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जागरूक ग्राहक कहां गए?

कानूनों के बावजूद हमारे देश के उपभोक्ता बहुत जागरूक नहीं हैं। इसके अलावा शिकायत करने पर भी उन्हें जल्दी न्याय नहीं मिल पाता। ऐसा क्यों हो रहा है, इसका पता लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक समिति का गठन किया। इस बारे में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन।

By Edited By: Published: Thu, 29 Dec 2016 04:31 PM (IST)Updated: Thu, 29 Dec 2016 04:31 PM (IST)
जागरूक ग्राहक कहां गए?
हमारे देश में उपभोक्ता कानून का जन्म 30 वर्ष पहले हुआ था। इसे यही सोच कर बनाया गया था कि इससे बाजार उपभोक्ता फ्रेंड्ली बनेगा यानी इसे बनाने का उद्देश्य था, उपभोक्ता को 'राजा' बनाना। सेवा प्रदाता का कर्तव्य था कि वह उपभोक्ता ईमानदारी से सेवा करे मगर सही मायने में ऐसा हुआ नहीं। अदालतों से निराशा सेवा में कमी की शिकायत करने के लिए उपभोक्ता अदालतों का गठन किया गया, जिनका काम त्वरित न्याय देना था, ताकि उपभोक्ता भटकेें नहीं और उन्हें शीघ्र न्याय मिल सके। प्रतिपक्षी को सूचना मिलने के तीन महीने के अंदर ही फैसला आना चाहिए मगर जिस तरह न्याय में वर्षों लग जाते हैं, उससे उपभोक्ताओं में अदालत न जाने की प्रवृत्ति बढ रही है। यह प्रवृत्ति खतरनाक है क्योंकि इससे गलत को बढावा मिलता है। सर्वोच्च न्यायालय ने उपभोक्ताओं की सुविधाओं हेतु एक समिति गठित की। इस समिति ने पाया कि 'जागो ग्राहक जागो' जैसे स्लोगंस का प्रभाव हाल के वर्षों में कम हुआ है। उपभोक्ताओं को फोरम या आयोग से उम्मीदें कम हैं। लगभग हर राज्य में फोरमों का गठन किया गया है लेकिन हकीकत यह है कि वहां मूलभूत सुविधाओं की कमी है। क्या हैं खामियां खामियां, जिन पर सोचा जाना चाहिए- 1. अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर 2. नॉन ज्यूडिशियल मेंबर्स का चुनाव राजनैतिक तथा ब्यूरोक्रेटिक प्रभाव से होता है। कई बार तो घरेलू, अशिक्षित और कानून की समझ न रखने वाले लोगों का चुनाव भी हो जाता है, जो पूरी कार्यवाही के दौरान मूक श्रोता की तरह बैठे रहते हैं। अत: उनसे कानूनी कार्यवाही में कोई सहयोग नहीं होता। 3. आम लोगों की ये शिकायत भी है कि फोरम के सदस्य वक्त पर नहीं आते। वे हफ्ते में एक-दो बार आते हैं। 4. एक शिकायत यह भी है कि फाइलें खुली जगह पर रखी जाती हैं, जहां दीमक उन्हें चाट जाती है या फिर वे पडे-पडे खो जाती हैं। 5. कई बार संख्या में ज्यादा होने के कारण नॉन ज्यूडिशियल मेंबर्स, ज्यूडिशियल मेंबर्स के खिलाफ गुटबंदी कर लेते हैं। 6. जानकारी न होने के अलावा आदिवासियों व ग्रामीणों में अशिक्षा, गरीबी व अज्ञानता भी इस सुविधा से दूर रहने की बडी वजह है। प्रचार है जरूरी एक उपभोक्ता का मुकदमा 14 वर्ष से पेंडिंग था, जिस कारण उसे सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करनी पडी। इसके बाद इस समिति को बनाने का फैसला लिया गया। पैनल में दिल्ली उच्च न्यायालय की जज रेखा शर्मा और मेंबर पी.वी. रामाशास्त्री ने राज्यों का दौरा कर यह रिपोर्ट दाखिल की। आशा है कि रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट उपभोक्ता फोरम की कार्यप्रणाली सुधारने के लिए सही निर्देश देगी और उपभोक्ता कानून उस ध्येय को प्राप्त कर सकेगा, जिस मकसद के लिए इसे बनाया गया है।

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