Move to Jagran APP

दोस्ती कायम है अब भी: सौरभ-वर्णाली

फिल्म सत्या के कल्लू मामा तो याद होंगे आपको! हम सौरभ शुक्ला की बात कर रहे हैं। दूरदर्शन के धारावाहिक तहकीकात में गोपीचंद का उनका किरदार काफी लोकप्रिय हुआ। उनकी हमसफर वर्णाली ने भी सत्या से फिल्मों का सफर शुरू किया। मिलते हैं इस जिंदादिल दंपती से।

By Edited By: Published: Sat, 30 Jun 2012 04:26 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2012 04:26 PM (IST)
दोस्ती कायम है अब भी: सौरभ-वर्णाली

सौरभ शुक्ला और वर्णाली  ने 14  साल पहले प्रेम विवाह किया। दोनों सत्या के सेट पर मिले। वर्णाली ने राम गोपाल वर्मा के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। फिल्म कुछ लव जैसा भी डायरेक्ट की। दोनों एक-दूसरे को पति-पत्नी से अधिक दोस्त मानते हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्रता, विश्वास व सामंजस्य की बुनियाद पर ही सुखी दांपत्य की नींव तैयार होती है। दांपत्य के विभिन्न पहलुओं को लेकर सखी ने की इनसे बातचीत।

loksabha election banner

ड्रामे से भरपूर थी पहली मुलाकात

वर्णाली :  वर्ष 1997 की बात है। मुंबई आए छह महीने हुए थे। जिस प्रोडक्शन  हाउस में काम करती थी, वहां एक शो को अनुराग कश्यप लिख रहे थे। उसी समय वह सत्या भी लिख रहे थे। मुझसे बोले कि फिल्मों में ट्राई करूं। उन्हींके कहने पर राम गोपाल वर्मा के यहां इंटरव्यू दिया और काम मिल गया। सत्या के सेट पर ही मुझे सौरभ मिले। मैं तब असिस्टेंट डायरेक्टर थी और सौरभ अनुराग के साथ सत्या लिख रहे थे। मुलाकात हुई और धीरे-धीरे दोस्ती बढी, मगर मेरे जेहन  में शादी का खयाल नहीं था। इन्होंने प्रपोज किया तो मैंने गालियों से इनका स्वागत किया। यह वाकया पृथ्वी थिएटर, जानकी कुटीर के पास का था। इन्हें लताडा और गुस्से में अगली फ्लाइट से मैं कोलकाता  चली गई। मेरी लाइफ में शादी के लिए कोई जगह नहीं थी। इस बात को जरूर छापें कि जो लडकियां डंके की चोट पर कहती हैं कि शादी नहीं करेंगी, वे झूठी होती हैं। कोलकाता में मां से डेढ दिन तक इनकी ही बात होती रही। मां के समझाने पर मुंबई लौटी। कास्ट एंड क्रू पार्टी में मनोज बाजपेयी को इन्होंने क्या पट्टी पढाई कि मनोज ने मुझे लंबी पट्टी पढा दी। उन्होंने कहा कि यह आदमी तुम्हारे लिए गाना चाहता है। हर लडकी की ख्वाहिश  होती है कि घर लौटे तो कोई उसके लिए गाना गाए। हाथों में ड्रिंक हो, पति गाना गाए..वाह क्या रोमैंटिक फीलिंग है, बस मन में इनके प्रति प्यार जग गया।

सौरभ :  ये मुझसे 10 साल छोटी हैं। मेरी उम्र उस वक्त 33 साल थी। अब तक सिर्फ काम ही किया। जीवन उड रहा था। मनोज के साथ अच्छे दिन गुजारे।  यूफोरिया था, दिन भर जम कर काम करते, रात को पार्टी। फिर अचानक एहसास होने लगा कि इसका कोई अर्थ नहीं है। इसी बीच एक पहाडी स्थल चकरौता गया।  एक भी दिन वहां मन नहीं लगा, लगा कि कोई साथ होना चाहिए। लौटा तो सत्या के सेट पर वर्णाली दोस्त बनीं। इनके साथ कभी अनकंफर्टेबल नहीं लगा। शूटिंग के बाद कभी मैं इनके घर जाता, कभी ये आतीं। लगा कि इनके साथ खुश रहूंगा और मैंने प्रपोज  कर दिया। पहली बार तो इन्होंने सख्त ढंग से नकार दिया। अनुराग ने समझाया कि लडकियां टेंपरामेंटल होती हैं। धीरे-धीरे मान जाएगी। अंतत: बात बनी। हमने 1 फरवरी 1998 को जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर में शादी की, क्योंकि वहां का खाना अच्छा है। रिसेप्शन पृथ्वी कैफे में हुआ।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

वर्णाली : पिता इंडियन ऑयल में थे। मां गृहिणी हैं। भाई कोलकाता  में बिजनेस  करता है, मेरी पैदाइश चेन्नई की है। पढाई दिल्ली में हुई। पिता कोलकाता  से कुछ दूर नोवोदु के हैं। चैतन्य महाप्रभु ने वहीं जल समाधि ली थी। अभी सब कोलकाता  में हैं।

सौरभ :  मैं गोरखपुर का हूं। पिता अब नहीं हैं। उनका नाम शत्रुघ्न शुक्ला था। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के संगीत व कला विभाग में एचओडी थे। ठुमरी पर बहुत काम किया। मां जोगमाया शुक्ला वहीं काम करती थीं। वह दुनिया की पहली महिला तबला वादक हैं। तीन साल पहले उन्हें यह अवार्ड मिला है।

पसंद अपनी-अपनी

वर्णाली :  हमसफर को बदलने की ज्यादा जिद न करें। अगर मैं पति के साथ रोमैंटिक डिनर पर हूं और सोचूं कि मेरा पति-मेरा डिनर.. तो यह गलत  है। सौरभ इससे भी पहले एक कलाकार हैं और लोगों के प्यार से ही उनकी पहचान बनी है। शुरू में इस बात को स्वीकारना मुश्किल होता था, लेकिन धीरे-धीरे परिपक्वता आई। मैं अच्छी बीवी हूं या नहीं, मगर हमसफर कमाल की हूं।

सौरभ :  मैं इन्हें बीवी नहीं, दोस्त मानता हूं और उसी तरह सम्मान देता हूं। ये सादगी पसंद हैं। इन्हें कभी गिफ्ट देने की जरूरत नहीं पडी। हां, मैं भी इनके साथ इनके मायके जाने को तैयार रहता हूं।

कॉमन चीजें

वर्णाली :  हमारा काम..। एक ही इंडस्ट्री में हैं, लेकिन पैसे के पीछे नहीं भाग रहे हैं। इनके सामने सजने-संवरने की जरूरत नहीं पडती। जैसी हूं, इन्हें वैसी ही पसंद हूं।

सौरभ :  पहला प्यार काम ही है। हम दोनों को सैर-सपाटे में मजा आता है। ईमानदार हैं, हमने कभी एक-दूसरे से कुछ नहीं छुपाया।

झगडे की वजह

वर्णाली :  इनकी जितनी बातों पर गुस्सा आता है, उस पर किताब लिखी जा सकती है। लापरवाह हैं, पूरा ध्यान काम पर रहता है। हमसफर आर्टिस्ट है तो कई अपेक्षाएं छोडनी पडती हैं। शादी के बाद पहली होली, दीवाली इनके काम के चलते अकेले बिताई। एक छत के नीचे रहने पर बातें समझनी पडती हैं।

सौरभ : भुलक्कड हूं, क्योंकि ध्यान काम पर होता है। मुझे नहीं पता कि इन पर गुस्सा  आता है या खुद पर। मुझे निराशा होती है कि मुझसे चीजें ठीक ढंग से क्यों नहीं होतीं? कभी बहस होती है तो खुद को जस्टिफाई  करने के लिए कहता हूं कि इतना ही बेकार व नाकारा होता तो यहां न होता। गलत कहने से पहले सोच लो कि तुम्हारी ही चॉइस  हूं।

छोटी-छोटी बातों से न टूटे रिश्ता

वर्णाली :  हमारी शादी के वक्त लोगों ने काफी कमेंट्स किए थे कि देखो कब तक निभती है। लेकिन हमने सोच-समझ कर साथ रहने का फैसला किया था। जैसे ही शादी आप को डिफाइन करने लगती है, दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। लोग दो जिस्म एक जान की बात करते हैं, लेकिन एक जान होने पर किसी एक की लाइफ तो आधी हो जाती है। आज लोगों में धैर्य खो रहा है। शौहर या बीवी की छोटी सी गलती पर तलाक की नौबत आ जाती है। हम करप्शन सह लेते हैं, ग्ालत होता देखते हैं और उसके खिलाफ मुंह नहीं खोलते, लेकिन दांपत्य  में हम छोटी-छोटी बातें तक नहीं सहन कर पाते।

सौरभ :  दरअसल शादी के बाद हम समाज के हिसाब से जीने की कोशिश करने लगते हैं। स्त्री को पार्टियों में नहीं जाना चाहिए, पुरुष को शनिवार-रविवार घर में बिताना चाहिए.., ये बातें धीरे-धीरे रिश्ते को खाने लगती हैं। मुझे तो कई बार डर लगता है कि कहीं पश्चिमी देशों की तरह यहां भी तलाक की घटनाएं आम न हो जाएं। महत्वाकांक्षाएं जरूरी हैं, क्योंकि ये होंगी, तभी दुनिया आगे बढेगी, लेकिन किसी को दुख पहुंचा कर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करना गलत  है।

शादी क्या है?

वर्णाली :  शादी इंसान की जैविक और भावनात्मक जरूरत है। इसमें प्रेम है, स्नेह है, लेकिन कोई ग्ाुलामी नहीं। केवल प्रेम ही एक-दूसरे को सहना सिखाता है। हालांकि अब महत्वाकांक्षाओं और धैर्य की कमी के कारण शादी में भी समस्याएं आने लगी हैं।

सौरभ:  मैं शादी को बंधन नहीं मानता। इसमें दो लोग मिलते हैं, उनके परिवार मिलते हैं और एक नए ढंग की सामाजिक संरचना का निर्माण होता है। समय के साथ शादी की इस संस्था में भी बदलाव आए हैं। अब लोग लीगल और जैविक जरूरतों के लिए शादी कर रहे हैं, दरअसल ऐसे रिश्ते एक किस्म का समझौता ही हैं। अमित कर्ण


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.