तकनीक और ऐक्शन का संगम रा.वन
भारत में पहली सुपरहीरो फिल्म होने का सम्मान प्राप्त है फिल्म रा.वन को। बेहतरीन फिल्में देने के बाद फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा को लगा कि उन्हें साइंस फिक्शन पर काम करना चाहिए और इसके लिए
By Edited By: Published: Thu, 26 Mar 2015 01:37 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2015 01:37 PM (IST)
भारत में पहली सुपरहीरो फिल्म होने का सम्मान प्राप्त है फिल्म रा.वन को। बेहतरीन फिल्में देने के बाद फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा को लगा कि उन्हें साइंस फिक्शन पर काम करना चाहिए और इसके लिए शाहरुख्ाखान से बेहतर नाम दूसरा नहीं था। हालांकि बेस्ट टेक्नीक से बनी इस फिल्म को सराहना और आलोचना दोनों मिली। फिल्म-निर्माण से जुडे रोचक िकस्से सुना रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज। अक्टूबर 26, 2011 को रिलीज हुई रा.वन भारत की पहली सुपर हीरो फिल्म थी। इसका निर्माण शाहरुख खान ने किया था। उन्होंने फिल्म के नायक जी.वन की भूमिका निभाई थी। फिल्म का शीर्षक खलनायक के नाम पर रा.वन रखा गया था। शीर्ष भूमिका में अर्जुन रामपाल थे। इनके अलावा फिल्म में ख्ाास भूमिकाओं में करीना कपूर, अरमान वर्मा, दिलीप ताहिल, शहाना गोस्वामी, सतीश शाह और टॉम वु थे। इस फिल्म का निर्देशन अनुभव सिन्हा ने किया था। फिल्म का मूल विचार उनका ही था, जिसे शाहरुख्ाखान ने अमली जामा पहनाया था। साइंस फिक्शन का जुनून 'तुम बिन', 'आप को पहले भी कहीं देखा है', 'दस', 'तथास्तु' और 'कैश' जैसी फिल्मों के बाद अनुभव सिन्हा के मन में 'रा.वन' का विचार आना ही चकित करने के लिए काफी है। उन्होंने मुख्य रूप से प्रेम कहानियां और कभी उसमें थोडा सा थ्रिल डाल कर फिल्में निर्देशित की थीं। अनुभव सिन्हा ख्ाुद भी हैरान थे। वे कहते हैं, 'मैंने कभी किसी को बताया नहीं कि मैंने कभी सुपरहीरो फिल्म नहीं देखी थी। साइंस फिक्शन और सुपरहीरो की 'टर्मिनेटर', 'बैटमैन' और 'सुपरमैन' जैसी फिल्में मैंने नहीं देखी थीं। फिर एक दिन दिमाग में एक कहानी आई। मूल कहानी थी कि एक बाप अपने बेटे के लिए एक विडियो गेम बनाता है, उसमें से विलेन बाहर आकर बाप को मार देता है। फिल्म का हीरो विडियो गेम के हीरो जैसा दिखता था। बेटा विडियो गेम से हीरो को निकालता है और फिर बाप-बेटे मिल कर विलेन को मारते हैं। यह फिल्म सोच के स्तर पर ही साइंस फिक्शन स्पेस में चली गई। मैंने इतनी ही लिखी थी। यह तय था कि फिल्म सस्ते में नहीं बनेगी, इसलिए कोई बडा स्टार चाहिए। मुझे जानकारी थी कि शाहरुख्ाखान साइंस फिक्शन में दिलचस्पी लेते हैं। शाहरुख्ा से मेरा इतना ही परिचय था कि केतन मेहता की फिल्म 'ओ डार्लिंग ये है इंडिया' में मैंने 15 दिन एक शेड्यूल असिस्टेंट के तौर पर किया था। वर्ष 2005 की बात है, मैंने उन्हें एसएमएस किया। कुछ घंटों के बाद उनका जवाब आया कि दिल्ली में हूं, लौट कर मिलता हूं। हफ्ते भर के अंदर मैं उनके सामने बैठा दो पेज की कहानी सुना रहा था। मैंने एसएमएस में ही कह दिया था कि यह फिल्म उनके बिना नहीं बन सकती। शाहरुख्ा को आइडिया पसंद आया। मैंने स्पष्ट कहा कि अगर आप आज हां कहेंगे तो मुझे लिखने में दो साल लगेंगे। उन्होंने कहा कि चलो बनाते हैं। यहां से सिलसिला आरंभ हुआ। बीच में कई बार लगा कि पिक्चर पूरी नहीं हो पाएगी। हमने गंभीरता से काम करना शुरू किया वर्ष 2008 से। वर्ष 2011 की 26 अक्टूबर को फिल्म रिलीज हुई।' बजट बढता गया 'रा.वन' घोषणा के साथ ही बडी फिल्म हो गई थी। शूटिंग और वीएफएक्स की वजह से इसका बजट बढता गया। अनुभव बताते हैं, 'शाहरुख्ा के साथ अच्छी बात है कि वे अपनी फिल्मों का बजट तय नहीं करते। 'रा.वन के लिए हमने जो मांगा, वह सब शाहरुख्ा ने मुहैया किया। हमने फिल्म के लेखन में उन्हें क्रेडिट नहीं दिया है, लेकिन उनका योगदान किसी लेखक से कम नहीं है। इस फिल्म को करते हुए हम सभी सीख रहे थे। इसके पहले शाहरुख्ा के प्रोडक्शन हाउस 'रेड चिलीज्ा' ने भी इस स्तर पर वीएफएक्स फिल्म नहीं की थी। तकनीक इंपोर्ट करने के साथ ही टेक्निशियंस भी बुलाए जा रहे थे। हर क्षेत्र के श्रेष्ठ व पारंगत लोगों को फिल्म से जोडा गया। हम कटौती की कोशिश करते थे, मगर विफल रहते थे। फिल्म-निर्माण के समय शाहरुख्ा के दाहिने हाथ बॉबी चावला कोमा में चले गए थे। सभी के लिए वह बडा झटका था। प्री-प्रोडक्शन में बॉबी ने बडी मेहनत की थी। पहले शेड्यूल के बाद हमारे कार्यकारी निर्माता हमारे साथ होकर भी नहीं थे। शाहरुख्ा के लिए वह मुश्किल वक्त था।' बच्चों को तोहफा शाहरुख्ा स्पष्ट थे कि उन्हें बच्चों को तोहफा देना है। तब तक देश में सुपरहीरो फिल्म के नाम पर केवल 'कृष' आई थी। अनुभव सिन्हा फिल्म निर्माण के समय के दबावों का ज्िाक्र करना नहीं भूलते। कहते हैं, 'हम हिंदी में सुपरहीरो फिल्म बना रहे थे। कहा गया कि बॉलीवुड में फिल्म बन रही है तो हीरोइन होनी चाहिए, गाना-बजाना होना चाहिए। शाहरुख्ा ने मुझे विदेशों में बनी हर तरह की सुपरहीरो फिल्में दिखाईं। हमारे बीच कोई मतभेद नहीं था। एक दिन मैं उनके घर पहुंचा और मैंने कहा कि फिल्म के क्लाइमेक्स में ताजमहल तोड देते हैं। शाहरुख्ा राजी हो गए। अफसोस कि फिल्म की कहानी आगरा नहीं जा सकी, इसलिए हमने मुंबई के सीएसटी स्टेशन पर ही तोडऩे का काम किया। विदेशी फिल्मों में ब्रुकलिन ब्रिज और व्हाइट हाउस टूटते रहते हैं। दूसरी सुपरहीरो वाली फिल्मों की तरह ट्रेन सीक्वेंस भी रखा। मुझे अफसोस हुआ, जब लोगों ने ट्रेन सीक्वेंस के लिए मुझ पर चोरी का इल्ज्ााम लगाया।' दर्शकों की संतुष्टि का पहलू अनुभव स्वीकार करते हैं कि वे हिंदी फिल्मों की परंपरा में रहते हुए साइंस फिक्शन और सुपरहीरो फिल्म बना रहे थे। उन्होंने उससे बाहर निकलने या नया करने की कोशिश नहीं की। ज्य़ादा से ज्य़ादा दर्शकों को संतुष्ट करने के लिए यह ज्ारूरी था। चूंकि फिल्म का बजट ज्य़ादा था, इसलिए बॉक्स ऑफिस पर ध्यान देना ज्ारूरी था। टीम को मालूम था कि समीक्षकों से आलोचना मिलेगी। अनुभव बताते हैं, 'ट्रेन सीक्वेंस ही लें। उसके हर एक शॉट में आठ-आठ शॉट थे। उन्हें अलग-अलग समय पर शूट किया गया था। मुंबई में सीएसटी के पास शूटिंग करना असंभव था तो हम मुंबई के पवन हंस और लंदन गए। सीएसटी स्टेशन को तोडकर निकलती ट्रेन के सीन अलग-अलग लिए गए। स्टेशन का मिनिएचर लंदन में छह महीने में तैयार हुआ। 12 कैमरे लगा कर नब्बे सेकंड में वह शॉटखत्म हो गया।' तकनीक पर ज्ाोर 'रा.वन' का निर्माण टेक्निकल और कंप्यूटर ग्रािफक वाला था। इसके वीएफएक्स में लंबा समय लगा। शूटिंग डिजिटल तरीके से नंबर और मार्क लगा कर की जाती थी, ताकि बाद में उन्हें आसानी से जोडा जा सके। सब कुछ प्री-विजुलाइज्ा किया गया था। स्टोरी बोर्ड को एनिमेट किया गया था। हमें इमोशन से ज्य़ादा ऐक्शन का तालमेल बिठाना था। फिल्म शब्दों और संवादों से नहीं वीएफएक्स से जोडी जा रही थी। 'रा.वन' की शूटिंग जटिल थी। अनुभव मानते हैं कि 'रा.वन' आज बनती तो ज्य़ादा सुविधाएं मिलतीं। अब तो दर्शक भी तैयार हैं। बॉलीवुड के मसाले डालने की ज्ारूरत नहीं रह गई है। तब तो पांच-छह गाजे-बाजे ज्ारूरी हो जाते थे। अब ऐसी मांग कम है। अनुभव कहते हैं, 'मेरी फिल्म में कई गाने थे। मैं उन्हें ठीक कहूं तो भी सभी जानते हैं कि गानों के लिए सिचुएशन बनानी पडती है, जिससे कहानी प्रभावित होती है।' 'रा.वन' का सुपरहीरो कॉस्ट्यूम रॉबर्ट कुत्र्जमैन और टिम फ्लैट्री ने तैयार किया था। इसे पहनना भी मुश्किल था। पहनने के बाद शरीर का वज्ान बढ जाता था। हाथ हिलाते समय लगता था कि पांच किलो का वज्ान कलाई से बंधा हुआ है। कोशिश यह थी कि कॉस्ट्यूम का रंग-ढंग भारतीय हो। बच्चे चाहें तो पहन सकें। अनुभव शाहरुख्ाखान के गुणगान करते नहीं थकते। उन्होंने एक गीत के लिए मशहूर सिंगर एकॉन की फरमाइश की और शाहरुख्ा ने उसे पूरा किया। अनुभव याद करते हैं कि एकॉन से मिलने के बाद उन्होंने शाहरुख्ा से कहा था कि बाहर निकल कर टाइम्स स्क्वॉयर पर आम लोगों की तरह कॉफी पीते हैं। उस रात हलकी बर्फबारी हो रही थी। मगर शाहरुख्ा बाहर निकले और साथ में कॉफी पी। अजय ब्रह्मात्मज
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