हाईवे: बंद जिंदगी से आजादी की कहानी
डायरेक्टर इम्तियाज अली ने जब वी मेट, लव आजकल और रॉक स्टार जैसी फिल्में दी हैं। इस बार आई फिल्म हाईवे को भी दर्शकों ने अच्छी प्रतिक्रियाएं दी हैं। प्रेम का अद्भुत संसार रचती हैं इम्तियाज की फिल्में। यहां प्रेम अपने होने का शोर भले ही न करे, लेकिन एहसासों में मौजूद होता है। कैसे बनी फिल्म, बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।
फरवरी महीने में आई इम्तियाज अली की फिल्म हाईवे को दर्शकों व समीक्षकों ने समान रूप से पसंद किया। उनकी पांचवीं फिल्म हाईवे पिछली फिल्मों की तुलना में बजट, स्टार और विषय के लिहाज से अपेक्षाकृत छोटी थी। इसमें नवोदित अभिनेत्री आलिया भट्ट और एक दशक से हाशिये पर मौजूद रणदीप हुड्ड ा की जोडी बनाई थी। निर्माण के समय से ही यू ट्यूब पर जारी हाईवे डायरी से इम्तियाज अली ने फिल्म का मूड जाहिर करने के साथ दर्शकों को निमंत्रण देना शुरू कर दिया था। उनकी सभी फिल्मों में प्रेम शब्द के रूप में अनुपस्थित रहता है। कोई भी किरदार मैं तुमसे प्यार करता हूं नहीं कहता। गुलजार के शब्दों में कहें तो इम्तियाज अली की फिल्मों में प्यार को रसिक रूह से महसूस कर सकते हैं। गीतकार इरशाद कामिल भी गीतों में प्यार, इश्क, मुहब्बत, लव जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते। इम्तियाज अली की फिल्में प्रेम का अद्भुत संसार रचती हैं।
मनपसंद विषय
करियर के आरंभ में टीवी के लिए काम करते समय इम्तियाज ने जी टीवी के लिए रिश्ते के अंतर्गत दो किरदारों वीरा और विजय को लेकर एक शो तैयार किया था। वीरा समृद्ध परिवार की लडकी थी, जबकि विजय अपराधी सरगना था। यह कार्यक्रम विपरीत स्वभाव के दो किरदारों के आकर्षण और प्रेम पर आधारित था। इम्तियाज अली इन्हीं किरदारों को लेकर अपनी पहली फिल्म बनाना चाहते थे। ऐसा नहीं हो सका। वह कहते हैं, तब यह संभव नहीं था। मैं अपनी मर्जी के विषय पर फिल्म नहीं बना सकता था। फिल्म बनाने के लिए मुझे कुछ सफल फिल्में बनानी पडीं। जब वी मेट और लव आजकल की कामयाबी के बाद रॉकस्टार और हाईवे में पुरानी कहानियों को चुना। मुझे विश्वास था कि वीरा और महावीर की कहानी दर्शकों को पसंद आएगी।
फेस्टिवल टाइप नहीं
वह फिर कहते हैं, भारत में हाईवे की रिलीज के पहले इसे बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया। पहले तो मुझे उनके निमंत्रण पर आश्चर्य हुआ, क्योंकि लोगों के मुताबिक मैं बिका हुआ कमर्शियल फिल्ममेकर हूं, जो हिंदी की मसाला फिल्में बनाता है। बहरहाल बर्लिन में दर्शकों की भीड व उत्साह देखकर मुझमें नई हिम्मत आई। पहले मैं अनुराग कश्यप से ईष्र्या करता था कि वे फेस्टिवल दर फेस्टिवल घूमते रहते हैं। अब लगता है कि मैं भी अपनी फिल्में लेकर फेस्टिवल में जा सकता हूं। फेस्टिवल में मुझे कोई बुलाता नहीं था। अब मेरी घबराहट कम हो गई है।
आम भाषा में अपनी बात
इम्तियाज अपनी पीढी के अन्य निर्देशकों से थोडे अलग हैं। शुरू से ही उनकी कोशिश रही कि वे मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा का हिस्सा बनें। जब वी मेट की सफलता के बाद उन्हें बगलें झांकने की जरूरत नहीं रही। उन्हें सफल और संवेदनशील फिल्मकार मान लिया गया। बाद की फिल्मों में भी उन्होंने साबित किया कि हिंदी फिल्मों के ढांचे में रहते हुए वे एक जैसी कहानियां बार-बार सुना सकते हैं। हर बार उनका अंदाज थोडा बदलता है और किरदार भी, लेकिन तह में उतर कर देखें तो उनके किरदार स्वभाव और व्यवहार में खुद को रिपीट कर रहे होते हैं। मजेदार तथ्य यह है कि दर्शकों को रिपीटिशन में भी नवीनता दिखती है। उनकी फिल्मों की काल्पनिक दुनिया में अडोस-पडोस के वास्तविक किरदार होते हैं। उनकी बोली और भाषा आम दर्शकों के बीच से ली हुई होती है। उन्होंने कभी बडे विचार और उद्देश्य का दावा नहीं किया। वे कहते हैं, मैं शुरू से ही स्पष्ट रहा हूं कि मुझे हिंदी में हिंदुस्तानियों के लिए हिंदी सिनेमा बनाना है। मेरे लिए बाकी चीजें मैटर नहीं करतीं। बर्लिन में हाईवे को मिली प्रशंसा से इम्तियाज की जिद ढीली हुई है। उन्हें यह भी लगा कि देश हो या विदेश, गांव-कस्बा या महानगर हर जगह के दर्शक लगभग एक तरीके से रिएक्ट करते हैं।
कहानी कुछ हट कर
इम्तियाज अली रणबीर कपूर के साथ एक बडी फिल्म की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन रणबीर ी व्यस्तता की वजह से शूटिंग की तारीखें तय नहीं हो पा रही थीं। खालीपन में इम्तियाज अली ने रिश्ते की स्क्रिप्ट को झाड-फूंक कर ताजा किया और उसे फिल्म में ढाला। पहले इरादा था कि स्क्रिप्ट के मुताबिक पूरी शूटिंग की जाए। बाद में इम्तियाज ने महसूस किया कि ऐसा करना मुमकिन नहीं होगा। इस वजह से उन्होंने फिल्म की कहानी का खाका तैयार किया और शूटिंग के स्थानों के हिसाब से परिवर्तन के लिए तैयार होकर निकले। फिल्म की नायिका वीरा शादी के समय अपने मंगेतर के साथ खुली हवा में सांस लेने के इरादे से निकलती है और एक पेट्रोल पंप पर अगवा कर ली जाती है। उसे अगवा करने वालों को बाद में पता चलता है कि वह रसूखदार शख्स एम.के. त्रिपाठी की बेटी है। गिरोह का एक सदस्य वीरा को वापस करने की बात कहता है, पर अगवा करने वाला महावीर भाटी मना कर देता है। महावीर को अतीत के अनुभवों के चलते अमीरों से नफरत है। वह यहां तक कह देता है कि उसका माथा ठनका तो वीरा को कोठे पर बेच भी सकता है। हालांकि वह वैसा नहीं करता है। फिरौती वसूलने के इरादे से वीरा को ट्रक में छिपा हाईवे के रास्ते विभिन्न राज्यों में छिपता-फिरता है। इम्तियाज अली ने फिल्म की शूटिंग की प्लानिंग महावीर के रास्ते के मुताबिक की। लोकेशन की नवीनता और मौसम की अस्थिरता से दृश्य संरचना पहले से नहीं की जा सकती थी। इम्तियाज बताते हैं, कई बार हमने मौसम के मिजाज से स्क्रिप्ट में तब्दीली की। मैं सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता को धन्यवाद दूंगा कि वे हर स्थिति के लिए तैयार रहते थे। पहली बार मैंने फिल्म में डिजिटल कैमरे का प्रयोग किया।
आजादी का स्वर
इम्तियाज के मुताबिक, जब हम प्राकृतिक स्थितियों में आते हैं तो हमारा चित्त भी प्राकृतिक हो जाता है। फिल्म की नायिका वीरा के साथ ऐसा ही होता है। शुरू में वह ख्ाुद को असुरक्षित व अपहृत महसूस करती है। कुछ दिनों के बाद उसे यही अच्छा लगने लगता है। फिल्म का मुख्य विचार यह है कि जब आप समाज की आदतों से बाहर निकलते हैं तो स्वाभाविक प्रकृति में आ जाते हैं। शहरी समाज में हम भिन्न-भिन्न आदतों और बंधनों की वजह से घुटे-घुटे फिरते हैं। वीरा भी घुटन से मुक्त होते ही स्वच्छंद हो जाती है। कहते हैं, सच कहूं तो फिल्में लिखते या बनाते समय मैं किसी सोच और खोज में रहता हूं। कह नहीं सकता कि फिल्म निर्माण के बाद मेरी खोज मुकम्मल हो जाती है। पुरानी फिल्मों को देखने पर लगता है कि सब कुछ तो आधा-अधूरा ही रह गया।
आलिया का मेकओवर
इस फिल्म के लिए वीरा के लिए आलिया भट्ट के चुनाव को वे सबसे सही फैसला मानते हैं। निर्देशक महेश भट्ट की बेटी आलिया बचपन से मुंबई के जुहू इलाके में सुरक्षित माहौल में पली हैं। देश-दुनिया से उनकी प्रगाढता नहीं है। लेकिन इस फिल्म से उनके व्यक्तित्व में वीरा जैसा ही बदलाव आया। उन्होंने देश को करीब से देखा और समझा। इम्तियाज कहते हैं, आलिया का आत्म-साक्षात्कार फिल्म के लिए बहुत उपयोगी रहा। उनके साथ रणदीप हुडा थे, जिनकी पृष्ठभूमि आलिया जैसी संभ्रांत नहीं रही है। हाईवे के किरदार विपरीत स्वभाव के थे। मेरे दोनों कलाकार भी विपरीत स्वभाव के निकले। चरित्र निर्वाह के लिए अलग से कुछ नहीं लिखना पडा।
इस फिल्म का गीत-संगीत भी फिल्म के थीम के मुताबिक स्वच्छंद और भावपूर्ण है। इरशाद कामिल ने विभिन्न प्रदेशों की भाषाओं के शब्दों से गीत रचे। दूसरी तरफ ए.आर. रहमान ने उन प्रदेशों की ध्वनियां लेकर उन गीतों को सजाया।
अजय ब्रह्मात्मज