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संपादकीय

हाल के वर्षों में शादी के तरीकों में कई बदलाव आए हैं लेकिन यह भी सच है कि कुछ परंपराएं कभी नहीं बदलतीं और इन्हीं से आती है विवाह में रौनक...।

By Edited By: Published: Thu, 29 Dec 2016 05:26 PM (IST)Updated: Thu, 29 Dec 2016 05:26 PM (IST)
संपादकीय
प्रगति गुप्ता संपादक शादी आजकल... मौसम शादियों का है। कई घरों में इसकी तैयारियां चल रही होंगी। हाल के वर्षों में शादी के तरीकों में कई बदलाव आए हैं लेकिन यह भी सच है कि कुछ परंपराएं कभी नहीं बदलतीं और इन्हीं से आती है विवाह में रौनक। सखी लेकर आ रही है अपना विवाह विशेषांक। शादी में अब जाति-धर्म और प्रांत जैसे सवाल गौण हो गए हैं। भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का मेल कितना दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होता है, इस पर जानेंगे लोगों के अनुभव। देर से विवाह की समस्याओं को देखते हुए युवा फिर से सही उम्र में शादी को तरजीह देने लगे हैं। इस पर भी होगा एक महत्वपूर्ण लेख। इस अंक में शादी से जुडी हर वह जानकारी समेटने की कोशिश की गई है, जो आपके लिए जरूरी है। सोशल मीडिया ने लोगों, खासतौर पर स्त्रियों के जीवन पर बहुत प्रभाव डाला है। जिन सवालों पर वे चुप्पी साधे रहती थीं, उन पर भी बेखौफ होकर बात कर रही हैं और यह आजादी उन्हें सोशल साइट्स ने दी है। उन पर हमले भी हो रहे हैं मगर स्त्रियां अब डरती नहीं, जवाब देती हैं। इसी नए बदलाव को दिखाने की एक कोशिश है सखी की कवर स्टोरी 'सोशल मीडिया ने बदली तसवीर'। सर्दियों में गर्मागर्म सूप का मजा अलग है। इस बार दी जा रही हैं हेल्दी सूप की रेसिपीज। 'जागरूकता' में दूध से जुडी भ्रांतियों और उनकी सच्चाइयों के बारे में बताया जा रहा है। पाठकों की जरूरतों और रुचि को ध्यान में रखते हुए हम सखी में लगातार बदलाव कर रहे हैं। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है। कहते हैं, दुख और पीडा के पल इंसान को बहुत कुछ सिखाते हैं क्योंकि वहीं से सुख की राहें नजर आती हैं। अंधकार जब घना होता है, सितारे तभी दिखते हैं।

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