मासूम प्रेम की कहानी डीडीएलजे
हाल-हाल तक मुंबई के एक सिनेमाघर में यह फिल्म चलती रही। 20 साल तक लगातार फिल्म का चलना हिंदी सिनेमा में एक नया इतिहास है। काजोल और शाहरुख़्ा ख़्ाान अभिनीत इस मासूम सरल सी प्रेम कहानी में मिलन, बिछोह और फिर प्रेम की जीत जैसे सारे मसाले हैं, लेकिन ये
हाल-हाल तक मुंबई के एक सिनेमाघर में यह फिल्म चलती रही। 20 साल तक लगातार फिल्म का चलना हिंदी सिनेमा में एक नया इतिहास है। काजोल और शाहरुख्ा ख्ाान अभिनीत इस मासूम सरल सी प्रेम कहानी में मिलन, बिछोह और फिर प्रेम की जीत जैसे सारे मसाले हैं, लेकिन ये मसाले इतनी किफायत और नफासत से मिक्स किए गए कि फिल्म लाजवाब बन गई। अजय ब्रह्म्ाात्मज सुना रहे हैं फिल्म से जुडे कुछ रोचक िकस्से।
रिलीज्ा के 20वें साल में प्रवेश कर चुकी 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे अभी हाल तक मुंबई के मराठा मंदिर थिएटर में चल रही थी। इतनी लंबी अवधि तक निरंतर एक ही थिएटर में चलने वाली यह दुनिया की पहली फिल्म है। यश चोपडा के बेटे आदित्य चोपडा ने इसे लिखा और निर्देशित किया था। शाहरुख्ा ख्ाान और काजोल अभिनीत 'दिलवाले दुलहनिय ा ले जाएंगे ने कामयाबी के साथ अनेक दूसरे कीर्तिमान स्थापित किए थे।
किशोर प्रेम की कहानी
फिल्म के राज और सिमरन की प्रेम कहानी ने अनेक पीढिय़ों के दर्शकों को प्रभावित किया। किशोर और युवा प्रेम के दर्शकों को फिल्म ने गहराई से छुआ था। हिंदी फिल्मों के इतिहास में 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे के बाद सिनेमा की नई प्रवृत्तियां शुरू हुईं। अचानक हिंदी सिनेमा में आप्रवासी भारतीयों की चिंताएं और जीवन को महत्ता मिल गई। भारतीय भाव-भूमि को दरकिनार कर दिया गया। नई पीढी के निर्देशकों ने आदित्य चोपडा के दिखाए मार्ग का अनुसरण किया। हिंदी सिनेमा को निश्चित ही नया आयाम मिला। यह एक अलग शोध और अध्ययन का विषय है कि इसका परिणाम हिंदी सिनेमा के विकास के लिए घातक रहा या लाभदायक?
लंदन टु पंजाब
राज और सिमरन की यह कहानी लंदन के स्क्वॉय र और गलियों से आरंभ होती है। स्विट्जरलैंड की सैर करने के बाद कहानी सीधे पंजाब में सरसों के खेतों तक पहुंचती है। पश्चिमी सभ्यता और भारतीय संस्कृति के विलोम और विरोधाभास पर टिकी इस प्रेम कहानी को सभी उम्र के दर्शकों ने पसंद किया। कहानी साधारण सी है। राज मल्होत्रा अमीर पिता का लाडला बेटा है। आशिक मिज्ााज राज ऊपरी तौर पर उच्छृंखल लगता है, लेकिन भीतर से अच्छा और नैतिक नौजवान है। सिमरन सिंह लंदन के माहौल में पली पारंपरिक परिवार की लडकी है। राज और सिमरन अपने दोस्तों के साथ यूरोटेल से घूमने निकले हैं। सफर में उनकी मुलाकात होती है। आरंभ में चख-चख होती है, लेकिन कुछ रोचक घटनाओं के बाद दोनों एक-दूसरे को चाहने लगते हैं। समस्या यह है कि सिमरन की सगाई बचपन में ही हो चुकी है। सिमरन के पिता बलदेव ने अपने दोस्त के बेटे कुलजीत से उसकी शादी तय कर दी थी। कुछ ही महीनों में उसे पंजाब लौट कर उस लडके से शादी करनी है, जिसे उसने कभी नहीं देखा।
बलदेव सिंह एक रात मां-बेटी के बीच चल रही बातचीत सुन लेते हैं। सिमरन अपने प्रेम के बारे में मां को बता रही है। वे रातोंरात बिजनेस समेट कर पंजाब लौटते हैं। सिमरन की शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बलदेव सिंह का परिवार ख्ाुश है। उन्हें लगता है कि स्थिति काबू में आ गई है। बहक रही सिमरन को संभाल लिया गया है। राज उनकी उम्मीद के ख्िालाफ पंजाब पहुंच जाता है। हिंदी फिल्मों के चलन के मुताबिक वह सिमरन के साथ भागता नहीं है। वह गांव में रह कर सिमरन के पिता को राजी करने की कोशिश करता है। आख्िारकार उसके विश्वास की जीत होती है। बलदेव सिंह राजी होते हैं और बेटी को आशीर्वाद देते हैं कि जा बेटी, जी ले अपनी ज्िांदगी।
आदित्य चोपडा की मेहनत
फिल्म के निर्देशक आदित्य चोपडा की रुचि आरंभ से ही लेखन और निर्देशन में थी। उन्होंने छोटी उम्र में ही शबाना आज्ामी को एक कहानी सुनाई। उस रोचक कहानी को सुनने के बाद शबाना आज्ामी ने जावेद अख्तर से कहा था कि यह लडका आगे चल कर बडा निर्देशक बनेगा। शुरू से आदित्य की रुचि फिल्मों में थी। वे निरंतर फिल्में देखते थे और दर्शकों की प्रतिक्रिया डायरी में नोट कर लिया करते थे। जब फिल्मों की पढाई के लिए उन्हें अमेरिका भेजने की बात उठी तो उन्होंने साफ मना कर दिया था। उनकी राय थी कि इससे भारत में हिंदी फिल्मों से उनका संपर्क छूट जाएगा। मां पामेला ने सलाह दी कि पढाई जारी रखने के साथ वह पिता यश चोपडा की मदद करें। उन्हें 1989 में बन रही 'चांदनी फिल्म में सहायक के तौर पर रख लिया गया। पहले शेड्यूल में स्विट्ज्ारलैंड जाना था। किफायत के लिए यूनिट छोटी रखी गई थी। सहायकों में केवल नरेश मल्होत्रा और आदित्य चोपडा थे। पढाई और परीक्षाओं की वजह से उन्हें कुछ शेड्यूल छोडऩे भी पडे, लेकिन पोस्ट प्रोडक्शन में उनकी भागीदारी रही। फिल्म के प्रिव्यू में उन्होंने मां से स्पष्ट शब्दों में कहा था, 'देख लेना यह फिल्म सुपरहिट होगी।
दरअसल आदित्य चोपडा ने पहली फिल्म के लेखन और निर्देशन से पहले अच्छी तैयारी कर ली थी। उन्होंने पॉपुलर श्रेणी के सभी निर्देशकों की फिल्में सिलसिलेवार देखीं और उनकी कामयाबी के कॉमन तत्वों का संधान किया। साथ ही वे सिनेमाघरों में रिलीज्ा होती रही हर विधा और स्तर की फिल्में देखते रहे। इसके बाद आई 'लम्हे के निर्माण के दौरान ही उन्होंने अपने पिता से कहा था कि एक पुरुष और मां-बेटी का प्रेम त्रिकोण भारत में नहीं चल सकेगा। 'लम्हे की असफलता के बाद 'डर के निर्माण के दौरान शाहरुख्ा ख्ाान से आदित्य चोपडा की दोस्ती हुई। इस फिल्म के कुछ दृश्यों की परिकल्पना आदित्य ने की थी और यश चोपडा ने पहली बार उन्हें फिल्म में डाला था। 'डर की ऐतिहासिक सफलता के बाद यश चोपडा ने आदित्य से कहा कि तुम फिल्म बनाओ।
आदित्य चोपडा ने अपनी कहानी पर सोचना शुरू कर दिया। कई कहानियां दिमाग्ा में घुमड रही थीं। इसी दरम्यान 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे का बेसिक आइडिया कौंधा। फिल्म का हीरो हीरोइन के साथ नहीं भागेगा। वह हीरोइन के पिता को राजी करेगा। यश चोपडा को आइडिया अधिक पसंद नहीं आया, लेकिन मां उछल पडीं। उन्हें फिल्म का आइडिया अच्छा लगा। यूनिट के कुछ सदस्यों को फिल्म अच्छी लगी तो कुछ ने झटक दिया। आदित्य ने ख्ाुद से ही सवाल किया कि क्या उन्हें कहानी पर विश्वास है और क्या वह अपनी बात कहना चाहते हैं? दोनों ही सवालों का जवाब अंतर्मन से हां मिला तो उन्होंने कहानी लिखनी शुरू कर दी। मां पामेला और भाई उदय उनके पहले श्रोता होते थे। अगले 12 दिनों में फिल्म का प्रारंभिक खाका तैयार हो गया। कलाकारों के लिए काजोल और शाहरुख्ा ख्ाान से बात चली, मगर शाहरुख्ा तुरंत राजी नहीं हुए। आदित्य ने सैफ अली ख्ाान के बारे में भी सोचा। फिर शाहरुख्ा राजी हो गए। उस दिन वे महबूब स्टूडियो में 'करण अर्जुन की शूटिंग कर रहे थे। बाकी सहयोगी कलाकारों के चुनाव में अधिक दुविधा नहीं रही। उनके लिए अमरीश पुरी, फरीदा जलाल, अनुपम खेर आसानी से तैयार हो गए। कुलजीत की भूमिका के लिए अरमान कोहली से बात हुई, मगर बाद में टीवी ऐक्टर परमीत सेठी आए।
रचा नया इतिहास
फिल्म के गीत-संगीत के लिए अपेक्षाकृत नई संगीतकार जोडी जतिन-ललित और अनुभवी गीतकार आनंद बख्शी को रखा गया। गीतकार और संगीतकार को निर्देशक की ट्यून को समझना और उसके अनुरूप नए स्वर और शब्द और ध्वनि की रचना करनी थी। सब कुछ इतना सहज नहीं रहा। आदित्य चोपडा की ज्िाद्दी धुन ने सभी को एक सुर में ला दिया। फिल्म की शूटिंग प्रचलित शैली से अलग तरीके से की गई। पांच, दस और बीस दिनों के तीन शेड्यूल में लगभग 'स्टार्ट टु फिनिश शूटिंग हुई।
20 अक्टूबर 1995 को रिलीज्ा होने के बाद 'डीडीएलजे ने इतिहास रचा। शाहरुख्ा ख्ाान और काजोल की 'बाजीगर से आरंभ हुई जोडी दर्शकों की पसंदीदा जोडी बन गई। फिल्म को दर्शकों ने इतना सराहा और पसंद किया कि यह सालों तक सिनेमाघरों में चलती रही। इस फिल्म ने हिंदी फिल्मों के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू किया।
अजय ब्रह्म्ाात्मज