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इवेंट में हुई मुलाकात शादी में बदल गई: श्रेयस तलपड़े-दीप्ति

शादी जीवन की अहम जरूरत है। दुनिया की हर सफलता-विफलता, चुनौतियों और संघर्षो से जूझते हुए जब कोई शाम को घर पहुंचता है तो यही चाहता है कि कोई हो, जिसके साथ रहते हुए मकान घर जैसा लगे। जीवन में मकसद तभी पैदा होता है, जब उसे बांटने वाला हमसफर हो। ऐसा ही मानना है, श्रेयस तलपड़े और दीप्ति का। कैसे बने ये हमसफर, जानते हैं इनसे।

By Edited By: Published: Sat, 10 May 2014 11:19 AM (IST)Updated: Sat, 10 May 2014 11:19 AM (IST)
इवेंट में हुई मुलाकात शादी में बदल गई: 
श्रेयस  तलपड़े-दीप्ति

शादी का मतलब क्या है?

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श्रेयस तलपडे : संबंधों को लगातार बनाना पडता है। शादी का अर्थ हमारे लिए थोडा अलग है। लेकिन मेरे लिए यह सवाल महत्वपूर्ण है। मैंने और दीप्ति ने शादी के बाद एक-दूसरे को समझा है। जब भी हम घर में साथ होते हैं, कोशिश करते हैं कि कुछ नया करें, एक-दूसरे को सरप्राइज करें। संबंधों में सवालों का बने रहना हमें बेहतर संबंध की ओर ले जाता है। शादी क्यों की, यह बात किसी विवाहित व्यक्ति के सिवा और कौन बता सकता है!

दीप्ति : आप भले ही दुनिया के सारे संघर्ष करके सफलता हासिल कर लें, मगर घर लौट कर अगर कोई उसे देखने वाला ही नहीं है और न आप अपने मन की बात किसी से शेयर कर सकते हैं तो मेरे हिसाब से उस सफलता का कोई मतलब नहीं होता। यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि अगर सफलता मिलने के बाद दो लोग शादी करते हैं या एक-दूसरे के साथ रहने का निर्णय लेते हैं तो यह जीवन को लेकर सकारात्मक निर्णय हो सकता है, लेकिन दरअसल इससे प्रेम का कोई संबंध नहीं होता। दो लोगों के बीच प्रेम निरंतर तभी बढता है, जब वे एक-दूसरे को साथ रहते हुए जानते हैं, न कि जानने के बाद साथ रहना शुरू करते हैं। अरेंज्ड मैरिज में शादी केवल दो व्यक्तियों की नहीं होती, बल्कि उनके साथ दो परिवारों के संस्कारों की भी शादी होती है। मैं लिव-इन के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन लिव-इन संबंधों को परिभाषित करने वाला टर्म नहीं है।

पहली मुलाकात कहां और कैसे हुई?

श्रेयस तलपडे : मैंने अपना करियर कम उम्र में ही शुरू कर दिया था। मुंबई के उपनगर अंधेरी में पले-बढे होने की वजह से मुझे खास संघर्ष नहीं करना पडा था। स्कूल के दिनों से सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय था। पेरेंट्स को मेरी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं का पता था। वर्ष 2000 के आसपास की बात होगी, जब मैं मराठी थिएटर करने लगा था और टीवी की दुनिया में भी सक्रिय था। मुलुंड के वेलिंग कर कॉलेज में एक कार्यक्रम में निर्णायक मंडल में शामिल था। वहीं दीप्ति से पहली मुलाकात हुई। इसे पहली नजर का प्यार माना जा सकता है, मगर उस समय मैं डर रहा था कि कैसे बात शुरू की जाए।

दीप्ति : श्रेयस को देख कर मुझे एहसास हो गया था वे मुझे कुछ ज्यादा महत्व दे रहे हैं। लेकिन तब मैं प्यार से ज्यादा करियर के बारे में सोचती थी। मैं क्लिनिकल साइकोलॉजी की छात्रा थी और घर वाले परंपरागत महाराष्ट्रियन थे। किसी अभिनेता से शादी करने के बारे में सोचने का तो सवाल ही नहीं उठता था। सबसे बडी बात यह थी कि मैं आगे की पढाई पूरी करने जल्दी ही अमेरिका जाने वाली थी। जब उस दिन का इवेंट खत्म हुआ तो श्रेयस ने हम सभी को मंच से पुरस्कार वितरण किया और चले गए। इसके कुछ दिन बाद श्रेयस का फोन आया और उन्होंने कहा कि मैं उन्हें पसंद हूं। मैं फोन पर थोडा चौंकी, क्योंकि यह मेरे लिए नई बात थी। मैंने श्रेयस की पूरी बात सुनी और उनसे कहा कि मैं इस बारे में सोच कर बताऊंगी।

फिर क्या हुआ?

श्रेयस तलपडे : होना क्या था! प्रपोज मैंने किया था, तो सब कुछ मेरे जिम्मे आ गया। मेल ईगो भी था कि रिजेक्शन हो गया तो क्या होगा। लेकिन दीप्ति क ी समझ पर भरोसा भी था जो मुझे उनके भीतर पहले दिन ही दिख गई थी। इसी समझ के आधार पर मैंने उन्हें प्रपोज किया था। मैं इनके फोन का इंतजार करता था। यूं तो अपना काम करने में बिजी था, मगर मेरा मन कहींलगता नहीं था। फिर एक दिन इंतजार खत्म हुआ और इनका फोन आ गया।

दीप्ति : जी, मैंने फोन किया था। इनसे कहा कि आपके साथ रहने में मुझे इंकार नहीं है। लेकिन मैं लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप के पक्ष में नही हूं। दो लोग साथ में रहना चाहते हैं तो फिर साथ ही रहें। अलग-अलग क्यों रहें? मैंने श्रेयस से कहा कि आप निर्णय लें कि कैसे और क्या करना है। मैं पढाई नहीं रोकूंगी और करियर मेरे लिए शादी के बाद भी प्राथमिक रहेगा। यह भी एक सवाल है कि शादी के बाद मैं अमेरिका कैसे जाऊंगी..। तो मैंने मन की सारी बातें श्रेयस के सामने खुल कर रख दीं। इन्हें मेरा नेचर पहले दिन ही पता चल गया।

सफलता और विफलता क्या है आपकी नजर में?

श्रेयस तलपडे : सफलता देखने वाले पर निर्भर करती है। एक अभिनेता के तौर पर मैं तो खुश हूं कि अलग-अलग तरीके के काम किए। कुछ पब्लिक को पसंद आए और कुछ नहीं। हर स्थिति में मेरा परिवार मेरे साथ रहा। आपने उस पंछी की कथा सुनी होगी जो अपनी ही राख से वापस निकल कर फिर से उडता है। मेरे खयाल से हर आदमी को इस स्पिरिट से काम करना चाहिए। मैं अभी मराठी फिल्मों के प्रोडक्शन में बिजी हूं। मेरे प्रोडक्शन हाउस से पहली मराठी प्रोडक्शन रिलीज होगी। इसके बाद मराठी की ही दूसरी फिल्म आएगी, जिसमें मैं सुपर हीरो बना हूं। इसका निर्देशन निखिल महाजन कर रहे हैं। वाह ताज तैयार है, जो हिंदी में मेरी अगली रिलीज होगी। मैं लगातार काम कर रहा हूं। मेरे लिए सफलता और विफलता सब्जेक्टिव चीजें हैं।

दीप्ति : मैंने अपना काम छोड दिया, इसका मतलब ये नहीं है कि मैं विफल हूं। श्रेयस के प्रोडक्शन हाउस में अकाउंट और एडमिन का पूरा जिम्मा मैंने संभाल रखा है। मैं रचनात्मक नहीं हूं तो उस क्षेत्र में मेरी दखलअंदाजी नहीं होती। कहानी, अभिनय से लेकर एडिटिंग तक की पूरी जिम्मेदारी श्रेयस ही संभालते हैं। श्रेयस की फिल्मोग्राफी देखकर कोई सवाल नहीं खडे कर सकता और न ही कोई उनके अभिनेता होने पर सवाल कर सकता है। आने वाले दिनों में मराठी प्रोडक्शन में हम अपना कदम बढाने वाले हैं।

शादी के बाद कितने सपने पूरे हुए?

श्रेयस तलपडे : शादी के दो दिन बाद ही मुझे इकबाल की शूटिंग के लिए निकलना पडा था। इकबाल मेरे करियर की बेहतरीन फिल्मों में एक थी। यह फिल्म और दीप्ति दोनों मेरी जिंदगी में साथ आए। आर्टिस्ट होने के नाते हमारा एक जोन होता है, जो सबको पता नहीं होता। दीप्ति को भी उसे समझने में वक्त लगा। लेकिन मैं दीप्ति का शुक्रगुजार हूं कि क्रिएटिव व्यक्ति का स्पेस वह समझ पाई।

दीप्ति : आर्टिस्ट के साथ शादी करना और उसे निभाना आसान नहीं था। लेकिन श्रेयस से शादी करके मेरे सामने कोई परेशानी नहीं आई। मैंने अपने करियर के साथ उनके काम में भी सपोर्ट किया। कोई आर्थिक संकट भी नहीं आया। सफलता का अर्थ सबके लिए अलग होता है। जैसे श्रेयस और मुझे नागेश कुकनूर की फिल्म बांबे टू बैंकाक पसंद है, लेकिन पब्लिक ने खारिज कर दिया..।

दुर्गेश सिंह


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