Move to Jagran APP

मीठा कागज पानी से बैक्टीरिया दूर करेगा

केनेडा में भारतीय मूल के शोधकर्ताओं के एक दल ने चीनीयुक्त पट्टी विकसित की है, जिसके जरिये पानी से हानिकारक बैक्टीरिया को दूर किया जा सकता है।

By Edited By: Published: Thu, 19 Jan 2017 04:42 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jan 2017 04:42 PM (IST)
मीठा कागज पानी से बैक्टीरिया दूर करेगा
केनेडा में भारतीय मूल के शोधकर्ताओं के एक दल ने चीनीयुक्त पट्टी विकसित की है, जिसके जरिये पानी से हानिकारक बैक्टीरिया को दूर किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे भारत समेत दुनिया भर के खासकर ग्रामीण इलाकों में प्रदूषित पानी से ई कोलाई बैक्टीरिया को खत्म किया जा सकेगा। इस विशेष पट्टी को डिपट्रीट नाम दिया गया है। यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता युशांत मित्रा ने कहा कि उनकी खोज डिपट्रीट दुनिया भर में स्वास्थ्य लाभों के साथ नई पीढी के किफायती और आसानी से कहीं लाने-ले जाने लायक उपकरणों के विकास के लिए अहम होगी। यह यूनिवर्सिटी की माइक्रो एंड नैनो स्केल ट्रांस्पोर्ट लैब के शोधकर्ताओं का नवीनतम आविष्कार है। इससे पहले यह लैब एक सचल जल किट का इस्तेमाल कर प्रदूषित पानी में ई कोलाई बैक्टीरिया का पता लगाने की विधियां खोज चुकी है। मित्रा ने कहा, हम अध्ययन करके यह जान चुके हैं कि डिपट्रीट की मदद से पानी में ई कोलाई बैक्टीरिया का पता लगाने, उसे पकडऩे और खत्म करने में दो घंटे से भी कम समय लगेगा। प्रदूषित पानी के नमूनों में डिपट्रीट को डुबोकर हम लगभग 90 प्रतिशत बैक्टीरिया को प्रभावी तरीके से खत्म करने में सफल हो चुके हैं। इस विशेष कागजी पट्टी के इस्तेमाल से वैश्विक स्वास्थ्य के परिदृश्य को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इससे केनेडा के सुदूर उत्तरी इलाकों से लेकर भारत के पिछडे ग्रामीण इलाकों तक पानी से बैक्टीरिया गत प्रदूषण दूर करना आसान हो सकेगा। डिपट्रीट की वैश्विक अहमियत को देखते हुए यूनिसेफ ने मित्रा और उनके दल को कोपेनहेगन में इसको प्रदर्शित करने का आमंत्रण दिया है। रेशेयुक्त आहार से किडनी सुरक्षित भोजन में रेशायुक्त आहार (फाइबर) लेने और नियमित व्यायाम से किडनी संबंधित कई बीमारियों से बचा जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह किडनी को खराब होने से बचाता है। अमेरिका के टेनेसी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में दावा किया कि कब्ज के रोगियों को किडनी संबंधी बीमारियां होने का खतरा अधिक होता है, जिसे फाइबरयुक्त भोजन से कम किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कब्ज के शुरुआती चरण में ही इसके प्रभावी इलाज से किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है। उनका कहना है कि फाइबर की प्रचुर मात्रा वाले पौष्टिक आहार लेने से किडनी के डायलिसिस या प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं रह जाती है। टेनेसी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जिन लोगों को कब्ज की शिकायत है, उन्हें किडनी की बीमारियों का खतरा 13 फीसदी तक अधिक रहता है, वहीं लंबे समय तक कब्ज की समस्या बनी रहे तो किडनी के खराब होने की आशंका 10 फीसदी तक बढ जाती है। एंटीबॉडी एचआईवी के वायरस को बेअसर करेगी अमेरिका के प्रसव वैज्ञानिकों ने एक ऐसे एंटीबॉडी की पहचान की है, जो एचआईवी के लगभग सभी तरह के वायरसों को निष्क्रिय कर सकता है। इससे न केवल लोगों को एचआईवी संक्रमण से बचाने में मदद मिल सकती है, बल्कि इस घातक वायरस से संक्रमित लोगों का प्रभावी उपचार किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस एंटीबॉडी की पहचान एचआईवी से संक्रमित एक व्यक्तिमें की गई। उस पर एचआईवी के कई वायरसों का परीक्षण (आइसोलेशन टेस्ट) किया लेकिन 98 फीसदी वायरस बेअसर रहे। इन वायरसों में एचआईवी के उन 20 उपभेदों में से 16 उपभेद भी शामिल थे, जिन पर इसी एंटीबॉडी के वर्ग के अन्य एंटीबॉडी का कोई असर नहीं पडता। आइसोलेशन टेस्ट विभिन्न सूक्ष्म कणों की प्रणाली को तोडऩे की प्रक्रिया को कहते हैं ताकि उनमें गडबडिय़ों की आसानी से पहचान की जा सके। शोधकर्ताओं ने इस एंटीबॉडी को एन 6 नाम दिया है। इसकी क्षमताओं को देखते हुए उन्होंने उम्मीद जताई है कि इसमें एचआईवी संक्रमण को रोकने या उसका उपचार करने वाली दवा बनाने की काफी संभावना है। शोधकर्ताओं ने इस एंटीबॉडी की खोज अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोधकर्ता मार्क कोनोर्स की अगुवाई में की है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी पता लगाया कि एन 6 का विकास कैसे होता है और इसमें एचआईवी वायरस के लगभग सभी उपभेदों को बेअसर करने की क्षमता कैसे विकसित होती है। कोनोर्स के मुताबिक, इस जानकारी से एचआईवी वायरसों को निष्प्रभावी बनाने वाले एंटीबॉडी के टीके बनाए जा सकेंगे। डेंगू, जीका वायरस को मच्छर ही खत्म करेंगे मच्छरों के काटने से डेंगू, जीका और येलो फीवर जैसी बीमारियों से बचने का उपाय कई वर्षों से खोजा जा रहा है। ब्राजील के वैज्ञानिकों ने इससे बचने का नायाब तरीका खोज निकाला है। वे इन बीमारियों को रोकने के लिए प्रयोगशाला में बनाए लाखों आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मच्छरों की मदद से एडीज मच्छर के काटने से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छरों का परीक्षण पनामा, केमैन द्वीप और ब्राजील के बाहिया में पांच बार 2011 से 2014 के बीच किया गया। जिन इलाकों में यह परीक्षण किया गया, वहां मादा एडीज मच्छरों की संख्या अधिक थी। परीक्षण में पाया गया कि आनुवंशिक रूप से संशोधित इन मच्छरों को छोडऩे के बाद वहां मादा एडीज मच्छरों की संख्या में 90 फीसदी तक गिरावट आ गई थी। मच्छर को ब्रिटेन की कंपनी ऑक्सीटेक ने बनाया है। इस फर्म के प्रेसिडेंट हेडन पैरी का दावा है कि कंपनी हर सप्ताह छह करोड से अधिक मच्छरों का निर्माण कर सकती है। प्रथम चरण में ब्राजील के पीरिसकाबा शहर में एक करोड आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर छोडे जाएंगे। इस शहर की कुल जनसंख्या 3.6 लाख है। हालांकि सरकार ने अभी कंपनी को इस मच्छर को बेचने की अनुमति नहीं दी है। दिमाग में लगे चिप से दृष्टि संभव किसी वजह से आंखों की रोशनी गंवा चुके दृष्टिहीन लोगों के लिए एक अच्छी खबर है। वैज्ञानिकों ने ऐसी विजुअल स्टिमुलेटर चिप बनाई है, जिसकी मदद से एक दृष्टिहीन महिला रंगीन दुनिया देखने में सक्षम हुई। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों ने चिप को महिला के मस्तिष्क में फिट करके कंप्यूटर से दृश्य संकेत भेजे। वैज्ञानिक अब छोटे विडियो कैमरा से लिया फुटेज दृष्टिहीनों के दिमाग तक भेजने की तैयारी कर रहे हैं ताकि वे कृत्रिम आंखों (बायोनिक आई) की मदद से दुनिया देख सकें। चिप की खास बात यह है कि इससे कैंसर, ग्लूकोमा, मधुमेह जैसी बीमारियों से आंख गंवा चुके लोग भी दुनिया को देख सकेंगे। चिप आंखों की ऑप्टिक तंत्रिका को छोड दृश्य संकेतों को दिमाग के विजुअल कोर्टेक्स को भेजता है, जिससे देख पाना संभव हो पाता है। प्रसव पीडा में कमी से अवसाद का खतरा कम प्रसव के दौरान एपिड्यूरल एनेस्थीसिया से पीडा में कमी लाकर प्रसव के बाद होने वाले अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) से बचा जा सकता है। यह दावा पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है। एपिड्यूरल का लक्ष्य दर्द रोकना है जबकि एनेस्थीसिया बेहोशी लाता है। शोधकर्ता ग्रेस लिम ने कहा कि कुछ स्त्रियों के लिए प्रसव पीडा मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक हो सकती है और उन्हें अवसाद का खतरा रहता है। एक्सपर्ट की माने मेरी उम्र 32 वर्ष है। मेरी हाइट 5 फुट 6 इंच है। मेरा वजन 65 किलो है। मुझे लगता है कि मैं फिट हूं इसलिए मैं एक्सरसाइज नहीं करती लेकिन मेरी एक सहेली का कहना है कि मुझे भी एक्सरसाइज करनी चाहिए। क्या वाकई स्लिम लोगों को भी वर्कआउट करने की जरूरत है? शबनम, दिल्ली यह बहुत ही कॉमन मिथ है। अगर आप ओवरवेट नहीं हैं तो भी ऐसा संभव है कि आपके शरीर का फैट मांसपेशियों के वजन से ज्यादा हो। शरीर में ज्यादा फैट होने से शुगर, दिल की बीमारी, कैंसर और हाइपरटेंशन हो सकता है। इस तरह की बीमारियां सही लाइफस्टाइल न होने के कारण भी होती हैं। डाइट का सही न होना शरीर के लिए घातक हो सकता है। हेल्दी और फिट रहने के लिए रोज सुबह वॉक करना और मिक्स्ड एक्सरसाइज करना जरूरी है। अगर आप दुबली-पतली हैं और व्यायाम नहीं करना चाहतीं तो रोज आधा घंटा वॉक करने और सही डाइट लेने से कई बीमारियों से बच सकती हैं।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.
OK