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मिडिल एज वुमन के लिए फिटनेस टिप्स

रक्त में कैल्शियम की आपूर्ति के लिए हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव शुरू हो जाता है। इससे महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है।

By Edited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 03:52 PM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 03:52 PM (IST)
मिडिल एज वुमन के लिए फिटनेस टिप्स
सेहत की दृष्टि से स्त्रियों के लिए यह उम्र का सबसे नाजुक दौर है क्योंकि 40-45 साल की आयु के बाद उनके शरीर में मेनोपॉज के लक्षण नजर आने लगते हैं। वैसे तो यह शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है पर इसकी वजह से उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पडता है। मेनोपॉज की शुरुआत के पहले भी कुछ स्त्रियों को अनियमित पीरियड, ज्य़ादा ब्लीडिंग, यूटीआइ, हॉट फ्लैशेज (सर्दी के मौसम में भी पसीना आना ) और डिप्रेशन जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। इसके अलावा पीरियड्स बंद होने के बाद उनके शरीर में प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का सिक्रीशन कम हो जाता है। यह हॉर्मोन स्त्रियों की हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। इसकी कमी से उनकी हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं। बचाव शरीर में कैल्शियम की कमी न होने दें। अपने खानपान में ज्य़ादा से ज्य़ादा मिल्क प्रोडक्ट्स, फलों और हरी सब्जियों को शामिल करें। पर्सनल हाइजीन का विशेष ध्यान रखें। अगर पीरियड्स के मामले में कोई भी असामान्य लक्षण दिखाए दे तो बिना देर किए स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। उम्र के इस दौर में ब्रेस्ट और एंडोमिट्रीयल कैंसर की आशंका भी होती है। इसलिए साल में एक बार ब्रेस्ट एग्जैमिनेशन और पेप्सस्मीयर टेस्ट जरूर करवाएं। नियमित एक्सरसाइज करें और अपने बढते वजन को नियंत्रित रखें। अकेलेपन से बचें क्योंकि इस दौर में हॉर्मोन संबंधी असंतुलन की वजह से डिप्रेशन की आशंका बढ जाती है। साल के बाद लोगों में डायबिटीज की आशंका बढ जाती है। इस उम्र में ज्य़ादातर लोगों को टाइप-2 डायबिटीज की समस्या होती है। ऐसी स्थिति में पैंक्रियाज से इंसुलिन नामक जरूरी हॉर्मोन का सिक्रीशन कम हो जाता है। यह हॉर्मोन हमारे भोजन से मिलने वाले कार्बोहाड्रेट, शुगर और फैट को एनर्जी में बदलने का काम करता है लेकिन इसकी कमी से ग्लूकोज का स्तर बढऩे लगता है और लंबे समय तक शरीर में रहने के बाद यह विषैला हो जाता है। किडनी, आंखों और त्वचा पर इसका दुष्प्रभाव सबसे पहले पडता है। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में यह हार्ट अटैक का भी सबब बन जाता है। बचाव : मिठाई, चॉकलेट और जंक फूड से दूर रहें। चावल, आलू, घी-तेल और मीठे फल भी इस समस्या को बढा देते हैं। नियमित मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज करें, बढते वजन को नियंत्रित रखें। एक ही बार ज्य़ादा भोजन लेने के बजाय हर दो घंटे के अंतराल पर थोडा-थोडा खाएं। नियमित रूप से शुगर की जांच कराएं और डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करें। दिल से जुडी बीमारियां : जिन लोगों को हाई ब्लडप्रेशर और डायबिटीज की समस्या एक साथ होती है, उनमें दिल की बीमारी का खतरा सबसे ज्य़ादा होता है। दरअसल खानपान की गलत आदतों और अनियमित दिनचर्या की वजह से हृदय की धमनियों की भीतरी दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल का जमाव शुरू हो जाता है। इससे पूरे शरीर में सुचारू ढंग से रक्त प्रवाह बनाए रखने के लिए हार्ट को बहुत ज्य़ादा मेहनत करनी पडती है और धीरे-धीरे वह कमजोर होने लगता है। इससे हार्ट अटैक की आशंका बढ जाती है। बचाव : अगर कोई समस्या न हो तो भी चालीस साल की उम्र के बाद नियमित रूप से शुगर और बीपी की जांच कराएं। संयमित खानपान और जीवनशैली अपनाएं। नियमित एक्सरसाइज से बढते वजन को नियंत्रित रखें। अगर आपके परिवार में इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री रही है तो साल में एक बार ईसीजी अवश्य करवाएं। 60+ रखें अपना ख्याल इस उम्र में आपके पास अपने लिए पर्याप्त समय होता है, इसलिए सारे बहाने छोडकर सेहत आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस उम्र में शरीर में पहले से मौजूद बीमारियां मसलन हाई बीपी, शुगर और दिल से जुडी समस्याओं का सेहत पर बुरा असर पडता है। इसके अलावा उम्र बढऩे के बाद कुछ स्वास्थ्य समस्याएं खास तौर पर लोगों को परेशान करती हैं, जो इस प्रकार हैं : आथ्र्राइटिस : साठ साल की उम्र के बाद ज्यादातर बुजुर्गों को इस समस्या का सामना करना पडता है। दरअसल हड्डियों के जोडों के बीच ल्यूब्रिकेंट ऑयल जैसा चिकना पदार्थ होता है, जो उम्र बढऩे के साथ सूखने लगता है। इससे जोडों में जकडऩ, जलन और दर्द जैसे लक्षण नजर आते हैं। सर्दियों में यह समस्या और बढ जाती है। बचाव : किसी कुशल योग विशेषज्ञ के निर्देशों के अनुसार हलकी-फुलकी एक्सरसाइज करें। जोडों पर किसी दर्द निवारक क्रीम या ऑयल की मालिश करें। सर्दियों में घुटनों को दर्द से बचाने के लिए नी-कैप पहनें। ज्य़ादा दर्द होने पर डॉक्टर की सलाह पर कोई पेन किलर भी ले सकते हैं। कैटरेक्ट : आम बोलचाल की भाषा में इसे मोतियाबिंद कहा जाता है। दृष्टि से संबंधित यह समस्या लगभग 80 प्रतिशत बुजुर्गों में देखने को मिलती है। आंखों की रेटिना में एक लेंस होता है, जो अलग-अलग दूरियों पर स्थित वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में हमारी मदद करता है। इस लेंस की बाहरी परत पर कुछ नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। उम्र बढऩे के बाद इनके दबाव की वजह से लेंस के भीतर ज्य़ादा फ्लूइड बनने लगता है। इससे आंखों की लेंस पर धुंधलापन आने लगता है। उम्र बढऩे के साथ रेटिना की नव्र्स भी कमजोर होकर नष्ट होने लगती हैं। इसे एज रिलेटेड मैक्युलर डिजेनरेशन कहा जाता है। इससे भी आई साइट कमजोर हो जाती है। बचाव : हर छह महीने के अंतराल पर आई चेकअप करवाएं। अगर कैटरेक्ट की समस्या हो तो बिना देर किए सर्जरी करवा लें। पाचन-तंत्र संबंधी समस्याएं : बढती उम्र के साथ दांत और जबडे कमजोर हो जाते हैं। इससे लोग भोजन को सही ढंग से चबाकर खा नहीं पाते। इससे उनके सलाइवा में इलेक्ट्रोलाइट्स नहीं बन पाते, जो भोजन को पचाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा खाते समय कुछ बुजुर्गों का मुंह ज्य़ादा देर तक खुला रहता है। इससे भोजन के साथ उनके पेट में हवा भी चली जाती है। इस उम्र में आंतें भी धीमी गति से कार्य करती हैं। भोजन की नली और आंतों के बीच एक वन-वे वॉल्व होता है, जो कि एक ही तरफ खुलता है। बढती उम्र के साथ यह वॉल्व ढीला पड जाता है और दोनों तरफ खुलने लगता है। इससे थोडा खाना आंतों के भीतर जाता है और थोडा बाहर वापस आ जाता है। इन्हीं कारणों से बुजुर्गों को कब्ज, गैस और बदहजमी जैसी समस्याएं होती हैं। बचाव : अपने भोजन में फाइबर युक्त चीजों जैसे ओट्स, दलिया, सूजी के साथ पपीता, सेब, अमरूद, अनार और संतरा जैसे रेशेदार फलों को भी शामिल करें। नियमित डेंटल ट्रीटमेंट लें क्योंकि कमजोर दांत पाचन संबंधी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होते हैं। बीपीएच की समस्या : बिनाइन प्रोस्टैटिक हाइपरप्लैजिया बुजुर्ग पुरुषों की सेहत से जुडी आम समस्या है। इसमें उनके प्रोस्टेट ग्लैंड का आकार बढऩे लगता है। इससे उनके यूरिनरी ट्रैक्ट पर दबाव पडता है और उन्हें बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होती है। गंभीर स्थिति में दर्द और यूरिन के साथ ब्लड डिस्चार्ज जैसे लक्षण भी नजर आते हैं। बचाव : अगर शुरुआती दौर में ही डॉक्टर से सलाह ली जाए तो दवाओं की मदद से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर इसकी वजह से व्यक्ति को ज्य़ादा तकलीफ हो तो होल्यिम लेजर पद्धति द्वारा इसकी सर्जरी भी की जा सकती है। इससे व्यक्ति पूर्णत: स्वस्थ हो जाता है। साइको-जेरीएटिक डिसॉर्डर्स : उम्र बढऩे के साथ बुजुर्गों को जिन मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पडता है, उन्हें साइको-जेरीएटिक डिसॉर्डर्स कहा जाता है। शारीरिक दुर्बलता और अकेलापन इस उम्र की सबसे बडी समस्या है। इस उम्र में ब्रेन के न्यूरोट्रांस्मीटर्स से निकलने वाले केमिकल्स के असंतुलन की वजह से उन्हें डिप्रेशन हो जाता है। इसके अलावा शरीर में दर्द, तनाव, चिंता और बार-बार टॉयलेट जाने की समस्या की वजह से इन्हें पूरी नींद नहीं मिल पाती। हमारे मस्तिष्क का एक खास हिस्सा हमारी स्मृतियां सुरक्षित रखने का काम करता है। उम्र बढऩे के साथ उसकी कोशिकाएं सूखकर नष्ट होने लगती हैं। इससे डिमेंशिया यानी स्मृति लोप होने की आशंका बढ जाती है। इससे बुजुर्गों को शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस की समस्या होती है अर्थात वे वर्षों पुरानी बातों को याद रखते हैं पर रोजमर्रा के जीवन में लोगों और जगहों के नाम, परिचितों के चेहरे आदि कुछ ही मिनटों में भूल जाते हैं। बचाव : अपनी आदतों पर गौर करें और जैसे ही आपको ऐसा लगे कि आपकी स्मरण-शक्ति कमजोर हो रही है, न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लें। अपनी डाइट में बादाम और अखरोट को प्रमुखता से शामिल करें। ग्रीन टी भी स्मरण शक्ति बढाने में मददगार होती है। शतरंज और सुडोकू जैसे गेम्स खेलें। इससे ब्रेन की अच्छी एक्सरसाइज होती है। योगाभ्यास और ध्यान को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। परिवार के सभी सदस्यों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने घर के बुजुर्गों का खयाल रखें और उनके साथ बातचीत के लिए थोडा समय निकालें। अगर इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो उम्र के हर दौर में स्वस्थ और सक्रिय बने रहना बहुत आसान हो जाएगा। नोट : चाहे स्त्री हो या पुरुष, साठ साल की उम्र के बाद सभी बुजुर्गों को अपने डॉक्टर की सलाह पर निमोनिया, फ्लू और हरपीज जॉस्टर (वायरस की वजह से होने वाली तकलीफदेह स्किन डिजीज) का वैक्सीन जरूर लगवा लेना चाहिए। विनीता इनपुट्स : डॉ. युगल के. मिश्रा, डायरेक्टर,डिपार्टमेंट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी, फोर्टिस एस्कॉट्र्स हॉस्पिटल दिल्ली, डॉ. सुशीला कटारिया, डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनल मेडिसिन, मेदांता हॉस्पिटल गुडग़ांव, डॉ. एल. तोमर, सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन, मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली

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