के मन में असुरक्षा-भावना बढ जाती है। गोवा छोटा सा राज्य है लेकिन यहां भी सार्वजनिक ट्रांस्पोर्ट सिस्टम ठीक नहीं है। इसलिए लडकियां कई बार बेहद जरूरी काम भी इस डर से छोड देती हैं क्योंकि वे देर शाम घर से बाहर नहीं रहना चाहतीं। इसलिए हम भी इस मुहिम से जुडे, इसके जरिये मन में एक विश्वास जागा है कि शायद कहीं कोई सुनवाई हो सके।

इस कैंपेन से जुडऩे के बाद मुझे अपने भीतर नई ताकत महसूस हुई। सडक पर चलने वाले आम लोग भी हमारी मुहिम से जुडे और न जाने कितनी कविताएं, कहानियां और गीत रचे गए। सभी ने खुलकर अपनी भावनाओं का इजहार किया।

मैं यूट्यूब पर हास्य विडियोज अपलोड करता हूं। कैंपेन के समर्थन में भी मैंने वरली कला का विडियो दर्शाया है कि किस तरह एक खूबसूरत पेंटिंग काला रंग बिखरने पर वीभत्स लगने लगती है। हालांकि यह शर्मनाक बात है कि हमें स्त्री सुरक्षा को लेकर मुहिम चलानी पड रही है, फिर भी विश्वास है कि यह मुहिम कारगर साबित होगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.