हिंदी फिल्मों से मिली पहचान
फिल्म इंग्लिश विंग्लिश से बॉलीवुड में कदम रखने वाली प्रिया आनंद का श्रीदेवी के साथ काम करने का सपना पूरा हो गया। उन्हें इस फिल्म से बहुत कुछ सीखने को मिला। काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा बता रही हैं सखी को।
एक्ट्रेस प्रिया साउथ की फिल्म इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम है, लेकिन हिंदी में उन्हें काम करते हुए अधिक दिन नहीं हुए हैं। आर बाल्की द्वारा निर्मित और गौरी शिंदे निर्देशित फिल्म इंग्लिश विंग्लिश में उन्होंने श्रीदेवी के साथ स्क्रीन शेयर करते हुए अपने करियर की शुरुआत की। प्रिया की मानें तो श्रीदेवी के साथ काम करना किसी भी ऐक्ट्रेस का सपना हो सकता है। जब मुझे यह ऑफर मिला तो मैं मना नहीं कर सकी। लोगों के एक ख्वाब पूरे होने में सालों लग जाते हैं, मेरे तो दो ख्वाब एक साथ पूरे हो रहे थे-एक तो अपनी पसंदीदा ऐक्ट्रेस के साथ काम करने का मौका, दूसरे शूटिंग के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। जब मुझे कहानी के नैरेशन दिए गए तो मैंने आर बाल्की सर और गौरी मैम के सामने पूरी तरह अपनी सहमति जता दी।
कॉलीवुड-टॉलीवुड
मेरे पिता मराठी ब्राह्मण हैं, जबकि मां तमिलभाषी हैं। मिक्स कल्चर होने की वजह से मैं चेन्नई और हैदराबाद में एक साथ पली-बढी। आगे की पढाई और हायर स्टडीज के लिए मैंने अपने पेरेंट्स से बाहर जाने की बात कही। मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बानिया में कम्युनिकेशन और जर्नलिज्म में दाखिला ले लिया। मैंने धीरे-धीरे अन्य भाषाएं भी सीखीं। 2008 में अपनी पढाई पूरी करने के बाद मैं चेन्नई वापस आ गई और इसी दौरान निर्देशक शंकर से मिली। शंकर से मिल कर पता चला कि मैं उनके साथ सहायक निर्देशक के तौर पर काम कर सकती हूं, लेकिन ऐक्ट्रेस बनने का वहां कोई स्कोप नहीं है। कुछ समय बाद मैंने शंकर को अपने ड्रीम के बारे में बताया।
पहला ब्रेक
ऐक्ट्रेस के लिए उसकी उम्र बहुत मायने रखती है। असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम करते हुए मुझे लगा कि अगर मेरी उम्र एक बार चली गई तो मुझसे कौन अभिनय का काम करवाने वाला है। सो मैंने उसी के बाद यह तय किया कि अब जैसा भी काम मिलेगा मैं करूंगी। फिर मुझे तमिल फिल्म नूतरेनबनधू जिसका अंग्रेजी शीर्षक 180 था मिल गई और पहली ही फिल्म में मेरे अभिनय को नोटिस किया गया। लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि पहली बार अपने को स्क्रीन पर देखना किसी डर से निकलने जैसा होगा। सच कहूं तो मैंने पहली बार खुद को स्क्रीन पर ठहर-ठहरकर देखा था।
हिंदी में एक्सपोजर
कई सालों से तमिल और तेलुगु करने के बाद भी अब मुझे लगता है कि हिंदी में जितना एक्सपोजर है उतना साउथ इंडस्ट्री में नहीं। रंगरेज और इंग्लिश-विंग्लिश करने के बाद अब मेरी आने वाली फिल्म फुकरे है। मैं इसमें अहम किरदार में हूं। हालांकि, अभी मैं पूरी तरह से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सेट नहीं हूं, लेकिन इतना जरूर मानती हूं कि साउथ की तुलना में यहां काम करना थोडा अलग और मुश्किल है। दो फिल्में करने के बाद ही मुझे समझ आ गया है कि यहां गॉडफादर का होना जरूरी है। अगर नहीं है तो प्रतिभा के बावजूद आपके काम को पहचान मिलने में एक लंबा समय लग जाएगा।
कुछ भी करूंगी
मुझे किसी भी दृश्य से परहेज नहीं। मेरा मानना है कि अगर एस्थेटिकली दृश्य सही हैं तो किसी भी ऐक्ट्रेस को कोई भी सीन करने से परहेज नहीं होगा। हिंदी सिनेमा में अकसर ऐसा देखा या सुना गया है कि कई बार निर्देशक बिना वजह अंतरंग दृश्य शूट करवाते हैं जो कहीं से भी ठीक नहीं है।
दुर्गेश सिंह