जगमगाते रहें रत्न
रत्नों की दुनिया में आपका स्वागत है। कहते हैं हर चमकती ची•ा सोना नहीं होती। रत्नों के बारे में भी यही सच है। कभी भाग्य के लिए, कभी सौंदर्य के लिए तो कभी निवेश की दृष्टि से लोग रत्न ़खरीदते हैं, लेकिन वे कैसे जानें कि जो रत्न ख़्ारीद रहे हैं, वह सही है या नहीं और जो ़कीमत वे चुका रहे हैं, वह जायज़्ा है या नहीं? ट्रीटेड और अनट्रीटेड रत्न क्या हैं? यह सब जानिए रत्नों के बारे में, क्योंकि जानकारी ही जागरूकता है। बता रही हैं दिल्ली की जेमोलॉजिस्ट आरती शेखर।
रत्नों की पहचान तीन स से होती है, सौंदर्य, सौम्यता और सौभाग्य। कुछ लोग ख्ाूबसूरती बढाने वाले अलंकरणों की तरह इनका उपयोग करते हैं तो कुछ इनकी दैवी शक्तियों से प्रभावित होते हैं। माना जाता है कि ये रोगों के निदान में सहायक होते हैं। रत्न बहुमूल्य पत्थर हैं, जो कटाई और पॉलिश के बाद आभूषण बनाने के काम आते हैं। रत्नों से जुडी कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें आम लोग नहीं जानते।
बहुमूल्य रत्न
हर रत्न एक पत्थर है, लेकिन सभी पत्थर रत्न नहीं कहलाते। रत्न का अर्थ श्रेष्ठता से लिया जाता है। इसलिए पत्थरों में श्रेष्ठ हीरा, माणिक, नीलम, पुखराज, पन्ना को देखते ही रत्न कह दिया जाता है। ये बहुमूल्य रत्न हैं। आज बाज्ार में मौजूद ज्यादातर रत्न परिष्कृत और ट्रीटेड हैं, जिन्हें पहचानना आम ख्ारीदार के लिए मुश्किल है। रत्न का रंग ही उसकी सबसे स्पष्ट और आकर्षक विशेषता है। हर रत्न में रंगों का एक फिंगर प्रिंट होता है। इसे शोषक स्पेक्ट्रम कहते हैं। यह फिंगर प्रिंट हर रत्न में अलग-अलग होता है, जो रत्न की पहचान बनाता है। इन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता। रत्नशास्त्री इनकी जांच स्पेक्ट्रोस्कोप से करते हैं। यह बेहद जटिल प्रक्रिया होती है। आज बाज्ार में उपलब्ध ज्यादातर रत्न ट्रीटेड या परिष्कृत हैं। ये देखने में सुंदर होने के साथ ही टिकाऊ भी होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नैचरल पत्थरों में यह ख्ाूबसूरती ट्रीटमेंट के ज्ारिये आती है? इसे हीटिंग ट्रीटमेंट कहते हैं। इसमें नैचरल स्टोंस को अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे ये परिष्कृत हो जाते हैं। यह रत्न को परिष्कृत बनाने की सबसे पुरानी व साधारण प्रक्रिया है। हालांकि आजकल हीटिंग के अलावा रत्नों को कई अन्य तरीकों से भी परिष्कृत किया जाने लगा है। सर्फेस डिफ्यूजन, ग्लास फिलिंग, बेरिलियम डिफ्यूजन, इरेडिएशन, फ्रैक्चर फिलिंग के ज्ारिये भी रत्नों का ट्रीटमेंट होता है।
जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका द्वारा वर्ष 2005 में किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया कि बाज्ार में उपलब्ध माणिक और नीलम (नीले व पीले) 95प्रतिशत तक परिष्कृत या ट्रीटेड हैं और इनकी सुंदरता बढाने के लिए इन्हें हीट ट्रीटमेंट दिया जाता है। व्यावहारिक सच्चाई यह है कि आज बाज्ार में मौजूद 99 प्रतिशत माणिक और नीलम ट्रीटेड होते हैं।
अनट्रीटेड रत्न
प्राकृतिक और अनट्रीटेड रत्नों में उनके जन्मजात गुण बरकरार रहते हैं। हज्ारों-लाखों वर्षो तक ज्ामीन के भीतर पडे रहने के कारण इन खनिज पदार्थो में पृथ्वी की चुंबकीय शक्तियां आ जाती हैं। इनका निर्माण भिन्न-भिन्न तत्वों के आपस में मिलने यानी क्रिया-प्रतिक्रिया के बाद होता है। इन रत्नों में प्रमुख रूप से कार्बन, बेरियम, बेरिलियम, एल्युमिनियम, कैल्शियम, जस्ता, टिन, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फॉस्फोरस, मैग्नीज्ा, गंधक, पोटैशियम, सोडियम और जिंकोनियम जैसे तत्व पाए जाते हैं।
ट्रीटेड रत्न
हीटिंग के दौरान रत्नों को अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे उनके मौलिक गुण नष्ट हो जाते हैं। हीटेड रत्नों के रंग और चमक में निखार भट्टियों में गर्म होने से आता है। हीटिंग के दौरान कुछ बाहरी तत्व भी शामिल होते हैं, जिससे रत्नों का रंग और रासायनिक लक्षण बदल जाते हैं। हालांकि ऐसे रत्न सुंदर दिखते हैं, लेकिन ये न तो प्राकृतिक रह जाते हैं और न ही शुद्ध। रत्नों की ख्ारीदारी इसलिए भी होती है कि ये एक िकस्म का निवेश है, लेकिन ऐसे ट्रीटेड रत्नों की रीसेल वैल्यू नहीं रह जाती। समय के साथ सिर्फ उन्हीं रत्नों की कीमत बढने की उम्मीद की जा सकती है जो अनट्रीटेड हों।
अंतर समझें
रत्न ख्ारीदते हुए ट्रीटेड व अनट्रीटेड रत्नों में बुनियादी अंतर को समझना चाहिए। आजकल लोग रत्न किसी ख्ास मकसद से ख्ारीदते हैं। कुछ लोग राशि-चक्र के हिसाब से भी रत्न ख्ारीदते हैं। इसलिए ख्ारीदार को जागरूक रहना चाहिए। विक्रेता का भी दायित्व है कि वह ग्राहक को ट्रीटेड व अनट्रीटेड रत्नों की सही-सही जानकारी दे, साथ ही रत्न के बारे में विस्तृत जानकारी का प्रमाण-पत्र दे। जो सर्टिफिकेट ग्राहक को मिला हो, उसे भी किसी दूसरी जगह पर क्रॉस चेक कराने से न हिचकें। जब कोई रत्न विक्रेता रत्नों को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजता है तो वहां रत्न की उत्पत्ति, उसके गुणों-तत्वों के साथ ही यह परीक्षण भी होता है कि वह ट्रीटेड है या अनट्रीटेड। ये सभी जानकारियां सर्टिफिकेट में लिखी जाती हैं और इस पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की मुहर लगी होती है। ग्राहकों को प्रमाण-पत्र की असलियत और रत्नों की ग्रेडिंग के बारे में जानकारी ज्ारूर होनी चाहिए। यह ज्ारूरी है कि रत्न ख्ारीदते समय ख्ारीदार प्रमाण पत्र मांगे और रत्नों के ग्रेड की जांच करे। माणिक (रूबी) और नीलम (सफायर) के मामले में नैचरल अनट्रीटेड और नैचरल ट्रीटेड रत्नों के दाम में काफी अंतर होता है। इसलिए माणिक या नीलम के लिए प्रीमियम दाम चुकाने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि रत्न ट्रीटेड है या अनट्रीटेड। ट्रीटेड या अनट्रीटेड की पहचान जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका (जीआईए) जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं द्वारा की जा सकती है।
चेकलिस्ट
1. रत्न के साथ अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला द्वारा जारी किया गया प्रमाण-पत्र भी अवश्य लें।
2. सर्टिफिकेट में रत्न के ट्रीटेड या अनट्रीटेड स्तर को ध्यान से पढें।
3. कैरट व रत्ती का फर्क स्पष्ट होना चाहिए। भारत में आमतौर पर लोग रत्नों की ख्ारीद-बिक्री रत्ती वज्ान के हिसाब से करते हैं। लेकिन वज्ान मापने के लिए कैरट ही सबसे सही इकाई है। यही प्रामाणिक अंतरराष्ट्रीय इकाई है। कैरट में ही गणना करें और ख्ारीदें।
4. प्रतिष्ठित ज्यूलरी शॉप से ही रत्न ख्ारीदें।
5. रत्नों के साथ बिल ज्ारूर लें, ताकि भविष्य में कोई समस्या होने पर उसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके।
कैसे होता है ट्रीटमेंट
पन्ना : पारंपरिक तौर पर हर िकस्म का पन्ना ऑयलिंग प्रक्रिया से गुज्ारता है। इसमें उसे निखारने-सुंदर बनाने की प्रक्रिया शामिल होती है। इसे टिकाऊ बनाने के लिए इसे तेल में भिगोकर रखा जाता है। हालांकि अब यह तरीका पुराना हो चुका है। अब तेल के बजाय इसे हाई ग्रेड वाले इपॉक्सी रेजिन और अन्य फिलर्स में भिगोकर रखा जाता है, जिससे इसके रंग, पारदर्शिता और गुणवत्ता में बढोतरी होती है और यह टिकाऊ भी हो जाता है। लेकिन ये ट्रीटमेंट स्थायी नहीं होते हैं और बाहरी प्रभाव में आकर रत्नों की चमक कम भी होती है।
माणिक : इसके रंग को गाढा या हलका करने के लिए इसे सामान्य तौर पर गर्म किया जाता है। सीसे की मदद से माणिक की फ्रैक्चर फिलिंग करना आजकल आम है। इसकी मदद से माणिक में मौजूद दरार और छेद भरे जाते हैं, साथ ही इसकी चमक और रंग मे भी निखार आता है।
नीला नीलम : इस रत्न को परिष्कृत करने और रासायनिक भेदन (डिफ्यूजन) बढाने के लिए इसकी हीटिंग आम ट्रीटमेंट है। ख्ासतौर पर थाईलैंड से आने वाले नीलम को इसी तरह ट्रीट किया जाता है।
पीला-नारंगी नीलम : हीटेड ट्रीटमेंट और रेडिएशन के ज्ारिये इनका रंग बदला जाता है।