Move to Jagran APP

प्लेटलेट्स : संतुलित संख्या अच्छी सेहत

अकसर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर ये प्लेटलेट्स क्या हैं और इनकी घटती संख्या सेहत के लिए नुकसानदेह क्यों होती है? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब जानने में मददगार होगा यह लेख।

By Edited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 10:30 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 10:30 AM (IST)
प्लेटलेट्स : संतुलित संख्या अच्छी सेहत
बारिश का मौसम खत्म होने के बाद भी वातावरण में नमी बची रहती है, जो मच्छरों के लिए बेहद अनुकूल होती है। इसलिए सितंबर के महीने में उनकी संख्या तेजी से बढऩे लगती है। उनके काटने से होने वाले डेंगू और मलेरिया बुखार की स्थिति में मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और शरीर में प्लेटलेट्स घटने लगते हैं। क्या हैं प्लेटलेट्स एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 5 से 6 लीटर खून होता है, जो मुख्यत: तरल पदार्थ, लाल व सफेद रक्त कोशिकाओं के अलावा कई अन्य तत्वों से मिलकर बना होता है, जिनमें प्लेटलेट्स भी शामिल हैं। रेड ब्लड सेल्स पूरे शरीर में ऑक्सीजन को एक से दूसरी जगह ले जाने का काम करती हैं। इससे ही हमारे शरीर को एनर्जी मिलती है। सफेद रक्त कोशिकाएं हमें इन्फेक्शन से लडऩे की ताकत देती हैं। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के एक वर्ग मिलीलीटर रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या डेढ से चार लाख तक होती है। इनका मुख्य कार्य चोट लगने पर खून के जमने की प्रक्रिया को तेज करके ब्लीडिंग को रोकना है। ऐसी स्थिति में हमारे प्लेटलेट्स कॉलेजन नामक द्रव से मिल कर चोट वाली जगह पर एक अस्थायी दीवार का निर्माण करते हैं और रक्तवाहिका नली को क्षतिग्रस्त होने से बचाते हैं। दरअसल प्लेटलेट्स बोनमैरो में मौजूद कोशिकाओं के काफी छोटे कण होते हैं। ये ब्लड में मौजूद खास तरह के हॉर्मोन थ्रोम्बोपीटिन (Thrombopoietin) के कारण विभाजित होकर खून में मिल जाते हैं। न कम हो न ज्य़ादा शरीर में प्लेटलेट्स की मात्रा अधिक होने की स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोसिस कहते हैं। यह समस्या दो तरह से पैदा हो सकती है। बोनमैरो में असामान्य कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण जब प्लेटलेट्स बढऩे लगते हैं तो उसे प्राइमरी थ्रोम्बोसाइटोसिस (thrombocytosis) कहते हैं। वहीं जब किसी बीमारी जैसे एनीमिया, कैंसर, सूजन या किसी अन्य कारण से भी प्लेटलेट्स की संख्या बढ जाती है तो उसे सेकंडरी थ्रोम्बोसाइटोसिस कहते हैं। खून में जरूरत से ज्य़ादा प्लेटलेट्स होना शरीर के लिए कई गंभीर खतरे पैदा करता है। इससे खून का थक्का जमना शुरू हो जाता है, जिससे हार्ट अटैक, किडनी फेल्योर व पैरालिसिस आदि की आशंका बढ जाती है। इसी तरह जब ब्लड में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है तो उस स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहते हैं। अगर प्लेटलेट्स की संख्या 10,000 से कम हो जाए तो ब्लीडिंग की आशंका बढ जाती है। बहते-बहते यह खून नाक या त्वचा से बाहर आने लगता है। यदि यह स्राव अंदर ही होता रहता है तो शरीर के प्रमुख आंतरिक अंगों जैसे किडनी, लिवर और फेफडे के निष्क्रिय होने की आशंका भी बढ जाती है। कुछ खास तरह के पेनकिलर्स या एल्कोहॉल के नियमित सेवन, आनुवंशिक रोगों, कीमोथेरेपी के अलावा डेंगू, टाइफाइड, मलेरिया व चिकनगुनिया के होने पर भी ब्लड में प्लेटलेट्स की संख्या अगर 10,000 से कम हो जाए तो मरीज को अलग से प्लेटलेट चढाए जाने की जरूरत होती है। डेंगू और प्लेटलेट्स डेंगू के लिए जिम्मेदार एडीस मच्छर मांसपेशियों पर न काट कर सीधे ब्लड वेसेल्स पर हमला करता है, जिससे रक्त में वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। इन्फेक्शन बढऩे के बाद खून से पानी अलग होने लगता है। ब्लड के भीतर छोटे कणों के रूप में मौजूद प्लेटलेट्स की संख्या के कम होने के कारण खून का थक्का नहीं जम पाता। हीमोग्लोबिन की कमी से भी प्लेटलेट्स घटने लगते हैं। इसलिए मौसम बदलने के साथ खानपान में आंवला, चीकू, काजू, ब्रॉक्ली, हरी सब्जियों, खट्टे फलों और मिल्क प्रोडक्ट्स की मात्रा बढानी चाहिए क्योंकि विटमिन सी और कैल्शियम भी हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बना कर प्लेटलेट्स की संख्या घटने से रोकते हैं। सुरक्षित है प्लेटलेट डोनेशन हर साल बरसात के बाद जब डेंगू के मरीजों की संख्या बढऩे लगती है तो लोगों के बीच प्लेटलेट्स की मांग बढ जाती है। जागरूकता के अभाव में लोग बीमार व्यक्ति के लिए प्लेटलेट डोनर की तलाश करने लगते हैं। हालांकि ज्य़ादातर लोग इसे डोनेट करने से बहुत डरते हैं क्योंकि इसकी प्रक्रिया सामान्य ब्लड डोनेशन से थोडी अलग होती है। इसमें एक स्वस्थ व्यक्ति के ब्लड में से मशीन के जरिये प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं। फिर उसी ब्लड को वापस उसके शरीर में डाल दिया जाता है। लिहाजा कुछ समय तक मशीन में रखने के बाद अपने ही ब्लड को दोबारा वापस चढाए जाने की प्रक्रिया देखकर लोगों को यह डर लगता है कि कहीं इससे उनके शरीर में कोई इन्फेक्शन न हो जाए पर यह तरीका पूरी तरह सुरक्षित है। भ्रम एवं सच्चाई अकसर डेंगू या मलेरिया के दौरान व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर पडऩे लगता है। ऐसी स्थिति में लोगों को अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेद में प्लेटलेट्स बढाने के लिए पपीते के पत्ते या गिलोय का रस, नारियल पानी और बकरी के दूध का सेवन करने की सलाह दी जाती है। हालांकि इन चीजों में मौजूद तरल पदार्थों की वजह से रोग प्रतिरोध क्षमता निश्चित रूप से बढती है पर प्रत्यक्ष रूप से प्लेटलेट्स बढाने में इनका कोई योगदान नहीं होता। प्लेटलेट्स जिस तेजी से घटते हैं, वे वापस उसी रफ्तार से बढ भी जाते हैं। इसलिए इसमें चिंतित होने की बात नहीं है। कुछ लोग बार-बार प्लेटलेट काउंट करवा रहे होते हैं। अगर किसी व्यक्ति के ब्लड में इनका काउंट 20,000 हो, तब भी चिंता की कोई बात नहीं है। जब तक स्थिति ज्य़ादा गंभीर न हो, डेंगू के हर मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। यदि डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करते हुए तरल पदार्थों का पर्याप्त मात्रा में सेवन किया जाए तो स्वाभाविक रूप से प्लेटलेट्स की संख्या जल्द ही बढ जाती है। विनीता इनपुट्स : डॉ. सत्यप्रकाश यादव, डायरेक्टर डिपार्टमेंट ऑफ हेमोटोलॉजी एंड मेडिकल ऑन्कोलॉजी मेदांता हॉस्पिटल गुडग़ांव

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.