अनंत पुण्य महापर्व अक्षय तृतीया
वैशाख मास के शुक्लपक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल का महोत्सव है। वैशाख मास के शुक्लपक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। नि:संदेह यह तिथि अपने नाम के अनुरूप अक्षय फल प्रदान करती है।
त्रेता युग की पहली तिथि भारतीय काल गणना के अनुसार त्रेतायुग का शुभारंभ वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। धर्मग्रंथों में लिखा है कि इस तिथि में दान-पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन ग्रीष्म ऋतु के अनुकूल वस्तुओं जैसे-जल से भरे घडे, पंखे, खडाऊं, छतरी, जौ का सत्तू आदि दान करने का विधान है। ये सारी चीजों ग्रीष्म ऋतु से तप्त तन-मन को शीतलता प्रदान करती हैं। इस तिथि को किसी पवित्र नदी-सरोवर में स्नान करके यथाशक्ति दान देने से अक्षय-पुण्य प्राप्त होता है। स्कंद और भविष्य पुराण में यह उल्लेख है कि इसी दिन महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र परशुराम का अवतरण हुआ था। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान शिव का दिया अमोघ अस्त्र परशु (फरसा) धारण करने के कारण ही इनका नाम परशुराम पडा। भगवान परशुराम का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। कोंकण और चिप्लून के कुछ मंदिरों में परशुराम जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन से ही श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ होता है, जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
श्रीबांकेबिहारी के दर्शन श्रीधाम वृंदावन में श्रीबांकेबिहारी महाराज का मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। यहां प्रभु के श्रीचरण पूरे वर्ष ढके रहते हैं। समस्त भक्तों को अपने प्रिय ठाकुर जी के चरणों के दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से दिव्य रूप में किया जाता है, ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके। बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं।
स्वयंसिद्ध मुहूर्त भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त घोषित किया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि में किया गया कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है। इसीलिए पूरे देश में इस दिन बिना मुहूर्त देखे विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन, नामकरण, भूमि-पूजन और गृहप्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य किए जाते हैं। इस दिन सोना-चांदी खरीदने की परंपरा के पीछे भी यही मान्यता छिपी है कि इस दिन इन्हें खरीदने से घर में अक्षय समृद्धि बनी रहती है। अक्षय तृतीया के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी। महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी, जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था।
पर्व के विविध रूप अक्षय तृतीया का पर्व देश के सभी प्रांतों में विविध प्रकार से मनाया जाता है। मालवा (उज्जैन-इंदौर) में नए घडे के ऊपर खरबूजा और आम्र पल्लव रखकर लोग अपने कुल देवता का पूजन करते हैं। वहां इस दिन दूध से बने व्यंजन, गुड, चीनी, दही, चावल, खरबूजे, तरबूज और लड्डुओं का दान दिया जाता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में अक्षय तृतीया से पूर्णिमा तक युवतियां एक विशेष पर्व मनाती हैं, जिसे सतनजा कहा जाता है। इस दिन लडकियां सात तरह के अनाजों से देवी पार्वती की पूजा करती हैं। दक्षिण भारत में यह धारणा प्रचलित है कि अक्षय तृतीया के दिन सोना या आभूषण खरीदने से घर में सदा सुख-समृद्धि रहती है। हिंदुओं के साथ-साथ जैन समुदाय में भी अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। इस तिथि को भगवान विष्णु के पूजन, पवित्र नदियों में स्नान-दान और सभी सत्कर्मों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है।