Move to Jagran APP

न्याय प्रणाली पर करारा व्यंग्य है जॉली एलएलबी

कम बजट की बेहतरीन फिल्म है जॉली एलएलबी, जो दिल्ली में हुए एक केस के बहाने पूरी न्याय प्रणाली पर तीखा व्यंग्य करती है। मेरठ से दिल्ली आए एडवोकेट जगदीश त्यागी उर्फ जॉली एलएलबी की कहानी है यह। फिल्म फंस गए रे ओबामा से चर्चित लेखक-निर्देशक डायरेक्टर सुभाष कपूर बता रहे हैं फिल्म-निर्माण से जुड़े अपने अनुभव अजय ब्रह्मात्मज को।

By Edited By: Published: Wed, 01 May 2013 12:48 AM (IST)Updated: Wed, 01 May 2013 12:48 AM (IST)
न्याय प्रणाली पर करारा व्यंग्य है जॉली एलएलबी

वर्ष 2013 की पहली हिट फिल्म जॉली एलएलबी मेरठ के साधारण वकील जगदीश त्यागी उर्फ जॉली की कहानी है। लेखक-निर्देशक सुभाष कपूर ने इस आम किरदार के जरिये देश की न्यायप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया। दर्शकों ने उनके व्यंग्य को समझा और पसंद किया। हिंदी फिल्मों में कॉमेडी के नाम पर लतीफेबाजी चलती है। जॉली एलएलबी भी हंसाती है, लेकिन वह फूहड और अश्लील नहीं होती।

loksabha election banner

पत्रकारिता के अनुभव

फिल्म के लेखक-निर्देशक सुभाष कपूर को इस फिल्म से नई पहचान मिली। उनकी प्रतिभा की आहट फंस गए रे ओबामा में ही मिल गई थी। अधिकतर दर्शक यही जानते हैं कि फंस गए रे ओबामा उनकी पहली फिल्म है, जबकि उससे पहले वे से सलाम इंडिया निर्देशित कर चुके थे। सुभाष कपूर ने टीवी पत्रकारिता के अपने लंबे अनुभव को ही जॉली एलएलबी का विषय बनाया। इस फिल्म की पृष्ठभूमि के बारे में वह बताते हैं, 1998-99 के समय मैं टीवी पत्रकारिता में था। मेरा एक साप्ताहिक शो था। कुछ खास होने पर हमें रिपोर्टिग के लिए भी जाना पडता था। एक मामले में किसी राजनीतिज्ञ की कोर्ट में पेशी होनी थी। दो दिनों तक मैंने उसे कवर किया। इसमें पहली बार कोर्ट के जीवन का अनुभव हुआ। पूरे माहौल ने मुझे विस्मित किया। वहीं कॉलेज का पुराना दोस्त जॉली मिल गया, जो वकालत करता था। उसके साथ गपशप हुई तो महसूस किया कि आदर्शवादी जॉली थोडा बदल गया है। इससे मेरा इंटरेस्ट बढा। मैं उससे मिलने लगा। कोर्ट-कचहरी के किस्से सुने। उसे आब्जर्व करता रहा। तब तो पता भी नहीं था कि कभी फिल्म बनाएंगे। लेकिन बीज वहीं से पडे। वर्ष 2007 में मेरी पहली फिल्म से सलाम इंडिया नहीं बनी तो मैंने इस पर काम शुरू किया। न्याय प्रणाली पर फिल्म लिखने की बात सोची। इस फिल्म में दिल्ली के बीएमडब्लू हिट एंड रन केस का प्रसंग भी जुड गया।

मेरठ के तेवर

जॉली एलएलबी मेरठ से शुरू होकर दिल्ली तक आती है। जॉली दिल्ली आने पर भी मेरठ के तेवर नहीं छोड पाता। उसकी बोली और बानगी में दोटूकपन है। सुभाष कपूर ने फिल्म का परिवेश वास्तविक रखा है। वह बताते हैं, मेरी पहली फिल्म से सलाम इंडिया नहीं चली तो समझ गया था कि आगे के स्ट्रगल के लिए दो-तीन स्क्रिप्ट होनी चाहिए और उनमें कुछ नई बात हो, नई दुनिया दिखे। तभी यह विचार कौंधा कि न्याय-प्रणाली का वास्तविक चित्रण किया जाए। किरदार और परिवेश भी वास्तविक रखे जाएं। इस फिल्म को लिखने और सही जानकारी पिरोने में मैंने अपने दोस्त जॉनी की मदद ली। इसे पहले मैंने जगदीश त्यागी एलएलबी नाम दिया था। पहले ड्राफ्ट के बाद ही मैंने नाम बदलने के बारे में सोच लिया। जगदीश कुछ पुराना और गंभीर नाम लगता था, इसलिए जॉली कर दिया। उसी समय मैंने एक रोमैंटिक कॉमेडी जल्दी से जाओ मेरा दूल्हा लेकर आओ भी लिखी थी। उस फिल्म की प्लानिंग के समय कभी जब वी मेट तो कभी बैंड बाजा बारात आ गई। मेरी फिल्म भी पंजाबी परिवेश की है। दोनों स्क्रिप्ट लेकर भटकता रहा। उसी बीच मंदी आ गई तो इस थीम पर फंस गए रे ओबामा लिखी। मुश्किलें नए डायरेक्टर्स की अगर आप कामयाब नाम नहीं हैं तो फिल्म के लिए प्रोड्यूसर और ऐक्टर जुटाना मुश्किल काम है। आपके पास बताने या दिखाने के लिए कुछ नहीं होता। सुभाष कपूर ने जॉली एलएलबी की कहानी आमिर और शाहरुख खान समेत एक दर्जन से ज्यादा अभिनेताओं को सुनाई, लेकिन बात नहीं बनी। उन दिनों को याद करते हैं सुभाष कपूर, लगभग सभी ऐक्टरों को जॉली एलएलबी की स्क्रिप्ट अच्छी लगी थी, लेकिन बात अटक जाती थी। फिर भी शाहरुख खान की तारीफ से मेरा हौसला बढा। एक बार तो लगा कि उनके साथ फिल्म बन जाएगी मगर ऐसा नहीं हो सका। फिल्म में आखिरकार अरशद वारसी आए। जॉली एलएलबी लिखते समय भी सुभाष कपूर को अरशद का खयाल आया था। अरशद की गोलमाल चल गई थी। बमन ईरानी के बारे में वे पहले से सुनिश्चित थे। वह कहते हैं, फिल्म में जॉली का किरदार अरशद के बजाय कोई और करता तो भी बमन ईरानी रहते। एक बार रोशन सेठ का खयाल आया था, लेकिन शाहरुख खान की सहमति के बाद उन्हें अप्रोच करना था।

जज का दिलचस्प किरदार

जॉली एलएलबी के जज त्रिपाठी की सभी ने तारीफ की। खासकर सौरभ शुक्ला ने उसे जिस अंदाज में चित्रित किया, वह सभी को भा गया। यह जानकर आप चकित होंगे कि फिल्म लिखते वक्त सुभाष कपूर का जज के किरदार पर ज्यादा ध्यान नहीं था। वे इसे जॉली और राजपाल की भिडंत के रूप में देख रहे थे। वे स्वीकार करते हैं, यह एहसास बाद में हुआ कि जज ही फिल्म की जान है। लिखते समय मैं जॉली के साथ था। फंस गया रे ओबामा के एक शो के लिए मैं न्यूयॉर्क गया था। वहां सौरभ शुक्ला से मुलाकात हुई। सौरभ से बात करने पर लगा कि उन्हें जज की भूमिका दी जा सकती है। लौटने पर सौरभ से मिलना-जुलना रहा। फिल्म के फ्लोर पर जाने के दो महीने पहले मैंने उन्हें स्क्रिप्ट सुनाई। उनका काम सिर्फ आठ दिनों का था।

रीअल बने कोर्ट सीन

जॉली एलएलबी में मेरठ के दृश्यों की शूटिंग सतारा में हुई। सीमित बजट और अन्य दिक्कतों की वजह से मेरठ में शूटिंग संभव नहीं थी। प्रकाश झा ने गंगाजल और आरक्षण की सतारा वाई में शूटिंग की थी। तबसे उत्तर भारत के हर शहर के लिए यह इलाका उचित माना जाता है। सुभाष कपूर अपना अनुभव सुनाते हैं, मैंने से सलाम इंडिया और फंस गए रे ओबामा की भी शूटिंग वहां की थी। मुझे वह जगह पसंद है। छोटी सी जगह में नदी, पहाडी, झरने, गांव, कस्बा, हवेलियां और टूटे-फूटे घर सब कुछ मिल जाता है। मैंने दिल्ली के दृश्यों की दिल्ली में शूटिंग की। फिल्म में दिखाए गए कोर्ट का सेट फिल्मालय में लगाया था। कोर्ट के सीन मैं नियंत्रित माहौल में करना चाहता था। जॉली एलएलबी कोर्ट सीन पर ही टिकी है। इन्हींसे ड्रामा बनता है।

सौरभ शुक्ला की फिल्म

सुभाष कपूर को यह बताने में हिचक नहीं होती कि आखिरी 12 दिनों की शूटिंग के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि फिल्म कितनी पावरफुल हो सकती है। कोर्ट के सीन के दरम्यान कोर्ट के सीन शूट करते समय सेट पर चर्चा आरंभ हो गई थी। यूनिट के सदस्यों को मजा आ रहा था। सच बताऊं तो पहले दिन सौरभ शुक्ला पूरब थे तो मैं पश्चिम। हम दोनों के बीच तालमेल नहीं हो पा रहा था। शूटिंग के बाद मैं चिंतित हुआ। अगले दिन शूटिंग रोक कर सौरभ से तीन घंटे विमर्श किया। शुरू में हमारी सोच थी कि जज त्रिपाठी हारा हुआ व्यक्ति होगा, लेकिन उस मिजाज में बात नहीं बन रही थी। उस विमर्श में तय हुआ कि त्रिपाठी सब कुछ जानता है। उसे पता है कि सिस्टम सड गया है, फिर भी वह लगा हुआ है। वह मुंहफट और चालू है। उस विमर्श के बाद ही हमने जॉली की पिटिशन फाइल करने का सीन किया। उस सीन में सौरभ ने जिस तरह अरशद को डांटा, उससे लग गया कि सौरभ अपने किरदार को समझ गए हैं। फिर तो यूनिट के सदस्य सीन का इंतजार करने लगे। कोर्ट के सीन की क्रमवार शूटिंग हुई। आमतौर पर मैं फिल्म को स्क्रिप्ट के क्रम में ही शूट करता हूं। उससे प्रोसेस और ग्रोथ पर पकड बनी रहती है। आखिरी तीन दिनों में बमन ईरानी की स्पीच, अरशद वारसी की जिरह और जज त्रिपाठी के फैसले की शूटिंग हुई।

आपको बता दूं कि मैं शूटिंग करने के बाद देर रात तक शूट किए सीन देखता था, ताकि कुछ छूट गया हो या गडबड हो तो अगले दिन ठीक कर लें।

आम जिंदगी-आम भाषा

सुभाष कपूर की फिल्मों के किरदार आम ज्िांदगी के होते हैं और उनकी भाषा आम होती है। भाषा में पारंपरिक कृत्रिमता या सजावट नहीं होती। इस संबंध में सुभाष कपूर बताते हैं, मैं अपनी फिल्मों में परिचित किरदारों को ही लेता हूं। दोस्तों और रिश्तेदारों के नाम उन्हें दे देता हूं। मेरे लिए किरदार का माहौल, उसके हाव-भाव और उसकी भाषा खास महत्व रखते हैं। उन्हें आम लोगों की जबान देता हूं। मैं निजी तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विनोदप्रियता से बहुत मुतासिर हूं। उन इलाकों में जाता रहा हूं। जॉली एलएलबी में जॉली की भाषा मेरठ की है। मैं परवाह नहीं करता कि वह नायक जैसी भाषा बोलता है कि नहीं? जज के किरदार में एक ख्ायाल आया था कि उसे साउथ इंडियन बना दूं, लेकिन मैं उस लहज्ो में आश्वस्त नहीं था। उस ह्यूमर पर मेरी पकड नहीं थी। सौरभ शब्दों से अच्छा खेलते हैं। संवाद अदायगी में लहजे और लचक से अर्थ बदल जाते हैं। ये चीज्ों संवाद पढ कर नहीं आतीं। उनके लिए भावों और शब्दों को समझना पडता है। जॉली एलएलबी में सभी ने भाषा का प्रभावशाली निर्वाह किया है। सभी के एक्सप्रेशन नैचरल हैं।

वामपंथी राजनीति में सक्रिय रहे सुभाष कपूर की फिल्मों का स्वर व्यंग्यात्मक और प्रतिरोधात्मक रहता है। फंस गए रे ओबामा और जॉली एलएलबी से उन्होंने साबित किया कि लोकप्रिय स्टार्स के बगैर भी बेहतर और कामयाब फिल्में बनाई जा सकती हैं। विधु विनोद चोपडा और राजकुमार हिरानी ने उन्हें मुन्नाभाई सीरिज की अगली कडी के निर्देशन के लिए चुना है।

अजय ब्रह्मात्मज


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.