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बदलाव का नाम है जिंदगी

फिल्म 'फूल और कांटे' से बॉलीवुड में एंट्री करने वाले ऐक्टर अजय देवगन को इस इंडस्ट्री में लगभग 25 वर्षों का अनुभव हासिल हो चुका है। वे 100 से अधिक हिंदी फिल्मों का हिस्सा रह चुके हैं और एक अभिनेता होने के साथ ही सफल निर्माता व निर्देशक के तौर पर भी जाने जाते हैं।

By Edited By: Published: Wed, 28 Dec 2016 07:01 PM (IST)Updated: Wed, 28 Dec 2016 07:01 PM (IST)
बदलाव का नाम है जिंदगी
गंंभीर भूमिकाओं से दर्शकों के बीच पहचान बनाने वाले अजय हास्य भूमिकाओं में भी अपनी छाप छोड जाते हैं। अदाकारा पत्नी काजोल के साथ वे 2008 में फिल्म 'यू मी और हम' में नजर आए थे, जिसके साथ ही डायरेक्शन की दुनिया में भी उन्होंने अपना कदम रखा था। हाल में रिलीज हुई फिल्म 'शिवाय' में उनके स्टंट सीन्स ने काफी तारीफें बटोरीं। आमतौर पर शांत व गंभीर नजर आने वाले अजय दरअसल बेहद हंसमुख हैं। उनके को स्टार्स अकसर उनके प्रैंक्स की चर्चा करते रहते हैं। उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश। फिल्मी दुनिया में आना महज संयोग था, आपकी रुचि या किसी तरह का पारिवारिक दबाव? स्टंट कोरियोग्राफर वीरू देवगन का बेटा होने के नाते बचपन से ही इंडस्ट्री से मेरा जुडाव रहा है। मुझे अंदाजा था कि फ्यूचर में जो भी करूंगा, वह बॉलीवुड से संबंधित जरूर होगा। यह किसी तरह का दबाव नहीं था, बल्कि ऐसा होना स्वाभाविक था। आपका ऐक्टिंग की तरफ झुकाव कैसे हुआ? लगभग 12 वर्ष की उम्र से मैं किसी न किसी तरह से इंडस्ट्री में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाना शुरू कर चुका था। कभी फिल्म निर्देशकों को असिस्ट करता था तो कभी फिल्मों की एडिटिंग में मदद करता था। मुझे कैमरे के पीछे की दुनिया ज्यादा आकर्षित करती थी। 1991 में फिल्म 'फूल और कांटे' में मुझे मुख्य भूमिका के लिए कास्ट किया गया। फिर धीरे-धीरे मैं बतौर ऐक्टर स्थापित होता गया। शूटिंग्स में व्यस्त रहते हुए परिवार को कितना समय दे पाते हैं? काजोल और मैं पति-पत्नी से पहले बहुत अच्छे दोस्त हैं। हम एक-दूसरे के काम और जरूरतों को समझते हैं। मेरे व्यस्त रहने पर वे परिवार का बखूबी खयाल रखती हैं। शूटिंग से जब भी फ्री होता हूं, अपने परिवार को पूरा समय देता हूं। आपकी नजर में पति-पत्नी के रिश्ते का आधार क्या होना चाहिए? भरोसा और दोस्ती... हर रिश्ते में दोस्ती का अपना महत्व होता है, उसके बिना आपका गुजारा हो ही नहीं सकता। दोस्ती से रिश्ते की नींव मजबूत होती है, भरोसा बनता है और एक-दूसरे को समझने की समझ विकसित होती है। समय के साथ परिपक्वता आती है, जिससे रिश्ता और मजबूत होता जाता है। मैं कभी किसी से असुरक्षित महसूस नहीं करता। मेरा मानना है कि सबका अपना पर्सनल स्पेस होता है, जिसकी इज्जत करना हर किसी का फर्ज है। फिल्म इंडस्ट्री में उतार-चढाव आते रहते हैं। फिल्मों पर लगे हिट या फ्लॉप के तमगे का आप पर कितना असर होता है? मैं हारने से बिलकुल नहीं डरता। ऐक्टिंग मेरी जिंदगी का आखिरी उद्देश्य नहीं है, मुझे उसके अलावा भी बहुत कुछ करना है। मेरे दर्शक और मैं संतुष्ट होने चाहिए, फिर मुझे फर्क नहीं पडता कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कितना कमा रही है। फिल्म 'यू मी और हम' के बाद आप काजोल के साथ किसी फिल्म में नजर नहीं आए...? वह मेरी पहली निर्देशित फिल्म थी। उसके इमोशनल पहलू ने ही मुझे उसका हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया था। आगे भी कोई दमदार स्क्रिप्ट हमारे सामने आएगी तो हम स्क्रीन पर साथ जरूर नजर आएंगे। वे एक बेहतरीन अदाकारा हैं, उनके साथ काम कर मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं। ज्यादातर हिंदी फिल्मों की शूटिंग विदेशी लोकेशंस पर होने लगी है। इसके पीछे कोई खास वजह है या इंडस्ट्री में किसी चीज की कमी? हमारे पास हॉलीवुड फिल्मों जितना बजट भले ही न हो पर तकनीकी तौर पर हम उनके जितने ही मजबूत हैं। इंडिया में भी शूटिंग के लिए एक से एक बेहतरीन लोकेशंस हैं पर कई बार कहानी की मांग हमें विदेशों तक ले जाती है। फिल्म देखने के बाद दर्शक को समझ में आ जाता है कि उसकी शूटिंग बाहर क्यों की गई। क्या सिनेमा बदल रहा है? लीक से हटकर बनी फिल्मों को दर्शकों की कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है? सिनेमा तो हर दौर के साथ बदलता है और बदलाव हमेशा सहज होते हैं। हर फिल्म का अपना दर्शक वर्ग होता है। लोग अच्छा और सेंसिबल सिनेमा देखना चाहते हैं, जिसमें एंटरटेनमेंट का भी फुल डोज हो। दर्शक मुस्कुराते हुए सिनेमा हॉल से निकलना चाहता है, साथ में अगर कोई सीख भी मिल रही हो तो और बढिय़ा। मेरे प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले फिल्म 'पार्च्ड' बनी थी। दुनिया भर में सराहना मिलने के बाद भारतीय दर्शकों ने उसे स्वीकारा। उससे पहले कोई उसे देखने के लिए तैयार नहीं था। यह एक बोल्ड टॉपिक था पर मुझे लगता है कि इस तरह की कहानियों को दिखाया जाना जरूरी है। समाज की बेहतरी के लिए जरूरत है कि लोग इन विषयों पर खुल कर चर्चा करें। फिल्म साइन करते वक्त किन बातों का ख्याल रखते हैं? फिल्म साइन करते वक्त मैं यह नहीं देखता हूं कि कोई कहानी या किरदार मेरे लिए कितना 'सेफ' है, मैं उसका चयन बस यह सोच कर करता हूं कि उसका कोई मकसद होना चाहिए, कोई ऐसा पहलू होना चाहिए जो दर्शकों को प्रभावित कर सके, जो उनके दिलों को छू सके और उन्हें कोई सीख दे जाए। मैं हमेशा अपने दिल की सुनता हूं और अपना काम पूरी ईमानदारी से करता हूं। मैं किसी ऐसी भूमिका के लिए हां नहीं करता, जिससे मैं खुद संतुष्ट न हो सकूं। लोकल और आउटडोर शूटिंग में क्या फर्क महसूस करते हैं? मुंबई से बाहर शूटिंग करने पर मैं घर-परिवार को बहुत मिस करता हूं। हालांकि, मुझे लगता है कि आउटडोर शूट्स में मैं ज्यादा एकाग्रता से काम कर पाता हूं। आमतौर पर सेट की लोकेशन के पास ही ठहरता हूं, जिससे काफी कंफर्टेबल महसूस करता हूं और जाम की स्थिति से भी बचा रहता हूं। इससे शूटिंग के बाद थकान भी कम होती है। मुंबई में तो ट्रैफिक की वजह से घर से सेट तक पहुंचने में ही काफी वक्त बर्बाद हो जाता है। अपने दोनों बच्चों के साथ आपका किस तरह का रिश्ता है? क्या आपको लगता है कि पेरेंटिंग में भी किसी तरह का बदलाव आया है? मैं अपने दोनों बच्चों, न्यासा और युग के साथ दोस्ताना व्यवहार रखता हूं। उनके व्यवहार को संवारने के लिए मैं उन्हें आजादी देने में यकीन रखता हूं। मेरी बेटी न्यासा तो मेरी सबसे बडी क्रिटिक है, मेरे गलती करने पर वह मुझे डांटती भी है। मेरा मानना है कि पेरेंटिंग के तरीके बदलते रहते हैं पर बेसिक वैल्यूज वही रहती हैं। जिस तरह से पहले की जेनरेशन के बच्चों का पालन-पोषण किया जाता था, बिलकुल उसी तरह से आज के जमाने के बच्चों को नहीं पाला जा सकता। अब पेरेंटिंग काफी चैलेंजिंग हो गई है। जिंदगी बदलाव का नाम है, उसे रोक पाना किसी के लिए संभव नहीं है। दीपाली पोरवाल

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