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प्रेम का जुनून है मांझी

प्रेम का जुनून, लाचारी से उपजी ज़्िाद, पहाड़ के सामने पहाड़ जैसी इच्छाशक्ति... इश्क की पराकाष्ठा का नाम है दशरथ मांझी। हाल-िफलहाल आई केतन मेहता की फिल्म 'मांझी' मौजूदा दौर की चंद यादगार फिल्मों में शुमार रहेगी। नवाजुद्दीन सिद्दीकी और राधिका आप्टे के दमदार अभिनय से सजी इस फिल्म के

By Edited By: Published: Sat, 24 Oct 2015 04:35 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2015 04:35 PM (IST)
प्रेम का जुनून है मांझी

प्रेम का जुनून, लाचारी से उपजी ज्िाद, पहाड के सामने पहाड जैसी इच्छाशक्ति... इश्क की पराकाष्ठा का नाम है दशरथ मांझी। हाल-िफलहाल आई केतन मेहता की फिल्म 'मांझी' मौजूदा दौर की चंद यादगार फिल्मों में शुमार रहेगी। नवाजुद्दीन सिद्दीकी और राधिका आप्टे के दमदार अभिनय से सजी इस फिल्म के बारे में बता रहे हैं अजय ब्रह्म्ाात्मज।

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इस साल की चंद यादगार फिल्मों में से एक है 'मांझी। यह बिहार के गया जिले में स्थित गांव गहलौर निवासी दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित है। फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मांझी और राधिका आप्टे ने उनकी पत्नी फगुनिया की भूमिका निभाई है।

दशरथ मांझी ने अपने गांव से पास के कस्बे तक जाने के लिए पहाड काट कर रास्ता बनाया था। उनके प्रयास से 55 किलोमीटर की दूरी घट कर 15 किलोमीटर हो गई थी। पहाड काटने के लिए उन्होंने भारी मशीन या बुलडोजर नहीं, हथौडी और छेनी का इस्तेमाल किया। लगभग 22 सालों में उन्होंने अपनी ज्िाद को अंजाम दिया। लोगों ने उन्हें पागल और सनकी कहा, लेकिन वे अपने काम में लगे रहे। इस देसी नायक को सही पहचान उनकी मृत्यु के बाद मिली।

बीसवीं सदी के जुनूनी प्रेमी

केतन मेहता ने दशरथ मांझी के जीवनकाल में ही उनसे उनके जीवन पर फिल्म बनाने की मंजूरी ली थी। वर्ष 2007 में उनकी मृत्यु के बाद अचानक अनेक फिल्मकारों का मांझी पर ध्यान गया। कुछ ने उनके जीवन पर डाक्यूमेंट्री बनाई और संजय झा मस्तान और केतन मेहता ने फिल्म की तैयारी शुरू कर दी। मांझी के जीवन पर सबसे पहले गया निवासी लेखक शैवाल ने कहानी लिखी थी। संयोग ऐसा कि मांझी के जीवन पर रिसर्च करने गए सभी व्यक्तियों ने शैवाल से मुलाकात की। वे केतन मेहता के सलाहकार भी रहे। उनके अनुसार, 'मांझी ने पहाड काटने जैसा श्रमसाध्य काम प्रेम के वशीभूत होकर किया। वह 20 वीं सदी के जुनूनी प्रेमी हैं। उनके जीवन पर लिखने या फिल्म बनाने वालों को उनके प्रेम की सार्वजनिकता पर ग्ाौर करना चाहिए। अगर कोई उन्हें सिर्फ पहाड काट कर रास्ता बनाने वाले व्यक्ति के तौर पर याद करता है तो उनके जीवन के मर्म को नहीं समझ सकता।

एक अनूठी कहानी

'मांझी के निर्देशक केतन मेहता ने कला फिल्मों से शुरुआत की। उन्होंने 1993 में पहली बॉयोपिक 'सरदार का निर्देशन किया था। सरदार पटेल के जीवन पर आधारित इस फिल्म से पहले वे 'भवनी भवाई, 'होली और 'मर्च मसाला जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके थे और पुरस्कृत भी हुए थे। उन्होंने 'मांझी के पहले और भी बॉयोपिक बनाए। आमिर ख्ाान के साथ उन्होंने 'मंगल पांडे : द राइज्िांग और पेंटर राजा रवि वर्मा के जीवन पर केंद्रित 'रंगरसिया का भी निर्देशन किया। केतन मेहता ने मांझी के जीवन पर फिल्म बनाने की चुनौती ली। बाकी सारी हस्तियां चर्चित थीं। उन पर पर्याप्त शोध और सामग्रियां उपलब्ध थीं, लेकिन मांझी पर अलग से रिसर्च करना पडा।

केतन बताते हैं, 'मुझे मांझी की ज्िाद ने प्रभावित किया। वह एक सुपरमैन हैं। उनमें इश्क की दीवानगी है और कुछ कर गुज्ारने का जुनून है। पहाड काट कर रास्ता बनाने की ज्िाद है तो नामुमकिन को मुमकिन बनाने का जज्बा भी है। यह पॉवरफुल कहानी है।

ज्िाद की जीत

केतन मेहता उनकी तुलना किसी रॉकस्टार से करते हैं। वे कहते हैं, 'हार न मानने के उनके जोश ने मुझे प्रेरित किया। मैंने फिल्म में उसी जोश को बनाए रखा है। उन्होंने पहाड क्यों काटा? यह तो मुहब्बत की इंतहा है कि कोई 22 सालों तक पहाड काटता रहे और पुरस्कार और सम्मान की इच्छा भी न रखे।

फिल्म में ऐसे कई प्रसंग आते हैं, जहां मांझी विकल होते हैं, लेकिन अगले ही दृश्य में नए जोश के साथ भिड जाते हैं। 'मांझी के संघर्ष और जोश को नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बारीकी से पकडा है। वे जब पहाड को चुनौती देते हैं तो उनकी आवाज्ा घाटी में गूंजती है। केतन मेहता ने पहाड और व्यक्ति को इस तरह आमने-सामने पेश किया है, मानो वे दो किरदार हों। दैत्याकार पहाड को चुनौती देते मांझी की आंखों में भविष्य की जीत का आत्मविश्वास है। नवाजुद्दीन ने इस आत्मविश्वास को आवाज्ा और बॉडी लैंग्वेज के साथ अच्छी तरह पेश किया है।

बरसों पहले बनी योजना

इस फिल्म के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी और केतन मेहता की मुलाकात 2008 में ही हो गई थी। तब नवाज उतने लोकप्रिय नहीं थे। केतन मेहता की पारखी नज्ार ने नवाज की प्रतिभा पहचानी। नवाजुद्दीन बताते हैं, 'मांझी के देहांत के बाद मुझे उनके बारे में पता चला। तब दो-चार लोग उन पर फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे थे। दो ने अप्रोच भी किया, मगर फिर वे ग्ाायब हो गए। इस बीच केतन मेहता से मुलाकात हुई। तब मैं 'गैंग्स ऑफ वासेपुर की शूटिंग कर रहा था। मैं पहले मांझी पर बनी डाक्यूमेंट्री और विडियो देख चुका था। मैंने तुरंत हां कर दी। दो महीने बाद शूटिंग आरंभ हो गई। कम ही लोग जानते हैं कि बनने के बाद भी फिल्म कुछ महीनों तक रिलीज्ा का इंतज्ाार करती रही। वितरकों का इस पर विश्वास नहीं था। इस बीच नवाजुद्दीन सिद्दीकी की सलमान ख्ाान के साथ 'किक और 'बजरंगी भाईजान आई। इनकी कामयाबी से बाज्ाार में नवाज का कद बढा। वे बेहिचक कहते हैं, 'फिल्म साइन करने और रिलीज्ा होने तक वक्त काफी बदल चुका था। इस बीच पॉपुलर फिल्मों से मेरी पहचान बढी। उसका फायदा फिल्म को मिला। मैंने अपने समकालीन और पहले के अभिनेताओं की कामयाबी और पतन से सीखा है। मैं उन ग्ालतियों से बचना चाहूंगा। मैं बडी फिल्में साइन करने से पहले तीन बार सोचता हूं।

रिलीज्ा के कुछ हफ्ते पहले यह फिल्म लीक हो गई थी। सभी डरे हुए थे कि फिल्म के बिज्ानेस पर इसका असर पडेगा। पहले ही देख चुके दर्शक भला क्यों 'मांझी जैसी फिल्म बडे पर्दे पर देखने आएंगे? दर्शकों की स्वीकृति और इसकी कामयाबी ने सभी को चौंका दिया।

अजय ब्रह्म्ाात्मज


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