प्रेम में बंधन की कोई गुंजाइश नहीं: वाशु भगनानी-पूजा
नौवें दशक में गोविंदा, डेविड धवन और निर्माता वाशु भगनानी की जुगलबंदी ने कॉमेडी फिल्मों की एक अलग धारा फिल्म जगत को दी थी। आज भगनानी सफल फिल्मकार हैं। वर्ष 1995 में उनकी फिल्म 'कुली नंबर 1'आई। हाल में ही 'रंगरेज',' यंगिस्तान' और 'हमशक्ल्स' प्रदर्शित हुई हैं। उनकी हमसफर हैं
संघर्ष का लंबा दौर देखा है वाशु भगनानी ने। आज वह सफल फिल्म निर्माता हैं। सफलता का श्रेय वह पत्नी पूजा को देते हैं। वाशु और पूजा के मजबूत साथ ने ही एक-दूसरे को दी मुकम्मल जिंदगी। रिश्तों को लेकर इनकी साफ-स्पष्ट सोच है। मिलते हैं इस परिपक्व दंपती से।
शानदार एहसास है शादी
पूजा : शादी इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन रिश्ता है। शादी से ऐसा भरोसेमंद साथी मिलता है, जो किसी और रिश्ते में नहीं मिल सकता। शादी एक-दूसरे को पूर्ण करती है और जीवन में ख्ाुशियां लाती है। मुझे लगता है कि हमारे समाज में पुनर्विवाह का चलन बढऩा चाहिए। हमारे यहां आमतौर पर दूसरी शादी मुश्किल होती है। पर जिंदगी सिर्फ पैसे, ताकत या प्रतिष्ठा से नहीं चलती, एक अदद साथी की जरूरत जीवन के हर मोड पर पडती है। हां, शादी में जिम्मेदारियां होती हैं, मगर इसमें बंधन की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। जैसे घर में नन्हा मेहमान आता है तो उसके साथ जिम्मेदारियां भी बढती हैं, लेकिन उन्हें निभाने का अलग आनंद भी होता है। निजी, व्यावसायिक जीवन को शांत और संतुलित रखने में मदद करती है शादी।
वाशु : कहा गया है कि शादी ऐसा लड्डू है, जो खाए वो पछताए, जो न खाए वो भी पछताए। शादी दो व्यक्तियों ही नहीं, दो परिवारों का मेल है। यह ऐसा रिश्ता है, जिससे व्यक्ति को अपना विकास करने की प्रेरणा मिलती है। आजकल शादी को लेकर नई पीढी थोडी उलझी दिखती है। लडका-लडकी एक-दूसरे को आजमाने में लगे रहते हैं। वे सोचते हैं कि पहले पांच-सात साल एक-दूसरे को जानेंगे, फिर शादी का फैसला करेंगे। बुनियादी गलती यहीं होती है। रिश्तों में बहुत आजमाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, वरना वहीं से अविश्वास के घने-काले बादल रिश्तों के आसमान पर मंडराने लगते हैं।
रिश्ते को दें थोडा वक्त
पूजा : वैवाहिक जीवन के लिए परिवार में सभी को कोशिश करनी पडती है। घर में बेटी को आजादी मिले, मगर बहू पर बंदिशें लगाई जाएं तो घर की सुख-शांति भंग होती है। यही बंदिशें आजकल नई लडकियों को डराने लगी हैं, इसलिए वे शादी से भागने लगी हैं।
वाशु : किसी भी रिश्ते को समय चाहिए। एक-दूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए। ऐसे में थोडा धैर्य जरूरी है। एक-दूसरे का हाथ बंटाना चाहिए, तभी बात बनती है।
एक-दूसरे को जानना-समझना जरूरी
वाशु : मुझे लगता है कि एक-दूसरे को समझने के लिए एकाध मुलाकात काफी नहीं होती। एक-दूसरे से मिलनेे-जुलने और लगातार संवाद करते रहने से दूसरे के बारे में पता चल सकता है। सीधी सी बात है, जो एक बार मिलने आया है, वह तो सेल्समेन है, वह तो ख्ाुद को बेचने आया है। अपनी मार्केटिंग करेगा ही।
पूजा : वाशु जी ने सही कहा है। परंपरागत शादियों में भी जब देखने-दिखाने की रस्म हो, अपने दिल व दिमाग पर भरोसा रखेें और सोच-समझ कर फैसला लें। यदि आपने शिद्दत से सच्चे व्यक्ति की तलाश की है तो वह आपको जरूर मिलेगा।
प्यार में अहं की जगह नहीं
पूजा : प्यार सच्चा है तो लडकी को लडके के संघर्ष में भी साथ देना चाहिए। बुरे वक्त में ही हमसफर की अग्नि-परीक्षा होती है। घर चलाने के लिए दोनों नौकरी कर रहे हैं तो दोनों का अधिकार होना चाहिए पैसे पर। यहां अहं को आडे नहीं आने देना चाहिए। दोनों का दिमाग खुला होना चाहिए। दूसरे के प्रयासों में मदद करने की मंशा हो और परस्पर भरोसा हो। हमने रिश्ते पर भरोसा किया, नतीजा यह हुआ कि वाशु का काम आगे बढा और हर फ्रंट पर सफलता मिलने लगी। हमारे परिवार में दो नन्हे फरिश्ते भी आए।
वाशु : बिलकुल सही, संघर्ष में जो साथ दे, वही सच्चा साथी है। मैं मानता हूं कि आज के समय में रुपये-पैसे के मामले में तेरा-मेरा वाली बात निरर्थक है। दोनों साथ मिल कर घर चला रहे हैं, दोनों को ही घर की जिम्मेदारियां मिल कर उठानी चाहिए। कई लोग कहते हैं कि व्यवस्थित हो जाएं, तभी शादी करेंगे। मगर मुझे लगता है कि संघर्ष के दौर में भी शादी की जा सकती है, बल्कि दो लोगों के मिलने से व्यक्ति की ताकत दुगनी हो जाती है। अपनी बात करूं, शादी से पहले हम चार भाई और पूरा परिवार किराये के घर में रहता था। मेरी शादी हुई तो घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। रंगीन टीवी के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। शादी के बाद जिम्मेदारियां बढीं तो मेहनत करने की प्रेरणा मिली और हमारा जीवन-स्तर बढा। इसके लिए मैं पूजा को पूरा श्रेय देना चाहता हूं।
नोंक-झोंक तो है जरूरी
वाशु : हर रिश्ते में नोक-झोंक होती है। यह स्वाभाविक है कि साथ रहेंगे तो मतभेद भी होंगे। मेरी जैसी स्थितियों में तो यह और भी स्वाभाविक है, जहां इंसान रंक से राजा बना हो। मैं कहना चाहता हूं कि उन्नति से व्यक्ति में दंभ पैदा होता है, मगर अपने पुराने दिनों को कभी नहीं भूलना चाहिए।
पूजा : बिलकुल, मुझे लगता है कि रिश्ते में डैमेज कंट्रोल का गुर सीखना चाहिए। हालात बिगडऩे लगें तो उनसे सावधानी से निपटें और घर के झगडे घर के भीतर ही सुलझा लिए जाएं। इन्हें बाहर न निकलने दिया जाए।
इतनी आजमाइश ठीक नहीं
वाशु : रिश्ते में एक-दूसरे को आजमाते रहेंगे तो कभी भरोसा नहीं पनपेगा। शुरुआती दौर में ऐसा हो सकता है, मगर वफादारी, भरोसा और परस्पर सम्मान जरूरी है। किसी को इतना भी न परखें कि रिश्ते की बुनियाद ही हिलने लगे।
पूजा : मुझे लगता है कि अपने एहसासों और मन पर भरोसा होना चाहिए। सामने वाले के बारे में क्या सोचते हैं, इस बारे में अपने दिल से पूछें। दिल को महसूस हो कि सामने वाला दगाबाज है तो उसे छोड दें। बार-बार आजमाने से स्थितियां नहीं सुधरतीं। सामने वाला गलती सुधारना चाहे तो उसे मौका दें, मगर बार-बार गलती न करने दें।
वाशु : यहां मैं पूजा की बात को काटूंगा। मैं मानता हूं कि कुछ लोग गलती करते हैं। यदि एक बार मौका दिया जाए और उनकी गलती माफ की जाए तो वे सुधर सकते हैं। कुछ लोग दो-तीन गलतियों के बाद सबक लेते हैं।
पूजा : हां, मगर इतना भी न हो कि सामने वाला बार-बार गलती करे और आप उसे मौके देते रहें। संभलने वाला हो तो एक बार में ही संभल जाता है। आजकल तो मुझे हैरानी होती है कि बहुत देखने-समझने के बाद लोग प्रेम विवाह करते हैं और वहां भी तलाक हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि कहीं न कहीं आपकी समझ कम है।
वाशु : हां, यह बात सही है। मिसाल के तौर पर मान लें कि मैं बडा चालाक हूं। फिल्में बना रहा हूं, खूब कमा रहा हूं। मेरी दस-पंद्रह गर्लफ्रेंड्स भी हैं, मगर मेरी पत्नी मुझ पर कभी शक नहीं करती तो कभी न कभी मुझे ख्ाुद पर शर्म आएगी और फिर जब मेरी घर वापसी होगी, मैं बिलकुल नया बन कर लौटूंगा एक अलग रूप में...। वैसे मुझे लगता है कि शादी उसी से करें जो वफादार हो। इंसान को पहचानना बहुत जरूरी है।
सरल मध्यवर्गीय ख्वाहिशें
पूजा : मैं लखनऊ की हूं। वहीं क्राइस्ट चर्च कॉलेज में पढाई-लिखाई हुई है। हमारी शादी वर्ष 1983 में हुई। इनसे मुलाकात वर्ष 1982 में हुई थी। हम छह बहनें हैं। मैं 10 साल की थी, तभी पिता गुजर गए। मां ने हम बहनों की जैसे-तैसे शादी की। तब कोई नहीं जानता था कि मेरे पति कभी इतने बडे निर्माता बन जाएंगे। मैंने इनके सामने अपनी दो इच्छाएं जताई थीं। एक थी- अमिताभ बच्चन साहब से मिलना और दूसरी यह कि एक बार स्विटजरलैंड जाना है।
वाशु : बच्चन साहब वाली ख्वाहिश मुझे असंभव लगती थी। मगर फिल्म 'बडे मियां-छोटे मियां' में मौका मिला। एक दिन उन्होंने कहा कि कभी पत्नी को साथ लेकर आइए। बस, पूजा की ख्वाहिश पूरी हो गई।
पूजा : वाशु रिश्तों की कद्र करना जानते हैं। आउटडोर शूटिंग्स में मुझे साथ ले जाते हैं। हम कितने भी व्यस्त हों, इनकी कोशिश होती है कि रात का खाना हम साथ खाएं।
अमित कर्ण