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अनछुए पहलू की संजीदा कहानी विक्की डोनर

राष्ट्रीय अवॉर्ड प्राप्त फिल्म विक्की डोनर सार्थक फिल्म है। स्पर्म डोनेशन जैसे गंभीर व अनछुए विषय को कॉमेडी की श़क्ल में पर्दे पर गंभीरता से उतारने का साहस शूजीत सरकार जैसे निर्देशक ही कर सकते हैं। नए चेहरों से सजी इस संजीदा फिल्म के बारे में बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

By Edited By: Published: Mon, 02 Sep 2013 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2013 11:46 AM (IST)
अनछुए पहलू की संजीदा कहानी विक्की डोनर

पिछले साल आई विक्की डोनर  जॉन अब्राहम  के प्रोडक्शन  की फिल्म थी। इसे शूजीत  सरकार ने निर्देशित किया है। इसे पिछले वर्ष संपूर्ण मनोरंजक फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। यह स्पर्म  डोनेशन से जुडी भ्रांतियों को खत्म  करने के साथ उसकी उपयोगिता को भी संदर्भ देती है।

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आशंका और ऊहापोह

जॉन अब्राहम ने तय किया था कि उनके प्रोडक्शन  में सार्थक फिल्में बनेंगी। इस लक्ष्य से उन्होंने शूजीत  सरकार की सलाह पर विक्की डोनर  का निर्माण किया। फिल्म का विषय जोखिम  से भरा था, क्योंकि स्पर्म डोनेशन जैसे विषय को पर्दे पर पेश करने की बडी चुनौती थी। सहमति के बावजूद जॉन अब्राहम आशंकित थे। मगर शूजीत  सरकार आश्वस्त थे कि यह मनोरंजक फिल्म बनेगी। इस फिल्म का श्रेय जूही चतुर्वेदी को मिलना चाहिए। शूजीत  सरकार बताते हैं, जूही ने मुझे यह आइडिया सुनाया। मुझे फिल्म रोचक लगी। मैंने सबसे पहले पत्नी के साथ इसे शेयर किया। उन्हें भी पसंद आया। इसके बाद मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी।

गंभीर विषय का चित्रण शूजीत  सरकार और जूही चतुर्वेदी की संगत अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म शूबाइट के समय हुई थी। विवादों की वजह से यह फिल्म अभी तक रिलीज  नहीं हो पाई है। जूही चतुर्वेदी ने शूबाइट के संवाद लिखे थे। इस फिल्म के अटक जाने पर शूजीत  सरकार अगली फिल्म की प्लानिंग कर रहे थे तो जूही ने यह विषय सुझाया। तब एक लाइन की कहानी थी कि इन्फर्टिलिटी  का एक डॉक्टर स्पर्म डोनर  की तलाश में है। जूही स्पष्ट थीं कि उन्हें फिल्म को विश्वसनीय और रोचक रखना है। हल्की सी असावधानी से फिल्म फूहड हो सकती थी। फिल्म में कॉमेडी तो है, लेकिन इसे स्लैपस्टिक  कॉमेडी नहीं होने देना था। चूंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए किरदारों के चुनाव और गढन में भी विशेष सावधानी बरतनी पडी। डॉ. चड्ढा के रूप में अन्नू कपूर से बेहतरीन विकल्प नहीं हो सकता था। उन्होंने संवादों को ऐसी सहजता से पेश किया कि उनमें भौंडापन नहीं आया। स्पर्म  के बारे में उनकी बातें सुनते समय हंसी आने के साथ जानकारी भी बढती है।

नए चेहरों से आई ताजगी

फिल्म की कास्टिंग में ताजगी  थी। आयुष्मान खुराना, यमी गौतम, डॉली  आहलूवालिया से लेकर छोटे किरदारों तक में नए कलाकार थे। फिल्म की कास्टिंग जोगी मलंगर्न  की थी। शूजीत  का स्पष्ट निर्देश था कि मुख्य भूमिका के लिए नया चेहरा चाहिए। उसे दर्शकों ने फिल्मों में न देखा हो और उसकी अपनी कोई इमेज न हो। आयुष्मान खुराना का नाम आया। वे एमटीवी के वीजे  रह चुके थे। उन्होंने रोडीज शो भी किया था। मजेदार  तथ्य है कि उन्होंने रोडीज के एक एपीसोड के लिए स्पर्म  डोनेशन की ड्यूटी पूरी की थी। सबसे पहले उनका ऑडिशन हुआ। डॉली  आहलूवालिया  और कमलेश गिले ने फिल्म में सास-बहू की भूमिका निभाई थी। दोनों दिन-भर लडती रहती हैं, लेकिन शाम ढलने के बाद एक साथ ड्रिंक करती हैं और अकेलापन बांटती हैं। दोनों का चित्रण रीअल  और परफेक्ट  था। संयोग की बात है कि डॉली  आहलूवालिया  और अन्नू कपूर एनएसडी में एक ही बैच के छात्र थे।

आमजीवन  का रोमैंस

विक्की डोनर  निर्माता जॉन अब्राहम  और निर्देशक शूजीत  सरकार की खूबसूरत  और साहसी कोशिश है। जूही चतुर्वेदी ने इस कोशिश में जान फूंक दी और कलाकारों ने अपेक्षा के मुताबिक उन्हें पर्दे पर जीवंत कर दिया। यह फिल्म हिंदी फिल्मों की परिपाटी तोडती है। मुख्य किरदार विक्की व आसिमा  के प्रेम को ही लें। इनका प्रेम महानगरीय भागदौड के बीच बैंक, बस स्टॉप, सडक और सूने मैदान के सामने गाडी से टिक कर बतियाने  में परवान चढता है। शूजीत  सरकार ने न तो हीरो-हीरोइन से गाने गवाए और न उन्हें प्रचलित रोमैंस के ग्रामर से बांधा। विक्की के पंजाबी परिवार व आसिमा  के बंगाली परिवार के बीच की नोकझोंक भी रोचक है। ऐसी फिल्में भाषा और इलाके के नाम पर बनी दूरियां खत्म करती हैं। विक्की व आसिमा  किसी भी महानगर के युवा प्रेमी हो सकते हैं, जो दैनंदिन  जीवन में ही प्रेम के पल निकाल लेते हैं। उन्हें अलग से कश्मीर या स्विट्जरलैंड  जाने की जरूरत नहीं पडती। उन्हें आंखों में आंखें  डाल कर सनम, सजन या जान की दुहाई नहीं देनी पडती।

स्त्री केंद्रित परिवार

नायक विक्की के परिवार में कोई पुरुष अभिभावक नहीं है। मां-दादी ने मिलकर विक्की को पाला है। फिल्म खूबसूरती  के साथ चरित्रों और प्रसंगों के माध्यम से यह बात रखती है। शूजीत  सरकार कहते हैं, इस फिल्म में संतानहीन दंपतियों की कहानी थी। यह समस्या लगातार बढती जा रही है। समाज में इतना तनाव है कि दंपती  सामान्य दांपत्य नहीं जी पा रहे हैं। इस समस्या पर अभी तक अधिक ध्यान नहीं गया है, क्योंकि अभी यह विषय बेडरूम तक सीमित है। मध्यवर्गीय समाज में धारणा है कि संतानहीनता स्त्री में कमी के कारण होती है, जबकि वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि अधिकतर मामलों में पुरुष जिम्मेदार  होते हैं। बडे शहरों में तेजी  से बढे इन्फर्टिलिटी  सेंटर्स  इसके उदाहरण हैं। मैंने मुद्दे को गुरुगंभीर नहीं, कॉमिकल तरीके से पेश किया है। दर्शक हंसते हुए थिएटर से बाहर निकलते हैं, लेकिन उन्हें इस गंभीर मुद्दे का एहसास भी होता है। मैंने फिल्म में तलाक व एडॉप्शन की बात भी उठाई है।

कॉमेडी में छिपा संदेश

शूजीत  सरकार ने लंबे समय तक थिएटर किया है। उनकी संस्था ऐक्ट वन दिल्ली में ऐक्टिव  है। इसे मशहूर रंगकर्मी एनके  संभालते हैं। शूजीत  बताते हैं फिल्मों में स्ट्रांग  कंटेंट  का नजरिया  थिएटर बैकग्राउंड से आया है। मैंने ध्यान दिया है कि बेमतलब कोई फिल्म न बनाऊं। विक्की डोनर  से मुझे संतुष्टि मिली, क्योंकि इसमें उम्दा कंटेंट  था। इसे संपूर्ण मनोरंजक फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो मेरे साथ जॉन भी चौंके थे। जॉन अब्राहम कहते हैं, फिल्म बनाते और रिलीज करते समय हमने नहीं सोचा था कि इसे पुरस्कार योग्य समझा जाएगा, लेकिन पुरस्कार मिलने से हमारा विश्वास मजबूत  हुआ। मेरी कोशिश रहेगी कि आगे भी ऐसी फिल्मों का निर्माण करूं।

अजय ब्रह्मात्मज


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