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सेहत का दुश्मन डिप्रेशन

डिप्रेशन भले ही एक मनोवैज्ञानिक समस्या है पर हमारे शरीर पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। इसलिए इसे केवल उदासी से जुड़ी मामूली समस्या समझकर नज़रअंदाज़ न करें।

By Edited By: Published: Sat, 02 Jul 2016 02:46 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2016 02:46 PM (IST)
सेहत का दुश्मन डिप्रेशन
जीवन की जटिलताओं और चुनौतियों ने जिन मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म दिया है, डिप्रेशन भी उनमें से एक है। इसके बारे में ऐसी धारणा बनी हुई है कि यह केवल मन से जुडी समस्या है पर बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर भी इसका बुरा प्रभाव पडता है क्योंकि हमारे ब्रेन का एक खास हिस्सा, जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है, गहरी उदासी या डिप्रेशन की स्थिति में वह शिथिल पड जाता है। अगर कोई व्यक्ति बिना किसी स्पष्ट कारण के दो सप्ताह से ज्य़ादा लंबी अवधि तक गहरी उदासी में डूबा रहे और इससे उसकी रोजमर्रा की दिनचर्या प्रभावित होने लगे तो ऐसी मनोदशा को डिप्रेशन कहा जाता है। आइए जानते हैं, यह मनोवैज्ञानिक समस्या शरीर के किन हिस्सों को प्रभावित करती है । कमजोर इम्यून सिस्टम डिप्रेशन की स्थिति में तनाव बढाने वाले हॉर्मोन कार्टिसोल का सिक्रीशन तेजी से होने लगता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज नष्ट होने लगते हैं, जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से घटने लगती है। इसी वजह से डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों को सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार जैसी समस्याएं बार-बार परेशान करती हैं। दिल पर असर चिंता या एंग्जायटी डिप्रेशन की एक प्रमुख वजह है और इसका हमारे दिल से बेहद करीबी रिश्ता है। दरअसल तनाव या चिंता होने पर व्यक्ति के शरीर में सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है। इस दौरान हमारे शरीर में नॉरपिनेफ्राइन (Norepinephrine) नामक हॉर्मोन का स्राव बढ जाता है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति का ब्लड प्रेशर बढ जाता है। ऐसे में दिल तेजी से धडकने लगता है, हृदय की रक्वाहिका नलियां सिकुड जाती हैं, खून का प्रवाह तेज हो जाता है, जिससे दिल पर दबाव बढता है, व्यक्ति को पसीना और चक्कर आने लगता है। लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने वाले लोगों में हार्ट अटैक की भी आशंका बढ जाती है। पाचन तंत्र पर प्रभाव आपने भी यह महसूस किया होगा कि जब हम किसी बात को लेकर बहुत ज्य़ादा चिंतित या उदास होते हैं तो हमारा पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता। दरअसल डिप्रेशन के दौरान सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम की सक्रियता के कारण आंतों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का सिक्रीशन बढ जाता है, जिससे पेट में दर्द और सूजन, सीने में जलन, कब्ज या लूज मोशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सांस लेने में तकलीफ तनाव का असर सबसे पहले गले पर दिखना शुरू हो जाता है। दरअसल, तनाव वाली स्थिति में गले में मौजूद तरल पदार्थ शरीर के दूसरे भागों के लिए आपूर्ति करने लगते हैं। इससे गला सूखने लगता है और उसकी मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। ऐसा होने के बाद कुछ भी खाने में दिक्कत आती है। डिप्रेशन की स्थिति में कभी तेज सांस चलती है तो कभी इसकी गति बहुत धीमी हो जाती है। ये दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। डिप्रेशन में फेफडे की नलियां सिकुड जाती हैं। इससे सांस लेने में कठिनाई और घबराहट महसूस होती है। अगर किसी को पहले से एस्थमा हो तो डिप्रेशन की स्थिति में उसकी यह तकलीफ और बढ जाती है। लिवर पर असर तनाव और चिंता की स्थिति में लिवर में ग्लूकोज का सिक्रीशन बढ जाता है। इसके अलावा कॉर्टिसोल हॉर्मोन शरीर में फैट की मात्रा और भूख भी बढा देता है। इसी वजह से डिप्रेशन में कुछ लोग मोटे हो जाते हैं तो कुछ के शरीर में शुगर का लेवल बढ जाता है। अगर किसी को ज्य़ादा लंबे समय तक डिप्रेशन हो तो उसे डायबिटीज की समस्या हो सकती है। जब लिवर सही ढंग से काम नहीं करता तो किडनी पर भी इसका बुरा असर पडता है। मांसपेशियों में खिंचाव चिंता या तनाव होने पर स्वाभाविक रूप से मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। इससे सिर और कंधे में दर्द हो सकता है। कई बार इसकी वजह से माइग्रेन की भी समस्या हो सकती है। डिप्रेशन में लोगों की फिजिकल एक्टिविटीज कम हो जाती हैं। ऐसे लोग प्राय: एक कमरे में बंद पडे रहते हैं और अपने खानपान पर भी ध्यान नहीं देते। इससे प्राय: ऐसे लोगों के शरीर में कैल्शियम और विटमिन डी की कमी हो जाती है, जिससे उन्हें हाथ-पैरों की मांसपेशियों और जोडों में दर्द की समस्या होती है। दांत भी हो जाते हैं कमजोर हाल ही में हुए एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अवसाद और चिंता से दांत उम्र से पहले ही गिर जाते हैं। अमेरिकन एसोसिएशन फॉर डेंटल रिसर्च (एएडीआर) के शोधकर्ताओं ने दांतों के नष्ट होने और अवसाद व चिंता के बीच संभावित संबंध का पता लगाने के लिए अध्ययन किया। चिकित्सकों के मुताबिक चिंता के दौरान शरीर से कुछ ऐसे हॉर्मोन्स का सिक्रीशन होता है, जो धीरे-धीरे दांतों को कमजोर कर देते हैं। त्वचा, आंखों, बालों पर असर डिप्रेशन की अवस्था में लोग अपने खानपान पर ध्यान नहीं देते, जिससे उनका पेट साफ नहीं रहता, जिससे बालों का झडऩा, सफेद होना, आंखों की दृष्टि कमजोर पडऩा और त्वचा पर जल्दी झुर्रियां, एडिय़ों का फटना जैसी समस्याएं परेशान करने लगती है। ऐसी स्थिति में लोग अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं, जिससे आंखों के आगे डार्क सर्कल्स दिखने लगते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि डिप्रेशन में लोग अपनी फिजिकल अपियरेंस के प्रति उदासीन हो जाते हैं। ऐसे में वे अपनी त्वचा और बालों का अच्छी तरह ध्यान नहीं रख पाते। इससे भी उन्हें ऐसी समस्या हो सकती है। यह समस्या इंसान को असमय बूढा और बीमार बना देती है। जब इस एक डिप्रेशन की वजह से इतनी सारी समस्याएं होती हैं तो हमें शुरुआत से ही सचेत हो जाना चाहिए। हमें खुद से यह वादा करना चाहिए कि चाहे हमारे सामने कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हम अपने सामने उदासी को ज्य़ादा देर तक टिकने नहीं देंगे और हर हाल में मुसकुराते रहेंगे। कैसे करें मुकाबला ब्रेकअप, करियर से जुडा तनाव, पारिवारिक रिश्तों की उलझनें, आर्थिक परेशानियां आदि कई ऐसी समस्याएं हैं जो व्यक्ति को डिप्रेशन में डाल सकती हैं। ऐसी समस्याएं किसी के भी जीवन में आ सकती हैं पर क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तमाम मुश्किलों के बावजूद शांत और संतुलित रहते हैं और यह मजर् उन तक पहुंचने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता। अगर आप भी शुरुआत से ही इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो यह समस्या आपको कभी भी परेशान नहीं करेगी : सहानुभूति और दया इस मजर् के लिए खाद-पानी का काम करती है। इसलिए हमेशा इस उसूल पर कायम रहें कि दुख की वजह चाहे कितनी ही बडी क्यों न हो पर उसकी भरपाई के लिए हमें दूसरों से दया और सहानुभूति हासिल करने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। किसी भी मुश्किल के लिए अपने मन में लाचारगी का भाव न आने दें। अपने मन में हमेशा ऑल इ•ा वेल वाली सोच रखें। जब भी हलकी उदासी की आहट सुनाई दे, उसी वक्त उसका असली कारण ढूंढ कर उसे दूर करने की कोशिश करें। अगर कारण समझ न आए तो अपनी नीरस दिनचर्या में अचानक कोई बदलाव लाएं। बिना किसी प्लैनिंग के कहीं आसपास घूमने निकल पडें या किसी करीबी दोस्त को अपने घर पर बुला लें। जब मन उदास हो तो उदासी भरे संगीत और साहित्य से दूर रहने की कोशिश करें। हलके के बजाय चटख गहरे रंगों के कपडे पहनें, अगर पसंद है तो थोडा मेकअप करें, अपनी हेयर स्टाइल चेंज करें और अपने घर के इंटीरियर में बदलाव लाएं। अगर कुकिंग का शौक है तो किचन में हाथ आजमाएं और कुछ नया बनाने की कोशिश करें, बागवानी करें, शाम को किसी पार्क में घूमने जाएं, बच्चों के साथ वक्त बिताएं। यकीन मानिए ऐसी छोटी-छोटी बातें भी बहुत जल्दी आपको तनावमुक्त कर देंगी। सखी फीचर्स इनपुट्स : डॉ. नंद कुमार, एडिशनल प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्री, एम्स दिल्ली

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