इंसानियत की दास्तां एयरलिफ्ट
भारत सरकार ने अगस्त 1990 इराक हमले के बाद कुवैत में फंसे लाखों भारतीयों को युद्घग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकाला था, जो कि एक विश्व रिकॉर्ड बन गया। सच्ची घटनाओं पर आधारित 'एयरलिफ्ट' मानवीय संवेदना पर सुंदर अभिव्यक्ति है। फिल्म कैसे बनी, बता रहे हैं फिल्म संपादक अजय ब्रह्मात्मज।
भारत सरकार ने अगस्त 1990 इराक हमले के बाद कुवैत में फंसे लाखों भारतीयों को युद्घग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकाला था, जो कि एक विश्व रिकॉर्ड बन गया। सच्ची घटनाओं पर आधारित 'एयरलिफ्ट' मानवीय संवेदना पर सुंदर अभिव्यक्ति है। फिल्म कैसे बनी, बता रहे हैं फिल्म संपादक अजय ब्रह्मात्मज।
राजा कृष्ण मेनन की 'एयरलिफ्ट' देशप्रेम और भारतीयता के साथ मानवता की जीत की रोचक फिल्म है। 2016 में गणतंत्र दिवस के ठीक पहले रिलीज्ा हुई, इस फिल्म को देखते समय जब परदे पर तिरंगा उठता और लहराता है तो सिनेमाघर में बैठे दर्शकों के बीच राष्ट्रीय भावना का उद्रेक होता है। इस फिल्म की देशभक्ति किसी अन्य देश को धौंस देने की नहीं है। यह बडे सलीके से ख्ाास स्थिति में देश के लिए जागरूक हुए कुछ लोगों की हिम्मत और सक्रियता की कहानी है, जिसे फिल्म में रंजीत कटियाल के मार्फत पेश किया गया है।
फिल्म की शुरुआत
यह फिल्म राजा कृष्ण मेनन ने लिखी और निर्देशित की है। राजा इसे सीमित बजट की बडी फिल्म कहते हैं। अक्षय कुमार की मुख्य भूमिका के बावजूद 'एयरलिफ्ट के निर्माण में अधिक ख्ार्च नहीं हुआ। अक्षय कुमार ने भी निर्माता के तौर पर भागीदारी की। वे इस फिल्म के सहनिर्माता हैं। राजा बताते हैं कि मैंने फिल्म के लिए काम वर्ष 2005 में आरंभ कर दिया था। तब यह फिल्म मूर्त रूप नहीं ले सकी। फिर 2012 में निखिल आडवाणी से मुलाकात हुई। निखिल आडवाणी ने अपनी बहन और दोस्त के साथ कंपनी स्थापित करने के बाद तय किया था कि वे युवा प्रतिभाओं को मौका देंगे।
बढता गया कारवां
निखिल आडवाणी के जुडऩे के बाद इस फिल्म से विक्रम मल्होत्रा भी जुडे। दो अनुभवी और सक्षम निर्माताओं के साथ आने पर फिल्म को मजबूत आधार मिल गया। निखिल और राजा की कोशिश से जब अक्षय कुमार ने फिल्म की कहानी सुनी तो वे सहज ही तैयार हो गए। उन्होंने निर्माता बनने की कोशिश की। इसके बाद टी सीरीज के भूषण कुमार भी आ जुडे। 'एयरलिफ्ट हिंदी फिल्मों में आ रही तब्दीली का एक सफल उदाहरण है। इस प्रणाली में किसी फिल्म के अनेक निर्माता होते हैं। सभी की विशेषज्ञता और निवेश से नुकसान का झटका हलका हो जाता है। ज्य़ादा संभावना रहती है कि फिल्म अच्छी और सफल हो जाए।
मिला अनुभवों से लाभ
निखिल आडवाणी ने अपने अनुभवों का लाभ दिया। हिंदी फिल्मों में सईद मिजर्ा, अजीज मिजर्ा, कुंदन शाह और सुधीर मिश्रा के सान्निध्य से आए निखिल आडवाणी करन जौहर और आदित्य चोपडा के भी सहायक रहे हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण और निर्देशन, दो छोरों से ख्ाुद को पारंगत किया है। निखिल आडवाणी के निर्देशन और निर्माण की यह ख्ाूबी है कि उनकी फिल्में हिंदी फिल्में के पारंपरिक ढांचे में रहते हुए कुछ अलग सी बातें करती हैं। उनमें एक गंभीरता भी रहती है।
फिल्म का रीअल ट्रीटमेंट
'एयरलिफ्ट को ही देखें तो यह पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है, लेकिन इसका ट्रीटमेंट रीअल रखा गया है। शूटिंग के दरम्यान अक्षय कुमार बार-बार पूछते थे कि कहीं यह डॉक्युमेंट्री फिल्म तो नहीं बन रही है। दूसरी तरफ निखिल और राजा एक स्वर में अक्षय कुमार को सचेत करते थे कि ड्रामा और डायलॉग को मेलोड्रामा के स्तर पर न ले जाएं। दोनों ने एक-दूसरे की भावनाओं और जज्बातों को समझा। नतीजे में हमें 'एयरलिफ्ट जैसी फिल्म मिली।
कुछ यूं है यह कहानी...
'एयरलिफ्ट उन भारतीयों की कहानी है, जो 1990 में कुवैत युद्ध के दौरान वहां फंस गए थे। रातोंरात उनकी स्थिति बदल गई थी। असुरक्षा और निराशा के उस माहौल में कुवैत में बसे कुछ अमीर भारतीयों ने अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा और देश वापसी पर ध्यान दिया। उन्होंने अपने जान-माल की परवाह नहीं की। फिल्मकार राजा कृष्ण मेनन ने कई व्यक्तियों के सम्मिलित प्रयास को एक व्यक्ति की कोशिश के रूप में दिखाने की सिनेमाई छूट ली है। उन्होंने रंजीत कटियाल के नाम से एक काल्पनिक किरदार गढा है, लेकिन उसके सारे कार्य वास्तविक हैं। इराक-कुवैत युद्ध के समय तत्कालीन विदेश मंत्री आई के गुजराल ने इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से मिलकर भारतीयों के सुरक्षित निष्कासन की सहमति ले ली थी, लेकिन उस पर अमल करना मुश्किल काम था। रंजीत कटियाल की मदद से 56 दिनों के अंदर 1 लाख 70 हज्ाार भारतीयों को एयरलिफ्ट मिला। रंजीत कटियाल की सार्थक भूमिका ऐक्टर अक्षय कुमार ने निभाई है।
एक्शन से इतर
अक्षय कुमार बताते हैं, 'पिछले कुछ वर्षों से मैं अपनी फिल्मों में एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा हूं। इसी कोशिश में कॉमेडी और एक्शन से भरपूर मसाला फिल्में करता हूं। कुछ अलग करने का मन किया तो रंजीत की भूमिका निभाई। रंजीत कटियाल में शालीनता है। वह अमीर है, मगर तडक-भडक में नहीं रहता। जब देश और देशवासियों की सुरक्षा का सवाल सामने आता है तो वह अपनी सुरक्षा भूल कर ख्ाुद को तन-मन और धन के साथ झोंक देता है।
नाम का बेहद महत्व
निम्रत कौर इस फिल्म को चुनने की वजह पूछने पर कहती हैं, 'एक छोटी सी बैक स्टोरी है। दो साल पहले जागरण फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में अक्षय कुमार से मैं पहली बार मिली थी। उन्होंने बातचीत में कहा था कि हम जल्द ही साथ काम करेंगे। बाद में जब इस फिल्म का ऑफर आया तो समझ में आया कि अक्षय कुमार जैसे स्टार अपनी कही बातों पर अमल भी करते हैं। फिल्म की नायिका का नाम मैंने चुना। पहले कुछ और नाम था। वह मुझे पंजाबी नाम नहीं लग रहा था, इसलिए मैंने उसे अमृता नाम दिया। फिल्म के किरदारों को निभाने में नाम का भी महत्व होता है।'
भाषा की सहजता
इराकी फौजी ऑफिसर की ख्ाास भूमिका में इनामुल हक हैं। इस फिल्म में उन्हें अलग किरदार मिला था। वे अपना अनुभव सुनाते हैं, 'कुछ समीक्षकों को मेरी भाषा नकली लगी। दरअसल, वैसी भाषा लिखी गई थी। वह मेरी सहज भाषा नहीं है। पूरी फिल्म में उस लहज्ो को निभा ले जाना बडी चुनौती थी। दूसरा मुझे ज्य़ादातर सीन अक्षय कुमार के साथ मिले थे। परदे पर जो नाटकीय व हास्यास्पद रहा है, उसे निभाते समय रोने तक की नौबत आ जाती थी। तब राह अलग रहती थी। फिर भी ख्ाुशी है कि दर्शकों ने मेरे काम को सराहा। पूरी यूनिट की सराहना मिली।'
रिसर्च से मिला गेटअप
रंजीत कटियाल के किरदार की तैयारी के बारे में पूछने पर अक्षय कुमार कहते हैं, 'लुक और गेटअप तो रिसर्च में मिल गया था। मुझे रंजीत कटियाल के मेंटल स्टेट में आना था। इसमें भी मुझे लेखक से मदद मिली। अपने अनुभवों और जीवन से भी मैं रंजीत की मानसिकता को समझ सकता हूं। फिल्म के माहौल और सहयोगी कलाकारों से मुझे भरपूर मदद मिली।'
अजय ब्रह्मात्मज