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सोशल मीडिया ने बदली तस्‍वीर

सोशल मीडिया के मायने बाकी समाज के लिए चाहे जो भी हों पर स्त्रियों के लिए ये एकदम अलग हैं। सोशल मीडिया ने स्त्रियों की स्थिति में कितना बदलाव किया, जानने की कोशिश कर रही हैं संगीता सिंह।

By Edited By: Published: Sun, 04 Dec 2016 03:57 PM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2016 03:57 PM (IST)
सोशल मीडिया ने बदली तस्‍वीर
एक वक्त था, जब स्त्री घर की चारदीवारी में कैद रहती थी। उसकी पूरी जिंदगी घर और घर से जुडे मामलों तक ही सिमटी रहती थी लेकिन समय बदलने के साथ स्त्रियों की स्थिति में भी बदलाव आया। वे घर की दहलीज को पार कर बाहर निकलने लगीं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगीं। पुरुष और स्त्री समानता की लडाई में यह उसका पहला कदम था लेकिन मंजिल अब भी दूर थी। घर से बाहर आने पर उसकी मुश्किलें पहले के मुकाबले कई गुना बढ गई थीं, जिस पर टीवी, समाचार पत्रों और रेडियो पर चर्चाएं भी हो रही थीं लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था। ऐसे ही दौर में सोशल मीडिया का जन्म हुआ, जिसने स्त्रियों को न केवल एक मंच दिया बल्कि दुनिया से खुद मुखातिब होने का अवसर भी प्रदान किया। जेएनयू के समाजशास्त्री कौशल कुमार बताते हैं, 'भारत में स्त्रियों को आज भी खासतौर पर बौद्धिक स्तर पर पुरुषों के मुकाबले कमतर आंका जाता है। ऐसे में किसी स्त्री का ऐसे क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना, जिन पर अभी तक पुरुषों का वर्चस्व रहा हो, पुरुषों के लिए सीधे एक चुनौती था। इसे स्वीकार करना पुरुषों के लिए आसान तो बिलकुल नहीं है लेकिन स्त्रियों के बौद्धिक कौशल को आप कब तक नकार पाएंगे? धीरे-धीरे स्वीकृति बढ रही है। सोशल मीडिया स्त्रियों के लिए एक सशक्त मंच की तरह उभर कर आ रहा है, जहां वे अपनी क्रिएटिविटी और विचारों को लोगों के बीच साझा कर रही हैं।' अब नकारना आसान नहीं स्त्रियों को घरों में अकसर कमतर आंका जाता है। किसी विषय पर उनका ज्ञान देना लोगों के बीच हंसी का विषय होता है। उन्हें गंभीरता से लेने के बारे में तो कोई सोचता तक नहीं है। इसी सोच को सोशल मीडिया ने बदला है। सोशल मीडिया पर भले ही अब भी महिलाओं का अनुपात पुरुषों के मुकाबले 75:25 का हो लेकिन उन्हें नकारा नहींजा सकता। उभरती कवियित्री वर्षा सिंह का कहना है, 'अकसर मैं अपनी कविताएं लोगों को सुनातीं थी, उन्हें छपवाने की कोशिश भी की लेकिन कभी किसी ने उन्हें गंभीरता से नहींलिया। तब मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे लोगों के बीच ये लोकप्रिय हुईं। कई लोगों ने उसे अपनी वॉल पर शेयर भी किया। जिसके बाद एक मैगजीन ने उसे छापा और उस दिन के बाद से मेरे पास काम की कमी नहीं रही। सोशल मीडिया ने मुझे रोजगार ही नहीं, मेरे अस्तित्व को भी नई पहचान दी।' बिहार की रहने वाली सीमा के भी इसे लेकर अपने अनुभव हैं। वह बताती हैं, 'पिछले काफी समय से मैं नौकरी की तलाश कर रही थी। एक दिन मुझे एक कंपनी से बुलावा आया। मैं फ्रेशर थी और मेरे पास काम का कोई अनुभव नहीं था। मैं इसे लेकर थोडा डरी हुई थी क्योंकि इंटरव्यू देने आए ज्यादातर लोग काफी अनुभवी थे। इंटरव्यू बोर्ड में मुझसे पूछा गया कि क्या मैं सोशल मीडिया पर ऐक्टिव हूं? क्या मैं वहां कुछ लिखती हूं? क्या मैं उन्हें वह दिखा सकती हूं? मुझे यकीन नहीं आया, जब उन पोस्ट्स के बाद मुझे वह नौकरी मिल गई। मेरी भाषा और पोस्ट की गंभीरता ने इंटरव्यू बोर्ड को इंप्रेस कर दिया था। अभी तक सोशल मीडिया को मैं सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन मात्र मान रही थी लेकिन उस नौकरी ने मेरी इस सोच को बदल डाला।' अकेलेपन का सहारा ओल्ड एज में अकेलेपन के शिकार लोगों की तादाद देश में बढती जा रही है। ऐसे में सोशल मीडिया उन लोगों के लिए तो किसी बडे सहारे की तरह सामने आया है। वे इस माध्यम के जरिए नौकरी के लिए दूर शहर में बसे अपने बच्चों, रिश्तेदारों से जुड सकते हैं। बिहार के मुंगेर जिले की रहने वाली अनीता मिश्रा एक हाउस वाइफ हैं। दो बच्चों की मां अनीता बच्चों की शादी के बाद एकदम अकेली रह गई थीं। फोन पर बात करने के अलावा उनके पास अपने बच्चों से जुडे रहने का कोई माध्यम नहीं था। तभी पडोस के एक बच्चे ने उन्हें फेसबुक के बारे में बताया और उनके बच्चों की फोटो वहां दिखाई। 65 साल की अनीता ने इस उम्र में पहले कंप्यूटर ऑपरेट करना सीखा, फिर फेसबुक पर अपना अकाउंट बनाया और बच्चों से जुड गईं। अब वह हर पल अपने बच्चों से फोटो और विडियोज के माध्यम से जुडी रहती हैं। अनीता की ही तरह गाजियाबाद में रहने वाली सरोज सिंह हैं, जिन्होंने इस नई तकनीक को शुरू में तो नकार दिया था लेकिन बाद में इसके फायदे जानकर उसे अपनाया। वह बताती हैं, 'मैं 60 वर्ष की हूं। मेरे पति का देहांत हो चुका है। बच्चे अपने काम में बिजी रहते हैं। ऐसे में मैं अकेला महसूस करती थी। तब एक दिन मेरे बेटे ने मुझे सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने की सलाह दी। शुरू में तो मैं इसे जॉइन कने के हक में नहीं थी लेकिन उसके बहुत कहने पर मैंने अकाउंट बनाया। आज मेरे हजार से भी ज्यादा फॉलोअर्स हैं। मेरे स्कूल-कॉलेज के दोस्त सब सोशल मीडिया पर हैं। मैंने उनके साथ मिलकर एक ग्रुप भी बनाया है। इस ग्रुप के लोग आपस में पार्टी करते हैं, साथ में बाहर घूमने जाते हैं। अब मेरे बच्चे भी फ्री होकर अपना काम करते रहते हैं, उन्हें मेरी चिंता नहीं सताती क्योंकि वे जानते हैं कि मैं खुश हूं। मेरे पास दोस्त हैं। अब सोचता हूं तो लगता है कि जीवन की सारी उदासी को सोशल मीडिया ने कैसे पलक झपकते ही दूर कर दिया।' एक हथियार भी है सोशल मीडिया सिर्फ लोगों से जुडऩे, अपने विचारों को बांटने का साधन मात्र नहीं है। यह न्याय दिलाने का एक जरिया भी है। हाल ही में केरल की एक घटना सामने आई। एक स्त्री के साथ उसके पति के चार दोस्तों ने गैंगरेप किया। पीडिता ने जब इसकी शिकायत पुलिस से की तो उन्होंने जांच के नाम पर पीडिता से ऐसे अपमानजनक सवाल पूछे कि पीडिता की हि मत ही नहीं हुई कि वह केस दर्ज करा सके। एक दिन उसने अपनी आपबीती एक पडोसन को सुनाई। पडोसन ने यह पूरी घटना सोशल मीडिया पर शेयर की, जिसके बाद कई महिला संगठन उस पीडिता की मदद के लिए आगे आए। मामला इतना बढा कि खुद मुख्यमंत्री को इसमें हस्तक्षेप करना पडा। सोशल मीडिया की इस ताकत का अंदाजा सबसे पहले फरवरी 2009 में चला था। बेंगलुरु में एक संगठन के कार्यकर्ताओं ने पब में स्त्रियों से मारपीट की। तब स्त्रियों ने एकजुट होकर सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया, जिसका नाम था 'पिंक चड्ढी'। पत्रकार निशा सुसान की अगुआई में चले इस अभियान को हजारों लोगों ने समर्थन दिया और विरोधस्वरूप उस संगठन के दफ्तर में सैकडों स्त्रियां पहुंचीं। यह तब की बात है, जब भारत में फेसबुक यूजर्स की संख्या महज 30 लाख थी, जो समय के साथ बढी है लेकिन सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा इस घटना ने दिला दिया था। देश ही नहीं, विदेशों में भी सोशल मीडिया ने साबित किया है कि यह स्त्रियों के हाथ में एक मजबूत हथियार है। इंडोनेशिया में तो हाल में फेसबुक पर लाखों स्त्रियों ने अपने हक की लडाई लडी। एक घटना नाबालिग लडकी को एसएमएस के जरिये तलाक देने से जुडी है। गारूत जिले के प्रमुख फिकरी ने बीते साल जुलाई में एक 17 वर्षीय लडकी को अपनी दूसरी पत्नी बनाया और सिर्फ चार दिन बाद एसएमएस के जरिये तलाक दे डाला। वजह बताई गई कि लडकी कुंआरी नहीं थी। लडकी ने इस बात को गलत करार दिया। फिकरी और उसकी नाबालिग पत्नी की तसवीर इंटरनेट पर वायरल हुई तो धीरे-धीरे स्त्रियों में आक्रोश उबाल मारने लगा। सोशल मीडिया के जरिये लोग एकजुट हुए और दिसंबर में हजारों छात्र और स्त्रियां फिकरी के इस्तीफे की मांग को लेकर गारूत की सडकों पर उतर आए। नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रपति सुसीलो बै बैंग ने सार्वजनिक तौर पर फिकरी के दूसरे गैरकानूनी विवाह की आलोचना की। आखिर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति से फिकरी को बर्खास्त करने को कह डाला। डरें नहीं बल्कि लिखें इस घटना ने यह बात तो सिखा दी थी कि डरने से कुछ नहीं होगा। आगे आकर अपने हक की लडाई लडऩी होगी। कई बार लडकियां या उनके घरवाले अपने साथ हो रही ज्यादती पर समाज में बदनामी के डर से मुंह सिल कर बैठ जाते हैं। ऐसी चीजों का आपराधिक प्रवृत्ति के लोग फायदा उठाते हैं। वह पुलिस के झमेलों, कोर्ट के लंबे केस से डरकर सहते रहने के विकल्प को चुन लेते हैं लेकिन ऐसे में सोशल मीडिया पर लिखा गया आपका एक पोस्ट भी न्याय की राह को आसान कर सकता है। दिल्ली की रहने वाली अमृता नागपाल बताती हैं, 'कॉलेज जाते वक्त एक लडका हमेशा मेरा पीछा करता था और अश्लील बातें करता था। मैंने इस बारे में अपने माता-पिता से बात की, जिसके बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन लडके के घरवाले इतने पावरफुल थे कि वे पुलिस को मैनेज कर लेते। इस डर से मेरे मां-बाप ने मोहल्ला ही बदल लिया लेकिन जगह बदलने से मुझे कोई राहत नहीं मिली। तब मेरी एक सहेली ने उस लडके की बदतमीजी को अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया और फेसबुक पर उसकी पोल खोली। उसने इस पोस्ट में दिल्ली पुलिस कमिशनर और सीएम को भी टैग किया। चंद घंटों में यह खबर वायरल हो गई और वह लडका पकडा गया। पुलिस पर दबाव पडा तो इस बार वह लडके को बचा नहीं पाई और उसे लडके के खिलाफ कार्रवाई करनी पडी। उस दिन मुझे इस माध्यम की शक्ति के बारे में पता चला, जिसके बाद मैंने और लोगों को भी जागरूक करने के बारे में सोचा। आज मैं सोशल मीडिया के जरिये लोगों को न्याय दिलाने की मुहिम में जुटी हूं, इस मुहिम से जुडऩे वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन तेजी से बढती जा रही है।' आजादी का जश्न सोशल मीडिया पर लडकियां आजादी महसूस कर रही हैं। पाकिस्तान का एक ग्रुप है 'गर्ल्स ऐट द रेट ढाबा।' इस ग्रुप में शामिल लडकियां ढाबे-ढाबे घूमती हैं, वहां के भोजन को एंजॉय करती हैं, अपने अनुभव शेयर करती हैं और उसके साथ अपनी सेल्फी खींचती हैं। यह ग्रुप दरअसल लडकियों की आजादी का पक्षधर है, जो कहता है कि आजादी पर लडकों का एकाधिकार नहीं है, यह समान अधिकार लडकियों को भी है। उन्हें भी अभिव्यक्ति की आजादी है। वह शब्दों और फोटो के जरिये अपनी आजादी का जश्न मना रही हैं। इस आजादी का अनुभव सिर्फ यंगस्टर्स ही नहीं, मिडल और ओल्ड एज के लोग भी महसूस कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे कई ग्रुप्स हैं, जो आपकी पसंद के हो सकते हैं, आप उन्हें जॉइन कर उसका हिस्सा बन सकते हैं। अगर आपकी धर्म में रुचि है तो धार्मिक ग्रुप का हिस्सा बन धार्मिक पर्यटन पर जा सकते हैं। साहित्यिक ग्रुप को जॉइन करके आपको आपके विषय और रुचि के अनुरूप पढऩे की सामग्री मिल जाती है। अब ऐसी आजादी भला और कहां मिल सकती है। व्यक्तित्व विकास में मददगार सोशल मीडिया ने स्त्रियों के व्यक्तित्व को निखारने का भी काम किया है। घर बैठे आप देश, भाषा और संस्कृति के दायरों से परे जाकर किसी भी क युनिटी से जुड सकते हैं। आपको नए विचार मिलते हैं, नई बातें पता चलती हैं और अलग-अलग तरह के दृष्टिकोणों से आपका परिचय होता है। इस प्रक्रिया में आप अपने जीवन में भी नई चीजों के लिए ज्यादा खुलते जाते हैं, बशर्ते अपना दिमाग खुला रखें। सहायता : आप यहां जवाब पा सकते हैं, किसी विषय पर चर्चा शुरू कर सकते हैं, समाधान हासिल कर सकते हैं और किसी मुद्दे पर लोगों का समर्थन भी प्राप्त कर सकते हैं। यह समर्थन लोगों द्वारा पसंद किए जाने से लेकर किसी भी श्रेणी का हो सकता है। यहां तक कि आप अच्छे कार्य के लिए धन और संसाधन भी जुटा सकते हैं। यदि आपको किसी मामले में संशय है तो रायशुमारी भी कर सकते हैं। सोशल मीडिया का एक बडा फायदा यह भी है कि आप विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सीधे जुड सकते हैं। आप उनके फ्रेंड बन सकते हैं या उन्हें फॉलो भी कर सकते हैं। नेतृत्व क्षमता : असल जीवन में भले ही आप उस ओहदे पर न हों कि लोग आपकी बात सुनें लेकिन सोशल मीडिया में हर किसी की बात सुनी जाती है। यहां आप धीरे-धीरे सीखते हैं कि लोग क्या पसंद करते हैं, किन बातों पर कान देते हैं, किन चीजों को महत्व देते हैं, औरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या-क्या करना होता है। यहां आप सीखते हैं कि दूसरों को अपनी राय से कैसे सहमत कराया जाता है। आप नेतृत्व, प्रस्तुतीकरण, समन्वय, प्रचार, प्रोत्साहन की तकनीकें सीखते हैं। इस तरह आप लीडर के तौर पर भी उभरते हैं। इंटरनेट पर मिले इन व्यावहारिक अनुभवों का लाभ वास्तविक जीवन में भी मिलता है। बढता है हौसला : आप सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियों, उपलब्धियों और जीवन में मिले सबक को साझा करते हैं। दूसरे लोग इन्हें पसंद करते हैं, आपको बधाई देते हैं और उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं। अपनी पहचान बनाना और दूसरों के साथ खुशी बांटना, इंसान होने के नाते ये हमारी दो अहम जरूरतें हैं। सोशल मीडिया हर आम-ओ-खास को इन दोनों के अवसर देता है। अपनी पहचान और उपलब्धियों को मिला मान आपको प्रोत्साहित करता है। आप ज्यादा उपलब्धियां अर्जित करना चाहते हैं और इस तरह लक्ष्यों के लिए ज्यादा केंद्रित होते जाते हैं। सोशल मीडिया आपको ज्यादा बडे सपने देखने के लिए प्रेरित कर सकता है। जरा संभल कर कहते हैं कि तकनीक के फायदे हैं तो वह अपने साथ कुछ खतरे भी लाती है। सोशल मीडिया ने हमें विश्व पटल पर सोशल तो कर दिया लेकिन साथ ही हमारी सुरक्षा में सेंध भी लगा दी। हाल में ऐसी ही एक घटना सामने आई, जहां मुंबई की एक लडकी की सोशल नेटवर्किंग साइट के फोटो और विडियो के साथ छेडछाड कर उस लडकी को ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई लेकिन लडकी डरी नहीं। उसने सोशल मीडिया को ही हथियार बना ब्लैकमेलर को पूरे संसार के सामने एक्सपोज कर दिया। दरअसल तरुणा नाम की इस लडकी के फेसबुक अकाउंट से आरोपी ने कुछ फोटो और विडियो चुरा कर उनका गलत इस्तेमाल किया और फिर उसके बहाने लडकी को ब्लैकमेल करने की कोशिश की लेकिन लडकी ने उसे सोशल साइट पर एक्सपोज ही नहीं किया। पोस्ट को पुलिस कमिशनर से टैग करने पर आरोपी जल्द ही पकडा गया। ऐसी घटनाओं पर बात करते हुए सोशल ऐक्टिविस्ट कविता कृष्णन बताती हैं कि 'इसमें तो कोई शक नहींकि सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अपनी बात रखने का एक प्लेटफॉर्म दिया है लेकिन अभी इसकी पहुंच कुछ ही स्त्रियों तक है। अभी भी एक बडा तबका इस सुविधा के बारे में जानता तक नहींहै। फिर भी जितनी स्त्रियां इस मंच का इस्तेमाल कर रही हैं, उनकी तरफ से पुरुषों को लगातार चुनौतियां दी जा रही हैं, अपनी जगह बनाने की कोशिश की जा रही है। भारत में ही नहीं, दुनिया भर में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। यह न्याय पाने का एक जरिया भी है। सोशल मीडिया पर चल रहे कैंपेन के जरिये न्याय की राह तक पहुंचा जा सकता है लेकिन फिर यह अपने साथ कुछ नुकसान भी लेकर आता है। इस मंच का इस्तेमाल किसी को जलील करने के लिए भी आसानी से किया जाता है। यहां स्त्रियां इसकी आसान टारगेट हैं। इस तरह के हमले मानसिक पीडा पहुंचाते हैं और आप ऐसे मंचों से दूरी बना लेते हैं।' सोशल मीडिया और कानून सोशल मीडिया पर रोजाना लाखों खबरें वायरल होती हैं, जिनकी सत्यता की जांच करना मुश्किल है। लोग आसानी से इन बातों पर विश्वास भी कर लेते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट एल. नागेश्वर राव के बारे में व्हॉट्सऐप पर ऐसा ही एक मेसेज वायरल हुआ, जिसमें एडवोकेट राव के आईपीसी की धारा 376 यानी दुष्कर्म के आरोप में फंसे होने की बात लिखी थी। इस पर प्रतिक्रिया में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि संसद में सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर लगाम लगाने वाले नए कानून लाए जाने चाहिए। आइटी ऐक्ट 66 ए में सोशल मीडिया पर कमेंट लिखने के लिए भारत में पहले भी बहुत से लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस ऐक्ट के अंतर्गत सोशल मीडिया पर किसी को पीडा और असुविधा पहुंचाने पर तीन साल कैद की सजा का प्रावधान है। आलोचक पुलिस द्वारा इस धारा के इस्तेमाल को अभिव्यक्ति की आजादी का हनन मानते हैं। मार्च 2015 में ही केंद्र सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन दिया था कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए गिरफ्तारी नहीं होगी, जिसे ऑनलाइन आजादी के लिए एक बडा दिन करार दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि सेक्शन 66 ए को खारिज किया गया क्योंकि वह अस्पष्ट था और उसका मसौदा ठीक से तैयार नहीं हुआ था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह संसद से एक नया कानून लाने के लिए कह सकता है क्योंकि पहले भी संसद को दूसरे मुद्दों पर कानून बनाने के प्रस्ताव दिए जा चुके हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर तर्क देते हैं कि 66 ए को पूरी तरह खत्म करना ही पूर्ण सुरक्षा दे सकता है वरना किसी भी तरह की पाबंदी लगने पर पुलिस, प्रशासन या राजनेता किसी मुक्तभाषी व्यक्ति को किसी ना किसी तरह घेरे में ले लेंगे। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार को कथित तौर पर एक मंत्री के खिलाफ लिखी आलोचनात्मक फेसबुक पोस्ट के कारण जला कर मार डाला गया। मार्च में न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की खंडपीठ ने कानून की छात्रा श्रेया सिंघल और कुछ गैरसरकारी संगठनों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए कहा था कि धारा 66 ए असंवैधानिक है और इससे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होता है। याचिका के खिलाफ सरकार ने कहा था कि साइबर अपराधों से बचने के लिए यह कानून है। जनता को इंटरनेट पर आजादी देने पर भडकाऊ पोस्ट से आक्रोश फैलने का खतरा रहता है। सोशल मीडिया पर निगरानी और नियंत्रण की ऐसी किसी व्यवस्था की दरकार है, जिससे उसका दुरुपयोग करने वालों पर लगाम कसी जा सके लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी भी बरकरार रहे। बदलाव की शुरुआत तो हो चुकी है और निश्चित रूप से समय के साथ-साथ स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में बदलाव के उपकरण के तौर पर इस नई मीडिया का और भी इस्तेमाल होगा लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि यह इस्तेमाल संयम और समझदारी के अलावा तर्कसंगत रूप से किया जाए तो नतीजे बेहतर होंगे और उद्देश्यों को पूरा करना आसान होगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सोशल मीडिया ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है, जिसके जरिये स्त्रियां अपने जीवन में नए बदलाव ला सकती हैं, वे पहलकदमी लेते हुए अपनी सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव ला सकती हैं। इस मंच ने उनकी आजादी के आसमान को और भी व्यापक कर दिया है। लडें अपने हक की लडाई अंकित शाह, ऐक्टर सोशल मीडिया समस्याएं उठाने और उन्हें दूर करने का अच्छा माध्यम है। कई बार हमने देखा है कि इसके जरिये तुरंत समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस माध्यम पर समस्याएं उठाने से सरकारी मशीनरी, जिम्मेदारी अधिकारी और नेता तुरंत ऐक्टिव हो जाते हैं। इससे परेशान लोगों को तुरंत रिस्पॉन्स भी मिलता है। कई समस्याएं ऐसी होती हैं कि उनसे मास कनेक्ट हो जाता है। इस तरीके को देखते हुए कई लोग समस्याओं के छोटे-छोटे विडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं। ये विडियो जल्द ही वायरल भी हो जाते हैं और इनका समाधान भी निकल रहा है। हालांकि, कई बार हमें इसका नकारात्मक रूप भी देखने को मिलता है, पर एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमें इसका सकारात्मक इस्तेमाल ही करना चाहिए। स्त्रियों पर घरेलू हिंसा के मामले ज्य़ादा देखने को मिलते हैं तो वे इस माध्यम का ज्य़ादा फायदा ले सकती हैं। कई स्त्रियों को तो इससे फायदा भी हुआ है। हम ऐक्टर एक ट्वीट से कई लोगों की राय ले सकते हैं। मैं अपने ऐक्ट के बारे में पोस्ट करता हूं तो मुझे भारत और इंडोनेशिया से भी तारीफें और प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। मुझे तो कुछ पोस्ट पर हॉलीवुड से भी ऑफर मिल चुके हैं। सशक्त माध्यम है यह अभिषेक वर्मा, ऐक्टर सोशल मीडिया स्त्रियों के लिए वाकई नया मंच बनकर सामने आया है। यह उन स्त्रियों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया है जिनके पास अपनी आवाज उठाने के लिए कोई जरिया नहीं था। पुरुष तो कामकाज या किसी और काम के लिए घरों से बाहर निकलते ही हैं, पर आज इसके जरिये वे स्त्रियां भी आपस में कनेक्ट हो जाती हैं, जो घर संभालती हैं। इस माध्यम से वे स्त्रियां या दूसरे नि न वर्ग भी अपनी समस्याओं को दुनिया के सामने रख सकते हैं, जिनकी आवाज नहीं सुनी जाती। हां, लोगों को भी इस मंच के प्रति जानकारी होनी चाहिए कि उन्हें अपनी आवाज कैसे उठानी है। करीबी दोस्तों से तो मैं फोन पर बात कर लेता हूं। मैं इस माध्यम का एडिक्ट नहीं हूं पर अपने फैंस से बात करने के लिए, उनकी राय जानने के लिए, उनसे कनेक्ट होने के लिए और उन्हें अपने बारे में अपडेट रखने के लिए मैं सोशल मीडिया पर लगातार अपने काम के बारे में फीडबैक लेता रहता हूंं ताकि मेरे काम के बारे में अच्छाई के साथ उसकी खामियां पता लगती रहें। साथ ही यह मुझे न सिर्फ इंडिया बल्कि दुनिया भर की खबरों को जानने के लिए मैं इसे फॉलो करता रहता हूं। मुझे लगता है कि यही इसकी लोकप्रियता का कारण भी है अपनी बात कहने से डरना क्या? सोना महापात्रा, सिंगर सोशल मीडिया एक लोकतांत्रिक मंच है। इस मंच पर हर कोई अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है, अपने विचार रख सकता है। ऐसा करते हुए उसे इस बात का भी खयाल रखना है कि वह अपनी सीमा को न लांघे और कोई ऐसा करता है तो आपको उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। अगर आप डर गईं तो आपने तो उनके मकसद को कामयाब कर दिया। आप सही हैं तो तब तक डटे रहिए, जब तक कि सामने वाला शर्मिंदा न हो जाए और अपनी गलती न मान ले। स्त्री होने का यह मतलब बिलकुल नहीं है कि आप कमजोर हैं और कोई भी ऐरा-गैरा आपको कुछ भी कहने का हक रखता है। आप अपने अधिकारों को जानें और उनका प्रयोग करें। ऐसे लोगों को बेनकाब करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लें। बदलाव की चली है बयार संदीप नाथ, गीतकार 120 सालों में स्त्रियों के जीवन में जो बदलाव नहींआए, सोशल मीडिया ने अपने छोटे से कार्यकाल में उसे कर दिखाया है। मैं तो मानता हूं कि सोशल मीडिया ने स्त्रियों को ऐसा मंच उपलब्ध कराया है, जिसके जरिये वे अपनी हर बात लोगों तक पहुंचा सकती हैं। हालांकि अभी इसकी पहुंच सिर्फ शहरी तबकों तक है। ग्रामीण तबकों तक अभी यह उस तरह नहीं पहुंच पाया है। इसके लिए मेरा एक सुझाव है कि हर पिता व भाई को अपनी बेटी, बहन या पत्नी को स्मार्टफोन गिफ्ट करना चाहिए, जिसमें एक साल का नेट पैक हो जिससे वे जान सकें कि सोशल मीडिया क्या है? वे इसके फायदे के बारे में जान सकें, दुनिया को जान सकें, साथ ही अपने अनुभव यहां बांट सकें और दूसरों के अनुभवों से कुछ सीखें। सोशल मीडिया से जिन बातों को सीख सकते हैं, वह दुनिया के किसी क्लासरूम में नहीं सिखाया जाता। सोशल मीडिया में ज्य़ादा से ज्य़ादा स्त्रियों की सहभागिता से ही उनकी स्थिति में क्रांति आएगी। बिंदास होकर जवाब देना होगा हमें जेनिफर विंगेट, अभिनेत्री सोशल मीडिया हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। हम शब्दों के जरिये, फोटो के जरिये अपनी बातों को लोगों तक पहुंचा सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि लोग आपको आसान टारगेट समझ आपकी पोस्ट पर भद्दे कमेंट्स करने लगते हैं। ऐसे में जरूरत है, मुंहतोड जवाब देने की। आपको पीछे नहीं हटना है, कमजोर नहीं पडऩा है। हम जानते हैं कि हमारे साथ सोशल मीडिया पर अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है लेकिन कुछ करते नहीं, चुप रह जाते हैं। यह चुप्पी गलत है। यह सामने वाले को और बोलने के लिए उकसाती है। अगर आपको किसी बात का बुरा लग रहा है तो कृपया अपना मुंह खोलकर बिंदास बोलिए। जहां मौका मिले, अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाएं। इंटरव्यू : संगीता सिंह यशा माथुर और गीतांजलि

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