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आइपीएल ने बहुत रुलाया है मुझे

कभी न कभी मुश्किलों भरा दौर सभी के जीवन में आता है। अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखें तो ऐसे हालात का सामना आसानी से किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में कई बार दूसरों के अनुभव हमारे लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। इसीलिए हम शुरुआत कर रहे हैं इस नए स्तंभ की, जिसमें आप पढ़ सकेंगे मशहूर शख्सीयतों के ऐसे ही अनुभव।

By Edited By: Published: Fri, 01 Mar 2013 11:32 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2013 11:32 AM (IST)
आइपीएल ने बहुत रुलाया है मुझे

यह लोगों के प्यार और दुआओं का ही सिला है कि अनगिनत मुसीबतें झेलने के बावजूद मैं आज भी आपके सामने खडा हूं। इसके लिए मैं ऊपर वाले का बेहद शुक्रगुजार हूं, पर यहां मैं अपनी मेहनत को भी इसका क्रेडिट देना चाहूंगा।

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सिलसिला मुश्किलों का

दो साल पहले मेरी बैक इंजरी हुई थी, जिसकी वजह से आजकल साल में केवल एक ही फिल्म कर पा रहा हूं। खैर, यह तो हुई शारीरिक तकलीफ की बात, पर मेरी प्रोफेशनल लाइफ में भी कई तरह के उतार-चढाव आए, जिन्हें हम ऑक्युपेशनल हैजर्ड कहते हैं।

चुनौतीपूर्ण था रा-वन

कोई भी फिल्म पूरी करना हमारे लिए जंग जीतने से कम नहीं होता। रा-वन मेरे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट था। उसकी रिलीज से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक के काम बहुत डिफिकल्ट थे। हालात इतने बुरे थे कि मैं समझ नहीं पा रहा कि यह फिल्म रिलीज कैसे हो पाएगी? फिल्म की रिलीज से महज दो दिन पहले बुधवार को हमने लोगों को प्रिंट दिया। उसी वक्त मुझे किसी जरूरी काम से लंदन जाना पडा। फिर मुझे वहीं से अमेरिका भी जाना था। मैंने फ्लाइट में ही प्रिंट डाउनलोड करके उसे ई-मेल के जरिए तयशुदा समय पर संबंधित लोगों के पास पहुंचाया। उस फिल्म की प्लानिंग के मामले में मुझसे भी थोडी गलती हुई थी। रिलीज के तीन महीने बाद तक मैं बेहद उदास रहा। सच पूछा जाए तो आज भी उन बातों को याद करके मुझे बहुत दुख होता है। खैर, उस फिल्म के दौरान होने वाली गलतियां मुझे बहुत कुछ सिखा गई।

गलतियों से लिया सबक

इसी तरह आइपीएल में मेरी टीम कोलकाता नाइटराइडर्स को कई सीजन के बाद जीत मिली। उस दरम्यान दुनिया ने मुझे लगातार प्रताडित किया। मेरी नीयत पर सवाल उठाए गए। लोगों ने मेरा खूब मजाक उडाया। अखबारों से लेकर न्यूज चैनल तक हर जगह मेरे ऊपर इतने तीखे कमेंट्स होते थे कि उन्हें देखकर वाकई मैं रो पडता था। कमेंट्स करने वाले लोगों के मुकाबले मुझे क्रिकेट की कहीं ज्यादा समझ है, लेकिन मेरा वक्त खराब चल रहा था। इसलिए उनकी टिप्पणियां मुझे झेलनी पडती थीं। वह मेरे जीवन का बेहद बुरा दौर था। काम की व्यस्तता की वजह से मैंने अपने बच्चों का भी दिल तोडा। उन दिनों मेरा मनोबल इतना टूट चुका था कि मैं बाथरूम में छिपकर घंटों रोता था। एक बार मेरे बच्चों ने मुझे रोते हुए देख लिया तो वे भी सहम गए। उन्हें देखकर मुझे बहुत दुख हुआ और मैंने उसी वक्त खुद से यह वादा किया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, पर मैं आसानी से हार नहीं मानूंगा और न ही अपना आत्मविश्वास टूटने दूंगा। उन दिन के बाद से मैंने खुद को संभाल लिया। उस मुश्किल हालात से बाहर निकलने के लिए मैंने कुछ कडे फैसले भी लिए। सौरभ गांगुली से कप्तानी वापस लेनी पडी। फिर मैंने गौतम गंभीर और वसीम अकरम के साथ टीम रिवाइव की। हम एक-दूसरे का उत्साह बढाते रहे। पूरे टूर्नामेंट की लंबी-चौडी प्लानिंग करने के बजाय हमने मैच दर मैच आगे की स्ट्रैटजी बनाई। इसका हमें बहुत फायदा मिला और मैं विजेता बनकर सामने आया।

अंत में, मैं आप से यही कहना चाहूंगा कि चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं निराशा को अपने ऊपर हावी न होने दें। अगर बहुत ज्यादा तनाव हो तो उस वक्त सब कुछ छोड-छाड कर टूर पर निकल जाएं, कोई अच्छा टीवी प्रोग्राम या फिल्म देंखे। खुद पर हंसें, यकीन मानिए इसे मैं भी आजमा चुका हूं और इससे बहुत जल्दी तनाव दूर होता है। धीरे-धीरे खुद को सामान्य अवस्था में लाएं और फिर अपने काम पर लग जाएं। आपको कामयाबी जरूर मिलेगी। प्रस्तुति : अमित कर्ण

अमित कर्ण


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