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आम स्त्रियों का दर्द हमारी अधूरी कहानी

महेश भट्ट कैंप के डायरेक्टर मोहित सूरी की फिल्म 'हमारी अधूरी कहानी' शादी और प्रेम के द्वंद्व में घिरी परित्यक्त स्त्री की कहानी है। यह एक संयोग ही था कि विद्या बालन इस फिल्म में आईं जो हमेशा महेश भट्ट के साथ काम करने की ख़्वाहिश रखती थीं। फिल्म की

By Edited By: Published: Sat, 25 Jul 2015 02:46 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2015 02:46 PM (IST)
आम स्त्रियों का दर्द हमारी अधूरी कहानी

महेश भट्ट कैंप के डायरेक्टर मोहित सूरी की फिल्म 'हमारी अधूरी कहानी' शादी और प्रेम के द्वंद्व में घिरी परित्यक्त स्त्री की कहानी है। यह एक संयोग ही था कि विद्या बालन इस फिल्म में आईं जो हमेशा महेश भट्ट के साथ काम करने की ख्वाहिश रखती थीं। फिल्म की कहानी उन्हीं की लिखी हुई है। इस फिल्म के बारे में बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

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शबाना आज्ामी की फिल्म 'अर्थ देख कर फिल्मों में आई विद्या बालन की दिली ख्वाहिश थी कि कभी महेश भट्ट के निर्देशन में काम करने का मौका मिले। ऐसा संभव नहीं था, क्योंकि भट्ट साहब ने 'ज्ाख्म के बाद निर्देशक की कुर्सी त्याग दी थी। इस बीच भट्ट कैंप से जिस तरह की युवा फिल्में आ रही थीं, उन्हें देखते हुए यह सोचना संभव नहीं था कि कभी विद्या बालन उनकी फिल्म की हीरोइन हो सकती हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सुयोग के अनेक िकस्से सुनाई पडते हैं। ऐसा ही एक िकस्सा विद्या बालन और महेश भट्ट का है।

संयोग से मिला मौका

अपने देवर आदित्य रॉय कपूर की फिल्म 'आशिकी 2 की स्पेशल स्क्रीनिंग से निकल रही विद्या बालन ने निर्देशक मोहित सूरी से कहा कि कभी अपनी किसी फिल्म के लिए मेरे बारे में सोचना। शर्मीले स्वभाव के मोहित सूरी ने अनिश्चय की फीकी हंसी के साथ सहमति में सिर हिलाया। विद्या ने गंभीरता के साथ आग्र्रह किया था। फिर भी वह जानती थीं कि मोहित सूरी की फिल्मी योजनाओं में उनका आना मुमकिन नहीं होगा। बात आई-गई हो गई थी। विद्या काम में मशगूल हो गईं और मोहित सूरी 'एक विलेन में जुट गए थे। इसी दरम्यान एक दिन महेश भट्ट का फोन आया। उन्होंने विद्या से पूछा कि क्या तुम सचमुच मोहित के साथ काम करना चाहती हो। उन्होंने यह बताया कि मैं ख्ाुद यह फिल्म लिख रहा हूं। इसकी नायिका के तौर पर मैं अभी सिर्फ तुम्हें देख रहा हूं। विद्या ने बगैर स्क्रिप्ट सुने हां कर दी। उन्होंने फिल्म के प्रचार के समय यह बात बार-बार दोहराई कि 'हमारी अधूरी कहानी ने उनकी पुरानी ख्वाहिश पूरी कर दी।

रिश्ते और प्रेम का द्वंद्व

'हमारी अधूरी कहानी वसुधा के प्रेम और द्वंद्व की कहानी है। परित्यक्त जीवन जी रही वसुधा की ज्िांदगी अपने बेटे तक सिमटी है। अपनी इच्छाओं को उसने कुचल कर दफ्न कर दिया है। तभी उसके जीवन में आरव का आगमन होता है। वसुधा की इच्छाएं जागती हैं। पुन: प्रेम पनपता है। वह आरव के साथ नई ज्िांदगी शुरू करने ही वाली होती है कि उसके पति हरि की वापसी हो जाती है। हरि दकियानूसी मर्द है। वह वसुधा पर अपना अधिकार जमाता है। वह नहीं चाहता कि वसुधा उसे छोडकर किसी और की ज्िांदगी में शामिल हो जाए। वसुधा का किरदार भी रूढिग़्र्रस्त है। दरअसल वसुधा आम मिडिल क्लास भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती है, जो परंपरा और रूढिय़ों में जकडी हुई हैं। ये स्त्रियां जीवन की चक्की में पिसती रहती हैं। 'हमारी अधूरी कहानी में वसुधा की यह पीडा उभरकर सभी किरदारों की ज्िांदगी में उदासी भर देती है। विद्या बालन ने इस आकुल-व्याकुल महिला के किरदार को बहुत अच्छी तरह निभाया है।

महेश भट्ट कहते हैं, 'मैंने उन्हें तीन किरदारों के ज्ारिये कहा है। उन किरदारों को विद्या बालन, इमरान हाशमी और राजकुमार राव निभा रहे हैं। विद्या के अंदर सती और सीता है। राधा बनने की प्यास भी है। अपनी यात्रा में वह दुर्गा मां भी बन जाती है। केेंद्रीय कथा विद्या के दृष्टिकोण से कही गई है। वह बराबर का दर्जा चाहती है। 'हमारी अधूरी कहानी प्रासंगिक फिल्म है। 'अर्थ की शबाना आज्ामी में विद्रोह था, लेकिन यहां विद्या पति से जूझती है। यह हिंदुस्तानी दायरे की औरत के विद्रोह की कहानी है। वह अपनी मुक्ति को पश्चिमी संदर्भ से परिभाषित नहीं कर रही है। वह मूलभूत सवाल पूछती है। वह जानना चाहती है कि शादी के बाद पति का नाम उसके जिस्म एवं रूह में क्यों भर दिया जाता है। मेरे बचपन की यादें हैं। जिन औरतों से मेरा प्रेम हुआ, उन सभी में मैंने अपनी मां का अंश देखा। सभी तन्हा मिलीं। मुझे तन्हा छोड गईं। कुछ लोग कहते हैं कि मैं स्त्रियों के नज्ारिये से ही कहानी कहता हूं।

आम स्त्रियों की कहानी

विद्या बालन कहती हैं, 'मुझे भट्ट साहब ने बताया था कि वसुधा सीता, राधा व दुर्गा की मिली-जुली अवतार है। उन्होंने कहा था कि प्यार इंसान को आज्ााद करता है। बांधे तो प्यार नहीं है। मैं भी निजी तौर पर ऐसा ही मानती हूं। मुझे यह विचार अच्छा लगा। वसुधा को लेकर मन में कई सवाल थे। भट्ट साहब से मैंने पूछा कि वसुधा काम करती है। बच्चे को अकेले पाल रही है। इसके बावजूद क्यों ऐसे रिश्ते में बंधी हुई है, जिसमें उसका पति पांच साल से ग्ाायब है। भट्ट साहब का सीधा सा जवाब था कि हिंदुस्तान की हर दूसरी औरत की यही कहानी है। परित्यक्त होने के बाद भी वह पति के नाम का सिंदूर मांग में भरती है और इस उम्मीद में रहती है कि किसी दिन उसका पति लौटेगा। भट्ट साहब की बात सुनने के बाद मैंने आसपास देखा तो कई सहेलियों व परिचितों की ज्िांदगी में इसकी झलक दिखी।

भावनाओं पर नियंत्रण

किरदार को समझने के बाद विद्या बालन ने मोहित सूरी की हिदायतों को माना। कहती हैं, 'मोहित अलग तरह के निर्देशक हैं। वे नहीं चाहते कि कलाकार बहुत तैयारी करके सेट पर आए। उनसे बातचीत होती थी तो किरदार और शूटिंग का ज्िाक्र नहीं आता था। अगर उनके साथ आप दो घंटे के लिए बैठे हों तो उसमें सिर्फ पंद्रह मिनट ही वे फिल्मों की बात करते हैं। कम लोग जानते हैं कि शूटिंग के पहले अनुभवी कलाकार भी घबराए रहते हैं। ख्ाासकर यदि निर्देशक एवं कलाकार पहली बार साथ काम कर रहे हों तो संबंध और समझदारी में अनेक मुश्किलें आती हैं। ट्रीटमेंट, परफॉर्मेंस में ये उलझनें सामने आती हैं। विद्या फिर कहती हैं, 'मोहित ने एक बारीक बात बताई थी। उन्होंने कहा कि वसुधा किसी भी सीन में आसानी से रो सकती हैं, लेकिन मुझे तुम्हारे आंसू नहीं चाहिए। तुम्हें रोना नहीं है। ऐसे दृश्यों में ख्ाुद को रोक पाना कितना मुश्किल होता होगा।

चुनौती भरे दृश्य

विद्या बताती हैं, 'इंटरवल के बाद मैं रेगिस्तान में पैदल चली जा रही हूं। पीछे से इमरान गाडी से आते हैं। शूटिंग आरंभ होने के पहले सात दिनों में ही इस सीक्वेंस को शूट कर लिया गया। तब तक कैरेक्टर स्केच अच्छी तरह डेवलप नहीं हुआ था। उस लोकेशन के तुरंत बाद हमें दक्षिण अफ्रीका जाना था। मेरे लिए मुश्किल थी कि इंटरवल के बाद के उस सीन के इमोशन की ऊंचाई को कैसे पकडूं। दर्शक नहीं जानते कि फिल्मों की शूटिंग दृश्यों के क्रम में नहीं होती। फिर भी हमें कैरेक्टर ग्राफ का अंदाज्ाा होता है। यहां भट्ट साहब और मोहित ने हमें भावनाओं के भंवर में छोड दिया था। पहले दिन सीन पूरा होने के पहले ही सूरज डूब गया। अगले दिन इमोशन को वहीं से शुरू करना था। दर्शकों को देखते समय अंदाज्ाा नहीं होता कि वे जो दृश्य देख रहे हैं, वह वास्तव में टुकडों-टुकडों में फिल्माया गया है। उस सीन में मैं नाराज्ा थी, लेकिन इसे ज्ााहिर नहीं कर सकती थी, क्योंकि आरव मेरे प्रेमी होने के साथ ही मेरे बॉस भी थे। अभी हमारा रिश्ता परिभाषित नहीं हुआ था, इसलिए मैं हक भी नहीं जमा सकती थी। वास्तव में वसुधा पति नाम के खूंटे से बंधी है और प्रेमी को भी पाना चाहती है। इस दुविधा व आत्मग्लानि में वह ख्ाुद से नाराज्ा है। वह अपनी नाराज्ागी आरव पर थोपती है, लेकिन उसे खुल कर ज्ााहिर नहीं कर पाती। विद्या मानती हैं कि उनके लिए यह चैलेंजिंग सीन था। राजकुमार के साथ उन्हें मुश्किल दृश्य मिले। एक सीन में वह राजकुमार को झटकती हैं और फिल्म के थीम संवाद बोलती हैं। विद्या बताती हैं, 'उस दिन संयोग से भट्ट साहब सेट पर आए थे। उन्होंने सीन पूरे जोश में सुनाया और फिर बोले, मैं तो निकल रहा हूं। तुम लोग देख लो। उनके निकलने से मुझे राहत मिली। सच कहती हूं, कि मैंने भट्ट साहब का अंदाज्ा पकडा और एक टेक में ही वह सीन कर लिया। मोहित के कट कहने के बाद भी मैं स्तब्ध खडी थी, जब तालियां बजीं, तब होश में आई।

अजय ब्रह्मात्मज


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