कैशलेस जिंदगी
नोटबंदी के सरकारी फैसले के बाद पिछले दिनों बैंकों और एटीएम में लगी लंबी लाइनें कारोबारियों और आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बनीं। कैशलेस इकोनॉमी की मुहिम कितनी व्यावहारिक है, इसे जानने की कोशिश की है सखी ने।
भ्रष्टाचार और काले धन पर काबू पाने के लिए शुरू हुई नोटबंदी व कैशलेस इकोनॉमी की मुहिम शुरुआत में भले ही लोगों को थोडी परेशानी दे रही है लेकिन कुछ समय बाद इसके फायदे लोगों को नजर आने लगेंगे। देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए भारत को पहला कैशलेस देश बनाने की प्रधानमंत्री की इस योजना के साथ लोग बहुत धैर्य के साथ जुडे हुए हैं। इस योजना के बारे में क्या सोचते हैं लोग, जानें।
मंजिल अभी दूर है नोटबंदी के बाद ट्रांजेक्शन को आसान बनाने और एटीएम की लाइन से छुटकारा पाने के प्रयास में सरकार भले ही मोबाइल वॉलेट पर जोर दे रही है लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी आधी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है, जहां बिजली नहीं है। ऐसे में कैशलेस व्यवस्था को अपनाने का साधन या माध्यम क्या होगा? बिना इंटरनेट की सुविधा के यह सपना कैसे साकार हो पाएगा? ये बातें कैशलेस व्यवस्था की मुहिम को धीमा करती हैं। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। इस तरह के नए प्रयोग करने से पहले किसानों और ग्रामीण, अशिक्षित, घरेलू स्त्रियों सहित दिहाडी मजदूरों के बारे में भी सोचना पडेगा। यह देखने की जरूरत है कि इन लोगों के पास स्मार्ट फोन है या नहीं? अगर है तो कितने लोग इन्हें चलाना जानते हैं?
सभी लोगों के बैंक खाते खुले हैं कि नहीं? कितने गांवों में इंटरनेट की सुविधा है? घर में बचत करने की जो परंपरा पीढी दर पीढी चलती आ रही है, नई व्यवस्था से इस पर कैसा असर पडेगा? यह कोई चंद दिनों में खडी होने वाली व्यवस्था नहीं है। इसके लिए पूरी प्लैनिंग की जरूरत है। इसे तभी लागू किया जा सकता है, जब लोग इस व्यवस्था को अपनाने के लिए पूरी तरह शिक्षित हो जाएं। यही नहीं, सरकारी अमला भी इस व्यवस्था को लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो। जैसे- सभी गांवों और शहरों में इंटरनेट की व्यवस्था हो, मोबाइल वॉलेट के बारे में लोगों को जानकारी हो, लोगों के पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड हो और वे उसका इस्तेमाल करना जानते हों।
गांवों में ही नहीं शहर में रहने वाली आबादी में भी हजारों लोग ऐसे होंगे, जो इस व्यवस्था को अभी समझ ही नहीं पा रहे होंगे। बुजुर्गों के बारे में भी इस व्यवस्था के तहत सोचा जाना जरूरी है क्योंकि सभी बुजुर्ग नई तकनीक को समझने में सक्षम नहीं होंगे। ऐसे में कैशरहित अर्थव्यवस्था के लिए इतनी जल्दबाजी और उतावलापन मेरी समझ के तो परे है।
घाटे में है व्यापार मेरा एडवरटाइजिंग का बिजनेस है। सरकार के इस दावे के बाद कि 50 दिन के बादसब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरा बिजनेस ठीक नहीं हुआ है। लगभग 60 फीसदी बिजनेस डाउन है। मैंने काम के सिलसिले में अपने एक क्लाइंट को फोन किया तो उसने कहा कि जब ग्राहक के पास खरीदने के पैसे ही नहीं होंगे तो एडवरटाइज करने का क्या फायदा है। कैशलेस की बात करें तो देश में 2.5 करोड लोगों के पास ही क्रेडिट कार्ड की सुविधा है लेकिन सिर्फ इतने लोगों के लिए तो कंपनी एडवरटाइज नहीं करती, उसके लिए तो हर ग्राहक जरूरी है। अब अगर यह कहें कि क्रेडिट और डेबिट काड्र्स के बिना भी पेमेंट की जा सकती है तो उस तकनीक को भी कितने लोग जानते हैं और कितने लोगों को यह तकनीक सीखनी पडेगी। यह एक लंबा प्रोसेस है, जिसे सही रूप से चलाने में समय लगेगा। ऐसे में कैश की जरूरत तो बनी रहेगी। वैसे भी कैशलेस होने के बारे में फिलहाल सोचा नहीं जा सकता। दूसरा जब तक व्यवस्था ठीक नहीं होती, उसका पूरा घाटा तो कंपनी को ही उठाना पडेगा। कंपनी को हो रहे घाटे की वजह से हम अपने साथ काम करने वाले मजदूरों को भी समय पर सैलरी नहीं दे पा रहे हैं। हमारे पास ही काम नहीं आ रहा है तो मजदूरों को वेतन कैसे दें? अभी तो इस स्थिति से उबरना हमारी प्राथमिकता है। देखें, कब यह सब ठीक होगा...।
आसान नहीं है डगर हम हमेशा से ऐसी अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहे हैं, जहां आदमी की जेब में नगद नारायण रहता है तो वह आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई देता है। जेब खाली हो तो उसका आत्मविश्वास हिल जाता है। जिस तरह की कैशलेस व्यवस्था की बात सरकार द्वारा की जा रही है, वह अब भी 10-15 साल दूर है। विकसित देशों में ही यह सफल नहीं है तो फिर भारत तो अभी विकासशील देश है। कैशलेस स्कीम तभी सफल हो पाएगी, जब हर आदमी के पास इंटरनेट एक्सेस रहेगा। एक्सेस ही काफी नहीं, नेट कनेक्टिविटी भी ठीक ढंग से काम करे। दरअसल अभी तो लोग तकनीक से ही वाकिफ नहीं है। तकनीक की अपनी समस्याएं भी हैं। जैसे- आप क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेमेंट कर रहे हों और सर्वर हैंग हो जाए या सपोर्ट न करे तो आप क्या करेंगे? जेब में कैश होगा तो आपका काम झट से हो जाएगा, नहीं तो आप अगले दिन का इंतजार करें या फिर 5 मिनट के बजाय एक घंटा लगा दें। वॉलेट्स इस्तेमाल करने के लिए कहा जा रहा है लेकिन यह भी तभी कामयाब होगा, जब नेट होगा।
पैसे लें पेंशन? मैं एक पेंशनर हूं। मेरी उम्र 70 वर्ष है। अब तबीयत पहले की तरह साथ नहीं देती। ऐसे में नए नियमों और कायदों ने मेरी कमर तोड दी है। पहले आराम से बैंक जाता था और पेंशन के पैसे निकाल कर घर आ जाता था। अब नए नियमों के तहत आधार कार्ड जरूरी कर दिया गया है, जिसे बनवाने के लिए मुझे कई दिनों तक धक्के खाने पडे। जब वह बन गया तो पता चला कि उस पर लगी फोटो क्लियर नहीं है, लिहा मुझे दूसरी तसवीर खिंचवानी होगी और फिर से आधार कार्ड बनवाना होगा। इसके कारण बैंक ने मुझे पेंशन के पैसे निकालने नहीं दिए। समस्या यहीं खत्म नहीं हुई। मैंने फोटो ठीक कराई तो नोटबंदी ने पैसे निकालने की लिमिट लगा दी। वृद्धों के लिए अलग लाइन का इंतजाम न होने के कारण मुझे रोजाना कतार में लगना पड रहा था। मैं अपना चेक भी किसी को देकर पैसा नहीं निकाल सकता हूं। नए नियम के तहत खुद ही मौजूद होना जरूरी है। ऐसे में मेरे जैसे बूढे क्या करें? पैर काम नहीं करते और रोजाना लाइन में लगना मेरे बस के बाहर है।
लाइन में लगे या पढें मैं घर से दूर कॉलेज के हॉस्टल में रहता हूं। घर से अकाउंट में हर महीने एक निश्चित अमाउंट आता है, जिससे मुझे अपना खर्च चलाना पडता है। दिक्कत यह है कि मेरे हॉस्टल के आसपास अभी तक कोई ऐसी दुकान नहींदिखी जो पेटीएम का इस्तेमाल करती हो, लिहाजा मुझे हर चीज के लिए कैश में ही खर्च करना पडता है। एग्जाम नजदीक हैं, ऐसे में एटीएम या बैंक की लाइन में घंटों बीत जाते हैं, उस पर सरकारी लिमिट...। कई दिनों तक तो मेरा नंबर ही नहीं आया और जब आया तो चार हजार से कितने दिन तक काम चलता। पहले कभी-कभार बाहर कुछ खा लेता था लेकिन अब हाथ टाइट कर खर्च करता हूं, फिर भी एक हफ्ते में पैसा खत्म हो जाता है। कुछ खर्च कम भी कर लूं लेकिन किताबों के लिए और नोट्स प्रिंट कराने के लिए तो पैसे चाहिए। ऐसे में मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा है। मेरे लिए तो यह फैसला एक सजा की तरह ही है।