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भरोसे के बल पर किया 12 साल इंतजार: राजू श्रीवास्तव-शिखा

स्टैंड अप कॉमेडी का नाम लेते ही सबसे पहले कानपुर के राजू श्रीवास्तव का नाम उभरता है। पर्दे पर राजू सबकी खिंचाई करते नजर आते हैं, मगर असल जीवन में वह विनम्र, शर्मीले और जिम्मेदार हैं। इनकी हमसफर हैं शिखा, जिनसे पहली नजर में ही प्यार हो गया राजू को, मगर शादी हुई 12 वर्ष लंबे इंतजार के बाद। राजू-शिखा के लंबे दांपत्य जीवन को लेकर अंतरंग बातचीत।

By Edited By: Published: Wed, 01 Jan 2014 12:54 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jan 2014 12:54 AM (IST)
भरोसे के बल पर किया 12 साल इंतजार: राजू श्रीवास्तव-शिखा

स्टैंड अप कॉमेडी को बुलंदियों तक पहुंचाने का उल्लेखनीय कार्य राजू श्रीवास्तव के नाम है। रील लाइफ में राजू काफी वोकल  हैं, पर असल जिंदगी में शर्मीले, विनम्र और अदब-पसंद इंसान हैं। उनकी जीवनसंगिनी शिखा भी शर्मीली, शांत, सरल स्त्री हैं। कैसे मिले ये, क्या-क्या अडचनें आई शादी में, जानते हैं इनसे।

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शिखा आपकी जिंदगी  में कैसे आई?

राजू :  इसका श्रेय मेरी भाभी को जाता है। मेरे बडे भाई की शादी तय हुई थी फतेहपुर में। हम कानपुर से बारात लेकर गए। वहीं शिखा को देखा। पहली नजर  में ही तय कर लिया कि इन्हीं से शादी करनी है। उन दिनों खुला  माहौल नहीं था। बाद में इनके बारे में छानबीन की तो पता चला कि ये भाभी के चाचा की बेटी हैं। यह वर्ष 1981 की बात है। शादी 17  मई 1993  को हुई।

तो 12 साल इंतजार  किया आप दोनों ने?

राजू : हां। मालूम हुआ कि ये इटावा में रहती हैं। इनके भाइयों से दोस्ती गांठी।  किसी न किसी बहाने इटावा जाता, लेकिन लाइन क्रॉस  करने की हिम्मत कभी नहीं पडी। वर्ष 1982  में मुंबई आया। संघर्ष किया, कुछ कमाने-खाने लायक बना। अपना घर लिया तो महसूस हुआ कि अब शादी कर लेनी चाहिए, मगर इसमें कई साल लग गए। बीच-बीच में इनके घर चिट्ठी लिखता, मगर सीधे-सीधे इन्हें नहीं लिख पाता था, हां यह मंशा  रहती थी कि समझने वाला समझ जाए। जानने की कोशिश करता था कि कहीं इनकी शादी फिक्स तो नहीं हुई! हालांकि इनका जवाब कभी नहीं आया। उस समय इतनी आजादी  कहां थी लडकियों को। मैं मुंबई मलाड  में रहता था। छोटा भाई साथ था। कोई न कोई आता-जाता रहता था। वह जवाब भेजतीं तो डर था कि पता नहीं चिट्ठी किसके हाथ पडे।

शिखा के मन की बात आपने कैसे जानी?

राजू :  शिखा हर रिश्ता मना कर रही थीं। कभी इन्हें लडका पसंद नहीं आता तो कभी उसकी नौकरी। घर वाले परेशान थे.., बस इसी बात से अंदाजा हुआ कि शिखा भी मुझसे शादी करना चाहती हैं।

अच्छा, शिखा आगे की कहानी आपसे जानना चाहेंगे।

शिखा :  पहली बार ही इन्हें देखा तो दिल में घंटी बज गई थी। हम जानते थे कि एक-दूसरे को पसंद करते हैं, बस यह बात मुंह तक नहीं ला पा रहे थे। कहीं से मेरे लिए रिश्ता आता तो बडी कोफ्त होती। मैं झट से चंद्रमुखी से ज्वालामुखी बन जाती। सबको लगता कि मैं नखरे वाली हूं। असल बात कुछ और ही थी।

राजू :  तब फोन तो कर नहीं सकते थे। इनके पडोस में पी.पी. नंबर बुक करता था। उन्हें भी नहीं बता पाता था कि किससे बात करनी है। इतना ही कहता कि उनके घर से किसी को बुला दीजिए..। कभी इनके भाई आते तो कभी ये आतीं। भाई आते तो बताता कि अभी फलां शो कर रहा हूं, बाहर जा रहा हूं..वगैरह-वगैरह। इनसे भी इतना ही पूछ पाता कि क्या चल रहा है घर में? बाद में मुंबई में काम चल निकला तो दिल की बात घर वालों के जरिये  इनके घर तक पहुंचाई। इनके भाई साहब भी मुंबई में मेरा घर देख चुके थे। उन्हें तसल्ली हो गई थी कि बंदा उनकी बहन को खुश  रखेगा।

शादी आपके लिए कैसा एहसास है?

राजू :  बहुत प्यारा और खुशनुमा।  लिव-इन  को मैं सही नहीं मानता। मुझे लगता है कि इस रिश्ते को कानूनी व सामाजिक मान्यता मिलनी चाहिए। गृहस्थ धर्म का पालन पूरे मन से करना चाहिए।

शिखा :  यह बहुत बडा पडाव है जिंदगी का। शादी सर्वागीण विकास के लिए जरूरी  है। यह इमोशनल स पोर्ट देती है और निखारती है। यही वह संबंध है, जो अंत तक साथ रहता है, बाकी तो पीछे छूट जाते हैं।

मगर युवा अब शादी से भागने लगे हैं..

राजू :  युवाओं से इतना ही कहना चाहता हूं कि खुद  को और संबंधों को समय दें। किसी भी रिश्ते में धैर्य जरूरी  है। पिछले कई सालों से यही एक चीज  है, जिसने हमारे संबंधों का चार्म बनाए रखा है। फायदे-नुकसान और अहं के बारे में सोचना बेकार है। जैसे-जैसे उम्र बढती है, समझ आता है कि लाइफ पार्टनर की अहमियत क्या होती है।

शिखा :  मेरे हिसाब से शादी दुनिया का सबसे बडा एडवेंचर  है। युवाओं को देख कर थोडी निराशा होती है। वे करियर  के प्रति सचेत हैं, प्रोफेशनल हैं, लेकिन संबंधों को लेकर दुविधाग्रस्त हैं। वे जल्दी नतीजे पर पहुंच जाते हैं। उन्हें लगता है कि एक संबंध नहीं चला तो उसका विकल्प तलाशें। मुझे लगता है, यह सोच गलत  है। हर संबंध में समझौता व धैर्य जरूरी  है।

आपके घर वालों को राजू पसंद थे?

शिखा :  जी, ये हैं ही ऐसे कि किसी का भी दिल जीत लें। मैं माता-पिता की इकलौती बेटी थी, इसलिए वे मुझे ज्यादा  दूर नहीं भेजना चाहते थे। ये फिल्म, टीवी और रंगमंच वाले थे। तब इस फील्ड को उतनी पहचान नहीं मिली थी। बस इसी को लेकर घर वाले थोडे परेशान थे। उन्हें तो कभी पता भी न चलता कि मैं इन्हें पसंद करती हूं। लेकिन जब मैं लगातार रिश्ते ठुकराने लगी, तब उन्हें बात समझ आई। निजी तौर पर वे राजू को पसंद करते थे, लेकिन पेशे की बात आते ही सब बिदक जाते।

कभी यह नहीं लगा कि इंतजार  की इंतेहा  हो गई है?

शिखा :  नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं लगा..

राजू :  बीच में एक बार इनके भाई आशीष श्रीवास्तव मुंबई आए तो मेरे यहां ठहरे। जब उन्होंने देखा कि लडके का काम ठीक चल रहा है, घर ले लिया है, गाडी ली है, तब उन्होंने यह बात अपने घर वालों तक पहुंचाई कि लडका ठीक-ठाक है और बहन को खुश  रखेगा।

शिखा :  इन्होंने अपनी भाभी यानी मेरी चचेरी  बहन के मार्फत हमारे घर शादी का संदेश भिजवाया। पहले दादा को यह बात बताई।

राजू :  दादा.. यानी इनके बडे भाई।

शिखा:  हां, दादा ने मम्मी को शादी के लिए कन्विंस  किया।

राजू :  मेरे घर वालों को यह बात खटक रही थी कि दोनों भाइयों की शादी एक जगह हो जाएगी। इसमें साल-डेढ साल और लग गया। पर अंत में वही हुआ कि मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। 

आप दोनों में कॉमन  क्या है? किन बातों पर अलग-अलग विचार रखते हैं?

राजू :  शिखा प्योर  वेजटेरियन हैं। मैं प्योर  नॉन-वेजटेरियन। बाद में ये मेरे लिए नॉनवेज बनाने लगीं। खैर अब मैं भी वेजटेरियन हूं।

शिखा :  शुरू में तो ये मुझे चिढाते थे कि नॉनवेज  क्यों नहीं खाती हो। तुम्हें पता नहीं कि क्या मिस कर रही हो..।

राजू : लेकिन मैंने कभी इन पर दबाव नहीं डाला।

शिखा :  ये अनुशासित हैं। मैं आरामतलब हूं। हमेशा कहती हूं, हो जाएगा, टेंशन क्यों लेते हो?

राजू :  पहले ज्यादा  टेंशन  लेता था, अब कम किया है। संघर्ष के दिनों में मिमिक्री  से गुजारा  चलता था। त्योहारों में ही इसका भी सीजन  होता। होली-दीवाली, करवाचौथ सब अकेले ही मनातीं ये।

शिखा : मुझे इनके फील्ड की मुश्किलें पता थीं। जानती थी कि इनकी मेहनत रंग लाएगी। इसलिए हमेशा साथ दिया, कभी शिकायत नहीं की, ताने नहीं दिए। आज उसका फल सामने है।

अमित कर्ण


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