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खूबसूरत अहसास है शादी: मुश्ताक-सलमा

मध्य प्रदेश के एक छोटे से इलाके बालाघाट के रहने वाले मुश्ताकखान पिछले तीस साल से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं। अब तक कई फिल्मों में छोटे-बड़े किरदार निभा चुके हैं। इस बार दांपत्य जीवन को लेकर हमने बातचीत की है मुश्ताक और उनकी हमसफर सलमा से। विवाह संस्था को लेकर दोनों बहुत सकारात्मक हैं और इनका मानना है कि एक अच्छा वैवाहिक रिश्ता जीवन को आगे बढ़ाता है।

By Edited By: Published: Mon, 02 Sep 2013 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2013 11:46 AM (IST)
खूबसूरत अहसास है शादी: मुश्ताक-सलमा

मुश्ताक खान  का फिल्मी सफर काफी लंबा रहा है। लगभग 70 फिल्मों में काम कर चुके मुश्ताक ने करियर में जितने भी उतार-चढाव देखे हों, निजी जिंदगी में अपनी हमसफर सलमा के साथ इनकी जिंदगी की गाडी बेहद शांति से चली है। मुश्ताक मानते हैं कि सलमा उनके लिए भाग्यशाली हैं। मिलते हैं इस दंपती से।

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खूबसूरत अनुभव है शादी

मुश्ताक: शादी एक गाडी है, जिसे चलाने के लिए दो पहियों की जरूरत होती है। मैं इसे एक व्यवस्था मानता हूं, जिसमें कहीं न कहीं समाज की व्यवस्था और परंपरा का निर्वाह करने की क्षमता है। मेरा मानना है कि शादी जीवन को आगे ले जाती है। मेरे करियर और जिंदगी में शादी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

सलमा : शादी दुनिया का सबसे खूबसूरत  अनुभव है। इतने सालों के वैवाहिक जीवन में हमने कभी नकारात्मक पहलू को अहमियत नहीं दी। जीवन में कुछ उतार-चढाव आए भी तो शादी ने एक कडी का ही काम किया और हम साथ आगे बढते रहे। मुश्ताक जैसे पति किस्मत से ही मिलते हैं। अभिनेता के जीवन में इतने संघर्ष होते हैं.., लेकिन उन्होंने कभी मुझे यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं असुरक्षित हूं। मैंने जितना उनके करियर  को सपोर्ट किया, उससे कहीं अधिक उन्होंने मेरे जीवन को सपोर्ट किया।

शादी मुहब्बत है-किस्मत है

मुश्ताक : हमारी अरेंज्ड मैरिज थी। हमने शादी के बाद प्यार किया। सन 1985 की बात है। मैं गोरेगांव  में एक गेस्ट हाउस में रहता था, जहां सलमा की बडी बहन मुझे देखने आई थीं। हम पांच लोग एक कमरे में रहते थे। हमारा सामान जैसे सूटकेस, होल्डाल वगैरह बिस्तर के नीचे रहता था। जब वह आई तो उन्होंने एक ही टेबल पर बीयर  की कई बोतलें देखी, जिन्हें हम पानी के लिए इस्तेमाल करते थे। वह घबरा गई, लेकिन मैंने मामले को संभाला और उन्हें बताया कि ये सब मेरे दोस्तों की बोतलें हैं। काफी कहने के बाद उन्हें मुझ पर विश्वास हुआ। उन्होंने फिर काम के बारे में पूछा तो मैंने बता दिया कि अभी संघर्ष ही कर रहा हूं। वह चली गई तो मुझे लगा कि अब ये रिश्ता भी हाथ से निकल गया, क्योंकि इसके पहले भी कई रिश्ते आ चुके थे और मेरा घर-बार और बैंक बैलेंस देख कर जा चुके थे..।

सलमा :  उन दिनों यह चलन तो था नहीं कि पति के बारे में पहले से ही पूछताछ करें। न मैंने अपने घर में किसी से इनके काम के बारे में पूछा और न किसी ने बताया। मेरी बहन घर में बडी थीं। उन्होंने और अब्बू ने मिल कर एक निर्णय लिया और मैं तैयार हो गई। इस शादी में मेरे पिता का बहुत योगदान रहा। वे कला के कद्रदान थे। मुश्ताक पर उन्हें भरोसा था। उन्होंने कहा, अगर लडका आज संघर्ष कर रहा है तो कल कुछ न कुछ कर ही लेगा। उन्होंने इनकी नौकरी, घर या बंगला देखा होता तो शायद हम साथ न होते। मेरे पिता आम लोगों से अलग थे। वे संघर्ष को काम का हिस्सा मानते थे। उन्होंने सिनेमा में काम नहीं किया, लेकिन उन्हें पता था कि यहां काम कैसे किया जाता है। आउटसाइडर  के तौर पर उन्हें इस इंडस्ट्री का इल्म था।

मुंबई का संघर्ष

मुश्ताक: मुंबई का संघर्ष तो जारी रहा लेकिन मेरे लिए एक कहावत सच साबित हो गई कि लडकी आई और दिन बदल गए। पहले गेस्ट हाउस से एक कमरे का घर किराए पर लिया था, लेकिन सलमा के आने के बाद मेरे दिन बदले। इसके बाद ही मुझे महेश भट्ट मिले। वह न मिले होते तो मैं शायद कुछ नहीं होता। महेश भट्ट ने मुझे फिल्मों में मौका दिया। वर्ष 1986 में मेरी शादी हुई और उस दौरान महेश भट्ट अर्थ, नाम और सारांश बना कर सफल निर्देशक बन चुके थे। मैंने अब तक उनकी करीब पंद्रह फिल्मों में काम किया है।

सलमा : वे थिएटर के दिन थे। इप्टा सक्रिय था। सलमान खान के पिता सलीम खान ने इन्हें इप्टा के एक नुक्कड नाटक में देखा था। उन्होंने मुश्ताक को घर बुलाया और पूछा कि फिल्मों में काम करोगे? इनके हां कहने पर उन्होंने महेश भट्ट को इनका नाम सुझाया। कब्जा, आशिकी, दिल है कि मानता नहीं जैसी फिल्में महेश ने इन्हें सलीम साहब की ही वजह से दीं। नाटकों के कारण ही इस्माइल श्रॉफ ने फिल्म थोडी सी बेवफाई और टीनू आंनद ने कालिया में काम दिया। मुंबई के शुरुआती दिनों में तो मुझे खास दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि मैंने बहुत सी उम्मीदें पाली ही नहीं थीं। मैंने मान लिया था कि मुश्ताक का सारा संघर्ष मेरा होगा। इसलिए जब इन्हें सफलता मिली तो मुझसे ज्यादा और कौन खुश हो सकता था!

लिव-इन का कोई अर्थ नहीं

मुश्ताक: यह सवाल बढिया भी है और खराब भी। नई पीढी के लोगों को मैं देख रहा हूं, मगर अपनी पीढी के अभिनेता शशि कपूर साहब का उदाहरण देता हूं। जेनिफर  के निधन के बाद से उनकी सेहत जो बिगडी तो फिर बिगडती गई। सलमा न होतीं तो मैं शायद अभिनय न कर पाता, न इतना हट्टा-कट्टा आपके सामने खडा हो पाता। कभी-कभी लगता है कि ये मुझे इतना क्यों टोकती हैं, फिर लगता है मेरी सेहत का खयाल है इन्हें, इसलिए टोकती हैं। जो बच्चे लिव-इन में रहते हैं, उन्हें एक-दूसरे का इतना खयाल कैसे हो सकता है! मेरी बात बुरी लग सकती है, मगर देखिए कैसे बिखर रहे हैं रिश्ते..।

सलमा :  मेरी राय इस मामले में थोडी सी अलग है। मुझे यह तो लगता है कि जिस चीज में व्यक्ति खुश हो, उसे वही करना चाहिए। लेकिन, मुझे यह नहीं समझ आता कि बिना योजना के जीवन कैसे जिया जा सकता है! जरा सी तुनकमिजाजी में अलग हो जाओ तो समझाने वाला या सलाह देने वाला कौन है कि ऐसा मत करो। मुझे लगता है कि पारिवारिक संस्कारों को आप खारिज नहीं कर सकते, वे बच्चों में आते ही हैं। मेरा बेटा पांचों वक्त की नमाज पढता है और मुश्ताक को भी सलाह देता है कि ये फिल्म करो या ये मत करो। लिव-इन का ट्रेंड अब तो मेट्रो शहरों से होकर छोटे शहरों तक भी पहुंच गया है।

रिलेशनशिप  एक ब्रेकिंग  न्यूज की तरह हो गया है। न लडके को फर्कपडता है और न लडकी को। इसे रोकने का मुझे तो कोई उपाय नहीं सूझता है।

समय ने हमें नहीं बदला

मुश्ताक: एक अभिनेता के तौर पर मैं जैसा कल था-वैसा ही आज भी हूं। चरित्र अभिनेता की भूमिका आज बदल गई है। युवा कास्टिंग डायरेक्टर आ गए हैं जिनके पास मैं काम मांगने नहीं जा सकता। ऊपर वाले का करम है कि काम मिल जाता है। कुछ पुराने दोस्त हैं। अनीस बज्मी की फिल्म वेलकम के बाद अब वेलकम बैक में काम कर रहा हूं। मिलन लूथरिया के पिता राज खोसला को मैं जानता था। अपने काम से संतुष्ट हूं। मैं मध्य प्रदेश का हूं। एक बार इंदौर में दुकान पर सॉक्स खरीदने गया। मोजे पैक करने के बाद दुकानदार से दाम पूछा तो वह बोला, जितने कहेंगे पैक कर दूंगा, मगर पैसा नहीं लूंगा। छोटे शहरों का प्यार मेरी पूंजी है।

सलमा :  समय के साथ हम आगे बढते गए हैं, मगर हमारा मन पहले जैसा ही है। हमारे बच्चों की सारी तालीम यहीं हुई है। बेटा फिल्म इंडस्ट्री में ही है। उससे मिलकर आपको लगेगा कि वह मुश्ताक से भी अधिक सहज है। हमसे भी उसका दोस्तान भाव रहता है और वह सामाजिक भी बहुत है। उसकी दोस्ती-यारी से हमें भी कोई दिक्कत नहीं है। मुझे लगता है, इंसान की नीयत अच्छी  होनी चाहिए, चीजें खुद बेहतर हो जाती हैं।

दुर्गेश सिंह


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