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इच्छाशक्ति से बन जाती है बात

जीवन में हमेशा सब कुछ अच्छा ही हो, ऐसा संभव नहीं है। छोटी-बड़ी बाधाएं हर कदम पर हमारा रास्ता रोकने की कोशिश करती हैं, पर सच पूछा जाए तो इन चुनौतियों के बिना जीने का मजा भी नहीं आता। यहां टीवी कलाकार रतन राजपूत अपने जीवन के कुछ ऐसे ही अनुभव बांट रही हैं आपके साथ।

By Edited By: Published: Wed, 01 May 2013 12:48 AM (IST)Updated: Wed, 01 May 2013 12:48 AM (IST)
इच्छाशक्ति से बन जाती है बात

मेरे जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आई जब मुझे ऐसा लगा कि सब कुछ गडबड हो गया, पर कुछ समय के बाद ही सब ठीक हो जाता है।

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संघर्ष भरा शुरुआती दौर

जब मैं अपने करियर के शुरुआती दिनों को याद करती हूं तो ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो। मुझे दूरदर्शन के एक टीवी सीरियल में काम करने का पहला मौेका मिला। लिहाजा आनन-फानन मुंबई जाना पडा। शुरुआत में मैं अपनी दो सहेलियों के साथ पवई के एक गेस्ट हाउस में रुकी। हमें जितना अंदाजा था, काम पूरा होने में उससे ज्यादा वक्त लग गया। पंद्रह दिनों के बाद हमें गेस्टहाउस खाली करना पडा। एक अजनबी शहर में हम तीनों सामान सहित सडक पर आ गए। तब हमारे पास इतना पैसा भी नहीं था कि हम किसी होटल में जा सकें। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं ..क्या करें? संयोगवश मुंबई में बौद्ध धर्म से जुडे एक ट्रस्ट की मेंबर मेरी परिचित थीं। जब मैंने फोन करके उन्हें अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने तुरंत हमें अपने पास बुला लिया। उन्होंने हमसे कहा कि जब तक तुम्हारा कोई इंतजाम न हो जाए तुम यहां आराम से रह सकती हो। वहां हमें कोई तेकलीफ नहीं थी। फिर भी उनसे मदद लेते हुए हमें बहुत संकोच हो रहा था। इसलिए तीन दिनों के बाद हमने उनसे झूठ बोला कि हमें किराये का फ्लैट मिल गया है। फिर हम वहां से निकल कर अपनी एक दोस्त के ऐसे मकान में चले गए, जहां कंस्ट्रक्शन चल रहा था। वहां दिन भर मजदूरों का आना-जाना लगा रहता था। ऐसे में घबराहट भी होती थी, पर मैं खुद अपना हौसला बढाती कि चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं मैं अपना लक्ष्य हासिल करके ही रहूंगी।

रंग लाई मेहनत

वह दौर बेहद मुश्किल था। मैं पटना के मध्यवर्गीय परिवार की सामान्य सी लडकी हूं। मुझे अभिनय से बेहद लगाव है, इसलिए एनएसडी दिल्ली से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद मुंबई आई थी। ग्लैमर की चकाचौंध ने मुझे कभी भी प्रभावित नहीं किया। मैं तो लोगों के सामने सिर्फ अपनी अभिनय प्रतिभा को लाना चाहती थी। यहां मुझे कुछ ऐसे लोग भी मिले, जिन्होंने मुझसे कहा कि इस फील्ड में काम करने के लिए तुम्हें अपने आपको पूरी तरह बदलना पडेगा। ऐसे सीधे-सादे लोगों के लिए यहां कोई जगह नहीं होती, पर इन बेकार की बातों पर मैंने कभी ध्यान नहीं दिया। मुझे खुद पर विश्वास था कि अगर मुझे एक्टिंग आती है तो देर-सबेर मौका जरूर मिलेगा। मेरा मानना है कि किसी भी इंसान को अपनी मौलिकता नहीं गंवानी चाहिए क्योंकि यही उसकी सबसे बडी ताकत होती है। परदे पर किसी कैरेक्टर को जीने के लिए थोडे समय के लिए व्यक्तित्व में बदलाव लाना तो ठीक है, पर जिंदगी को सहज ढंग से जीना चाहिए।

बनावटीपन हमारे व्यक्तित्व को खोखला बना देता है। इसलिए अपने उसूलों से कोई समझौता किए बगैर मैं प्रयास में जुटी रही और अंतत: मेरी मेहनत रंग लाई।

नहीं भूलते वो सात दिन

आज स्मॉल स्क्रीन पर भले ही मेरी पहचान बन चुकी है, पर अभी भी बहुत लंबा सफर बाकी है। जीवन में छिटपुट परेशानियां तो आती ही रहती हैं, पर अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत हो तो हम डटकर उनका मुकाबला कर सकते हैं।

पिछले साल मुझे मिजिल्स हो गया था। संयोगवश उसी दौरान मेरी घरेलू सहायक और ड्राइवर दोनों ही लंबी छुट्टी पर थे। मैं दूसरों को परेशान नहीं करना चाहती थी। इसलिए मैंने अपनी बीमारी के बारे में किसी को भी नहीं बताया। जब भी मम्मी-पापा का फोन आता तो मैं उनसे इस ढंग से बातें करती कि जैसे मैं बिलकुल ठीक हूं। वो सात-आठ दिन मेरे लिए बेहद मुश्किल थे। मेरी दीदी यहीं मुंबई में रहती हैं। चार दिनों बाद जब मेरी हालत ज्यादा खराब होने लगी तो एहतियात के तौर पर मैंने अपनी दीदी को फोन किया और वह तुरंत मेरे पास आ गई। मेरा मानना है कि परेशानियां सभी को झेलनी पडती हैं, लेकिन अगर मन में मजबूत इच्छाशक्ति हो तो उनका सामना आसानी से किया जा सकता है।

विनीता


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